Friday 30 October 2009

आउटसोर्सिंग के खतरे

आजकल आउटसोर्सिंग का दौर है। हर कंपनी अपने बहुत से काम को आउटसोर्स कर रही है। इसका सीधा मतलब है कंपनी बहुत से कामों को ठेके पर दूसरी कंपनी को दे देती है। इस आउटसोर्सिंग से जहां कई बड़ी कंपनियों को लाभ हो रहा है वहीं उपभोक्ताओं को इससे परेशानी भी हो रही है। अगर आप किसी काम के लिए कोई शिकायत लेकर जाते हो तो ठेके पर काम करने वाली कंपनी का मुलाजिम आपसे कुछ तयशुदा सवाल पूछता है और आपके सवालों के नपेतुले जबाव ही दे पाता है। वह कभी आपकी समस्या का पूरी तरह समाधान नहीं कर पाता है। मान लिजिए आपने कोई अपनी समस्या किसी काल सेंटर में दर्ज कराई। दो दिन बाद आप उस बार में जानना चाहते हैं कि क्या कार्रवाई हुई तो आपको काल सेंटर में फोन करने पर फिर एक नया एक्जक्यूटिव मिलेगा जो आपसे नए सिरे से फिर आपकी समस्या को पूछेगा। हो सकता है। आपकी समस्या का निदान कई दिनों तक न हो। काल सेंटर में अक्सर छोटी मोटी समस्याओं का निदान तो हो जाता है पर बड़ी समस्याएं बनी रह जाती हैं। 


कई बार उपभोक्ता अपनी समस्याएं सुनाते सुनाते परेशान हो जाता है, पर कालसेंटर की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता है। भले ही आपकी समस्या का निदान नहीं हो सके पर काल सेंटर की एक्जक्यूटिव आपसे पूछेगा मैं आपकी और कोई सहायता कर सकता हूं सर। वे भले ही आपकी कोई सहायता नहीं कर पाएं पर यह पूछना मानो उसका धर्म है।
कई बड़ी कंपनियां शायद यह सोचती हैं कि हमने अपने अमुक सर्विसेज आउटसोर्स करके उपभोक्ताओं को खुश कर दिया है। पर वास्तव में ऐसा नहीं होता। काल सेंटर में काम करने वाला आदमी जिस कंपनी के लिए काम कर रहा है उसके प्रति कभी पूरी तरह लायल नहीं होता। जबकि जो व्यक्ति स्थायी तौर पर किसी नामचीन कंपनी के लिए काम करता है वह अपनी कंपनी के लिए निष्ठावान होता है। उसे अपनी कंपनी की ब्रांड वैल्यू की बेहतर चिंता होती है। कुछ कंपनियों ने भले ही 24 घंटे के काल सेंटर की व्यवस्था कर रखी हो पर इसका सही मायने में कोई फायदा नहीं हो रहा है।
जो काल सेंटर किसी तरह का प्रोडक्ट बेचने का काम कर रहे हैं वे ऐन केन प्रकारेण उपभोक्ता को फंसा लेना चाहते हैं। इसके लिए उपभोक्ता को वे कई तरीके से फोन करके परेशान करते हैं। कई लोग तो इस तरह के काल्स से काफी परेशान दिखते हैं। एक बार मना कर देने के बाद भी काल सेंटर वाले किसी न किसी तरीके से बार बार फोन करते रहते हैं। एक बार प्रोडक्ट बेच देने के बाद इन कालसेंटर वालों का आपसे कोई मतलब नहीं रह जाता है क्योंकि वे आउटसोर्स किए गए कंपनी के कर्मचारी होते हैं। आगे की सेवाओं से उनका कोई मतलब नहीं होता।

विद्युत प्रकाश मौर्य


Sunday 25 October 2009

एक देश एक रेट

भारत संचार निगम लि. यानी बीएसएनएल लेकर आ रहा है एक देश एक रेट का प्लान। देश की सरकारी टेलकाम कंपनी की इस घोषणा से पहले ही दूसरी अन्य कंपनियों ने एक देश एक रेट के बारे में सोचना आरंभ कर दिया है। इसी क्रम में रिलायंस ने एक देश एक रेट प्लान की घोषणा जनवरी 2006 में ही कर दी। हालांकि उसकी यह योजना परवान नहीं चढ़ पा रही है क्योंकि उसने यह योजना मंहगे रेंटल प्लान के साथ आफर की है। पर बीएसएनएल यह योजना सबके लिए लेकर आ रहा है। इसमें दुनिया के कुछ अन्य देशों की तरह ही पूरे देश में एक काल रेट की योजना है। यानी की एसटीडी का बैरियर ही खत्म। कश्मीर से कन्या कुमारी तक सारा देश एक है तो आप एक ही रेट पर फोन भी कर सकेंगे। इस योजना के बाद आपके मोबाइल या लैंडलाइन फोन पर एसटीडी काल का कोई मतलब नहीं रह जाएगा। अगर आप कोई फोन लेते हैं तो अब अलग से एसटीडी की सेक्यूरिटी जमा करने की कोई आवश्यकता नहीं रह जाएगी। इससे टेलकाम सर्किल के बैरियर खत्म हो जाएंगे।
वास्तव में भारत के टेलीकाम इतिहास में एक नए युग की शुरूआत हो रही है एक देश एक रेट के इस इंडिया वन योजना के साथ। हम 24 रुपए प्रति मिनट से सीधे एक रुपए प्रति मिनट की दर पर आ रहे हैं। यह आम आदमी के लिए अत्यंत लाभकारी योजना है। एक आकलन के अनुसार बीएसएनल को इससे एक साल मे 5000 करोड़ का घाटा उठाना पड़ेगा। पर उम्मीद किया जा सकता है कि कालों की संख्या बढ़ने के साथ इस घाटे की भरपाई हो सकेगी।
एसटीडी कोडों की पुनर्संरचना हो-
एक देश एक रेट के बाद वास्तव में फोन नंबर के साथ एसटीडी कोड का कोई मतलब नहीं रह जाना चाहिए। मोबाइल फोन नंबर की तरह ही देश भर के सभी फोन नंबरों को भी 10 अंको का करके एसटीडी कोड की व्यवस्था ही खत्म की जानी चाहिए। हालांकि पिछले दिनों एक सुझाव आया था जिसमें देश भर के 2700 एसटीडी कोडों की जगह 300 एसटीडी कोड रखने की बात चल रही थी। पर हम मोबाइल फोनों की तरह एसटीडी कोड व्यवस्था खत्म भी कर सकते हैं। आपको कहीं का नंबर भी मिलना हो तो इस व्यवस्था के तहत 10 अंकों इसके साथ ही ऐसी व्यवस्था भी होनी चाहिए कि आप कहीं भी जाएं आपका फोन नंबर वही पुराना चलता रहे। यानी शहर बदलने के बाद भी फोन नंबर नहीं बदले। इसके साथ ही पूरे देश में रोम करने वालों को न तो कोई रोमिंग शुल्क देना होगा न ही रोमिंगे दौरान किसी तरह की इनकमिंग काल की शुल्क देनी होगी। यहां तक की रोमिंग के दौरान आउटगोइंग काल करने पर भी लोकल काल जैसा ही शुल्क देना होगा। इतना सब कुछ होने के बाद ही एक देश एक रेट का सपना सही मायने में साकार हो सकेगा।
-माधवी रंजना, madhavi.ranjana@gmail.com



Tuesday 20 October 2009

जीवन भर इनकमिंग कितनी सार्थक

लगभग सभी मोबाइल फोन कंपनियां अब जीवन भर इनकमिंग का प्लान लेकर आ गई हैं। क्या जीवन भर इनकमिंग प्लान सबके लिए बेहतर हो सकता है। क्या वास्तव में किसी मोबाइल कंपनी का कोई पैकेज आपका जीवन भर साथ निभाएगा। इस तरह के कई सवाल उठते हैं। फोन सेवा प्रदान करने वाली कंपनियों का नियमन करने वाली संस्था टेलकम रेगुलेटरी आथरिटी (ट्राई) को भी इस प्लान में कई तरह पेच नजर आ रहे हैं। इसलिए ट्राई इन प्लान का अध्ययन करने में जुटा हुआ है।
सबसे पहले मोबाइल सेवा प्रदान करने वाली कंपनी हच ने सिर्फ 1000 रुपए देने के बाद आजीवन इनकमिंग की सुविधा देने की घोषणा की। कंपनी कुछ ही महीने पहले 10 रुपए का रिचार्ज वाउचर पेश करके पहले ही हंगामा कर चुकी थी। उसके दोनों नए हंगामों का लोगों ने जबरदस्त स्वागत किया। मजबूरी में बाकी कंपनियों को भी जीवन भर इनकमिंग का पैकेज उपलब्ध कराना पड़ा। इसमें सरकारी कंपनी बीएसएनएल और एमटीएनल भी पीछे नहीं रहीं। अब लगभग हर कंपनी के जीवन भर इनकमिंग का पैकेज उपलब्ध है। बस शर्त इतनी सी है कि आपको अपने सिम कार्ड को छह महीने में एक बार छोटा सा ही सही रिचार्ज कराना आवश्यक होगा। यानी बिना किसी मासिक रेंट का भुगतान किए आप अपने फोन पर इनकमिंग की सुविधा का लाभ ऊठा सकते हैं। आप चाहें तो टाप अप कार्ड लेकर आउटगोइंग काल भी कर सकते हैं। लगभग हर कंपनी ने लाइफटाइम पैकेज के साथ आउट गोइंग काल की दरें कुछ ज्यादा रखी हैं। कंपनी ने ऐसा कोई वादा नहीं किया है कि वे आउटगोइंग काल की दरें भविष्य में नहीं बढ़ाएंगी। पर जीवन भऱ आपका मोबाइल फोन नंबर आपके साथ रहेगा। हालांकि जब ट्रांसफर होकर एक जोन से दूसरे जोन में चले जाएंगे तब आपका मोबाइल नंबर बदल जाएगा और आप जीवन भर का आनंद नहीं ऊठा सकेंगे।
लाइफटाइम की सुविधा उन लोगों के लिए अच्छी है जो दूसरों से संपर्क में बने रहने के लिए मोबाइल फोन लेना चाहते हैं। जैसे आप अपने कार के ड्राइवर, स्कूल जाने वाले बच्चे, पत्नी अथवा नौकर को मोबाइल फोन देना चाहते हैं जो लाइफटाइम पैकेज आपके लिए मुफीद बैठता है। साथ ही वैसे सभी लोग जिनके पास इनकमिंग काल ज्यादा आते हों। या वैसे लोग जो इनकमिंग के लिए एक और फोन नंबर लेना चाहते हों। पर जो लोग अपने फोन से हर महीने 200 रुपए से ज्यादा की काल करते हों उनके लिए लाइफटाइम का पैकेज सस्ता नहीं है। फिर वैसे लोगों के लिए रुटीन का कनेक्सन ही ठीक बैठेगा। इतना जरूर है लाइफटाइम पैकेज कम आय वर्ग के लोगों के बीच भी मोबाइल फोन पहुंचा रहा है।

-माधवी रंजना, madhavi.ranjana@gmail.com



Thursday 15 October 2009

रिटेल मार्केट का बदलता नजारा

वर्ष 2007 में रिटेल मार्केट का नजारा बदलने वाला है। अब उपभोक्ताओं को इस क्षेत्र में असली लड़ाई देखने को मिलेगी। कई बड़े समूह बाजार पर छा जाने के लिए तैयार हैं। साल की पहली महत्वपूर्ण घटना रही है आदित्य विक्रम बिड़ला समूह द्वारा भारत के सबसे बड़े रिटेल नेटवर्क त्रिनेत्र समूह का अधिग्रहण। भले उत्तर भारत के लोग त्रिनेत्र के नाम से परिचित न हों पर दक्षिण भारत का यह एक लोकप्रिय नाम है। दक्षिण के चार प्रमुख राज्यों में इसके 175 से ज्यादा स्टोरों का नेटवर्क काम कर रहा है। त्रिनेत्र समूह को भारत के सबसे पुराने रिटेल नेटवर्क स्थापित करने का श्रेय जाता है। कुछ महीने पहले जब आदित्य बिड़ला समूह ने रिटेल सेक्टर में प्रवेश करने की बात कही थी तो यह उम्मीद थी कि वे अप्रैल 2007 से अपने स्टोरों को देश में खोलना आरंभ करेंगे। पर आजकल कारपोरेट सेक्टर में बने बनाए नेटवर्क को खरीदने या उसमें निवेश करने का चलन बढ़ा है। किसी भी नई कंपनी को अपना नेटवर्क बनाने और अपने ब्रांड को लोगों के बीच लोकप्रिय बनाने में काफी वक्त लगता है इस बात को बड़ी कंपनियां खूब समझती हैं।


भारत में रिटेल नेटवर्क को राष्ट्रीय परिदृश्य में लाने का श्रेय किशोर बियानी की पेंटालून समूह और आरपीजी समूह को जाता है। किशोर बियाना का बिग बाजार और आरपीजी रिटेल का स्पेंसर देश के कई बड़े शहरों में मेगा माल्स में अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुके हैं। पर इनसे भी पहले त्रिनेत्र ने दक्षिण भारत के लोगों के बीच अपनी अच्छी पैठ बना रखी थी। आदित्य विक्रम बिड़ला समूह कई क्षेत्रों में लीडर के रुप में प्रवेश करना चाहता है। पिछले साल उसने मोबाइल कंपनी आइडिया के अधिसंख्य शेयर कब्जा किया और एक सशक्त जीएसएम आपरेटर के रुप में खुद को स्थापित किया। बीमा और म्युचुयल फंड में बिरला सन लाइफ के रुप में उनकी पकड़ पहले से ही है। अब वे रिटेल में भी आ गए हैं। त्रिनेत्र के 90 फीसदी शेयर आदित्य विक्रम बिड़ला समूह ने खरीद लिए हैं। दक्षिण भारत में इस प्रकार रिटेल में उनकी उपस्थिति हो गई है। अब वे उत्तर भारत शहरों की ओर खुद को केंद्रित करना चाहते हैं।
अब अगर हम रिटेल सेक्टर में प्रमुख कंपनियों को देखें जिनके बीच उपभोक्ताओं को लेकर रोचक संघर्ष दिखाई देने वाला है उनमें प्रमुख नाम होंगे- 1. बिग बाजार (पेंटालून रिटेल) 2. स्पेंसर (आरपीजी रिटेल) 3. रिलायंस रिटेल (मुकेश अंबानी) 4. आदित्य विक्रम बिड़ला रिटेल (त्रिनेत्रा) 5. भारती वालमार्ट (सुनील मित्तल द्वारा परवर्तित 6.चौपाल (आईटीसी) 7. विशाल मेगा मार्ट 8. वीमार्ट 9. शुभिच्छा
इसके अलावा अपना बाजार, सबका बाजार सहित कई लोकल प्लेयर भी सुपर बाजारों की श्रंखला लेकर आ रहे हैं। सभी अपने स्टोरों में सामानों को सस्ते में बेचने का दावा कर रहे हैं। महानगरों लगभग सभी प्रमुख रिटेल स्टोरों की पहुंच बन चुकी है। अब इन बड़े बाजारों की दूसरे चरण में विस्तार की कोशिश में छोटे शहरों की सूची भी शामिल हो गई है। जैसे बिग बाजार ने हरियाणा के अंबाला और पानीपत जैसे शहर में अपने स्टोर आरंभ कर दिए हैं तो विशाल मेगा मार्ट हिसार, मेरठ वाराणसी और रांची जैसे शहरों में भी पहुंच गया है। अब बिग बाजार अपने छोटे स्टोर खोलकर जिला हेडक्वार्टर जैसे शहरों में पहुंचने की आकंक्षा रखता है। अभी भारत में ऐसे बड़े रिटेल स्टोरों के लिए प्रचूर संभावनाएं हैं।
---- विद्युत प्रकाश vidyutp@gmail.com

Saturday 10 October 2009

सीएफएल से करें बिजली की बचत

यह सभी जानते हैं कि ऊर्जा का भंडार सीमित है। ऐसे में बिजली की बचत करने के ऊपाय करना भी लाजिमी है। लगभग सभी राज्य बिजली के संकट से गुजर रहे हैं। खास कर गरमी के दिनों में तो बिजली का संकट अभूतपूर्व हो जाता है। ऐसे में हमें हर वो ऊपाय भी करने चाहिए जिससे की बिजली की बचत की जा सके। इसका बड़ा अच्छा तरीका आजकल बाजार में सीएफएल बल्बों के रुप में उपलब्ध है। सीएफएल यानी कंप्रेस्ड फ्लोरोसेंट लैंप। ऐसे लैंप 9 वाट, 15 वाट और 20 वाट जैसे विकल्पों में उपलब्ध हैं। ये ट्यूबलाइट की तरह दूधिया रोशनी देते हैं। ये परंपरागत बल्बों की तरह ज्यादा गरम भी नहीं होते हैं। आमतौर पर अगर आप एक सौ वाट बल्ब कमरे में लगाते हैं तो वह गर्म होकर कमरे के तापमान को भी थोड़ा सा बढ़ाता है। ऐसे में सीएफएल नए जमाने में लोगों के लिए बड़े ही सुविधाजनक रुप में आए हैं।
अभी तक आप दुधिया रोशनी के लिए ट्यूब लाइट का इस्तेमाल करते आ रहे हैं। एक ट्यूब लाइट लगाने में औसतन 150 से 200 रुपए का खर्च आ जाता है। इसकी फीटिंग और मेंनेटेंस में खर्च अलग से है। पर सीएफएल को परंपरागत बल्बों के साकेट में ही लैंप फिट हो जाता है। इसलिए इसे कहीं भी फीट करना बहुत आसान है। भारतीय बाजार में इसी कारण से धीरे धीरे सीएफएल लोकप्रिय होते जा रहे हैं। लोग परंपरागत बल्बों की तुलना में इसे लगाना पसंद कर रहे हैं।
हालांकि सीएफल परंपरागत बल्ब की तुलना में कम रोशनी देते हैं। इसलिए लोग पहले इसे टायलेट बाथरूम में लगाते थे या नाइट लैंप की तरह इस्तेमाल करते थे। पर अब ये बल्बों की जगह लेते जा रहे हैं। जिस कमरे में आपको ज्यादा रोशन चाहिए वहां आप 20 वाट के दो सीएफएल लगा सकते हैं।
अब देखिए की सीएफएल से कैसे बिजली की बचत होती है। एक सीएफल 18 वाट का सीएफल 60 वाट के बल्ब के बराबर रोशनी देता है। ऐसी हालत में हर महीने 60 फीसदी तक बिजली की बचत होती है। आपके घर में अगर बिजली के बल्बों के 10 प्वाइंट हैं तो सीएफल लगाकर आप अपने बिजली के मासिक बिल में हर महीने 40 फीसदी तक की बचत कर सकते हैं। इससे जहां आपके बिजली के बिल में राशि की हर महीने बचत होगी वहीं आपके द्वारा बचाई गई बिजली से दूसरे कुछ घर भी रोशन हो सकते हैं जहां अभी तक अंधेरा ही रहता है।
भारत में आमतौर पर भारत में ही निर्मित सीएफएल लैंप महंगे हैं। अगर एक सीएफल लैंप खरीदना चाहें तो यह 100 से 140 रुपए में उपलब्ध है। इस पर कंपनियां एक साल तक की गारंटी भी देती हैं। आमतौर पर एक सीएफल लैंप चार महीने में इतनी बिजली बचा देता है कि जिससे आपको इसकी कीमत वसूल हो जाती हुई प्रतीत होती है। भारत के बाजार में चीन के बने हुए सीएफल भी उपलब्ध हैं। ये मात्र 20 से 25 रुपए में ही मिल जाते हैं। हालांकि इनके साथ कोई गारंटी नहीं मिलती पर जिन इलाकों में बिजली का उतार चढ़ाव ज्यादा नहीं होता वहां ये सस्ते बल्ब भी अच्छा खासे सफल हैं। भारत में सीएफएल का भविष्य देखते हुए कई भारतीय कंपनियां ऐसे लैंपों का प्लांट लगा रही हैं। इनमें आरपेट की ओरेवा, बजाज खेतान आदि प्रमुख हैं। उम्मीद की जा सकती है कि भारत में निर्मित सीएफएल भी आने वाले कुछ सालों में और भी सस्ते हो सकेंगे।

-विद्युत प्रकाश vidyutp@gmail.com




Monday 5 October 2009

विचारों के स्वागत के लिए रहें तैयार

अखबारों में संपादकीय लिखने की परंपरा बहुत पुरानी है। कहते हैं संपादकीय अखबार की आत्मा होती है। चुंकि संपादकीय विचार प्रधान होता है इसलिए लोग उस पर अपनी प्रतिक्रिया भी व्यक्त करते हैं। कई अखबारों के संपादक हर हफ्ते अपने नाम से विशेष संपादकीय लिखते हैं। अब जबकि ई मेल का जमाना है तो पाठक अपनी फटाफट प्रतिक्रिया भी जताते हैं। ऐसे में हर अखबार को अपने संपादकीय विचार पर लोगों की प्रतिक्रिया सुनने के लिए खुला मंच प्रदान करन चाहिए। 

हिंदुस्तान दैनिक में हर रविवार को शशिशेखर जी आजकल कालम लिखते हैं। कालम के अंत में उनका ईमेल आईडी छपता है जिसपर पाठक अपनी प्रतिक्रिया दे सकते हैं। वहीं नई दुनिया में आलोक मेहता के कालम के साथ भी अखबार में प्रतिक्रिया देने के लिए ईमेल आईडी प्रकाशित होता है। नवभारत टाइम्स जैसे अखबार ने संपादकीय पर लोगों की प्रतिक्रिया लेने के लिए पहले से फोरम खोल रखा है। अब एक एक अच्छी बात हुई है कि नव भारत टाइम्स और दैनिक भास्कर जैसे समाचार पत्रों ने हर खबर पर लोगों को अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए विकल्प खोल दिया है। अगर आप यूनीकोड टाइपिंग जानते हैं तो सीधे अपनी प्रतिक्रिया दें। कई अंग्रेजी के अखबार हर खबर के साथ अपने रिपोर्टर की ईमेल आईडी प्रकाशित करते हैं।

यह बहुत अच्छी बात कही जा सकती है लेकिन कई बड़े अखबार इस मामले में कंजूस हैं। वे पाठकों की प्रतिक्रिया को कोई महत्व नहीं देते। अगर आप संपादकीय या कोई विशेष अग्रलेख लिखते हैं तो ये हजारों लाखों लोगों के बीच जाता है। ऐसे में हमें हर अच्छे बुरे विचार का स्वागत करना चाहिए। विचारों पर चर्चा की शुरूआत करनी चाहिए। और अगर विचारों पर कोई चर्चा नहीं चाहते तो ऐसे लोगो को लिखना भी बंद कर देना चाहिए। बिना किसी संपादकीय के भी अखबार निकालना चाहिए। संपादकीय का मतलब विचारों की धक्केशाही तो हरगिज नहीं होना चाहिए।

एक पत्रकार के रूप में जब किसी पर भी अपने विचारों से प्रहार करते हैं तो आपको उस पर आने वाली प्रतिक्रियाओं के लिए भी तैयार रहना चाहिए। पत्रकार वह प्राणी है जो हमेशा संवाद खोलने का काम करता है। किसी विषय पर दिया गया कोई भी विचार अंतिम नहीं होता। उसमें सुधार की और बदलाव की गुंजाइश हमेशा रहती है। इतिहास गवाह रहा है कि बड़े से बड़े पत्रकार पाठकों के विचारों का स्वागत करते रहे हैं। विचारों पर होने वाली चर्चा से नई अवधारणाओं का जन्म होता है। हमें इसके लिए तैयार रहना चाहिए।
- vidyutp@gmail.com

Thursday 1 October 2009

आज भी प्रासंगिक हैं गांधी

एक बार फिर गांधी चर्चा में हैं। पहला कारण तो है सत्याग्रह आंदोलन के 100 साल पूरे होना। 11 सितबंर 1906 गांधी जी दुनिया को लड़ाई के लिए एक नया अस्त्र प्रदान किया। सत्याग्रह निर्बलों के लिए बहुत बड़ा अस्त्र साबित हुआ। पर अभी हास्य फिल्मों की श्रंखला में मुन्नाभाई एमबीबीएस का नया सिक्वल आया है लगे रहो मुन्नाभाई। इसमें टपोरी मुन्ना की मुलाकात गांधी जी से हो जाती है। वह अपनी कई समस्याओं को गांधीवाद से सुलझाने की कोशिश की गई है। फिल्म में हास्य व्यंग्य के माध्यम से ही गांधीवाद के कई पहलूओं को छूने की बड़ी सफल कोशिश की गई है। गांधी जी के पोते तुषार गांधी को भी इस फिल्म का संदेश बहुत अच्छा लगा। पिछले साल भी गांधीजी पर केंद्रित एक फिल्म आई थी मैंने गांधी को नहीं मारा। इसमें अनुपम खेर ने शानदार अभिनय किया था। इसमें गांधी को अपराध बोध शैली में याद करने की कोशिश की गई।

वास्तव में गांधी विचार समग्र जीवन दर्शन है। यह एक व्यवहारिक एप्रोच है। इससे दुनिया के कई बड़े आंदोलनों ने प्रेरणा ली है। तभी कुछ साल पहले हुए के सर्वेक्षण में गांधी जी को 20 वीं सदी का दुनिया का सबसे लोकप्रिय नेता घोषित किया गया।
कुछ लोग गांधी को श्रेष्ठ राजनेता मानते हैं तो कुछ समाजसुधारक तो कुछ लोग सफल अर्थशास्त्री। गांधी एक सफल संचारक भी थे। इसके बावजूद की वे कोई ओजपूर्ण वाणी के वक्ता नहीं थे। गांधी का मजाक उड़ाने वाले उन्हें देश आजाद होने के कुछ साल बाद ही आउटडेटेड मानने लगे। पर हर कुछ साल बाद कुछ ऐसे प्रकरण आते हैं जो गांधी को एक बार फिर प्रासंगिक सिद्ध कर देते हैं। गांधी जी ने हमें लड़ने के लिए अंहिंसा जैसा अस्त्र दिया जिससे दुनिया में लाखों लोगों ने प्रेरणा ली है। आज भी दुनिया के कई देशों में गांधीवादी तरीके से लोकतंत्र की बहाली के लिए लड़ाई लड़ी जा रही है।
हालांकि लगे रहो मुन्नाभाई फिल्म में जिस तरह गांधी जी के दर्शन को गांधीगिरी के नाम से दिखाया गया है उस पर कई गांधीवादियों को आपत्ति है। वास्तव में गांधीगिरी को दादागिरी जैसे मुहावरे से जोड़कर देखा जा रहा है जो ठीक नहीं हैं। हमें शब्दों के हमेशा शाब्दिक अर्थ पर ही नहीं बल्कि उसके भाव पर जाना चाहिए। गांधीजी के ही वंशज तुषार गांधी जी को आज भी गांधीवाद के प्रचार प्रसार को लेकर चिंतित और सक्रिय रहते हैं उन्हें यह फिल्म एकदम झक्कास लगी है। एक ही संदेश को ज्ञापित करने का सबका अपना अलग अलग तरीका हो सकता है। हमें किसी फिल्म निर्माता की तारीफ करनी चाहिए जो फिल्म में कोई अच्छा मैसेज डालने की कोशिश करता है।
यह तो तय बात है कि मीडिया के रूप में फिल्मों का समाज पर जबरदस्त प्रभाव है। फिल्में आम जनता पर बहुत गहरा प्रभाव डालती हैं। लोग फिल्मों के पात्रों और उनकी गतिविधियों को हर रूप में नकल करने की कोशिश करते हैं। ऐसे में कोई फिल्म अगर अच्छे संदेश देगी तो इसका समाज पर कुछ न कुछ अच्छा प्रभाव तो पड़ेगा ही। यह उसी शिक्षक की तरह है जो खेल खेल में बच्चों को ज्ञान की बातें याद करा देता है। वहीं कई शिक्षक उसे बोरिंग ढंग से पेश करते हैं जिसका बच्चों पर अच्छा प्रभाव नहीं पड़ता है। बहरहाल गांधी जी आज भी हमारे बीच में ही हैं। यह हमारे ऊपर निर्भऱ करता है कि हम उन्हें कितना आत्मसात करते हैं।
-विद्युत प्रकाश vidyutp@gmail.com