Monday 5 June 2017

1972 में हुआ था पहला पर्यावरण सम्मेलन

1. पर्यावरण प्रदूषण की समस्या पर 1972 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने स्टाकहोम (स्वीडन) में विश्व भर के देशों का पहला पर्यावरण सम्मेलन आयोजित किया। इसमें 119 देशों ने भाग लिया। 

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संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित विश्व पर्यावरण दिवस वैश्विक स्तर पर राजनीतिक और सामाजिक जागृति लाने के लिए मनाया जाता है। इसकी शुरुआत 5 जून 1973 से हुई।

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भारत में 19 नवंबर 1986 से पर्यावरण संरक्षण अधिनियम लागू हुआ। जल, वायु, भूमि। इन तीनों से संबंधित कारक तथा मानव, पौधों, सूक्ष्म जीव अन्य जीवित पदार्थ आदि पर्यावरण के अंतर्गत आते हैं।


4 भारत में 50 करोड़ से भी अधिक जानवर हैं जिनमें से पांच करोड़ प्रति वर्ष मर जाते हैं वन्य प्रणियों की घटती संख्या पर्यावरण के लिए घातक है।

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गिद्ध की प्रजाति वन्य जीवन के लिए वरदान है पर अब 90 प्रतिशत गिद्ध मर चुके हैं इसीलिए देश के विभिन्न भागों में सड़े हुए जानवरों को खाने वाले नहीं रहे। 

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हमारी धरती का तीन चौथाई हिस्सा जल है फिर भी करीब 0.3 फीसदी जल ही पीने लायक है। डब्लूएचओ के अनुसार पेयजल का पीएच मानक 7 से 8.5 के बीच होना चाहिए। 

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धरती पर उपलब्ध पीने योग्य 0.3 फीसदी जल का 70 फीसदी हिस्सा भी इतना प्रदूषित हो गया है कि वह पीने लायक नहीं रहा। 

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भारत सरकार के पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा एक-एक लाख रुपये का इंदिरा गांधी पर्यावरण पुरस्कार प्रति वर्ष 19 नवंबर को प्रदान किया जाता है।

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जब वायु में कार्बनडाई ऑक्साइड, नाइट्रोजन के ऑक्साइडों की वृद्धि हो जाती है, तो ऐसी वायु को प्रदूषित वायु त्और इस प्रकार के प्रदूषण को वायु प्रदूषण कहते हैं।

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 विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक दुनिया भर में वायु प्रदूषण की वजह से साल 2012 में 70 लाख लोगों की मौतें हुई। 

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दुनिया भर में हर साल होने वाली आठ मौतों में से एक वायु प्रदूषण के कारण होती है। 

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देश की कुल ऊर्जा का आधा भाग केवल रसोई घरों में खर्च होता है। देश के कुल प्रदूषण का बड़ा हिस्सा केवल रसोई घरों से उत्पन्न होता है।

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एक मोटरगाड़ी एक मिनट में इतनी अधिक मात्रा में ऑक्सीजन खर्च करती है जितनी कि 1135 व्यक्ति सांस लेने में खर्च करते हैं।

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1952 में पांच दिन तक लंदन शहर रासायनिक धुएं से घिरा रहा, जिससे 4000 लोग मौत के शिकार हो गए एवं करोड़ों लोग हृदय रोग और ब्रोंकाइटिस के शिकार हो गए थे।

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भारत में वाहनों से प्रतिदिन 60 टन सूक्ष्म कण, 630 टन सल्फर डाई ऑक्साइड, 270 टन नाइट्रोजन आक्साइड और 2040 टन कार्बन डाईआक्साइड उत्सर्जित होता है। 

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दुनिया के 20 सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों में 13 भारतीय शहर शमिल हैं। दिल्ली दुनिया के सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों में शामिल है। 

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वायु प्रदूषण से दमा, ब्रोंकाइटिस, सिरदर्द, फेफड़े का कैंसर, खांसी, आंखों में जलन, गले का दर्द, निमोनिया, हृदय रोग, उल्टी और जुकाम आदि रोग होते हैं।

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पानी की कमी के कारण प्रति हेक्टेयर पैदावार घट रही है, हिमनदियों का सिकुड़ना, बीमारियों में वृद्धि और अनेक प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा लगातार बढ़ रहा है।

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धरती पर सन 1800 के बाद ग्लेशियर पिघलने लगे हैं। अनुमान है कि यदि ग्रीनलैंड की सारी बर्फ पिघल गई तो समुद्र के स्तर में लगभग सात मीटर की बढ़ोतरी होगी।

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आईपीसीसी के अनुसार पिछले 250 सालों में धरती के वातावरण में कार्बन डाईआक्साइड गैस की मात्रा 280 पीपीएम से बढ़कर 379 पीपीएम हो गई है। 

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हर घर की छत पर वर्षा जल का भंडारण करने के लिए एक या दो टंकी बनाई जाए और इन्हें मजबूत जाली या फिल्टर कपड़े से ढक दिया जाए तो काफी जल संरक्षण किया जा सकेगा।

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पर्यावरण बचाने के लिए इंटेग्रेल प्लान ऑफ क्लाइमेट चेंज बनाया गया है जिसमें दुनिया भर के 2000 पर्यावरण वैज्ञानिक शामिल हैं। 

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1988 में भारत सरकार ने राष्ट्रीय वन नीति और 2006 में राष्ट्रीय पर्यावरण नीति बनाई जिसके तहत वन संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण के उपाय किए जाते हैं।

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नदियों के संरक्षण के लिए राष्ट्रीय नदी परिरक्षण निदेशालय और राष्ट्रीय गंगा नदी घाटी प्राधिकरण का गठन पर्यावरण और वन मंत्रालय के तहत किया गया है।
 
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हर रोज 1200 करोड़ लीटर गंदा पानी देश की सबसे बड़ी नदी गंगा में डाला जाता है। गंगा का जल स्नान करने लायक भी नहीं बचा।

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पर्यावरण से संबंधित कानूनी मामलों सहित, पर्यावरण संरक्षण एवं वनों और अन्य प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के निपटारे के लिए 2010 को राष्ट्रीय हरित अधिकरण की स्थापना की गई।
 
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ई-कचरा से भी पर्यावरण को बड़ा खतरा है। 2004 में देश में ई-कचरे की मात्रा 1.46 लाख टन थी जो 2012 में आठ लाख टन तक पहुंच गई। 

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बेंगलुरु में 1700 आईटी कंपनियां काम कर रही हैं। उनसे हर साल 6000 हजार से 8000 टन इलेक्ट्रॉनिक कचरा निकलता है। 

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जल प्रदूषण के नियंत्रण और रोकथाम और देश में पानी की स्वास्थ्य-प्रदता बनाए रखने के लिए भारत सरकार ने 1974 में अधिनियम बनाया। 

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अप्रैल 2010 के बाद भारत में बनने वाले सभी वाहनों को बीएस-4 मानकों के तहत लाया गया जिससे कम से कम प्रदूषण हो।

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