Thursday 30 July 2009

विकास के लिए जरूरी है एसईजेड

हरियाणा में कांग्रेस के सांसद कुलदीप बिस्नोई अपनी सरकार के रिलायंस के साथ मिलकर एसईजेड यानी स्पेशल इकोनोमिक जोन बनाए जाने के फैसले के खिलाफ हैं। इसलिए उन्होंने हाल में उन पांच गांवों की तूफानी पदयात्रा की जिन गांवों की जमीनें इस आर्थिक जोन के लिए ली जाने वाली हैं। उनका आरोप है कि इस आर्थिक जोन के नाम पर किसानों की जमीन बहुत सस्ते में ली जा रही है। वे खुलेआम ऐसे किसी आर्थिक जोन का विरोध कर रहे हैं। अब किसानों की हितों की रक्षा एक मुद्दा हो सकता है। यह जरूरही है कि जिन किसानों की जमीनें इस आर्थिक जोन के लिए ली जाने वाली है, उनको अपनी जमीन का वास्तविक मुआवजा मिले। निश्चय ही किसानों के हितों की अनदेखी नहीं होनी चाहिए। पर किसी राज्य में आर्थिक जोन का अगर निर्माण किया जा रहा है तो यह किसी भी सूरत में गलत नहीं ठहराया जा सकता है।


क्यों चाहिए आर्थिक जोन- देश के समग्र आद्योगिक विकास के लिए आर्थिक जोनों का निर्माण जरूरी है। तभी हम चीन जैसे देश से मुकाबला कर सकेंगे। रिलायंस का हरियाणा में बनने वाला प्रस्तावित आर्थिक जोन 25 हजार एकड़ का है जबकि चीन में इससे कई बड़े बड़े आर्थिक जोनों का निर्माण हो चुका है। अब पंजाब हरियाणा जैसे राज्य बड़े औद्योगिक घरानों को अपने यहां आकर आर्थिक जोन बनाने का न्योता दे रहे हैं तो इसमें कोई बुराई नहीं नजर आनी चाहिए।
आर्थिक जोन में उद्योग स्थापित होने से उद्योग जगत को लाभ है। इसमें एक खास तरह के सभी उत्पादन केंद्रों की स्थापना एक ही परिसर में की जाती है। इसके साथ ही वेयरहाउस मजदूरों व अधिकारियों के लिए आवासीय क्षेत्र का निर्माण भी इसी क्षेत्र में किया जाता है। इससे उत्पादन की प्रणाली एकीकृत हो जाती है। जाहिर है कि इसका असर उत्पादन पर भी पड़ेगा। जैसे गारमेंट के क्षेत्र सभी उद्योगों को एक खास जोन में स्थापित किया जाए। पेट्रोलियम आटोमोबाइल आदि जुड़े उद्योगों को एक ही परिसर में स्थापित किया जाए तो उत्पादन प्रक्रिया को बेहतर बनाया जा सकेगा।
सरकार की रियायतें- यह आरोप लगाया जा रहा है कि सरकार ऐसे आर्थिक जोन बनाने के नाम पर उद्योगों को रियायतें दे रही है। यह सही है कि उद्योगों को आकर्षित करने के लिए रियायतें घोषित करनी पड़ती है। उद्योगपति भी कोई उद्योग वहीं लगाएगा जहां उसे सबसे बेहतर सुविधाएं प्राप्त हो सकेंगी। अभी पिछले कुछ सालों से टाटा समूह एक लाख रुपए की कार बनाने की बात कर रहा है। हालांकि उसने यह तय नहीं किया था कि यह कार कहां पर बनाई जाएगी। कभी उत्तरांचल, कभी पं बंगाल के नाम की चर्चा चल रही थी। अंत में पंजाब सरकार से समझौते केबाद यह तय हुआ कि टाटा की सस्ती कार का यह प्रोजेक्ट पंजाब में रोपड़ जिले में लगाया जाएगा। जाहिर है कि टाटा ने वहीं प्लांट लगाना पसंद किया जहां उसे सबसे बेहतर सुविधाएं प्राप्त हुईं। उद्योगपतियों को अगर रियायत नहीं प्राप्त हो तो वे अपना उद्योग एक राज्य से उठाकर दूसरे राज्य में ले जाने की बात करने लगते हैं। पिछले कुछ सालों में कई उद्योग धंधे पंजाब से शिफ्ट होकर हिमाचल प्रदेश में शिफ्ट होने लगे क्योंकि वहां उन्हें सस्ती बिजली और कई साल तक करों में रियायत मिल रही थी। इसलिए हर सरकार को अपने यहां उद्यमियों को आकर्षित करने के लिए कई उपक्रम करने पड़ते हैं। कोई उद्योगपति सबसे पहले कानून व्यवस्था की बेहतर स्थितियां उसके बाद बिजली पानी सड़क जैसी मूलभूत सुविधाओं की ओर देखता है।
-विद्युत प्रकाश




Thursday 23 July 2009

अश्लील एमएमएस क्या करें लड़कियां

अभी गुजरात के शहर सूरत से एक खबर आई। एक लड़के ने अपनी महिला मित्र के अंतरंग क्षणों को मोबाइल फोन से रिकार्ड कर लिया। इस रिकार्डिंग को उसने बाद में अपने दोस्तों में बांट दिया। बाद में इस एमएमएस के आम हो जाने के बाद लड़की परिवार वालों शहर छोड़कर भागना पड़ा। वहीं पुलिस ने इस मामले में कारवाई करते हुए उस लड़के को गिरफ्तार कर लिया। इससे पहले भी देश के कई कोने में इस तरह के एमएमएस कांड हो चुके हैं। कई बार लड़कियां विश्वास में आकर अपने पुरुष मित्र को अपना सब कुछ सौंप देती हैं। पर पुरुष मित्र हमेशा इमानदार नहीं होता है। वह चुपके से ऐसे क्षणों की फिल्म बना लेता है तो ऐसे में लड़कियों को क्या करना चाहिए। जाहिर है सावधान रहना चाहिए।
दोस्ती की सीमा समझें-
किसी पर ही सीमा से आगे जाकर भरोसा न करें। हर दोस्ती में एक सीमा यानी लक्ष्मण रेखा तय करें और उसका पालन करें। ऐसा नहीं करने पर कई बार आपके साथ शहर छोड़कर भागने या आत्महत्या करने जैसी स्थिति आ सकती है। अगर आपका कोई दोस्त बार-बार सीमा से आगे बढ़ने की बात करता हो तो उसे अच्छी तरह समझाएं। अगर वह न माने तो ऐसे दोस्त से अलग हो जाना ही बेहतर होगा। किसी शायर ने भी कहा है कि - ताल्लुक अगर बोझ बन जाए तो उसका तोड़ना बेहतर।
अपनी प्रतिष्ठा का ख्याल रखें
याद रखें आपकी और आपके घर वालों की हमेशा समाज में एक प्रतिष्ठा होती है। आप इसका ख्याल रखें और इसके अनुरूप ही व्यवहार करें। कोई भी कदम उठाने से पहले उसके हानि-लाभ के बारे में सोच लें। इससे आपकी बहुत सी गलतियों पर रोक खुद लग जाएगी। किसी शायर ने कहा है कि -बस एक गलत कदम उठा था राहे शौक में तमाम उम्र मंजिल मेरा रास्ता ढूंढती रही।
अति महत्वाकांक्षा बुरी
कई गलत कदम के पीछे अति महत्वाकांक्षा बहुत बड़ा कारण होती है। अगर आप अपनी इच्छाओं को सीमित रखें तो आपसे बहुत सी गलतियां नहीं होगीं। साथ ही कम इच्छाएं रखने वाला आदमी सुखी भी रहता है। वैसे अति हर चीज की बुरी होती है। कई बार किसी बड़ी इच्छा के लिए आदमी कोई गलत कदम उठाने की गलती कर बैठता है।
किसी पर भी पूरा भरोसा न रखें
प्रोफेशनलिज्म का तकाजा है कि किसी भी व्यक्ति पर पूरा भरोसा न करें। किसी के सामने अपने दिल की बात करने से पहले अच्छी तरह परख लें। जीवन में बहुत सारे निर्णय चतुराई से लिए जाते हैं। इसलिए आप कभी इमोशनल फूल न बनें। बल्कि समझदारी से काम लें। यह आपके आगे बढ़ने में सहायक होगा। हो सकता है आपके दोस्त आपके चतुर होने के कारण आपके ऊपर कुछ तोहमत लगाएं पर आप उनकी ऐसी बातों पर बिल्कुल ही ध्यान न दें। कुछ ऐसे उपाय कर आप कहीं भी अपने व्यक्तित्व को विघटित होने से बचा कर रख सकते हैं।

Friday 17 July 2009

देव सुरैय्या और पहला प्यार

कहते हैं जीवन में पहले प्यार का बड़ा ही महत्व है। उसकी खुशबू जीवन भर साथ बनी रहती है। बहुत से लोगों के जीवन में प्यार आता है। कई प्यार आते हैं। पर उनके बीच पहले प्यार का अपना अलग महत्व होता है। कहा जाता है देवानंद और सुरैय्या में काफी गहरा प्यार था। पर दोनों परिवारों को उनका मिलना पसंद नहीं था। उनके बीच धर्म की दीवार थी वहीं सुरैया परिजन यह बिल्कुल पसंद नहीं करते थे कि उनकी बेटी देवानंद के साथ प्यार के पिंग बढ़ाए।


देव-सुरैय्या का प्यार रजत पट से हटकर हकीकत था पर उस प्यार को अंजाम तक नहीं पहुंचाया जा सका। अब 80 से ज्यादा वसंत देख चुके देवानंद ने अभी हाल में एक बातचीत में सुरैया के साथ अपने प्यार को बड़ी ही शिद्दत से याद किया। उन्होंने कहा कि उन्हें सुरैय्या का प्यार नहीं मिला इसका उन्हें कोई गम नहीं है। वे मानते हैं कि अगर उन्हें सुरैय्या मिल जाती तो उनकी जिंदगी वैसी नहीं होती जैसी आज है। सुरैय्या से अलग रहकर भी उन्होंने जिंदगी को बड़े ही खूबसूरत ढंग से जीया है। देव साहब की यह स्वीकारोत्ति उन लोगों के लिए नजीर है जो प्यार के नहीं मिल पाने पर अपना बाकी समय रोते हुए या फिर शराब के नशे में गुजार देते हैं। मायूसी की चादर तानकर सालों कुछ भी नहीं करते।
किसी का प्यार बड़े नसीब से मिलता है पर अगर जिसे आप प्यार करते हैं वह आपकी जिंदगी में नहीं पाया तो उसकी याद में आप जीवन को और बेहतर ढंग से जी सकते हैं। देव साहब ने यही किया। उन्होंने एक से बढ़कर एक बेहतरीन फिल्में बनाईं। 80 से साल से अधिक की उम्र में भी उनका जोश की नौजवान की तरह ही कायम है। उनके उपर किसी भी तरह की निराशा नहीं देखी जा सकती है।
देव साहब ने कहा कि कुछ साल पहले जब सुरैय्या की मौत हुई तो वे उसके जनाजे में शामिल होनेके लिए नहीं गए। देव साहब के अनुसार किसी के प्रति अपने दुख का सार्वजनिक प्रदर्शन करने में उनकी कोई आस्था नहीं है। वे ऐसे वक्त में अकेले में रोना पसंद करते हैं। जी हां हर मजबूत आदमी भी अकेले में रोता है पर सार्वजनिक स्थलों पर अपने व्यक्तित्व में मजबूती दिखाता है। यही उसकी सफलता का बहुत बड़ा कारण होता है। अगर आप किसी को प्यार करते हैं और वह नहीं मिलता है तो उसकी याद में आप जीवन में हमेशा कुछ नए नए सृजन कर सकते हैं। जरा कल्पना कीजिए आपने किसी को किसी खास वक्त में प्यार किया हो। वह किसी कारण से आपको नहीं मिल पाया हो तो क्या आप उसकी याद में रोते हुए मिलें। जीवन को एक असफल व्यक्ति की तरह जीएं तो आपका प्यार जीवन के किसी मोड़ पर आपको दुबारा मिले तो क्या वह आपको देखकर वह खुश हो सकेगा।
आप यह मानकर चलें कि- तुमसे मिला था प्यार कुछ अच्छे नसीब थे। प्यार के उन सुंदर दिनों को याद करके आप शेष जीवन को और भी सुंदर बनाने की कोशिश में लग जाएं। जिन लोगों को जीवन में प्यार कभी आता है वह भले ही थोड़े वक्त के लिए आए उसको याद करके सारी जिंदगी काटी जा सकती है। जिंदगी में बड़े काम किए जा सकते हैं। शोख जवानी जार दिनों की मेहमान थी। छोड़कर दिल में यादों का संगीत गई।
जो लोग काम करना चाहते हैं उनके लिए यह जिंदगी बहुत बड़ी है। वे उपलब्धियों का अंबार लगा देते हैं जो नहीं करना चाहते वे सालों बैठकर जिंदगी को कोसते रहते हैं। जीवन में प्यार का मिल जाना ही सबकुछ नहीं होता यह महत्वपूर्ण है कि आपने अपने प्यार से क्या सीखा।

 - विद्युत प्रकाश vidyutp@gmail.com


Saturday 11 July 2009

पुलिस दोस्त या खलनायक

कई सालों से पुलिस की इस भूमिका पर चर्चा हो रही है कि उसकी भूमिका दोस्त जैसी हो न कि खलनायकों जैसी। दिल्ली में तो दोस्त पुलिस के गठन की कवायद बी चल रही है। ऐसी पुलिस जो आप किसी परेशानी में हों तो आपकी मदद करे। पर मेरठ की घटना के बाद हमें पुलिस की भूमिका के बारे में सोचना होगा। पुलिस का मूल काम अपराधियों को पकड़ना है न कि प्यार करने वाले लोगों को डंडे चलना है। वह भी किसी आपरेशन के तहत। आम तौर पर जब कभी सभ्य लोगों के बीच पुलिस की चर्चा होती है तो इसका मतलब समझा जाता है कि अगर आप पुलिस के चक्कर में पड़े यानी को ई केस मुकदमा हो गया तो समझो बहुत बड़े झमेले में फंस गए। किसी के घर पुलिस आ जाए तो अड़ोस-पड़ोस के लोग शक भरी निगाहों से देखने लगते हैं।

जब पुलिस पार्क में बैठे प्रेमी युगलों पर डंडे बरसाने लगे तो पुलिस की भूमिका पर और भी सवाल खड़े होते हैं। क्या दो प्यार करने वालों का पार्क में बैठना गुनाह है। पार्क वह सार्वजनिक स्थल है जिसे सरकार लोगों को बैठने या घूमने के लिए ही बनवाती है। यहां जाने के लिए किसी तरह की पूर्व अनुमति की भी कोई जरूरत नहीं समझी जाती। हां पार्क में अगर अनैतिक कर्म हो रहे हों तो पुलिस को उस पर नजर रखनी चाहिए। पर पुलिस बिना कोई पूछताछ किए बिना असलियत जाने अगर लोगों पर डंडे बरसाने लगे तो लोग आखिर दो घड़ी चैन के बीताने के लिए कहां जाएं। आखिर व महफूज जगह कौन सी हो। कुछ लोगों का कहना है कि मेरठ के पार्क में प्रेमी जोड़ों के विचरण करने से आसपास के लोगों को परेशानी थी। ऐसे में भी जांच पड़ताल के कई और तरीके निकाले जा सकते हैं। दो प्रेम करने वाले उन लोगों के लाख गुने बेहतर हैं जो किसी जेब काटते हैं या किसी का गला रेत देते हैं। पुलिस का मूल का अपराध मुक्त समाज का निर्माण करना है न कि प्यार करने वालों पर पहरे लगाना। किसी भी पेश में समाज को सुधारने का काम तब संभव है जब पहले वह अपने मूल कार्य को ठीक से संपादित कर ले रहा हो उसके बाद वह अपने कर्तव्यों की बात करे। यह सही है कि देश में पुलिस का कई बार गलत इस्तेमाल होता है। पुलिस बल को अक्सर नेताओं की सुरक्षा में लगाया जाता है। ट्रैफिक कंट्रोल, शादी समारोह तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों के मौके पर सुरक्षा में भी पुलिस लगा दी जाती है। इन सब कारणों से कई बार पुलिस अपने मूल कार्यों पर समय नहीं दे पाती है। कई साल पहले पुलिस दिल्ली में प्यार करने वालों पर पहरे लगा रही थी। पार्कों और सार्वजनिक स्थानों पर खास तौर पर पुलिस इस बात की निगरानी के लिए लगाई गई थी कि कहीं लोग इन स्थलों से देह व्यापार जैसे रैकेट न संचालित कर रहे हों। दिल्ली मुंबई जैसे महानगरों में देखा गया है कि सार्वजनिक स्थलों पर जेह व्यापार का संचालन भी हो जाता है। ऐसे मामलों पर पुलिस को निश्चय ही नजर रखनी चाहिए। पर भले घर के लोगों और ऐसे लोगों में भेद किया जा सकता है।
-विद्युत प्रकाश मौर्य, vidyutp@gmail.com


Sunday 5 July 2009

बोरवेल में गिरे प्रिंस के बहाने

मीडिया हर बिकाउ आइटम को पकड़ता है। खासकर समाचार चैनल प्रतियोगिता में अपनी व्यूअरिशप बढ़ाने के लिए हर उस खबर को पकड़ने की कोशिश में लगे रहते हैं जिसमें बिकाउ एंगल हो। इसी क्रम में रोचक और फिल्मी खबरों को समाचार चैनलों पर ज्यादा तरजीह मिल पाती है। पर हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले में एक हैंडपंप में बोरवेल में फंसे पांच साल के नन्हें प्रिंस को बचाने का आपरेशन दिखाने के लिए कई चैनलों ने लगभग 40 घंटे का लाइव शो दिखाया। इसका टीवी चैनलों को लाभ भी हुआ। माना जाता है कि इस दौरान उनकी टीआरपी में जबरदस्त इजाफा हुआ। देश भर के लोगों की नजरें टीवी स्क्रीन की तरफ थीं। इस दौरान टीवी देखने वालों की संख्या इतनी बढ़ी जितनी की भारत पाकिस्तान मैच के दौरान भी नहीं होती। अभी तक देश में सबसे ज्यादा टीआरपी भारत पाकिस्तान के मैच के दौरान ही देखने को मिलता है। जहां प्रिंस को बचाने के आपरेशन के दौरान टीवी चैनलों के व्यूअरशिप में जबरदस्त इजाफा हुआ वहीं कुछ चैनलों ने इस दौरान विज्ञापनों से जबरदस्त कमाई भी की।
सब कुछ टीआरपी के लिए - हालांकि इस दौरान जी न्यूज जैसे चैनल ने कहा कि वह बीच में कोई विज्ञापन नहीं दिखाएगा और मानवतावादी धर्म का निर्वहन करते हुए प्रिंस को बचाने को लेकर पल पल की खबरें प्रसारित करेगा। प्रिंस प्रकरण में टीवी चैनलों को अपने बारे में एक सकारात्मक संदेश यह ज्ञापित करने का मौका मिला कि वे सकारात्मक खबरों को भी प्राथमिकता देते हैं। नहीं तो अभी तक समचार चैनलों के बारे में माना जाता था कि वे अपराध और मनोरंजन की खबरों को चासनी लगाकर परोसते हैं। इसमें काफी हद तक सच्चाई भी है। चाहे व राखी सावंत पर कोल्हापुर में मुकदमा का प्रकरण हो या फिर मीका और राखी सावंत चुंबन प्रकरण सभी समाचार चैनलों ने घंटों इसपर कवरेज की। इन घटनाओं का देश के सरोकार से कोई जुड़ाव नहीं था। हां इसका फायदा राखी सावंत और मीका जैसे लोगों को जरूर मिला। हासिए पर रहने वाले लोग अचानक लाइमलाइट में आ गए थे। पर क्या प्रिंस प्रकरण को दिखाकर टीवी चैनलों ने सचमुच में अपना मानवतावादी चेहरा प्रस्तुत किया। नहीं इसके पीछे असली मकसद तो था ज्यादा से ज्यादा दर्शक बटोरने की कोशिश। कई समाचार चैनलों के बीच आजकल असली लड़ाई इसी बात को लेकर है। हालांकि टीवी चैनलों पर शानदार कवरेज का प्रिंस को और प्रिंस के गांव हल्दाहेड़ी के लोगों को जबरदस्त लाभ हुआ है। गांव में विकास की लहर चल पड़ी है। सरकार वहां सारी सुविधाएं जुटाने में लगी है, वहीं सरकारी व गैर सरकारी संस्थाएं प्रिंस के परिवार वालों को मदद करने मे जुटी है।

सबसे बड़ा लाइव शो - एक मायने में प्रिंस प्रकरण पर कवरेज ने भारतीय टेलीविजन जगत में इतिहासा रच दिया है। यह है टीवी स्क्रीन पर सबसे लंबे लाइव शो का। लगभद 40 घंटे तक कई चैनल इस प्रोग्राम का जीवंत प्रसारण करते रहे। यह रियलिटी टीवी पर दिखाए जाने वाले किसी लाइव शो की तरह ही था। इस प्रोग्राम का अंत भी सुखांत रहा क्योंकि प्रिंस को बचा लिया गया। पर इसमें टीवी चैनलों की भूमिका क्या रही। प्रिंस को तो गांव वालों के अथक परिश्रम और थल के सेना के रेजिमेंट के जवानों के विशेष प्रयास से बचाया जा सका। टीवी चैनलों ने तो इसे अपने लिए भी एक मसाले की तरह भुनाया। स्टार न्यूज ने प्रिंस और उसके परिवार वालों को मुंबई लेजाकर घुमाया। फिल्मी सितारों से मुलाकात कराई और इस घटना में इंटरटेनमेंट एंगिल निकालकर इसे कैश कराया।

सामाजिक सरोकार और मीडिया
अगर हम टीवी चैनलों की बात करें तो क्या दिन भर दिखाई जाने वाली खबरों में भला कितनी खबरें ऐसी होती हैं जिनका सामाजिक सरकोकार से कोई जुड़ाव होता है। वास्तव में आजकल ऐसी खबरें बहुत कम देखने को मिलती हैं। हर जगह बिकाउ माल पेश करने की होड़ सी लगी है। अगर कोई चीज बिकाउ नहीं है तो उसे बिकाउ कैसे बनाया जाए इसकी होड़ लगी है। सभी चैनलों ने बोरवेल में फंसे प्रिंस को सकुशल बाहर निकालने की घटना को लाइव दिखाया। हालांकि उसे बाहर निकालने में इन चैनलों की कोई खास भूमिका नहीं रही। वे इस दौरान चाहते तो अपने नेटवर्क का इस्तेमाल करते हुए देश के किसी भी कोने से विशेषज्ञ बुलाते और इस बचाव आपरेशन में मददगार भी बन सकते थे। पर गरीब प्रिंस को तो कुदरत ने ही बचा लिया। यह उसकी उत्कट जीजिविषा ही थी कि वह 50 घंटे तक बोरवेल के छेद में 53 फीट नीचे जीवित बचा रहा और बाहर से आ रही रोशनी के साथ जीवन के लिए संघर्ष करता रहा। इसके इस संघर्ष को हर किसी ने सलाम किया।

मनोरंजन का मसाला - पर प्रिंस के बचने के बाद एक टीवी चैनलों को इसमें जबरदस्त मनोरंजन का मशाला मिल गया। वह प्रिंस और उसके परिवार वालों को चुपके से मुंबई ले गया। वहां प्रिंस दो दिनों तक फिल्म इंडस्ट्री के लोगों से मिलता जुलता रहा। हालांकि किसी भी फिल्म स्टार से मिलकर प्रिंस के चेहरे पर कोई एक्सप्रेशन नहीं आ रहा था। आता भी कैसे प्रिंस कोई शहरी लड़ता तो है नहीं जो किसी फिल्म स्टार को पहचानता हो और टीवी पर उनका चेहरा देखकर खुश हो जाता हो। वह तो इन सब चीजों से निस्पृह है। उसके लिए सन्नी दयोल, अनुपम खेर, शिल्पा शेट्टी, मलयिका अरोरा, सलमान खान आदि का कोई मतलब नहीं है। सारे चेहरे अजनबी जैसे हैं। हां समाचार चैनल दो दिन तक इन सब सितारों को अनौपचारिक रुप में टीवी पर दिखाता रहा। दर्शकों को उसने आदत डलवा दिया। मनोरंजन दिखाने की समचार की शक्ल में। इसलिए उसे अपनी पसंद का साफ्टवेयर मिल गया था। पर अभागे प्रिंस को मुंबई का वातावरण पसंद नहीं आया। 50 घंटे बोरवेल में रहकर वह भले ही सकुशल रहा हो पर मुंबई से आने के बाद वह जबरदस्त बीमार पड़ गया। कई दिनों तक वह अस्पताल में पड़ा रहा। पर इस दौरान किसी ने भी प्रिंस की सुध नहीं ली।
ऐसी कितना घटनाएं होती हैं जो खबर बनती हैं। प्रिंस जैसे और भी लोग होते हैं जो आपदा में फंसे होते हैं। उनके निकालने के लिए आपरेशन होता है। पर वे मीडिया में खबर नहीं बनते। अभी गुजरात में सैकड़ों स्कूली बच्चे बाढ़ के कारण अपने बोर्डिंग स्कूल की बिल्डिंग में ही फंस गए। उन्हें भी सेना ने आपरेशन करके सकुशल निकाला। हालांकि गड्ढे में किसी बच्चे के गिर जाने की प्रिंस के रुप में कोई पहली घटना नहीं है। इससे पहले हरियाणा और मध्य प्रदेश में कई और बच्चों को ऐसी घटनाओं में सफलतापूर्वक निकाला जा चुका है। पर तब टीवी चैनलों को या तो पता नहीं चला था, या फिर तब उनको इसमें कोई बिकाउ एंगिल नहीं नजर आया था। जब भी टीवी चैनल वाले कोई खबर बनाते हैं तो उन्हें एक बार इस एंगिल से भी सोचना चाहिए कि इस खबर के साथ सामाजिक सरोकार कितना जुड़ा हुआ है। जल्दबाजी के चक्कर में अभी हाल में सोनीपत के पास नहर में गिरी स्कूली बस के प्रकरण में पहले टीवी चैनलों ने कहना शुरु कर दिया कि 50 बच्चों में से छह को बचा लिया गया है बाकि के बचे होने की कोई उम्मीद नहीं है। जबकि कुछ घंटे बाद ही यह साफ हो गया कि 29 बच्चों में से 23 को सफलतापूर्वक बचा लिया गया था।
- विद्युत प्रकाश मौर्य 
( 23 जुलाई 2006 को हरियाणा के कुरुक्षेत्र ज़िले के एक गाँव में 60 फुट गहरे गड्ढे में गिरे एक बच्चे को 48 घंटे के प्रयास के बाद भारतीय सेना के अधिकारी बचाने में कामयाब हो सके थे।)