Thursday 11 December 2014

सबसे उपयोगी प्राणी - गधा ( व्यंग्य)


आप पूछेंगे इस धरती पर सबसे उपयोगी प्राणी कौन है। मैं उत्तर दूंगा गधा। निश्चय ही उपयोगिता के पैमाने पर गधा उच्च शिखर पर है, परंतु दुर्भाग्य है कि उसे हमेशा उपेक्षा ही मिलती है।
भारत जैसे विविधापूर्ण देश में और विषम भौगोलिक परिदृष्य में गधे का महत्व और भी बढ़ जाता है। उन लाखों गांवों तक जहां कोई सड़क नहीं जाती, उबड़ खाबड़ पगडंडियों पर सामान ढोने का काम गधा ही करता है। सिर्फ इतना ही नहीं हिमालय की ऊंचाइयों पर बसे पहाड़ी गांवों में गधे का कोई विकल्प नहीं होता। शहर की सभी आवश्यक वस्तुएं गांव में गधा ही ढोकर लाता है। पहाड़ के लोगों के लिए गधे को पालनहार कहा जाए तो कुछ ज्यादा नहीं होगा। लेकिन निरीह समझे जाने वाले गधे का महत्व यहीं आकर खत्म नहीं होता। गधा गांव में जितना लोकप्रिय है उतना ही शहरों में भी। दिल वालों की दिल्ली भले ही फैशन के मामले में पेरिस से मुकाबला करने की उतावली हो लेकिन गधा दिल्ली की जीवन शैली में भी अनिवार्य हिस्सा बना हुआ है। भले ही आपकी जानकारी  में दिल्ली महानगर हो जहां नरूला और विंपी में बैठे प्रेमी युगल सेलुलर फोन पर जुगाली करते हुए पाए जाएं। पर गधा यहां भी अपना काम बड़ी जिम्मेवारी से निभाता है। दिल्ली जैसे महानगर में अभी कई सौ गांव अस्तित्व में हैं। इन गांवों का भूगोल बिल्कुल भारत के किसी दूसरे बड़े और घने गांव जैसा ही है। 



अंतर सिर्फ इतना है कि दिल्ली के गांव में अवैध रूप से चार मंजिला और छह मंजिले मकान बन दए हैं, जिसमें हर साल एक मंजिल बढ़ा दी जाती है गधे की सहायता से। जी हां गधे की ही सहायता से क्योंकि इन गांवों की संकरी गलियों में ईंट, सीमेंट, बदरपुर आदि ढोने का काम गधा ही करता है। गधे से आप चाहे जो काम कराएं, मगर गधा कभी एतराज नहीं करता। गधे की पीठ पर कुछ भी लाद दो गधे को कोई आपत्ति नहीं होती। सही मायने पर आज के दौर में गधा की सच्चा समाजवादी प्राणी है।

दिल्ली के गांवों की बदबूदार और संकरी गलियों में रहने वाले लोग हवा और तेज धूप से भले ही महरूम हों लेकिन उन्हे भोजन पानी गधा ही सुलभ कराता है। गलियों की गांव में बिकने वाले सामान को मंडी की दुकान से लाने का काम गधा ही तो करता है। अब वो जमाना गया जब कहा जाता था कि धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का। आज तो गधा ही हर जगह पालनहार है। चाहे पहाड़, मैदान जंगल या हो शहर जीवन को मंगल करने में गधे की बड़ी भूमिका है।
 जब एक आदमी दूसरे पर नाराज होता है तो कहता है गधा कहीं का। अब आप ये वाक्य किसी गधे के सामने मत कहिएगा। गधा बुरा मान सकता है। मानहानि का केस दायर कर सकता है। कभी आप गधे को आदमी कहीं का कहकर देखें जरूर दुलत्ती चला देगा। राज की बात ये है कि गधा इस सृष्टि का सबसे समझदार प्राणी है। वास्तव में त्वमेव माता च पिता त्वमेव जैसे श्लोक गधे की ही वंदना में लिखे गए हैं। उसका प्रयोग आप चाहे जहां कर लें। एक अक्लमंद राजनेता एक मंदिर में प्रार्थना करता पाया गया कि भगवान मुझे अगले जन्म में गधा बना दो। मेरा कहना कि अखंड हिंदुस्तान में गधे की उपयोगिता को देखते हुए हमें गधे को ही राष्ट्रीय पशु का दर्जा दे देना चाहिए। तो आइए बोलें- वोट फॉर गधा...

--- विद्युत प्रकाश ( 1996 )  ( ASS, NATIONAL ANIMAL , PUBLISHED IN KUBER TIMES DELHI ) 


Tuesday 9 December 2014

कर्ज लें और करें मौज ( व्यंग्य)


-विद्युत प्रकाश मौर्य
सुबह सुबह मेरे मोबाइल पर एक फोन आता है। सर मैं अमुक बैंक से बोल रहा हूं आपको बधाई हो। आपका 50 हजार रुपए का लोन सैंक्सन हो गया है। कहिए कब रुपए भिजवा दूं। मैंने कहा भाई मैंने किसी कर्ज के लिए आवेदन नहीं किया है। उधर से आवाज आई आपने आवेदन नहीं किया तो क्या हुआ हमने आपके बैंक एकाउंट की रिपुटेशन को देखकर तय किया है कि आपको कर्ज देना चाहिए। असल में हमारे बैंक के पास काफी रुपया सरप्लस है। सो बैंक ने तय किया है कि अच्छी रिपुटेशन वाले लोगों को कर्ज बांटो। अब आप जब कहें आपके घर पर हम आपको रुपए भिजवा देते हैं। आप कहो तो आपके खाते में डलवा देते हैं।
मैंने अब यू हीं पूछ ही लिया चलो इस रुपए पर आप ब्याज कितना लोगे। उधर से आवाज आई ब्याज के नाम पर बहुत कम है सर बस पौने दो फीसदी। मैंने कहा क्या यह सालाना है तो उन्होंने कहा नहीं सर मासिक। हम आपके कर्ज की राशि की ईएमआई बना देंगे। बस आपको हर महीने देते जाना है। मैंने कहा लेकिन यह ब्याज तो बहुत ज्यादा है। यह सालाना 21 फीसदी के बराबर बैठता है। मेरे खाते में जब पहले से ही रुपए हैं तो यह कौन सी अक्लमंदी है कि मैं कर्ज लूं। अब बैंक का एक्जक्यूटिव मुझे समझाने लगा। उसने बताया देखिए सर कर्ज लेने के बहुत से फायदे हैं। भले ही आपके पास कई खातों में काफी रुपया जमा हो पर आपको कर्ज भी लेकर रहना चाहिए। कर्ज लेना आज के जमाने में स्टेटस सिंबल बन गया है। सभी बड़े सेठ साहूकार भी कर्ज लेते हैं। लोग कर्ज लेकर आगे कर्ज देते हैं। छोटा बैंक अपने से बड़े बैंक के कर्ज लेता है। तो बड़ा बैंक सरकार से कर्ज लेता है। हमारी सरकार अमेरिका से कर्ज लेती है। तो अमेरिका की सरकार अन्य देशों से कर्ज लेती है। सारी दुनिया कर्ज लेकर ही चल रही है। अगर आपने कोई कर्ज लिया है और आप किसी कारण से उसे चुका नहीं पा रहे हैं तो उसे चुकाने के लिए दुबारा कर्ज लिजिए। बैंक वाला चालू था। वह आगे बताता रहा। मैं भी धैर्य से सुनता रहा। भारतीय संस्कृति भी कर्ज लेने की रही है। महर्षि चार्वाक ने कहा थायावत जीवेत सुखम जीवेतऋणम कृत्या घृतम पिवेत। उसने कहा कि अगर आपको जरूरत नहीं है तो कर्ज लेकर किसी और को दे दीजिए। पर यह सुनहरा मौका हाथ से मत जाने दीजिए। खुदा भी जब देता छप्पड़ फाड़कर देता है। मुझे बैंक वाले के ज्ञान पर बड़ा सुखद अचरज हुआसाथ ही अपनी मूर्खता पर ग्लानि भी हुई। मैं भला हर महीने क्यों अपने वेतन से कुछ राशि बचा कर विभिन्न जमा योजनाओं में लगाता हूं। मुझे भी कर्ज लेना चाहिए। अगर कर्ज लेने की जरूरत नहीं है तो कर्ज लेकर अपने अड़ोसी पड़ोसी लोगों को कर्ज बांटना चाहिए। मैं अभी सोच ही रहा था कि मेरे पास एक और बैंक वाले का फोन आया। भाई साहब आपको कर्ज चाहिए। हमारा बैंक आपको हवाई यात्रा कर विदेश जाने वहां शापिंग करने के लिए भी कर्ज देता है। अगर आप हवाई जहाज से घूमना चाहते हैं और आपके पास पैसे नहीं तो कर्ज लेकर उड़ान भरिए और बाद में किस्तो में चुकाते रहिए। अगर आपको अपनी बीवी को खुश करने के लिए गहने खरीदने हैं। अपनी खूबसूरत शाली या गर्ल फ्रेंड को गिफ्ट करने के लिए गहने खरीदने हैं तो हमारा बैंक ऐसे पुनीत कार्यों में भी आपके साथ है। अगर आप कोई भी त्योहार शान से मनाना चाहते हैं पर आप जेब से तंगहाल हैं तो भी कोई बात नहीं। यहां भी हम आपके साथ हैं। अगर आप पुरानी खटारा बाईक को छोड़ककर दिलकश कार की सवारी करना चाहते हैं तो यहां भी हम आपके साथ हैं। बस एक फोन घुमाईए। बंदा हाजिर।
(LOAN, BANK, ENJOY) 

Sunday 7 December 2014

खुशबू बिखेरती लड़कियां ( व्यंग्य)


दिल्ली में एक है प्रगति मैदान। प्रगति मैदान यानी देश भर की प्रगति का आइना। हिंदुस्तान ने कितनी प्रगति की है इसे यहां आकर बखूबी देखा और समझा जा सकता है। मजे की बात ये है कि अगर आप पूरे देश में घूमे तो हो सकता है आपको सिर्फ पिछड़ापन ही नजर आए. हो सकता है आपको जनता की गरीबी और भूख नजर आए लेकिन प्रगति मैदान में ये सब कुछ दिखाई नहीं देगा. यहां तो दिखाई देती है देश सपनीली तरक्की...
प्रगति मैदान की प्रगति तब और देखने को मिलती है जब यहां उपभोक्ता वस्तुओं प्रदर्शनी लगाई जाती है। इंसा अल्ला जितना बढ़िया प्रोडक्ट नहीं होगा उससे अधिक खूबसूरत उसको डिस्प्ले करती हुई हसीन सी माडल होगी। ये माडल बिल्कुल वैसी ही होगी जैसी कि आपके सपनों में अक्सर आया करती है। ये आपका सौभाग्य है कि यहां वह सपनों की परी आपके लिए कलर टीवी, किचेन का सामान या वाशिंग मशीन प्रस्तुत करती हुई नजर आएगी। भले ही आप चार लाख रूपये का कलर टीवी नहीं खरीद सकते परंतु आप हसीन सी बाला की डिप कट की ब्लाउज से झांकती नंगी पीठ और उसकी गहरी लिपिस्टिक से झांकती मादक मुस्कान तो देख ही सकते हैं।
किसी स्लिम सेंटर अथवा गारमेंट शाप पर मिनी स्कर्ट में आसमां उतर आई किसी परी के दर्शन हो सकते हैं, जो अपने थोड़े से कपड़ों को भी बोझ समझती हो। इन सबसे आगे बढ़ें तो खुशबू का बाजार नजर आएगा। यानी इत्र की तरह तरह की दुकानें...और इन दुकानों पर आपका स्वागत करती नजर आएंगी इत्र बालाएं.....यानी कि दर्जनों खुशबू बिखेरती लड़कियां। जो बेजार हैं आपके शरीर पर अपने कोमल हाथों से परफ्यूम छिड़कने के लिए। बेशक आप इत्र न खरीदें लेकिन इन इत्र बालाओं से अपने हाथों पर मुफ्त में इत्र लगवाना न भूलें। अगर आपके साथ आपकी पत्नी न हो तो बेशक आप इन इत्र बालाओं से थोड़ी देर प्रेमालाप भी कर सकते हैं।


अब आप इतने बेशर्म तो होंगे नहीं कि इतनी बार अपने हाथों पर इत्र का स्पर्श सुख लेने और प्यार भरे बोल के बाद इत्र की एक बोतल भी न खरीदें। भले ही चीजें बाजार से महंगी दरों पर ही क्यों न बिक रही हों. इसलिए देश की चहुंमुखी प्रगति का मुआयना करना होतो प्रगति मैदान अवश्य पधारें, बस अपनी पत्नी या प्रेमिका को साथ लेकर नहीं आएं।

-विद्युत प्रकाश मौर्य


-     ( सौ. कुबेर टाइम्स , 29 नव, 1996 )

चालीस के बाद करें डेटिंग .... ( व्यंग्य )

कहते हैं इश्क में कोई उम्र की सीमा नहीं होती...यह सच है इसलिए अगर आप चालीस की उम्र को पार कर चुके हैं तो कमसिन बालाओं को देखकर सिर्फ ठंडी ठंडी आहें न भरें बल्कि पहल शुरू करें। जी हां जो हशरतें आप जवानी में पूरी नहीं कर सके हों उसे ढलती हुई उम्र में पूरा करने की प्लानिंग करें। एक छोटी सी कहानी है बचपन की प्रेमिका से ढलती उम्र में मुलाकात हो गई। आशिक मिजाज प्रेमी पूछ बैठा प्यार करोगी जानी तो तपाक के प्रेमिका बोल पड़ीका वर्षा जब कृषि सुखानी....पर अब आप इस कहावत को भूल जाइए कोई भी समय कृषि सुखाने का नहीं होता। अगर आप टीवी और अखबारों के विज्ञापनों को ध्यान से देखते होंगे तो आपने देखा होगा...साठ साल के जवान...

अभी हाल में मैंने एक लेख पढ़ा जिसमें गंभीरता से यह सलाह दी गई थी कि चालीस के उपर के लोग डेटिंग कैसे करें। अक्सर आप जवानी के दिनों में अपनी प्रेमिका को आईसक्रीम खिलाने कीरेस्टोरेंट ले जाने की या फिर सिनेमा दिखाने की बात सोचते होंगे पर आपकी हसरत जेब ढीली होने के कारण मन में ही रह जाती होगी। पर अब आप इस दबी हुई हसरत को पूरी कर सकते हैं। क्योंकि अब आप नौकरी पेशा हैं और चालीस के उम्र में आपकी तनख्वाह भी मोटी हो चुकी होगी। आज आपके पास कार नहीं तो बाइक जरूर ही होगी। सो आप अपने वेतन का कुछ हिस्सा डेटिंग के नाम पर खर्च करना आरंभ कर दें। अगर बीबी पूछे की तनख्वाह में से इतना रूपया कहां गया तो कोई बहाना बना दें। अब तक आपको इतना करना तो आ ही गया होगा। अब आप पूछ सकते हैं कि भला इस उम्र में आपके उपर लड़कियां क्यों आकर्षित होंगी। तो जनाब आप इस गलतफहमी में न रहें लड़कियां तो पाकेट की गरमी देखकर ही आकर्षित होती हैं। उनका सूरत और सीरत से भला क्या काम। अगर आप किसी बड़े दफ्तर में काम करते हैं तो किसी को आप कैंटीन या कैफेटेरिया ले जाने का आफऱ करें। अगर आपको बस स्टाप पर कोई लड़की बस का इंतजार करती दिखे तो उसे लिफ्ट देने का आफर करें। आपके उम्र को देखते हुए आपके ऊपर कोई शक भी नहीं करेगा। इस तरह के कई और तरीके हो सकते हैं निकटता प्राप्त करने के पर मैं मुफ्त में इतना सब कुछ नहीं बताने वाला हूं। अगर आपको लगता है कि इस उम्र में भला यह सब कैसे शोभा देगा तो जनाब आप गलतफहमी में है। आप जैसे लोगों के लिए शायर ने लिखा है-
कौन कहता है बूड्ढे इश्क नहीं करते....इश्क तो खूब करते हैं लोग उनपर शक नहीं करते...





रही बात बदनामी की तो आप इससे हरगिज घबराएं... अगर आपके नाम के साथ थोड़ा बहुत स्कैंडल जुड़ता है तो इससे आपकी चर्चा बढ़ेगी। हो सकता है इसका आपको सकारात्मक लाभ मिले। हां अगर मामला ज्यादा बिगड़ता हुआ दीखे तो आप उसको संभालने की कोशिश करें। हो सकता है आपकी इस इश्क मिजाजी पर आपकी बीबी को शक हो... तो होने दीजिए न शक आपकी बीबी को इस बात पर रश्क हो सकता है कि मेरे पति के आगे पीछे इस उम्र में भी तितलियां मंडराती हैं। हां आप किसी तितली को घर में न आने दें। अगर मामला ज्यादा बिगड़ता हुआ दिखाई दे आप खुद संभाल लें। अगर लात जूतेलाठी डंडे पड़ने की नौबत आ जाती हो तो....इस मामले में हम आपको बचाने नहीं आ सकेंगे। ऐसे नाजुक मामले में आप अपने तुरंत बुद्धि का इस्तेमाल करें...
- विद्युत प्रकाश मौर्य

उपनाम का चक्कर ( व्यंग्य)


साहित्य में उपनामों की परंपरा रही है। बिना उपनाम रखे कोई भी साहित्यकार बड़ा या स्थापित नहीं हो पाता है, ऐसा माना जाता है। हमने भी जब साहित्य जगत में कदम रखने की सोची तो ख्याल आया कि कोई न कोई उपनाम जरूर होना चाहिए। बिना उपनाम के तो पहचान बनानी मुश्किल हो सकती है। सो पिछले कई दिनों से मैं उपनाम की तलाश में हूं। सोचते सोचते खाना पीना सब हराम हो गया है लेकिन कोई उपनाम नहीं सूझ रहा है। एक मित्र ने सलाह दी कि अपना उपनाम दीपक रख लो,,,लेकिन मुझे लगा कि अब दीपक आउटडेट हो गया है। मेरे जेहन में आया क्यों नहीं उपनाम लालटेन रख लिया जाए। परंतु अब लालटने का भी जमाना गया, अब तो विद्युत से प्रकाश होता है। सो बल्ब, ट्यूब लाइट या सीएफएल जैसे उपनाम रखे जा सकते हैं। लेकिन ये सभी प्रकाश के कृत्रिम स्रोत हैं। लेखक तो सहज और स्वाभाविक होता है। लिहाजा ये उपनाम व्यंग्यात्मक लग रहे हैं। मैं तो कुछ गंभीर उपनाम ढूंढ रहा हूं। साहित्यकार पहले से ही सारे सीरियस नाम हथिया चुके हैं। वियोगी, अज्ञेय, निराला, दिनकर, रत्नाकर, रूद्र, नीरज, प्रभाकर, विभाकर, निशाचर, मानव, दानव और न जाने क्या क्या..कोई भी गंभीर उप नाम मेरे लिए सुरक्षित नहीं बचा। एक बड़े साहित्यकार हुए हैं व्यथित हृदय मैंने सोचा क्यों नहीं उनकी परंपरा में अपना नाम रूदित या क्रंदित हृदय रख लूं। परंतु मेरे एक बाल सखा की सलाह थी कि इससे बच्चे डर जाएंगे। वास्तव में मैं बच्चों को डराना तो नहीं चाहता। बच्चे अब भी मुझे प्रिय हैं।

फूलों पर भी कई साहित्यकारों के नाम हैं। यथा कमल, गुलाब, पुष्प आदि। पक्षियों के नामपर भी उपनाम रखे गए हैं यथा विहग, चंचल, पंक्षी आदि। मेरी चटोर बहन ने सलाह दी कि किसी खाने पीने की चीज पर अपना उपनाम रख लोग। जैसे नींबू, अनानास, मौसमी, संतरा, आदि। अगर इसी में कुछ एक्सक्लूसिव चाहते हो तो टमाटर, चेरी, स्ट्राबेरी, चीकू या फिर आलू बुखारा रख सकते हो। वैसे तुम काले हो तो जामुन भी ठीक रहेगा। मुझे तो आलू बुखारा पसंद आ गया। इस नाम से मैं ख्यातिलब्ध हो सकता हूं। लेकिन मेरे आलोचकों ने कहा कि इस नाम के साथ तुम सिर्फ व्यंग्य रचनाएं ही लिख पाओगे। आलू बुखारा में कुछ भी सिरियस नहीं लगता। 


गांव के लोग तो समझेंगे कि आलू को ही बुखार आ गया। मैं अपनी साहित्यिक मौत नहीं चाहता। मैं तो मरने के बाद भी जिंदगी में यकीन रखता हूं। अतमैंने इस नाम के प्रति अपना आइडिया बदल दिया। आजकल फ्यूजन का जमाना है पूरब और पश्चिम का फ्यूजन हो रहा है। गाने की लाइनों में फ्यूजन हो रहा है। संगीत में फ्यूजन हो रहा है। खानपान में फ्यूजन हो रहा है। अब इटैलियन पिज्जा की दीवानियां भारत के सड़कों पर घूम रही हैं। हो सकता है कि कोई खानसामा मसाला डोसा और पिज्जा का फ्यूजन पेश कर कोई नई डिश तैयार कर दे। लेकिन इस फ्यूजन में कनफ्यूजन बहुत है। हालांकि फ्यूजन के रहनुमा पैसा बहुत कमा रहे हैं।

मेरे मन में ये भी ख्याल आ रहा है कि क्यों न कोई फ्यूजन उपनाम रखा जाए और फ्यूजन साहित्य का सृजन किया जाए। अब तक देश में विदेशों का अनुवादित साहित्य आ रहा है जिसे पढकर लोग पूर्ण आनंद की प्राप्ति नहीं कर पाते। फ्यूजन से साहित्य में एक नए युग का अविर्भाव भी संभव है। सो मैं यहां भविष्य की अच्छी संभावनाएं देख रहा हूं। फिलहाल उपनाम को लेकर मैं भी कनफ्यूज हो रहा हूं। सो मैं फैसला पाठकों पर छोड़ता हूं। आप हमारे लिए कोई उपनाम सुझाइए। अगर पसंद आ गया तो पहली किताब की रायल्टी आपके नाम कर दूंगा। इसमें कोई कनफ्यूजन नहीं है।
-    विद्युत प्रकाश मौर्य 

उम्र को राज ही रहने दो (व्यंग्य)

प्रसिद्ध विचारक आस्कर वाइल्ड का कहना है कि अगर कोई लड़की आपको अपनी सही उम्र बता दे तो सारे राज भी बता देगी। मैंने इसे आजमाया है, सौ फीसदी सच कहा है आस्कर वाइल्ड ने। अगर आपको भरोसा न हो तो आप भी आजमा कर देखें। हां मगर जरा सावधानी से काम लिजिएगा।
अक्सर लड़कियों में उम्र घटाकर बताने की सहज प्रवृति होती है। शायद इसका मूल कारण हो सकता कि वे अपने यौवन काल को ज्यादा जीना चाहती हों। रेलगाडी वाला एक चुटकुला बहुत प्रसिद्ध है।

तीन महिलाएं ट्रेन में जा रही थीं। पहली ने दूसरी की उम्र पूछी..चालीस से उपर दीखने वाली महिला ने कहा, बहन मैं तो अभी 35 की हूं। पैतीस दिखने वाली महिला ने अपनी उम्र 25 बताई। पच्चीस को लांघती महिला ने अपनी उम्र 20 बताई। तब उपर की बर्थ पर सोए सज्जन से रहा नहीं गया। वे ये सब झूठ सुनकर नीचे गिर पड़े। उन महिलाओं ने सम्मलित स्वर में पूछा आप ? मैं अभी अभी पैदा हुआ हूं। तीनों महिलाओं का चेहरा देखने लायक था।
एक बार सफर में चलते चलते हमारी एक हसीन सी अविवाहित ढलती उम्र की बाला ( या महिला ) से मेरी मुलाकात हो गई. बातों बातों में चर्चा आई उम्र पर। थोड़ा शरमाकर, नजरें झुकाकर और एक तीरछी सी चितवन मेरी ओर फेंकते हुए उन्होने कहा कि मेरा तो अभी 17वां चल रहा है। बाद में उनके बारे में विसतृत रिपोर्ट मिलने पर पता चला कि पिछले कई सालों से वे 17 सालों की ही हैं।
एक बार मेरे एक 13 साल के भाई ने फिल्मी विश्लेषण करते हुए बताया कि अमुक फिल्म में अमुक अभिनेत्री बिल्कुल 16 साल की अंकुरित यौवना लगती है। मैंने पूछा तुम्हारी उम्र तो अभी 13 साल की ही है, तुम्हे सोलह साल के सौंदर्य का अनुभव कैसे है। भाई कोई जवाब नहीं दे सका। परंतु उसके किशोर मन का कोई दोष नहीं है। वास्तव में 16वें सावन के वसंती बयार के मदमस्त खुशबू से बत्तीस वाले भी नहीं उबर पाते। बच्चों पर तो आती हवा का असर पड़ेगा ही। पिछले दिनों हिंदी फिल्मों की एक चर्चित अभिनेत्री ने पत्रकारों को अपनी उम्र 14 साल बताई। लेकिन बाद में खोजबीन पर पता चला कि वे पिछले तीन सालों से अपनी उम्र 14 साल ही बता रही हैं। परंतु देखे वालों की अक्ल पर इतना परदा तो था नहीं।

अब जरा इन बूढ़ो को देखिए। बूढ़े अक्सर अपने को अनुभवी प्रदर्शित करना चाहते हैं। कई जगह सम्मान प्राप्त करने की चाहत होती है। इसलिए कई बार वे अपनी उम्र को दस साल बढाकर बताते हैं। मेरी उम्र 70 साल हो चुकी है। दांत अभी तक सलामत हैं तो क्या हुआ। सन 42 के भारत छोड़ो आंदोलन में हमने भी खूब पतंगे उड़ाई थी। कई बार उनकी सच्चाई का पर्दाफाश हो जाता है, तो कई बार वे विशेष सम्मान पा जाते हैं।

 ये कैसी विडंबना है एक ओर तो हसीनों को और भी कमसिन दिखने की तमन्ना है तो बुजुर्गों को और बुजुर्ग। मैं बूढा हो गया हूं आंखें कमजोर हो गई हैं। चल नहीं पाता। जरा सहारा दो बालिके। इस तरह ये बूढ़े किसी नव यौवना का निकट सानिध्य प्राप्त कर लेते हैं। हमारी उम्र के युवक आहें भरते रह जाते हैं। किसी शायर ने कहा था- हम आह भी भरते हैं तो हो जाते हैं बदनाम, वो कत्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होती।
मित्रों अपनी प्रेयसी के दिल की टोह लेने के लिए उसकी सही उम्र जरूर पूछिए। अगर सच बता दे तो ग्रीन सिग्नल समझिए। अगर न बताए तो आप खुद ही फैसला किजिए।

-    विद्युत प्रकाश