Thursday 23 June 2016

'मोरे हाजी पिया' को सुर देने वाला नहीं रहा....

कराची की सड़कों पर इश्क मुहब्बत की बात करने वाली कव्वाल की एक आवाज हमेशा के लिए शांत हो गई। सिरफिरों ने 22 जून 2016 को उनकी गोली मार कर हत्याकर दी। 45 साल के अमजद फरीद साबरी, गुलाम फरीद साबरी के पांच बेटों में एक थे, जो अपने पिता के पदचिन्हों पर चल रहे थे। अमजद साबरी ने 2008 में आई लोकप्रिय हिंदी फिल्म हल्ला बोल में चर्चित कव्वाली 'मोरे हाजी पिया'  गाया था। सलमान खान की हालिया फिल्म बजरंगी भाईजान में साबरी ब्रदर्स की मशहूर कव्वाली 'भर दो झोली' को शामिल किया गया था, जिस पर अमजद साबरी ने काफी नाराजगी जताई थी। अजमद ने कानूनी नोटिस भेजते हुए आरोप लगाया था कि उनके पिता ग़ुलाम फरीद साबरी की इस प्रसिद्ध कव्वाली को बिना अनुमति के फिल्म में शमिल किया गया। फिल्म बजरंगी भाईजान में इस कव्वाली को अदनान सामी ने सुर दिया था।



हरियाणा से गए थे पाकिस्तान-  उनके पिता गुलाम फरीद साबरी का जन्म 1930 में हरियाणा के रोहतक के पास कल्याणा में हुआ था। रोहतक के पास कल्याणा  में 1946 में उर्स में उन्होंने पहली बार सार्वजनिक तौर पर कव्वाली गाई थी।  1947 में भारत पाक विभाजन के समय गुलाम फरीद ने पाकिस्तान जाना पसंद किया। पाकिस्तान पहुंचने पर कराची के एक शिविर में बहुत बुरे हाल में रहे। बाद में उन्होंने सड़कों पर मजदूरी की। एक समय में उनके फेफड़े खराब हो गए और उन्हें टीबी जैसी बीमारी हो गई। पर वे आत्मशक्ति से इस बीमारी से उबरे और कई सालों तक रियाज कर अपना गला साफ किया।

मियां तानसेन के वंशज - साबरी खुद को मियां तानसेन का सीधा वंशज होने का दावा करते हैं। गुलाम फरीद साबरी उत्तर भारतीय कव्वाली की परंपरा को बहुत ऊंचाई पर ले गए।  एक वक्त आया जब वे नामचीन कव्वाल बने और अपना समूह बनाया। साबरी टाइटिल उनके परिवार में सूफी मत के साबरिया विचारधारा के कारण आई। गुलाम फरीद साबरी का निधन 1994 में 64 साल की उम्र में हो गया।

भाई के साथ गाते हुए बने साबरी ब्रदर्स-  गुलाम साबरी ने अपने छोटे भाई मकबूल अहमद साबरी के साथ गाना शुरू किया। इस तरह गुलाम फरीद साबरी और मकबूल साबरी का कव्वाली समूह बना। उनके कव्वाली की कई पीढ़ियां दीवानी रहीं। कई मशहूर पाकिस्तानी फिल्मों में उनकी कव्वाली शामिल हुई। 1958 में उनका पहला रिकार्ड आया – मेरा कोई नहीं तेरे सिवा...जो सुपर हिट रहा। उनकी सबसे लोकप्रिय कव्वाली रही...भर दो झोली मेरी या मुहम्मद.. कहते संगीत का कोई मजहब नहीं होता। गुलाम फरीद अपने जीवन में आखिरी दिनों तक हर रोज सुबह 4 बजे जग जाते थे और राग भैरवी में रियाज करते थे।
-vidyutp@gmail.com 

( SABRI BROTHERS, QAWWLI, PAKISTAN , AMAZAD FARID SABRI) 

No comments: