Thursday 17 November 2011

हां, हम भिखारी ही तो हैं... ( व्यंग्य )

वास्तव में हम भिखारी ही तो हैं...आखिर हम भिखारी ही तो हैं...आखिर राहुल गांधी ने क्या गलत कह डाला। कब तक भीख मांगते रहोगे। ये सवाल यूपी वालों का अपमान नहीं है। अपमान तब होता जब ये संवाद किसी गैर यूपी वालों ने किया होता।


राहुल गांधी तो अपने यूपी वाले ही हैं। यूपी से ही सांसद है। राहुल ने
यूपी के लोगों का सोया स्वाभिमान जगाने की कोशिश भर की है। बाल ठाकरे बार बार मराठी अस्मिता का सवाल उठाते हैं। तो अपनों के बीच यूपी की अस्मिता का सवाल उठाना कहां गलत है। राहुल गांधी ने तो यूपी के लोगों से एक सवाल भर पूछा है कि आखिर कब तक...कब तक हम लोग दूसरे राज्यों में जाकर छोटे मोटे काम करते रहेंगे। भले ही हर काम कोई व्यक्ति स्वाभिमान के साथ करता
हो..लेकिन सफाई करना., टैक्सी चलाना, फुटपाथ पर रेहड़ी पटरी पर सामान बेचना, चौपाटी पर खोमचे लगाकर सामान बेचना या पंजाब के गांव में खेतों में जाकर मजदूरी करना ये सब कार्य समाज शास्त्र के स्तरीकरण के हिसाब से छोटे मोटे काम ही माने जाते हैं। इन सारे कार्यों को पाने के लिए याचना के स्वर में बात तो करना ही पड़ता है। जब हम किसी के सामने याचक के स्वर में होते हैं तो वह भीख मांगने के ही जैसा है। अगर हमारा स्वाभिमान जगेगा तो हम अपने इलाके में छोटे छोटे उद्योग और कल कारखाने लगाएंगे।
अपनी मेहनत और श्रम से उत्पादन करेंगे। हमारे उत्पाद दुनिया में दूर दूर तक बिकने जाएंगे। लोगों की मजबूरी होगी की हमारे उत्पादन को खरीदें। फिलहाल लोग हमारा उत्पादन कम हमारा श्रम ज्यादा खरीदते हैं। श्रम की कीमत तो मिलती है लेकिन वह कम होती है। इसके बदले में हमें उपेक्षा का दंश झेलना पड़ता है। कदम कदम पर दुत्कारे भी जाते हैं। ये सारी स्थितियां भीख मांगने के आसपास ही तो हैं। लेकिन सच कई बार कड़वा लगता है।

सच कई बार कहने के तरीके से कड़वा लगता है। इन्ही बातों को दूसरे शब्दों में ही कहा जा सकता है। लेकिन राहुल गांधी ने बिना लाग लपेट के सीधे शब्दों में कहने की कोशिश की है। उनकी कोशिश इमानदार है। वे हमारा सोया स्वाभिमान जगाना चाहते हैं। आज मउ में बुनी गई साड़ियें को दक्षिण भारत के निर्माता खरीद रहे हैं। हम यूपी के हर शहर को कुछ ऐसा ही बना दें तो शायद मुंबई जाकर मजदूरी नहीं करनी पड़े। बजाए की बाल की खाल निकालने के हमें राहुल गांधी की बातों को मर्म समझना चाहिए। उनके संवाद में हर यूपी वाले का दर्द है।
यूपी को विकसित बनाने के लिए आजादी के 60 साल में कितने इमानदार प्रयास हुए उसके क्या परिणाम निकले...उसके लिए दोषी कौन से नेता हैं..कौन सी पार्टियां है....इसके लिए तो राहुल गांधी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

-   विद्युत प्रकाश

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