Friday 14 November 2014

प्याज नहीं टमाटर के आंसू ( व्यंग्य )

रोने के लिए कोई बहाना होना चाहिए। बदलते दौर में लोग रोना और हंसना भूलते जा रहे हैं। इसलिए रुलाने व हंसाने का जिम्मा किचेन ने लिया है। पिछले साल प्याज ने रुलाया था तो इस बार रुलाने का जिम्मा टमाटर ने ले लिया है। वैसे प्याज के रुलाने के किस्सा बहुत पुराना है। प्याज काटते समय को अनायास ही आंसू निकल आते हैं। पर पिछले साल प्याज की महंगी कीमतों ने रुला दिया था। एक प्याद खरीदने जाओ को पांच रुपए का। अब लोगों को आदत पड़ गई है तो बिना प्याज की सब्जी कैसे बनाएं। हालांकि अभी शुद्ध सात्विक हिंदू परिवारों में बिना प्याज बिना लहसून के सब्जी बनती है। इतिहास में कभी क्षत्रिय प्याज नहीं खाते थे। अब बिना प्याज के छौंक बात नहीं बनती है।


 खैर इस साल प्याज रहम दिल है। वह सस्ते में ही बिक रहा है। पर इस बार कभी नींबू तो कभी टमाटर ने तेवर दिखा दिए। हालांकि मुझे टमाटर बहुत पंसद हैं। देखने में भी खाने में भी। हरे भी लाल लाल भी। पर इस बार टमाटरों ने तरसाया बहुत। सब्जी बाजार में गया तो टमाटर का भाव पूछा। बोला 10 रुपए। मैंने कहा तौल दो। उसने तौल दिया। ये क्या 10 रुपए में तीन टमाटर। जी हां टमाटर 10 रुपए का एक पाव है यानी 40 रुपए किलो। मैंने तीन टमाटर खरीदकर फ्रीज में रख दिया है। फिलहाल उन्हें रोज निकाल कर देख लेता हूं। फिर फ्रीज में वापस रख देता हूं। मैं अपनी किस्मत पर रस्क करता हूं। इस महंगाई में भी मैं टमाटर खरीदने की हिम्मत रखता हूं। यही क्या कम है।
हमारी दिल्ली सरकार की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित जी पब्लिक का दर्द बखूबी समझती हैं। उन्हों ने कहा लोगों को सस्ता टमाटर मिले इसके लिए सरकार जगह जगह काउंटर खोलेगी जहां 20 रुपए किलो ही टमाटर मिल सकेगा। पर शीला जी पूरी दिल्ली को कहां मिल पाया 20 रुपए किलो टमाटर। और रही बात तो 20 रुपए किलो ही कौन सा सस्ता है। इस समय टहक लखनवी दशहरी आम महज 18 रुपए किलो मिल रहे हैं। लखनउ में तो सुन है कि पांच से 10 रुपए किलो की बहार आई हुई है। और फिर शीला जी दिल्ली के कुछ लोगों ने सस्ता टमाटर खरीद भी लिया तो इससे देश के अन्य कोने में बसे लोगों को दिल्ली वासियों से ईष्या होने लगेगी।
सुना है कि मुआ मौसम ही इस बार खराब है। इसलिए हिमाचल में टमाटर की फसल अच्छी नहीं हुईटमाटर मजबूरी में ही महंगा हो गया। नासिक में बाढ़ आ गई थी तो प्याज महंगा हो गया था। इस बार टमाटर गुस्से में है। उसका गुस्सा जल्दी शांत होता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है। इस बीच लोगों को मौका मिल गया है टमाटर को लेकर व्यंग्य करने का। हमारे जसपाल भट्टी साहब ने तो अपनी पत्नी को टमाटरों की माला ही गिफ्ट कर डाली।
अब अगर आप किसी के घर जाएं और खाने की मेज पर टमाटरों का सलाद दिखाई तो समझ लिजिए की आदमी स्टेट वाला है। वरना तो यू हीं। यानी की टमाटर खरीदने की क्षमता से किसी की औकात का पता चल जाता है। कवियों साहित्यकारों को भी चाहिए कि अब किसी सुंदर स्त्री के गालों की ललाई की तुलना सेब आदि से न करके टमाटर से ही करें। इससे उन स्त्रियों को काफी खुशी होगी क्योंकि हर किचेन में जाने वाली स्त्री को टमाटर की अहमियत का पता चल चुका है। जब आप किसी को अच्छी गिफ्ट भेजना चाहते हैं तो फलों के बजाए टमाटरों का ही टोकरा भिजवाएं।
- विद्युत प्रकाश मौर्य



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