Thursday 20 February 2014

आईआईएमसी में सम्मान मिला...


आईआईएमसी एलुमनी मीट 2014 के दौरान 16 फरवरी 2014 को आईआईएमसी के निदेशक सुनीत टंडन से कैंपस वाले राइटर सम्मान प्राप्त करते हुए। ( फोटो सौजन्य - रितेश)

Tuesday 18 February 2014

छोटा और सुंदर नोटबुक पीसी

अब बड़े बड़े भारी भरकम डेस्क टॉप पीसी की दिन लदने वाले हैं। उसकी जगह छोटे और स्मार्ट लैपटाप ले रहे हैं। आज की तारीख में डेस्कटॉप पीसी की कीमत में लैपटाप मिल सकते हैं। इसलिए अगर आप कंप्यूटर लेने जा रहे हैं तो आप अपनी जरूरतों के मुताबिक पहले बाजार का मुआयना कर लें उसके बाद ही को फैसला लें। आमतौर पर डेस्कटाप पीसी लेने पर आपको उसको रखने के लिए एक कंप्यूटर टेबल की जरूरत होती है। कंप्यूटर के लिए अलग से यूपीएस लेना आवश्यक होता है ताकि आप अचानक बिजली जाने के हालात में डाटा सुरक्षित कर सकें। कंप्यूटर में सीपीयू, मानीटर, की बोर्ड और माउस के साथ यूपीएस यानी उसके पांच जरूरी हिस्से होते हैं। लेकिन लैपटॉप में ये पांचो जरूरी चीजें एक ही साथ समा जाती हैं। वह भी एक डायरी की शक्ल में।


 एक नोटबुक पीसी का वजन आमतौर पर डेढ से ढाई किलो तक होता है जिसे आप आसानी से कहीं भी ले जा सकते हैं। लैपटॉप की सबसे बड़ी खासियत उसका बैटरी सपोर्ट होना भी है। आम तौर पर छह से 10 घंटे तक आप लैपटॉप को बैटरी पर चला सकते हैं। अगर आप ऐसे इलाके में रहते हों जहां बिजली की आंख मिचौली चलती रहती है तो वहां डेस्क टॉप पीसी में बार बार आपको अपना काम समेटना पड़ सकता है। अगर आप इन दिनों कंप्यूटर बाजार का मुआयना करें तो 10 इंच के लैपटॉप 15-16 हजार के रेंज में मिल रहे हैं जो आमआदमी की जरूरतों के अनुकूल हैं। 

आप अपनी सुविधा के अनुसार ज्यादा सुविधा वाला लैपटॉप भी चुन सकते हैं। वहीं 14या 15 इंच स्क्रीनवाले लैपटॉप 25 से 30 हजार के रेंज में आ सकते हैं। आप तमाम तरह के काम का निपटारा 10 इंच स्क्रीन वाले लैपटॉप में भी कर सकते हैं। किसी भी लैपटॉप में आप अपनी काम करने की सुविधा के मुताबिक माउस, की बोर्ड, मॉनीटर से भी कनेक्ट कर सकते हैं। अगर आप लैपटॉप के टच स्क्रीन माउस से काम करने में असुविधा महसूस करते हैं तो अलग से यूएसबी पोर्ट वाला माउस लगा सकते हैं। 10 इंच स्क्रीन वाले लैपटॉप में सीडी/डीवीडी ड्राइव नहीं होता। यहां बाहरी डाटा प्राप्त करने या देने जैसे सारे काम आपको पेन ड्राइव के जरिए करना पड़ता है। लेकिन दो हजार रूपये खर्च कर आप अलग से पोर्टेबल डीवीडी ड्राइव लगा सकते हैं। बाजार में उपलब्ध 10 इंच के लैपटॉप में 160 जीबी की हार्ड डिस्क और 1जीबी रैम मिल रहा है। ये तेज गति से इंटरनेट चलाने के लिए भी पर्याप्त है। साथ ही ऐसे लैपटॉप में वेबकैमरा, ब्लूटूथ, 3जी सिम के लिए स्लॉट जैसी सुविधाएं भी आ रही हैं। थोड़ी राशि अधिक खर्च कर आप दो जीबी रैम भी ले सकते हैं। अगर भविष्य में आपको हार्ड डिस्क में ज्यादा स्पेश चाहिए तो अलग से पोर्टेबल हार्ड डिस्क ड्राइव भी ले सकते हैं।

 यानी कि अब नोटबुक पीसी कंप्यूटर का इमरजेंसी विकल्प नहीं बल्कि कंप्यूटर की ही जगह लेते जा रहे हैं। नोटबुक पीसी आपको इस बात की आजादी देता है कि आप अपना कोई भी काम अपने स्टडी रूम, बेडरूम, चलती हुई कार या चलती ट्रेन में भी निपटा सकते हैं। यानी आपको कभी भी कहीं भी कनेक्ट रहने की आजादी देता है। वहीं ये सब कुछ अब डेस्क टॉप पीसी के ही दाम पर उपलब्ध है। तो जब आप पीसी लेने का मन बनाएं तो लैपटॉप और डेस्कटॉप में तुलना जरूर कर लें।

- विद्युत प्रकाश मौर्य
-     Email-vidyutp@gmail.com

Monday 17 February 2014

चले जाना छऊ नृत्य गुरू का

झारखंड के छऊ नृत्य गुरू पद्मश्री मकरध्वज दारोगा का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। 81 वर्षीय दारोगा ने सरायकेला में अपने आवास पर रविवार 16 फरवरी को देर रात करीब 12:30 बजे अंतिम सांस ली।
उनके परिवार में पत्नी, दो बेटे और तीन पुत्रियां हैं। दारोगा को छऊ नृत्य के सरायकेला प्रारूप को बढ़ावा देने में योगदान के लिए 2011 में पद्मश्री से नवाजा गया था। उनके पुत्र दीपक ने कहा, मेरे पिता कोल्हन क्षेत्र के खासतौर पर पश्चिम सिंहभूम और सरायकेला-खरसावां इलाके के शिष्यों को प्रशिक्षण देते थे। दारोगा का अंतिम संस्कार सरायकेला में कर दिया गया। उनकी अंतिम यात्रा में बड़ी संख्या में सभी वर्ग के लोगों ने भाग लिया।

विदेशों तक पहुंचाया छऊ को : पद्मश्री मकरध्वज दारोगा ने छऊ नृत्य को देश की सीमा से बाहर विदेशों तक पहुंचाया। उनके 150 के करीब ऐसे विदेशी शिष्य थे जिन्होंने सरायकेला आकर छऊ नृत्य सीखा और इस नृत्य को सात समंदर पार ले गए।
छऊ नृत्य में कंठ-संगीत गौण होता है और वाद्य-संगीत का प्रधानता होती है। यह नृत्य केरल के कथककली नृत्य शैली की तरह है। चटख रंग के कपड़े पहनना तथा मुखौटा धारण करना इस नृत्य के लिए आवश्यक होता है।  मंच पर नर्तकों की उर्जा और उनकी लयबद्धता देखते ही बनती है। छऊ नृत्य नाटिका पश्चिम बंगाल, बिहार और उड़ीसा के पडोसी राज्यों में प्रचलन में हैं। सैन्य अंदाज के हाव भाव पर आधारित छऊ नृत्य की तीन शैलियां सरायकेला (बिहार), पुरूलिया (पश्चिमी बंगाल) और मयूरभंज (ओडिशा) प्रचलित है।
साल 2009 में यूनेस्को की विश्व के अतुल धरोहरों में झारखंड के छऊ नृत्य को शामिल होने गौरव का प्राप्त हुआ। छऊ नृत्य का संवर्धन तथा विकास सरायकेला-सांवा के राजपरिवार द्वारा किया गया। सरायकेला राजपरिवार के लोग इस नृत्य के संरक्षक ही नहीं रहे बल्कि इसमें प्रस्तोता के तौर पर शामिल भी हुए। शंकरदयाल सिंह अपनी पुस्तक बिहार एक सांस्कृतिक वैभव में लिखते हैं कि राजकुमार सुधेंद्रनारायण सिंह देव और केदारनाथ सिंह को इसके लिए सम्मानित किया गया।



Friday 14 February 2014

सिप - बूंद बूंद से होती है बचत...

रूपये बचाने के कई तरीके हो सकते हैं। पर अच्छे दिनों में थोड़ी थोड़ी की गई बचत बूरे दिनों में काफी काम आ जाती है। आम तौर पर लोग बचत के लिए बैंक में रेकरिंग खाता या पीपीएफ खाता खोलते हैं। पर बचत के लिए इससे भी कई अच्छे उपाय हो सकते हैं। जैसे आप थोड़े से पैसे ही सीधे शेयर बाजार में प्रवेश कर सके हैं। शेयर बाजार में प्रवेश करने का आसान तरीका म्यूचुअल फंड हो सकता है। आम तौर पर किसी भी म्यूचुअल फंड में पहली बार निवेश के लिए न्यूनतम राशि पांच हजार रुपये होती है। पर आप इससे भी कम राशि के साथ म्युचुअल फंड में बचत की शुरूआत कर सकते हैं।

सिप से करें बचत- आम तौर पर किसी भी म्यूचुअल फंड में सिप के द्वारा बचत के लिए पांच सौ रूपए मासिक और एक हजार रुपए मासिक का विकल्प मौजूद है। अगर आप एक हजार रुपए मासिक से बचत की शुरूआत करते हैं तो आपको छह चेक देने होंगे और एक नियत तारीख को आपके खाते से पैसा निकल कर आपके नाम म्यूचुअल फंड की यूनिटें उस दिन के बाजार भाव ( एनएवी) पर एलाट होती रहेंगी। पर अगर आप 500 रुपए मासिक बचत करना चाहते हैं तो आपको 12 महीने तक लगातार बचत करनी होगी। सिप किसी भी म्युचुअल फंड में प्रोटफोलियो बनाने का आसान तरीका हो सकता है। इसमें कम आय वर्ग का दामी भी प्रवेश कर सकता है। अगर आपने सिप के द्वारा एक प्रोटफोलियो बना लिया तो उसके बाद आप उसमें पांच सौ या एक हजार जैसी राशि का निवेश बड़े आराम से कभी भी कर सकते हैं।

सौ रूपए का भी सिप- अब निवेशक चाहें तो सौ रूपये मासिक का निवेश भी सिप के माध्यम से कर सकते हैं। रिलायंस म्युचुअल फंड ने अब सौ रूपये मासिक का भी सिप पेश कर दिया है। इसके बारे में किसी निकटतम म्यूचुअल फंड निवेश एजेंसी या रिलायंस म्युचुअल फंड के दफ्तर में जाकर जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। आमतौर पर सौ रूपये निवेश की सुविधा रिलांयस ईसीएस के माध्यम से पैसा निकलवाने वाले खातों में प्रदान कर रही है। रिलायंस की यह कोशिश निम्न मध्यम वर्ग के लोगों को म्युचुअल फंड के प्रति आकर्षित करने के लिए है। जैसे कोई आदमी अगर सिर्फ चार-पांच हजार रूपए मासिक की कमाता है वही भी इस तरह के फंड में निवेश कर सकता है।

रेगुलर सेविंग का विकल्प - रिलायंस ने एक रेगुलर सेविंग फंड भी आरंभ किया है। इस फंड में आप केवल पांच सौ रूपए पहली बार निवेश करके भी प्रोटफोलियो बना सकते हैं। उसके बाद जिस महीने में जितनी राशि चाहें निवेश कर सकते हैं। इसमें हर महीने एक निश्चित राशि जमा करने की बंदिश भी नहीं है। आम तौर पर बाकी फंड में पहली बार निवेश के लिए कम से कम पांच हजार रूपए जमा करने की बंदिश है। पर रेगुलर सेविंग फंड में ऐसा नहीं है। तो आप इस फंड को भी ट्राई कर सकते हैं।

 अगर आप कई अच्छे म्युचुअल फंड का पिछले 15 से 20 सालों का इतिहास देखें तो उन्होंने प्रति वर्ष 20 से 40 फीसदी का ग्रोथ का रिटर्न दिया है। यह बैंक में रेकरिंग जमा की तुलना में बहुत ज्यादा है जहां सिर्फ आठ फीसदी तक ही रिटर्न मिल पाता है। हां अब नए नियम के मुताबिक म्युचुअल फंड में निवेश के लिए आपके पास पैन कार्ड होना जरूरी हो गया है और अगर आपने एक बार पैन कार्ड बनवा लिया तो आपको हर साल अपनी आय का रिटर्न भी भरना चाहिए।


विद्युत प्रकाश मौर्य vidyutp@gmail.com

Monday 3 February 2014

पॉलीथीन को कहें अलविदा

दिल्ली में पालीथीन की थैलियों पर प्रतिबंध लग गया है। देर आए दुरुस्त आए। यह प्रतिबंध तो कई साल पहले ही लग जाना चाहिए था। कई राज्यों ने महानगरों में पहले ही पर्यावरण में बढ़ते कचरे को भांपते हुए इनपर प्रतिबंध लगा दिया था। अब राजधानी के दुकानों पर यह बोर्ड लगा हुआ दिखाई देने लगा है खरीददारी करने वाले ग्राहक अपना थैला लेकर आएं। हम सरकार के ऩए कानून के बाद पालीथीन नहीं देते। कई साल पहले हिमाचल प्रदेश सरकार ने पर्यावरण को बचाने के लिए पालीथीन पर रोक लगा दी थी।

जब बाजार में पालीथीन के बैग आए तो लोगों की सुविधाएं बढ़ गई थीं। सामान की खरीदददारी केलिए लोगों ने घर से अपना झोला लेकर जाना बंद ही कर दिया था। चाहे सब्जी खरीदना हो या राशन पालीथीन के बैग लोगों को सुविधाजनक लगने लगे थे। पालीथीन के बैग आने के साथ ही बाजार से कागज के ठोंगे और जूट के बने झोले गायब होने लगे थे। अगर पिछले दो दशक को पालीथीन युग कह दिया जाए तो कुछ गलत नहीं होगा। लेकिन जल्दी हमें पालीथीन के खतरों के बारे में पता चला। पालीथीन से ऐसा कूड़ा बनता है जिसे आसानी से नष्ट नहीं किया जा सकता है। यह न सिर्फ महानगरों की सफाई व्यवस्था के लिए घातक सिद्ध हुआ बल्कि जानवरों के लिए भीविनाशकारी सिद्ध हुआ। हर रोज कूड़े में जो पालीथीन के बैग फेंके जाते हैं। वे किसी भी सूरत में सड़ते नहीं हैं। लिहाजा ये पालीथीनके बैग नालियों में जाने परनाली और गटर को जाम कर देतेहैं। हमारे लिए शुरूआती दौरमें सुविधाएं देने वाला पालीथीन बैग सफाई के लिए बहुत बड़ा संकट बन कर उभरा। सभी नगर पालिकाऔर नगर की सफाई व्यवस्था को पालीथीन ने चुनौती दे डाली। दुनिया के कुछ बड़े शहरों में पालीथीन के कचरा को खत्म करनेके लिए तो बड़ी महंगी तक निकलानी पड़ी। यानी पालीथीन थोड़ी सुविधा और ज्यादा समस्या बना गया। भारत के परिपेक्ष्य में पालीथीन को देखें तो यत्र-तत्रकूड़े के रूप में फेंके गए पालीथीन बैग को जानवर खा लेतेहैं, उसकेबाद जानवरों के पेट में गया पालीथीन किसी भी तरीके से पचता नहीं है। यह कई बार जानवरों के मौत का कारण भी बन जाता है।इसलिए खास तौर पर भारत में जहां गाय को माता के रूप में पूजा जाता है, गौसेवकों को पालीथीन के खतरेका भान हो चुका है। इसलिए गौ रक्षा आंदोलन के लोग पालीथीन को भारत में प्रतिबंधित करने की बात कर रहे हैं। पालीथीन ने जिस तरह से नगर की सफाई व्यवस्था के लिए संकट खड़ा किया है उसे देखते हुए सभी नगरपालिकाओं और नगर निगमों को पालीथीन पर बैन लगा देना चाहिए।
जिन शहरों ने पालीथीन पर बैन लगा दिया है वहां की फिजां बदल रही है। लोग फिर से कपड़े का बना बैग लेकर घर से निकलने लगे हैं। दुकानदार भी कागज से बने हुए लिफाफे में सामान पकड़ाने लगे हैं। कागज से बने लिफाफों की खासियत है कि ये आसानी से डिस्पोजेबल हैं। इन्हें कूड़े में फेंकों तो ये गल जाते हैं। इसलिए आप भी कहें पालीथीन को कहें अलविदा...
-विद्युत प्रकाश मौर्य, ईमेल vidyutp@gmail.com