Tuesday 18 November 2014

अच्छे दिन आए दिन आलू के ( व्यंग्य)

चुनाव से पहले उन्होंने कहा था - अच्छे दिन...आने वाले हैं। तो सबने इसका मतलब अलग अलग निकाला। अब आपने मतलब गलत निकालना तो इसमें गलती किसकी। हमारी एक सीनियर ने फेसबुक पर चिंता जताई। लगातार महंगाई के आंकडे धड़ाम हो रहे हैं। पेट्रोल सस्ता हो रहा है। सोना सस्ता हो रहा है। पर ये कमख्त आलू....आलू कई महीने से ऊंचाई पर खड़ा सबको चिढ़ा रहा है।

पर सच्चाई है कि आलू के अच्छे दिन आ गए हैं। आलू ने सबको अपनी औकात बात दी है। जैसे कभी बहु भी सास बनती है। उसी तरह सब्जियों में आलू को भी कभी तो जाकर राज सिंहसान पर बैठना ही था। तो आलू इन दिनों इतरा रहा है। गा रहा है – आए दिन बहार के। इसी दिन का तो इंतजार था। चार महीने से 40 रूपये किलो से कम होने का नाम ही नहीं ले रहा है आलू। चाहो तो आलू से सस्ते में सेब खरीद लो लेकर आलू टस से मस नहीं होगा। आपकी औकात नहीं है तो मत खाइए आलू। भिंडी या बैगन से काम चलाइए। जिस भोज में आलू की सब्जी बनी हो समझो कि वो अमीर का भोज है। जिस घर में आलू बन रहा हो तो समझो वहां अभी पैसे की गरमी बरकरार है।
आलू तो कई दशक से सब्जियों का राजा था। पर हम उसे हिकारत भरी नजरों से देखते थे। आलू मटर, आलू बैंगन, आलू-गोभी, आलू दम, हर रूप रंग में आलू थाली की शोभा बढ़ाता था। चाहे भरता बना लो चाहे भूजिया बना लो। बड़ी बड़ी कंपनियां आलू के चिप्स बनाकर मालामाल हो रही हैं। फिर भी हम आलू का महत्व कम करके आंकते थे। पर अच्छे दिन आने वाले थे। और अब आ गए। शायद आगे भी बने रहेंगे।
आपको पता है आलू विदेशी मूल की फसल है। तभी तो ये गोरा होता है। आलू पेरू से चलकर भारत पहुंचा। पर हमने इस विदेशी तने की कदर नहीं जानी। आलू प्रोटीन और खनिज से भरपूर होता है। आलू में स्टॉर्च, पोटाश और विटामिन ए व डी होता है। पर हम उसकी कदर नहीं करते। आलू के छिलके के नीचे विटामिन होता है। पर हम उसके छिलके को उतार कर फेंक देते हैं। आलू हमारी मूर्खता पर हंसता है। इसलिए अब आलू अपनी कीमत का अहसास करा रहा है। जब से आलू महंगा हुआ है लोगों ने छिलका उतारना छोड़ दिया है। हार्टिकल्चर प्रोड्यूस मैनेंजमेंट इंस्टीट्यूट (एचपीएमआई) लखनउ ने अपने रिसर्च में पाया है कि आलू संपूर्ण आहार है। इसमें वसा की मात्रा कम है और लो कैलोरी फूड है। यानी आलू के बारे में सदियों से दुष्प्रचार जारी था। तो अब भुगतिए आलू ने ने थोड़ा गुस्सा दिखा दिया है। आलू इतरा रहा है। वह पंचम सुर में गा रहा है। वह गरीबों की थाली की सब्जी नहीं रहा अब। सिर्फ कश्मीर के लोग आलू को इज्जत से देखते थे जो बड़े सम्मान से कश्मीरी दम आलू बनाते हैं वह भी बिना लहसुन प्याज के। अब पूरे देश के लोगों को आलू का सम्मान करना सीख लेना चाहिए। आलू अब सिंहासन से नीचे नहीं उतरने वाला...जय हो आ गए अच्छे दिन....
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---- विद्युत प्रकाश मौर्य



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