Tuesday 15 April 2008

शायर नजीर बनारसी की याद


काशी हिंदू विश्वविद्यालय यानी बीएचयू में मुझे उस दौर में पढ़ने का मौका मिला जब बीएचयू की प्लैटिनम जुबली मनाई जा रही थी.....इसी मौके पर बीएचयू के एमपी थियेटर ग्राउंड में 1992 में एक कवि और शायरों का सम्मेलन आयोजित हुआ वहां नजीर बनारसी की आवाज में एक गजल सुनने को मिली ....उसकी कुछ पंक्तियां बार बार याद आती हैं..........
तेरी मौजूदगी में नजारा कौन देखेगा.....
मेले में सब तुझको देखेंगे मेला कौन देखेगा

जरा रुकिए अभी क्यों जाते हैं शादी की महफिल से
हंसी रात आपने देखी सबेरा कौन देखेगा....

आती है सफेदी बालों में तो आने दे नजीर
जवानी तुमने देखी बुढ़ापा कौन देखेगा.....
अब नजीर बनारसी भी नहीं हैं... 23 मार्च 1996 को उनके निधन की खबर आई तो दिल उदास हो गया। उस कवि सम्मेलन का मंच संचालन कर रहे थे हिंदी के प्रख्यात कवि डा. शिवमंगल सिंह सुमन....डा. शिवमंगल सिंह सुमन की एक कविता बचपन में पढ़ी थी....
हम पंक्षी उन्मुक्त गगन के
पिंजरबद्ध न गा पाएंगे
कनक तिलियों से टकराकर
पुलकित पंख टूट जाएंगे  
कविता की आखिरी पंक्ति बड़ी मार्मिक थी....
नीड़ न दो चाहे
टहनी का आश्रय
छिन्न कर डालो
पर पंख दिए हैं तो
आकुल उड़ान में बिघ्न न डालो 

डा. शिवमंगल सिंह सुमन ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय में पढ़ा भी और पढ़ाई भी की.....प्लैटिनम जुबली समारोह के कवि सम्मेलन का मंच संचालन करते हुए डा. सुमन ने एक कविता सुनाई.....
मौन भले हों अधर तुम्हारे
प्यासा विहग चहक जाएगा
तुम जूड़े मे गजरा मत बांधों
मेरा गीत भटक जाएगा.....


- विद्युत प्रकाश मौर्य

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