Sunday 6 November 2011

गंगा तुम बहती क्यों हो....


भूपेन हजारिका ( 1926-2011) 
वह गायक भी था. संगीतकार भी था। गीत भी लिखता था। कहानियां भी लिखता था। उसे भाषा, राज्य, देश की सीमाओं से उपर उठकर लोग प्यार करते थे। कहा जाता है कि भूपेन हजारिका के टक्कर की कोई प्रतिभा पूरे एशियाई देश में नहीं थी। उनके तराने को वामपंथी, दक्षिण पंथी, हिंदी भाषी, बांग्ला भाषी, असमिया सभी गाते थे। आवाज में मखमली एहसास था। दिल हूम हूम करे....एक कली दो पत्तियां...नाजुक नाजुक उंगलियां...या फिर गंगा तुम बहती क्यों हो....एक कलाकार होने से ऊपर भूपेन दादा सामाजिक सरोकारों से जुड़े थे। उन्होने लंबी राजनीतिक पारी भी खेली। लेकिन उनके अंदर एक सच्चा कलाकार था। तभी तो उनके जाने से मुंबई का बॉलीवुड गम डूबा है। कोलकाता में दुख है। असम के लोग दर्द से भरे हैं। 1926 में जन्में भूपेन हजारिका की स्कूली पढाई असम में हुई तो उच्च शिक्षा काशी हिंदू विश्वविद्यालय में...बीएचयू के बिड़ला हॉस्टल की वे दीवारें भी गमजदा हैं जहां कभी भूपेन दा संगीत साधना किया करते थे....
भूपेन हजारिका ने जन संचार में पीएचडी कर रखा था....हम यूं कह सकते हैं वे सच्चे मायने में एक जन संचारक थे। एक आदमी कई चेहरे। गायक भी संगीतकार भी। राजनीति में भी किस्मत आजमाया, ये अलग बात है कि राजनीति रास नहीं आई। साल 2011 बड़ा क्रूर है कई महान लोगों को हमसे छीन रहा है। शम्मी कपूर, जगजीत सिंह और अब भूपेन हजारिका....

आज सारा देश उदास है....लोहित नदी उदास है...आदिवासी उदास हैं....असम के चाय के बगान उदास हैं....गंगा भी उदास है....उससे सवाल पूछने वाला नहीं रहा....
गंगा तुम बहती क्यों हो....एक ऐसा गीत था जिसमें आज के युग का सच उभर कर आया है....पढ़िए क्या था पूरा गीत....

विस्तार है अपार.. प्रजा दोनो पार.. करे हाहाकार...
निशब्द सदा ,ओ गंगा तुम, बहती हो क्यूँ ?
नैतिकता नष्ट हुई, मानवता भ्रष्ट हुई,
निर्लज्ज भाव से , बहती हो क्यूँ ?

इतिहास की पुकार, करे हुंकार,
ओ गंगा की धार, निर्बल जन को, सबल संग्रामी,
गमग्रोग्रामी,बनाती नहीँ हो क्यूँ ?

विस्तार है अपार ..प्रजा दोनो पार..करे हाहाकार ...
निशब्द सदा ,ओ गंगा तुम, बहती हो क्यूँ ?

अनपढ जन, अक्षरहीन, अनगिन जन,
अज्ञ विहिन नेत्र विहिन दिक` मौन हो क्यूँ ?इतिहास की पुकार, करे हुंकार,
ओ गंगा की धार, निर्बल जन को, सबल संग्रामी,
गमग्रोग्रामी,बनाती नहीँ हो क्यूँ ? 
विस्तार है अपार ..प्रजा दोनो पार..करे हाहाकार ...
निशब्द सदा ,ओ गंगा तुम, बहती हो क्यूँ ? 


व्यक्ति रहे , व्यक्ति केन्द्रित, सकल समाज,
व्यक्तित्व रहित,निष्प्राण समाज को तोड़ती न क्यूँ ?
इतिहास की पुकार, करे हुंकार,
ओ गंगा की धार, निर्बल जन को, सबल संग्रामी,
गमग्रोग्रामी,बनाती नहीँ हो क्यूँ ?

विस्तार है अपार ..प्रजा दोनो पार..करे हाहाकार ...
निशब्द सदा ,ओ गंगा तुम, बहती हो क्यूँ ?
( रचना- पंडित नरेंद्र शर्मा ) 
- भूपेन दा सच्चे भारतीय थे। वे असमिया भी थे। यूपी वाले भी थे। मुंबई वाले भी थे। तभी तो उनके जाने के बाद देश भर में लोग दुखी हुए रो पड़े और उदास हो गए...

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