Friday 20 March 2009

अब गरीब भी बन गया है ब्रांड

भले ही लोग महंगाई का रोना रो रहे हैं हो पर बाजार अभी भी उत्पादकों को चीजों को सस्ते में बेचनेकी होड़ लगी है। अभी हाल में नेसकैफे ने अपनी काफी का एक रुपए का पाउच जारी किया है। अगर आपको एक कप काफी पीनी हो तो एक रुपए खर्च कीजिए पाउच लाइए और काफी पीजिए।
कमाल एक रुपए का- ठीक इसी तरह बाजार में एक रुपए के शैंपू और एक रुपए वाशिंग पाउडर के कई ब्रांड मौजूद हैं। अगर हम कई साल के पुराने परिदृश्य को याद करें तो तब अगर कोई शैंपू करना चाहे तो उसे डिब्बा ही खरीदना पड़ता था यानी गरीब या मजदूर वर्ग के व्यक्ति के लिए शैंपू का इस्तेमाल करना एक लक्जरी वाली बात हो सकती थी। पर अब अब कोई भी एक रुपए का पाउच खरीद कर बालों में इस्तेमाल कर लेता है। इसी तरह पाराशुट नारियल तेल और कई अन्य प्रोडक्ट भी एक रुपए में मौजूद है। इस कारोबार से जहां कंपनियों की बिक्री में इजाफा हो रहा है वहीं उनके प्रोडक्ट के उपयोक्ता निचले तबके के लोग भी हो रहे हैं। बहुत सी बड़ी कंपनियों की नजर गरीब लोगों पर है जो उनके उपभोक्ता हो सकते हैं। चाय पत्ती के पाउच भी एक, दो और पांच रुपए के उपलब्ध हैं। और तो और ब्रिटानिया और पारले जी अपने बिस्कुटों के भी एक रुपए के पैक निकाले हैं। इसलिए आप यह नहीं कह सकते हैं कि भला आज के जमाने में एक रुपए में क्या मिलता है। आज भी एक रुपए में बहुत बड़ी ताकत है। आप एक रुपए में नहा सकते हैं बालों को ठंडक का एहसास करा सकते हैं चाय काफी की चुस्की ले सकते हैं तो थोड़ी सी पेटपूजा भी कर सकते हैं। कई नामचीन वाशिंग पाउडर कंपनियां अभी भी एक रुपये का पाउच निकाल रही हैं।
कमाल पांच रुपए का - पांच रुपए में तो कई कंपनियों में कई उत्पादों को बेचने की होड़ लगी है। कई एफएमसीजी कंपनियां अपने उत्पादों का पांच रुपए का पैक निकाल रही हैं। कई प्रोडक्ट जो मंहगे हो गए थे उन कंपनियों ने दुबारा से कम वजन का पांच रुपए का पैक निकाला है। पांच रुपए का टूथपेस्ट, पांच रुपए का वाशिंग पाउडर, पांच रुपए का को ल्ड ड्रिंक तो पांच रुपए का साबुन बाजार में उपलब्ध है। सर्दियों में इस्तेमाल किए जाने वालेा कोल्डक्रीम व वैसलीन जैसे उत्पाद अभी भी पांच रुपए का पैक निकाल रहे हैं जो धुआंधार बिकते हैं। वहीं बोरो प्लस ने भी पांच रुपए का पैक अपने उपभोक्ताओं के लिए निकाला है। टीवी पर एक रुपए दो रुपए और पांच रुपए में मिलने वाले प्रोडक्ट के विज्ञापनों की भरमार है। यह सब कुछ निम्न मध्यम वर्ग के उपभोक्ताओं को ध्यान में रखकर किया जाता है जो एक समय में ज्यादा रुपए का उत्पाद नहीं खऱीद सकता है। एक,दो और पांच रुपए की यूनिट वाले उत्पाद वे लोग भी खरीद सकते हैं जो रोज 70 से
100 रुपए दैनिक कमा पाते हैं। वहीं ज्यादा आय के लोग भी जो किसी प्रोडक्ट को एक बार या दो बार उपयोग करने के लिए लेना चाहते हैं उनके लिए पाउच पैकिंग वरदान के रुप में मिली है।
यानी जिन्हें हम गरीब समझते हैं वह भी कई तरह के उत्पादों का बड़ा उपभोक्ता है। कंपनियां अब इस गरीब आदमी को ब्रांड मानकर उसके लिए कई तरह के उत्पाद पेश करने में लगी हुई हैं। जिन कंपनियों ने इस मूल मंत्र को नहीं समझा है वे मार्केटिंग के इस दौर में पिछड़ रही हैं। वहीं जागरूक कंपनियां दरिद्रनारायण को भी उपभोक्तावाद में उलझाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं।



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