Sunday 5 October 2014

काम के घंटे और छुट्टियां

किसी भी नौकरी में आदर्श काम करने के घंटे कितने होने चाहिए और छुट्टियां कितनी, यह बहुत बड़ा सवाल है। पूरी दुनिया में सप्ताह में एक दिन कर्मचारियों को छुट्टी देने का रिवाज है। वहीं कई जगह हफ्ते में दो दिन छुट्टी होती है। भारत सरकार के कार्यालयों में हप्ते में दो दिन छुट्टी होती है। वहीं एनडीटीवी (टीवी चैनल) भी अपने कर्मचारियों को हप्ते में दो दिन अवकाश देता है। यह बहुत अच्छी बात है।

कोई भी आदमी स्वस्थ और तरोताजा होकर काम कर सके इसके लिए जरूरी है कि उसे साप्ताहिक अवकाश तो दिया ही जाए। कई निजी संस्थान अपने मुलाजिमों को छुट्टी वाले दिन भी काम पर बुलाते हैं इसके एवज में उन्हें ओवरटाइम या फिर कभी छुट्टी दे देते हैं। वहीं कुछ शोषक संस्थान छुट्टी के दिन बेगार करवाते हैं इसके बदले में कुछ भी नहीं देते। आदर्श स्थिति यह होनी चाहिए कि हर संस्थान को अपने कर्मचारी को हप्ते में एक दिन छुट्टी हर हाल में देनी ही चाहिए। इससे संस्थान के मानव संसाधन की रक्षा हो सकती है। एक अच्छे संस्थान कुछ साल पहले अपने सभी इकाईयों को पत्र जारी किया कि अगर आप किसी स्टाफ को एक साप्ताहिक अवकाश में काम पर बुलाते हो तो उसे दूसरे अवकाश की छुट्टी अवश्य दो। भले ही आप उसे अवकाश का पैसा क्यों न दे रहे हो। ऐसा नहीं करने पर कर्मचारी दिमागी तौर पर बीमार हो सकता है। बिना अवकाश लिए लगातार काम करने का असर काम की गुणवत्ता पर अवश्य पड़ता है। खास तौर पर दिमागी काम करने वाले लोगों के मामले में। जो लोग किसी तरह का दिमागी काम निपटाते हैं उन्हें ज्यादा रिफ्रेशमेंट की जरूरत है अन्यथा वे कई तरह की गलतियां का के दौरान कर सकते हैं।
जो लोग शादीशुदा हैं और अपने परिवार के साथ रहते हैं, उनके लिए साप्ताहिक अवकाश की बहुत अहमियत है। क्योंकि उनकी छुट्टी पर उनके परिवार वालों का भी हक बनता है। छुट्टी के दिन परिवार के साथ कहीं बाहर घूमने जाना, सिनेमा देखना या पार्क में घूमना एक स्वस्थ प्रक्रिया है। जो लोग छुट्टी वाले दिन घर में सोना चाहते हैं उनके मामले में ऐसा हो सकता है कि या तो वे आलसी हैं या फिर छह दिन के काम के दौरान वे काफी थक जाते हैं।
कई लोगों को आदत होती है कि वे ओवर टाइम करके ज्यादा रुपए बनाने की कोशिश में छुट्टी वाले दिन भी काम पर आना चाहते हैं। पर इसका बड़ा ही नकारात्मक परिणाम लंबे समय में जाकर पड़ता है। आप थोड़े से पैसों के लिए ज्यादा काम तो कर लेते हैं। पर लंबे समय में आपका शरीर कई तरह की बीमारियों से ग्रसित हो सकता है। उसमें आपको इलाज में काफी रूपया फूंकना पड़ सकता है। आप यह भी याद रखिए कि जब आपको कोई लंबी और असाध्य बीमारी हो जाएगी तब कोई संस्थान आपको लंबे समय तक नही ढो सकेगा। उसको आपकी जगह किसी और श्रम की जरूरत होगी। इसके लिए वह कोई नया आदमी बहाल कर लेगा। इसलिए कभी अपने शरीर और अपने जीवन को दांव पर लगाकर किसी संस्थान को अपनी सेवाएं देना कोई अच्छी बात नहीं है। अच्छी बात यह है कि आप संस्थान के साथ प्रोफेशनल व्यवहार करें और संस्थान भी आपके साथ इसी तरह का व्यवहार करे। जब आपको लगता हो कि कोई संस्थान लगातार आपका शोषण कर रहा है तो आपको संस्थान बदलने के बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए।
- माधवी रंजना 




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