Sunday 10 May 2009

आम आदमी के लिए घर है अभी सपना

भारत में अभी मध्यम वर्ग के लिए एक घर या कार एक सपना ही है। इधर प्रोपर्टी और हाउसिंग के सेक्टर में देश में उफान आया है। दिल्ली व मुंबई जैसे शहरों में अपार्टमेंटों को निर्माण बड़ी तेजी से हो रहा है पर इनमें से अधिकतर अपार्टमेंट महंगे हैं। ये मध्यम वर्ग की पहुंच से बाहर हैं। अगर आप दिल्ली के बाहरी इलाके में एक एमआईजी फ्लैट खरीदना चाहें तो उसकी कीमत 15 लाख से आरंभ होती हैं। वहीं देश के नामी आर्किटेक्टों द्वरा डिजाइन किए गए फ्लैटों की कीमतें 40 लाख से लेकर करोड़ तक जा रही है।

मुंबई में लोढा बेल्लीसीमो नामक 55 माले की इमारत का निर्माण हो रहा है। वर्ली में ओबराय कंस्ट्रक्सन 65 माले की बिल्डिंग बना रही है। यह बिल्डिंग भारत में सबसे ऊंची होगी। इसी तरह सेठ डेवलपर्स 33 माले की बिल्डिंग बना रहे हैं। बस इन सबमें एक फ्लैट लेने के लिए आपके पास बस कुछ करोड़ रुपए होने चाहिए। हालांकि मुंबई के सब अर्बन इलाके में वन रुम वाले सस्ते फ्लैट भी देखे जा सकते हैं। पर दिल्ली में ऐसी बात बिल्कुल नहीं है। यहां दिल्ली डेवलपमेंट आथरिटी सस्ते घर बनाती है पर उसमें घर पाने के लिए आपको 10 से 15 साल तक इंतजार करना पड़ सकता है। वहीं प्राइवेट बिल्डर दिल्ली और आसपास के शहरों में जो परियोजनाएं लेकर आ रहे हैं उनमें एक निम्न मध्यम वर्ग के आदमी के लिए घर खरीदना आसान नहीं है। लिहाजा इस वर्ग के लोग मजबूरी में अवैध कालोनियों का निर्माण करते हैं। दिल्ली की सुंदरता पर ऐसी अवैध कालोनियों बहुत बड़ा धब्बा हैं। जब कोई विदेशी आदमी दिल्ली आता है तो उसे चाणक्यापुरी, संसद मार्ग देखकर दिल्ली खूबसूरत लगती है। पर अगर आप सीलमपुर, त्रिलोकपुरी जैसे इलाके देख लें तो आपको दिल्ली की असली तस्वीर का पता लगेगा। कुछ नहीं तो आप दिल्ली में रेल गुजरते हुए पटरियों के किनारों भारत की गरीबी के दर्शन कर सकते हैं। लिहाजा सरकार को ऐसे ऐसे उपाय करने चाहिए कि मध्यम वर्ग के लोगों के लिए छोटे-छोटे बहुमंजिलें आवासों का निर्माण किया जाए।
केंद्रीय शहरी विकास मंत्री अजय माकन ने हालांकि इस बात का विश्वास दिलाया है कि दिल्ली के नए मास्टर प्लान में गरीब व मध्य वर्ग के लोगों के लिए छोटे-छोटे घरों का ख्याल रखा जाएगा। पर अब देखने वाली बात होगी कि इस पर कितना अमल हो पाता है। किसी भी शहर का सुव्वयस्थित ढंग से विकास हो इसके लिए जरूरी है कि वहां अवैध कालोनियों के विकास को रोका जाए। इसके लिए सख्त कानून बनाया जाए। पर दिल्ली में ऐसा नहीं हुआ। आधी दिल्ली का विकास अवैध कालोनियों के रुप में ही हुआ है। बाद में वही कालोनियों का नियमित कर दी गईं। इसका परिणाम यह हुआ कि यहां संकरी गलियां और बदबूदार नालियां हैं। मुंबई में धारावी एक बहुत बड़ा स्लम इलाका है तो दिल्ली में इस तरह के इलाके जगह जगह बने हुए हैं। दोष इन कालानियों में रहने वाले लोगों का नहीं है। उनका शहर के विकास में बहुत बड़ा योगदान है। शहर मे महंगी कालोनियों में सफाई करने वाले, फैक्टरियों में काम करने वाले मजदूर, चौकीदार, रेहड़ी पटरी वाले तमाम लोग, यहां तक की सरकारी नौकरी करने वाले तृतीय और चतुर्थ वर्ग के कर्माचारी भी इसी तरह की कालोनी में ही रहते हैं। पर जरूरत इस बात की है कि एक महानगर में हर आय वर्ग के लोगों के रहने के लिए समुचित इंतजाम किए जाएं। ऐसे इंतजाम जिससे उनके रहने वाले इलाके भी सुंदर लग सकें। उनके घरों में भी पर्याप्त हवा और धूप आती हो। अभी आधी दिल्ली में ऐसे घर हैं जहां हवा और धूप ठीक से नहीं आती।
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