Monday 12 November 2007

आइटम गर्ल और पब्लिसटी

आइटम गर्ल राखी सावंत रातोंरात चर्चा में आ गईं। बवाल उनकी ड्रेस को लेकर था। पुलिस ने एक मामला दर्ज किया कि महाराष्ट्र एक शहर में शो के दौरान उन्होंने जो ड्रेस पहनी थी वह भड़कीली थी। इस मुकदमे का कुछ फैसला हो न हो पर राखी सावंत को इस मामले से खूब प्रचार मिला। वे सभी प्रमुख समाचार चैनलों पर इंटरव्यू देती हुईं नजर आईं, जिसमें वे खुद के बोल्ड और बिंदास होने की सबूत पेश कर रही थीं। समाचार चैनलों को एक बिकाउ मसाला मिल गया था तो राखी सावंत को टीवी स्क्रीन पर लंबी लंबी कवरेज मिल रही थी। दोनों खुश थे। जाहिर है इसका काफी हद तक फायदा राखी को मिला। उनके के आगे के दो शो भी हंगामेदार रहा। लोगों ने उन्हें देखने के लिए महंगी दरों पर टिकटे खरीदीं।

बालीवुड में आईटम गर्ल का कांस्पेट कुछ साल में ही आया है। अक्सर किसी फिल्म में एक तड़क-भड़क वाला गाना रखा जाता है। इस गाने पर आमतौर पर फिल्म की हीरोइन नाचने को तैयार नहीं होती तो किसी अन्य अभिनेत्री को यह काम सौंपा जाता है। यह गाना काफी हद तक कैबरे जैसा होता है। किसी जमाने में फिल्मों में हेलन, मधुमती और कल्पना अय्यर जैसी अभिनेत्रियां यह काम करती थीं। पर आजकल फिल्म इंडस्ट्री में आइटम गर्ल की बहार आई हुई है। राखी सावंत, मेघना नायडु, कश्मीरा शाह, अर्चना मौर्य जैसे कई नाम हैं।
बकौल राखी सावंत उनके अंदर एनीमल इंस्टीक्ट है। उन्हें बोल्ड कपड़े पहनना और खुलकर नाचना अच्छा लगता है। उन्हें जिस्म दिखाने में कोई गुरेज नहीं है। हालांकि वे यह भी बताती हैं कि वे एक परंपरागत मराठी परिवार से आती हैं। राखी के अनुसार ऐश्वर्य राय जैसी अभिनेत्रियों को आइटम सांग नहीं करना चाहिए। उन्होंने किसी फिल्म में ऐसा करके आइटम गर्ल्स के पेट पर लात मार दी है।
दरअसल अब फिल्म इंडस्ट्री में ऐसी अभिनेत्रियों की बड़ी फेहरिस्त आ रही है जो सिर्फ नाचकर अपनी पहचान बनाना चाहती हैं। ऐसी आइटम गर्ल्स के बीच काम पाने की और पब्लिसिटी पाने को लेकर कड़ी प्रतिस्पर्धा है। ऐसे में राखी सावंत पर हुए मुकदमे ने उन्हें प्रचार के क्षेत्र में अचानक काफी माइलेज दिया है। जो लोग आइटम गर्ल्स के बारे में नहीं जानते वे भी जानने लगे हैं। बिना किसी पीआर प्लानिंग के और मीडिया मैनजमेंट के हर टीवी चैनल पर उनका इंटरव्यू प्रसारित किया जा रहा है। हो सकता है कि राखी सावंत के पीआर मैनेजर ने ऐसे मुकदमे जानबूझ कर ही करवाए हों जिससे उन्हें देशव्यापी पब्लिसिटी मिल जाए। ऐसी आइटम बालाएं कैमरे के सामने जानबूझ कर ऐसे संवाद बोलती हैं जिससे उन्हें प्रचार मिले। जैसे राखी का कहना कि मेरे अंदर जानवरों जैसी बात है, ऐश्वर्य ने मेरे पेट पर लात मारी है आदि आदि। मेघना नायडु ने भी एक इंटरव्यू में कहा कि एक शो के दौरान जब ग्रीन रूम में वे कपड़े बदल रही थीं तो उन्हें लगा कि कोई सुऱाख करके उन्हें देखे की कोशिश कर रहा है। हमें आइटम बालाओं के दिमाग भी दाद देनी चाहिए कि वे अपनी मार्केटिंग किस चतुराई से कर रही हैं।
राखी सावंत ने ऐसी घटनाओं के बाद कथित तौर पर अपनी सामाजिक जिम्मेवारी का एहसास करते हुए कहा कि वे अब साड़ी पहन कर मंच पर कार्यक्रम देंगी। पर क्या साड़ी पहनने के बाद वे उत्तेजक भाव भंगिमाएं नहीं पेश करेंगी। बार बालाएं भी तो साड़ी पहनकर ही नाचती हैं।
-विद्युत प्रकाश vidyutp@gmail.com



Friday 2 November 2007

मीडिया प्रशिक्षण की खुली दुकानें

जब से घर-घर में टीवी का प्रसार बढ़ा है समाचार चैनलों की दर्शकीयता बढ़ी है। इसके सात ही एक प्रोफेशन के रुप में पत्रकारिता का भी ग्लैमर बढ़ा है। भारी संख्या में लोग पत्रकारिता को कैरियर के रुप में अपनाना चाहते हैं। वह भी खास तौर पर टीवी पत्रकार बनना चाहते हैं।

 टीवी पत्रकार जो स्क्रीन पर दिखाई देते हैं उन्हें लोग घर-घर में सेलिब्रिटी के रुप में पहचानते हैं। जैसे जैसे मीडिया में रोजगार के मौके बढ़े हैं उसके साथ ही देश में मीडिया प्रशिक्षण के नाम पर संस्थानों की संख्या भी बढ़ी है। यहां तक की अब स्टिंग आपरेशन सीखाने वाले संस्थान भी खुल गए हैं। पर मीडिया कर्मी बनने की तमन्ना रखने वाले को किसी भी संस्थान में नामांकन लेने से पहले काफी सोचविचार कर लेना चाहिए। किसी समय में इलेक्ट्रानिक मीडिया में कैरियर बनाने वाले लोग भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी) या एमसीआरसी, जामिया मीलिया इस्लामिया से ही निकलते थे। पर अब सिर्फ दिल्ली में ही टीवी पत्रकारिता सीखाने वाले 250 से ज्यादा संस्थान खुल चुके हैं। इनमें से कई संस्थानों की फीस तो लाखों में है।

 आजतक, जी टीवी जैसे टीवी चैनलों के अपने प्रशिक्षण संस्थान खुल चुके हैं। डिप्लोमा तथा डिग्री प्रदान करने वाले और भी कई दर्जन संस्थान है। जिन छात्रों को किसी अच्छे संस्थान में दाखिला नहीं मिलता वे कहीं से भी पढ़ाई कर लेते हैं। पर सभी संस्थानों में प्रैक्टिकल और थ्योरी की पढ़ाई की पर्याप्त व्यवस्था न होने के कारण लोग ठगे भी जाते हैं। इन संस्थानों से हर साल जितनी बड़ी संख्या में ट्रेंड प्रोफेशनल निकल रहे हैं उनमें से 10 फीसदी लोगों को ही रोजगार मिल पा रहा है। बाकी सभी लोग खुद को ठगा हुआ सा महसूस करते हैं। कई बार वे प्रशिक्षण देने वाले संस्थान से ठगी का शिकार होते हैं तो कई बार उनका आधार एक मीडिया कर्मी बनने लायक मजबूत नहीं होता।

जो लोग मीडिया जगत में कैरियर बनाना चाहते हैं पहले उन्हें खुद ही यह आत्म परीक्षण कर लेना चाहिए कि क्या वे इसके लायक हैं। पहली बात आपकी भाषा पर पकड़ मजबूत हो। समान्य ज्ञान अच्छा हो, साथ ही खबरों की समझ बहुत अच्छी हो। इसके बाद आती है अच्छे संस्थान के चयन की बात। अगर आप प्रशिक्षण प्राप्त करते भी हों तो यह मान कर चलें कि कोई भी संस्थान 100 फीसदी प्लेसमेंट की गारंटी नहीं देता। हां मदद जरूर कर सकता है। पत्रकारिता में कैरियर बनाते समय प्रारंभिक दिन बडे़ संघर्ष के होते हैं। बहुत कम लोगों को तुरंत अच्छा ब्रेक मिल पाता है। कई असफलताओं के बात एक मुकाम मिलता है। उसके बाद मुकाम को बनाए रखने के लिए एक अन्तहीन प्रतिस्पर्धा का दौर है। किसी नए आदमी को इन सारी बातों के लिए तैयार होकर आना चाहिए। किसी भी संस्थान में नामांकन से पूर्व वहां की फैकल्टी तथा वहां दी जाने वाली सुविधाओं के बारे में भी जांच परख लेना चाहिए। कई लोग बाद में यह कहते हुए पाए जाते हैं कि वहां नामांकन लेकर हम तो ठगे गए। इसलिए आप ठगे जाने से जरूर बचें।

---- विद्युत प्रकाश मौर्य