Monday 29 June 2009

आखिर हम क्यों दे रिश्वत..

हमारे समाज के हर तबके का आदमी टैक्स चुकाता है। चाहे वह रिक्सावाला होचायवाला हो या खोमचे वाला। आप जो भी छोटी मोटी खरीददारी करतेहैं उसमें सरकार को दिया जाने वाले टैक्स शामिल होता है। यह टैक्स सेल्स टैक्सएक्साइज ड्यूटी या सर्विस टैक्स के रुप में हो सकता है। ऐसे में हमें यह जानने का पूरा हक है कि हमारा यह पैसा कहां इस्तेमाल हो रहा है। साथ ही हमें चाहिए कि हम रोजाना के काम काज में सरकारी दफ्तरों में छोटे-मोटे काम काज के लिए भी रिश्वत नहीं दें। अगर सरकारी स्कूल में शिक्षक पढ़ाने नहीं आतेबिजली कर्मचारी समय पर बिजली ठीक करने नहीं आता तो हमें चाहिए कि हम इसके लिए भी जांच पड़ताल करें। ऐसे ही सवाल अरविंद केजरीवाल के जेहन में आए। उन्होंने क्लास वन की सरकारी नौकरी से छुट्टी ले ली और एक संस्था परिवर्तन का गठन किया। लोग मानते हैं कि दिल्ली में समाजसेवा करने की गुंजाइस नहीं है। पर उनकी संस्था पूर्वी दिल्ली के निम्न मध्यमवर्गीय इलाके से संचालित होती है। उनके कार्यों का सम्मान देते हुए उन्हें सन 2006 के लिए रामन मैग्सेसे अवार्ड के लिए चुना गया है।

अरविंद केजरीवाल को मैग्सेसे अवार्ड

अरविंद केजरीवाल उस व्यक्ति का नाम है जिसने समाज में फैले छोटे छोटे भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाई है। उन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री के बाद भारत सरकार में लोक सेवक की ग्लैमरस नौकरी से छुट्टी ले रखी है। इन दिनों दिल्ली के निम्न मध्यमवर्गीय इलाके में अपनी संस्था परिवर्तन चला रहे हैं। उनके द्वारा किए गए कार्यों को महत्व प्रदान करते हुए उन्हें 2006 के मैग्सेसे अवार्ड के लिए चुना गया है। अरविंद केजरीवाल ने समाज सेवा के लिए कोई क्रांतिकारी रास्ता नहीं चुना बल्कि सरकारी नियम कानून के ही लोगों को सही इस्तेमाल करने की तरकीब सुझाई जिसे भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए हथियार के रुप में इस्तेमाल किया है।
आरटीआई मंच
लोगों को सूचना के अधिकार के बारे में सही जानकारी देने के लिए और उसका कारगार इस्तेमाल करने के लिए उन्होने फरवरी 2004 में दिल्ली आरटीआई (राइट टू इन्फारमेशन) मंच का गठन किया। यह मंच समय समय पर लोगों को सूचना के अधिकार के प्रति जागरूक करने के लिए अभियान चलाता है। साथ ही मीटिंग और सेमिनार का आयोजन करता है।
यह शायद बहुत मुश्किल काम हो कि भारत के किसी राज्य के सरकारी दफ्तर में आपका कोई काम बिना रिश्वत दिए नियत समय पर हो जाए। इसके पीछे बहुत बड़ा कारण यह भी है कि हम कई तरह के नियमों से अनजान हैं। चाहे राशन कार्ड बनवाना हो, बिजली का नया कनेक्शन लेना हो, ड्राइविंग लाइसेंस या पासपोर्ट बनवाना हो। ये काम बिना रिश्वत दिए हो सकते हैं। बस आपको अपने अधिकारों की जानकारी होनी चाहिए। कई सरकारी विभागों में हर काम के लिए एक नियत समय तय किया हुआ है। अगर उतने दिन में आपका काम नहीं होता है तो आप सूचना अधिकार के तहत शिकायत कर सकते हैं। आखिर आप किसी सरकारी कर्मचारी को रिश्वत क्यों दें जबकि वह अपने काम के लिए सरकार की ओर से अच्छी तनख्वाह पाता है। यह तनख्वाह उसको आपके द्वारा दिए गए टैक्स से ही मिलती है।
 क्या करें अगर काम न हो

किसी सरकारी दफ्तर में आपका कोई काम लंबित हो तो आपको क्या करना चाहिए। इसका सीधा सा उपाय है आप रिश्वत देने को ना कहें और अपने काम के लिए सूचना के अधिकार के तहत शिकायत करें। इसके लिए आपको आरटीआई एक्ट के बारे में पता होना चाहिए जो हर राज्य में लागू है। दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की संस्था परिवर्तन अब तक सूचना के अधिकार के तहत 200 से ज्यादा लोगों को न्याय दिलवा चुकी है। रिश्वत दिए बगैर ही बिजली का कनेक्शन मिला है। खराब मीटर बदले गए हैं वहीं गलत बिल का सुधार भी किया गया है। उनकी संस्था ने न सिर्फ झुग्गी झोपड़ी वाले इलाके बल्कि दिल्ली के पाश इलाके ईस्ट आफ कैलाश के रहने वाले लोगों के लिए भी उनके अधिकारों लड़ाई लड़ी है।

अगर किसी मुहल्ले में सफाई कर्मचारी नहीं आता है तो आपके उसके उपस्थिति रजिस्टर की चेकिंग करवा सकते हैं। आप अपने इलाके के एमएलए से मांग कर सकते हैं कि एमएलए फंड से आपके मुहल्ले की भी सड़क बननी चाहिए। अगर आपका एमएलए झूठे वादे करता है तो आप उसकी भी चेकिंग करवा सकते हैं। अरविंद केजरीवाल की संस्था ने दिल्ली में ऐसे कई मामलों में मुहल्ले के लोगों के लिए लड़ाई लड़ी है। इसमें उन्हें बड़े ही शांतिपूर्ण ढंग से काम करते हुए सफलता मिली है।
गुप्ता को मिला बिजली कनेक्शन
दिल्ली में रहने वाले अशोक गुप्ता ने 3 फरवरी 2001 को अपने नए मकान के लिए बिजली के कनेक्शन के लिए आवेदन किया। उनसे विभाग में रिश्वत मांगी गई। नहीं देने पर उनका बिजली का कनेक्शन नहीं लगा। उन्होने फरवरी 2002 में सूचना के अधिकार के तहत शिकायत कर दिया। इसके एक महीने बाद ही उनका कनेक्शन लग गया। दरअसल बिजली विभाग में नियम है कि कोई भी नया कनेक्शन 30 दिनों के अंदर लग जाना चाहिए। इसी तरह टेलीफोन ट्रांसफर व कई अन्य कार्यों को लेकर भी समयअवधि के नियम बनाए गए हैं। जिन्हें पता करके आप शिकायत कर सकते हैं।
खुद तय करें अपनी किस्मत
कहा जाता है कि समय बलवान होता है वह हर किसी की किस्मत तय करता है। पर परिवर्तन संस्था का मोटो वाक्य है कि हम खुद अपनी किस्मत तय कर सकते हैं सूचना के अधिकार का सही प्रयोग करके। हां इसके लिए आपको भी ईमानदार और सही स्थान पर होना पड़ेगा। आप सरकार से मांग कर सकते हैं कि हमारा पैसा तो हमारा हिसाब। यानी अगर हमने टैक्स दिया है तो हमें यह जानने का हक भी है कि पैसा कहां से आ रहा है और कहां जा रहा है।
अरविंद केजरीवाल के काम देश भर के अलग अलग इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए एक मिसाल की तरह है। उनसे आप प्रेरणा ले सकते हैं और शांतिपूर्ण ढंग से कहीं भी सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांग सकते हैं। अब हर राज्य में सूचना आयुक्तों की भी बहाली कर दी गई है।
इसलिए आगे जब आपसे छोटेमोटे कामों के लिए कोई सरकारी मुलाजिम रिश्वत मांगे तो आप एक बार अपने अधिकारों प्रयोग जरूर करें। याद रखें कि किसी को रिश्वत देकर आप सरकारी कर्मचारी को भ्रष्ट बनाने में योगदान करते हैं।
-माधवी रंजना 
 ( यह लेख 2006 में समाचार पत्रों के लिए लिखा गया था। ) 



Monday 22 June 2009

और सस्ता हो सकता है मोबाइल

मोबाइल फोन के दाम मे कमी आने का क्रम जारी है। देश का पहला मेड इन इंडिया मोबाइल भी पेश किया जा चुका है। मोटोरोला ने सी 115 माडल को पहली बार मेड इन इंडिया के लेबल के साथ बाजार में उतार दिया है। इसकी कीमत रखी गई है 1700 रुपए जो अब तक का भारतीय बाजार में सबसे सस्ता मोबाइल भी है। नोकिया का सबसे सस्ता माडल ढाई हजार में उपलब्ध है वहीं एलजी सेमसंग और सोनी इरिक्सन के सेट इससे भी कुछ ज्यादा कीमतों में हैं। हालांकि कुछ कंपनियां इससे भी सस्ते में मोबाइल फोन आफर कर रही हैं। जैसे आप 2000 रुपए में मोबाइल खरीदें और एक हजार रुपए का टाक टाइम फ्री में प्राप्त करें। यानी मोबाइल की कीमत सिर्फ 1000 रुपए में पड़ी। वहीं रिलायंस के एक आफर में 2500 रुपए के मोबाइल फोन के साथ 2500 रुपए का टाक टाइम भी फ्री है। इसी तरह का आफर टाटा इंडिका में भी उपलब्ध है। अगर दो साल तक फ्री इनकमिंग का मोबाइल आप आफर में लेतें हैं। अगर 100 से 150 रुपए मासिक किराया मान कर चलें तो भी मोबाइल फोन फ्री में ही बैठता है। यानी मोबाइल फोन की मार्केटिंग में एक नए दौर की शुरूआत हो चुकी है। अगर आप किसी भी कंपनी में दो साल या अधिक का कमिटमेंट देते हैं तो आपको मोबाइल फोन लगभग मुफ्त में ही प्राप्त हो जाता है। यह मोबाइल फोन बेचने की नई रणनीति है। इसमें निम्न आय वर्ग के लोग मोबाइल फोन के तेजी से उपयोक्ता होते जा रहे हैं।
कुछ साल पहले इंग्लैंड और अमेरिका में भी कंपनियां मोबाइल फोन इसी तरह बेच रही थीं। अगर आप तीन साल के लिए एक ही कंपनी का ग्राहक बने रहने का वादा करें तो आपको एक हैंडसेट मुफ्त में ही प्राप्त हो जाता है। इससे कंपनी को यह लाभ होता है कि उसे एक निष्ठावान ग्राहक मिल जाता है। आजकल लोगों में एक कंपनी छोड़कर दूसरी कंपनी की ग्राहकी लेने की भी प्रथा तेजी से चल पड़ी है। ऐसे में कमिटमेंट वाले उपभोक्ता की तलाश भी किसी भी कंपनी के लिए चुनौती है।
पर हम बात कर रहे हैं मोबाइल फोन के सस्ते होने की। अगर कोई कंपनी आपको किसी स्कीम के तहत मोबाइल फोन देती है यह आपको बाजार से सस्ती दर पर तो प्राप्त होता ही है इसके साथ ही कंपनी को भी यह मोबाइल हैंडसेट निर्माता से सस्ते में ही प्राप्त होता है क्योंकि कंपनी निर्माताओं से मोबाइल बल्क में खरीदती है। थोक खरीददारी में उसे ये सेट सस्ते पड़ते हैं। आने वाले समय में कई हैंडसेट निर्माता कंपनियां बड़े सर्विस प्रोवाइडरों के साथ हैंडसेट बेचने के लिए गठजोड़ करती नजर आएंगी। ऐसा सीडीएमए खंड में काफी पहले से ही शुरू हो चुका है। टाटा इंडीकाम या रिलायंस का मोबाइल कनेक्शन लेने के समय उपभोक्ता को कंपनी हैंडसेट खरीदने के विभिन्न विकल्प पेश करती है। पर अब इसी तरह का समझौता जीएसएम खंड में एयरटेल, हच जैसी कंपनियां भी कर रही हैं। यह विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले दिनों में कई कंपनियां 1000 रुपए में ही इंट्री लेवेल का मोबाइल पेश करेंगी। देश के संचार मंत्री दयानिधि मारन का भी सपना है कि लोगों को एक हजा रुपए में हैंडसेट मिले। अगर कंपनियां ईमानदार कोशिश करें तो 500- 600 रुपए में भी हैंडसेट पेश किया जा सकता है। यानी जनता जनार्दन का मोबाइल।
- विद्युत प्रकाश मौर्य 
( 2005 ) 


Wednesday 17 June 2009

गरीबों को कर्ज देने में खतरा नहीं

आमतौर पर बैंक गरीबों को कर्ज देने में डरते हैं। पर आपको यह जानकर अचरज होगा कि गरीब लोग कर्ज चुकाने में अमीरों की तुलना में ज्यादा ईमानदार होते हैं। बंग्लादेश के ग्रामीण बैंक जिसके संस्थापक को इस साल नोबल पुरस्कार मिला है, उनका बैंक अत्यंत गरीब लोगों को को बिना कुछ गिरवी रखे ही कर्ज देता है और उनके बैंक की कर्ज वसूली का प्रतिशत 98 फीसदी तक है। वहीं भारत में कई बड़े बैंक जिन्होंने बड़े उद्योगों को भी कर्ज दे रखा 5 से 10 फीसदी तक एनपीए (नान प्रोड्यूसिंग एसेट) के संकट से जूझ रहे हैं। हम यह मान सकते हैं कि कर्ज लेने वाले के चुकाने में उसकी नीयत ज्यादा महत्व रखती है बजाय के उसकी चुकाने की क्षमता के। आजकल बैंक मकान ऋण बहुत आसानी से दे रहे हैं। पर मकान ऋण के मामले में डिफाल्टर के केस खूब हो रहे हैं।

मोहम्मद यूनुस जो बंग्लादेश के जाने माने अर्थशास्त्री थे के मन में गरीब लोगों का महाजनों और साहूकारों से शोषण नहीं देखा गया और उन्होंने गरीबों को कम ब्याज पर कर्ज देने के लिए बंग्लादेश में ग्रामीण बैंक की स्थापना की। यह बैंक ग्रामीणों के लिए स्व सहायता समूहों का निर्माण करवाता है। इस समूह को बैंक कर्ज देता है। यानी कर्ज चुकाने का भार किसी एक व्यक्ति पर न होकर कई लोगों पर होता है इसलिए लोग एक दूसरे को कर्ज की किस्त देने के लिए तैयार करते रहते हैं। भारत में भी ग्रामीण बैंकों ने इसी माडल से प्रभावित होकर देशभर में एक खास तरह के पेशे से जुड़े हुए लोगों के लिए स्व सहायता समूह बनाने पर जोर देना आरंभ किया है। हालांकि ये समूह यहां इतने लोकप्रिय नहीं हो पा रहे हैं। पर ऐसे समूह की उपयोगिता जिन लोगों ने समझ ली है उन्हें इसका लाभ होता हुआ दिखाई दे रहा है। जिन पेशेगत श्रमिकों ने स्व सहायता समूह का मतलब समझ लिया है वे उसका पूरा लाभ उठा रहे हैं। गांव में खेती करने वाले लोग भी इस तरह का समूह बना रहे हैं।
वास्तव में बैंक का कर्ज अगर न चुकाया जाए तो नासूर बन जाता है। बहुत कम ऐसे मामले होते हैं जिसमें लोग बैंक का कर्ज लेकर फरार हो पाते हैं। बैंक भी अपने पैसे को वसूल करने के लिए तमाम जुगत उठाता है। पर बैंक चाहता है कि पहले सब कुछ समझौते से ही निपट जाए क्योंकि मुकदमेबाजी में बैंक का भी काफी रुपया और मैनपावर खर्च होता है। पर छोटे कारोबारियों को छोटे छोटे कर्ज देने को लेकर बैंकों में कभी उत्सह नहीं रहा है। अगर हम किसी ऐसे व्यक्ति को छोटा सा कर्ज देते हैं जो इस राशि से रोजगार कर लेता है तो यह उसके के लिए बहुत बड़ी आर्थिक सहायता के साथ समाजसेवा जैसा पुण्य कार्य भी होता है। बंग्लादेश का ग्रामीण बैंक कुछ इसी तरह का कार्य करता है। यह माइक्रोफाइनेंस की अवधारणा है। भारत में इस अवधारणा को लेकर विक्रम आकुला ने काम किया है। उन्होंने आंध्र प्रदेश की गरीब महिलाओं को को छोटे छोटे कर्ज दिए हैं। इससे इन महिलाओं के जीवन स्तर में काफी बदलाव आया है। विक्रम आकुल को उनके कार्यों के लिए मैग्सेसे पुरस्कार से नवाजा गया है। हम यों कहें तो विक्रम आकुल और मोहम्मद युनुस जैसे लोगों को अंधकार को धिक्कारने के बजाय एक दीपक जलाने का काम किया है। उनके प्रयासों से सबसे निचली श्रेणी के लोगों के जीवन स्तर में आशा की एक रोशनी दिखाई दी है। अब कई लोग उनके प्रयासों को अपने यहां लागू करने की कोशिश कर रहे हैं।



Wednesday 10 June 2009

ब्लॉग पर प्रतिबंध उचित नहीं

अभी हाल में सरकार ने कई ब्लाग साइटों पर अचानक प्रतिबंध लगा दिया। इसका ब्लागरों ने जोरदार विरोध किया। इंटरनेट पर ब्लाग लोगों की अभिव्यक्ति का बहुत अच्छा माध्यम बन कर उभरे हैं। इसमें किसी को भी अपने विचारों को अभिव्यक्त करने की पूरी आजादी है। पर साथ ही यह सही है कि ब्लाग में कई लोग अश्लील संदेशों का आदान प्रदान करने में जुटे हैं तो कुछ लोग उग्रवादी विचारों को लेकर ब्लाग चला रहे हैं। पर इसका यह समाधान नहीं हो सकता कि किसी के ब्लाग पर पूरी तरह रोक लगा दी जाए।

क्या हैं ब्लाग- ब्लाग सब वेब लाग से बना है। इंटनेट पर आप मुफ्त में अपना ब्लाग बना सकते हैं। बिल्कुल किसी न्यूज लेटर की तरह नियमित तौर पर आप लेख फोटो आदि जारी कर सकते हैं। कई वेबसाइट इंटरनेट यूजरों को ब्लाग बनाने की सुविधा प्रदान करते हैं। इसके लिए वे कोई शुल्क नहीं लेते हैं। किसी भी विचार को ब्लाग पर प्रकाशित करना बहुत ही आसान प्रक्रिया है। इससे उन लोगों को बहुत लाभ पहुंचा है जो किसी खास विचारधारा के लोग हैं और वे सीमित संख्या में दुनिया के किसी भी कोने में फैले हुए हैं। वे ब्लाग पर अपने संदेशों का आदान प्रदान करके एक दूसरे के संपर्क में रह सकते हैं।

मुंबई में बम धमाको के बाद जब सरकार ने अचानक ब्लाग साइटों को प्रतिबंधित किया तो इससे ब्लागरों में बड़ी तीखी प्रतिक्रिया हुई। यह सही है कि कई आतंकी संगठनों ने अपने संदेशों के आदान प्रदान के लिए इंटरनेट का सहारा लिया है। वे इंटरनेट पर कोड लैंग्वेज में संदेशों का आदान प्रदान करने में लगे हैं। इन्हें गुप्ततर संगठनों के लिए डिकोड करके समझना मुश्किल होता है। इस मामले में पुलिस डाल-डाल तो आतंकी संगठन पात-पात हैं। यह देखने में आ रहा है कि कई आईटी के जानकार, वैज्ञानिक और प्रोफेसर भी इन आतंकी संगठनों की मदद कर रहे हैं। ऐसे में पुलिस विभाग को अपना आईटी विभाग और साइबर क्राइम से जुड़े एक्सपर्ट को और शोध सुविधाएं प्रदान करनी चाहिए। अगर आईटी का इस्तेमाल आतंकी संगठनों द्वारा हो रहा है तो उसका समाधान अवश्य ढूंढा जाना चाहिए। पर इसकी एवज में समान्य इंटरनेट यूजरों को परेशानी नहीं होनी चाहिए।

मुंबई बम विस्फोट के बाद कुल 20 ऐसे इंटरनेट साइटों पर प्रतिबंध की बात उठी थी जो उग्रवादी विचारों का प्रचार प्रसार कर रहे हैं। इनमें कुछ ब्लाग साइटें भी थीं। पर इन साइटों को नाम पर सैकड़ों ऐसी साइटें भी कुछ दिनों के लिए ब्लाक कर दी गईं जिनका आतंकी संगठनों की गतिविधियों से कोई लेना-देना नहीं था। इससे उन लोगों को को बड़ी परेशानी हुई जो इंटरनेट का इस्तेमाल एक वैकल्पिक मंच के रुप में कर रहे थे। इसमें कोई शक नहीं है कि इंटरनेट अब एक नए वैकल्पिक मीडिया के रुप में भारत में भी उभर रहा है अब किसी न किसी रुप में इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाले लोगों की संख्या करोड़ो में पहुंच रही है। इंटरनेट पर जो ब्लाग बन रहे हैं वे धर्म, भाषा, जाति, विचारधारा को लेकर हैं।

जैसे तमिलनाडु की किसी खास जाति के लोगों ने अपना मंच बना लिया और दुनिया भर में फैले लोग एक दूसरे से संवाद बनाने में लगे हैं। शाकाहारियों ने अपना एक मंच बना लिया है। 

इसी तरह हिंदी भाषा में कविता, कहानी, व्यंग्य और संस्मरण लिखने वालों के दर्जनों ब्लाग हैं। अगर कोई संपादक आपका लेख नहीं छापता है। संपादक के नाम पत्र में आपकी चिट्ठी नहीं छपती है तो आपके पास अपना ब्लाग बनाकर अपने विचार दुनिया भर में लोगों के साथ साझा करने का विकल्प मौजूद है। इसलिए सरकार को इस माध्यम पर रोक नहीं लगानी चाहिए।
- Vidyut Prakash Maurya

Friday 5 June 2009

इंटरनेट रेडियो पर भी सुन सकते हैं गाने

एफएम रेडियो ने तो रेडियो के सुनहरे दौर की वापसी की ही है आपके पास रेडियो सुनने के लिए इंटरनेट रेडियो के रुप में दूसरा विकल्प भी मौजूद है। अगर आप अपने घर में या दफ्तर में आनलाइन होते हैं तो उसके साथ ही इंटरनेट पर रेडियो सुनने का आनंद उठा सकते हैं। इसके लिए आपको विंडो मीडिया प्लेयर या रियल प्लेयर साफ्टवेयर की मदद लेनी पड़ेगी। इंटरनेट पर रेडियो के कई विकल्प मौजूद हैं। यह इस पर निर्भऱ करता है कि आप कौन सी भाषा के गीत सुनना चाहते हैं।

 इंटरनेट पर हिंदी और पंजाबी गीत सुनने के कई विकल्प मौजूद हैं। अगर आप इंटरनेट पर आनलाइन रेडियो के बारे में जानना चाहते हैं को किसी सर्च इंजन में जाकर इंटरनेट रेडियो टाइप करें। इसके अलावा आनलाइन हिंदी सांग्स जैसे विकल्प भी लिख सकते हैं। वैसे हिंदी गानो के लिए आप सीधे अपनारेडियो.काम, देसीरेडियो.काम जैसी साइटें देख सकते हैं। इसमें नए व पुराने गानों के विकल्प मौजूद हैं। फिलहाल ये गाने रेडियो की तरह आप मुफ्त में सुन सकते हैं। इन रेडियो विकल्पों पर आप अपनी पसंद के गाने सुनने के लिए फरमाइश भी कर सकते हैं। जब आपका नंबर आएगा तो आपकी पसंद का गाना चल पड़ेगा। कुछ साइटों पर सीडी लाइब्रेरी की तरह भी गानों की फेहरिस्त उपलब्ध है जिसमें से आप गाने का चयन करके प्ले कर सकते हैं। हालांकि इंटरनेट रेडियो पर गानों के चयन का अभी ज्यादा विकल्प मौजूद नहीं है। आपको कुछ चयनित फिल्मों या कलाकारों के ही नए पुराने गानों पर आश्रित रहना पड़ सकता है।
विदेशों के लिए आदर्श
इंटरनेट रेडियो उन स्थलों के लिए ठीक है जहां कोई हिंदी का एफएम रेडियो स्टेशन उपलब्ध नहीं है। हालांकि अब उपभोक्ताओं के पास सेटेलाइट रेडियो जैसा भी विकल्प भी मौजूद है। पर उसकी स्थापना का खर्च महंगा है साथ ही उसके लिए मासिक किराया भी देना पड़ता है। इंटरनेट रेडियो का विकल्प फिलहाल तो मुफ्त में उपलब्ध है।
मनपसंद म्यूजिक डाउनलोड करें
आप अपने मनपंसद एलबमों को इंटरनेट पर जाकर डाउनलोड भी कर सकते हैं। जैसे आप क्लासिकल एलबम खरीदना चाहते हैं। ऐसे में कुछ साइटों पर जाकर ऐसे कलाकारों के संगीत को डाउनलोड किया जा सकता है। खासकर भारतीय क्लासिकल म्यूजिक से श्रोताओं के लिए यह अच्छा उपहार हो सकता है। हालांकि इंटरनेट पर फ्री डाउनलोड करने की सुविधा अभी बहुत कम ही उपलब्ध है। पर धीरे धीरे इन रेडियो साइटों पर गानों की संख्या बढ़ रही है।
रायल्टी की समस्या
कोई भी गाना म्यूजिक कंपनी की प्रोपर्टी होता है। जो भी उस गाने को प्ले करे उसे कंपनी को रायल्टी देनी पड़ती है। आकाशवाणी और सभी रेडियो स्टेशन इन गानों के लिए एक निश्चित दर से रायल्टी का भुगतान करते हैं। अभी यह साफ नहीं है कि इंटरनेट पर चलने वाले आन लाइन रेडियो कंपनियों को रायल्टी का भुगतान किस तरह करते हैं।

- विद्युत प्रकाश मौर्य