Sunday 13 September 2009

हिंदी अब विश्व भाषा बनेगी

संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति जार्ज बुश ने अपने देश के लोगों से अपील की है कि वे हिंदी जैसी भाषा सीखें। यूएसए के सैनिक, गुप्तचर अधिकारी और राजनेता भी अब हिंदी के जानकार मिलेंगे। यानी अमेरिका ने हिंदी को एक मजबूत भाषा के रुप में स्वीकार कर लिया है। पहले माइक्रोसाफ्ट और अब अमेरिका जैसा देश। यानी हमारी भाषा विश्व पटल पर मजबूत हो रही है। यह दूसरा पहलू हो सकता है कि अमेरिका में हिंदी सीखने का जो अभियान चलाया जा रहा है उसके मूल कारण रणनीतिक है। पर इतना तय है कि उन्हें इस भाषा के पीछे एक ताकत नजर आती है। पहली ताकत जो एनआरआई लाखों की संख्या में अमेरिका में रहते हैं और अमेरिका की सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था में महत्वपूर्ण दखल देने लगे हैं। भारतीय टीवी चैनल और और भारतीय में बनने वाले हिंदी सिनेमा की ग्लोबल मार्केट में उपस्थिति। हिंदी के साथ एक बहुत बड़ा बाजार है। हमें अगर कुछ पुरी दुनिया में बेचना है, पूरी दुनियाको समझाना है तो हिंदी में उतरना ही पड़ेगा। 


अमेरिका ने इस सच को समझ लिया है कि दुनिया की जो मजबूत भाषाएं हैं उनका सम्मान करना ही पड़ेगा। इसके लिए इस भाषा को लिखना पढ़ना आना ही चाहिए।
अगर हिंदी के लोगों ने कंप्यूटर को और पहले अपना लिया होता तो हिंदी का विकास और भी तेज हो सकता था। हिंदी ऐसी भाषा है जो कुछ सौ वर्षों में ही करोड़ों लोगों की जुबान बनी है। खड़ी बोली का जो स्वरूप हम आज अपनाए हुए हैं वह अंग्रेजों के भारत में आगमन के बाद ही विकसित हुआ है। भारतेंदु हरिश्चंद्र के बाद से पल्लवित होने वाली हिंदी अब देश की सीमाएं लांघ चुकी है। माक्रोसाफ्ट के एक्सपी संस्करणों में रीजनल भाषा विकल्प में हिंदी को किसी भी कंप्यूटर में सक्रिय किया जा सकता है। दुनिया के किसी भी कंप्यूटर में कुछ मिनटों के प्रयास के बाद आप हिंदी में टाइपिंग शुरू कर सकते हैं। हो सकता है आने वाले दिनों में आप अमेरिका जाएं तो आपको होटलों में हिंदी समझने वाले लोग मिल जाएं। पर्यटक स्थानों पर हिंदी में बातें करने वाले गाइड मिल जाएं। हिंदी के विकास में इसका लचीलापन और इसकी सारग्राहिणी प्रवृति का बहुत बड़ा योगदान है। हालांकि कि तत्सम हिंदी के पुरोधा इन चीजों से विरोध रखते हैं। पर हमें हिंदी को और उदार बनाना होगा। दूसरी भाषा के शब्दों के प्रयोग में उदारता बरतनी होगी। जो लोग खिचड़ी भाषा को हिंग्लिश कहकर धिक्कारते हैं उन्हें यह समझना होगा इसी तरह के लोग हिंदी की वैश्विक पहचान बना रहे हैं। टीवी के समाचार चैनल, मनोरंजन चैनल और हिंदी फिल्में हिंदी को ग्लोबल बना रही हैं। आज अमेरिका ने स्वीकारा कल दुनिया के कुछ और देश स्वीकारेंगे। इस परिपेक्ष्य में अब भारत के कुछ राज्यों में हिंदी विरोध की बात बेमानी लगती है। हमें अब इस तरह की बातों से उपर उठना होगा। आने वाले सौ सालों हिंदी और ऊपर जाएगी। बहुत ऊपर।

-विद्युत प्रकाश,   मेल vidyutp@gmail.com


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