Wednesday 1 April 2009

मेरी पसंद की कुछ शायरी...

कुछ मेरी पसंद के पंक्तियां हैं आप भी पढ़िए... 

पुण्य हूं न पाप हूं
जो भी हूं
अपने आप हूं
अंतर देता दाह
जलने लगता हूं
अंतर देता राह
चलने लगता हूं
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ये माना की गुलशन लूटा
और नशेमन जला
फिर भी कुछ तो बाकी
निशां रह गया
तिनके तिनके चुनकर
फिर बना लेंगे आशियां
हौशला गर जो हमारा जवां रह गया
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काम कुछ अच्छे कर लो अच्छी जिंदगानी आपकी
लोग भी कुछ कहें , लोग भी कुछ सुनें कहानी आपकी

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मैं रोया परदेस में भीगा माँ का प्यार
दुख ने दुख से बात की
बिन चिठ्ठी बिन तार
छोटा करके देखिये जीवन का विस्तार
आँखों भर आकाश है बाहों भर संसार

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ए मेरे दोस्त जब घर जाना अपने याद दिलाना मेरी करना एक निवेदन
उनके कल के लिए हमने अपना आज किया समर्पण।
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गति प्रबल पैरों में भरी
फिर क्यों रहूं दर दर खडा
जब आज मेरे सामने है रास्ता इतना पडा
जब तक न मंजिल पा सकूँ,
तब तक मुझे न विराम है, चलना हमारा काम है ।

(( - डा. शिवमंगल सिंह सुमन))
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हुआ सवेरा ज़मीन पर फिर अदब से आकाश अपने सर को झुका रहा है
कि बच्चे स्कूल जा रहे हैं
नदी में स्नान करने सूरजसुनारी मलमल की पगड़ी बाँधे
सड़क किनारे खड़ा हुआ मुस्कुरा रहा है
कि बच्चे स्कूल जा रहे हैं
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कालरात्रि के महापर्व पर अँधकार के दीप जल रहे
भग्न हृदय के दु:खित नयन मेंआँसू बनकर स्वप्न ढल रहे
मानवता के शांति दूत तुम
प्रीति निभाना छोड़ न देना
दीप जलाना छोड़ न देना
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आसमां आस लिए है कि ये जादू टूटे
चुप की जंजीर कटे वक्त का दामन छूटे
दे कोई शंख दुहाई कोई पायल बोले
कोई बुत जागे कोई सांवली घूंघट खोले ( फैज अहमद फैज )

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सातों दिन भगवान के क्या मंगल क्या पीर
जिस दिन सोए देर तक भूखा रहे फ़कीर
अच्छी संगत बैठकर संगी बदले रूप
जैसे मिलकर आम से मीठी हो गई धूप
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यूं तो हर दिल किसी दिल पर फिदा होता है
प्यार करने का मगर तौर जुदा होता है
आदमी लाख संभले गिरता है मगर
झुककर जो उसे उठा ले खुदा होता है...
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जब अंधेरा घना छाने लगा
तब प्रकाश की चिंता सताने लगी
तब एक छोटा सा नन्हा सा दीपक आगे आया
और बोला मैं लडूंगा प्रकाश से...
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महफिल में हंसना मेरा मिजाज़ बन गया
तन्हाई में रोना राज़ बन गया
दर्द को चेहरे से ज़ाहिर ना होने दिया
यही मेरे जीने का अंदाज़ बन गया ...
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यह न सोचो कल क्या हो
कौन कहे इस पल क्या हो
रोओ मत न रोने दो
ऐसा भी जल थल क्या हो
बहती नदी की बांधे बांधे
चुल्लू में हलचल क्या हो
रात ही गर चुपचाप मिले
फिर सुबह चंचल क्या हो
आज ही आज की कहें सुने
क्यों सोचें कल क्या हो। ( मीना कुमारी )
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मुस्कुराके जिनको गम का जहर पीना आ गया
ये हकीकत है जहां में उनको जीना आ गया
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आहों के नगमें अश्कों के तारे
कितने हसीं हैं ये गम हमारे
एक छोटा सा दिल
और उल्फत की ये दौलत
क्या कोई जीते
क्या कोई हारे..
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जिंदगी है बहार फूलों की
दासंता बेशुमार फूलों की
तुम क्या आए तसव्वुर में
आई खुशबू हजार फूलों की

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हरेएक खुशी हजार गम के बाद मिलती है
दीए की रोशनी जलाने के बाद मिलती है
मुश्किलों में घबराके सिसकने वालों
चांदनी रात अंधेरे के बाद मिलती है।
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सृष्टि बीज का नाश न हो
हर मौसम की तैयारी है
कल का गीत लिए होठों पर
आज लड़ाई जारी है
(( महेश्वर ))

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अजनबी शहर के अजनबी रास्ते
मेरी तन्हाई पर मुस्कुराते रहे
मैं बहुत दूर यूं ही चलता रहा
तुम बहुत दूर यूं ही याद आते रहे...
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राहों पे नजर रखना
होठों पर दुआ रखना
आ जाए शायग कोई
दरवाजा खुला रखना

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समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याघ।
जो तटस्थ है, समय लिखेगा उनका भी अपराध।।
( रामधारी सिंह दिनकर )

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