Saturday, 8 September 2018

सबके लिए खुला है मंदिर है ये हमारा (भजन )

सबके लिए खुला है मंदिर है ये हमारा
मतभेद को भुलाता मंदिर है ये हमारा।

आओ सभी पंथी आओ सभी धर्मी
देशी विदेशियों का मस्जिद है ये हमारा। 

मानव का धर्म क्या है मिलती है राह जिसमें
चाहता भला सभी का गिरजा है ये हमारा ।

संतो की उच्च वाणी, सब जन हैं भाई भाई,
सब देवता समाता गुरुद्वारा है ये हमारा।

मतभेद होने पर भी मनभेद हो न पाए
हर एकता का हामी, नामघर है ये हमारा।

आओ सभी मिलेंगे बैठेंगे प्रार्थना में
तुकड़या कहे अमर है मंदिर है ये हमारा
( तुकड़ो जी महाराज)

नोट – तुकड़ो जी महाराज के मूल भजन में प्रत्येक पद में मंदिर शब्द ही है, परंतु आज की प्रासंगिकता को देखते हुए मस्जिद, गिरजा, गुरुद्वारा, नामघर जोड़ा गया है। संत तुकड़ोजी महाराज के भावना में ये सही बैठते हैं। )

SABKE LIYE KHULA HAI...

sabke liye khula hai mandir hai ye hamaara
matbhed ko bhulata mandir hai ye hamaara ||

aao sbhee hi panthee aao sabhee hi dharmee
deshi-videshiyon ka masjid hai ye hamaara ||

manav ka dharma kya hai milati hai raaha jisme
chahata bhala sabheeka gurudwara hai ye hamaara
santon ki uchcha vani sab jan hai bhai-bhai
sab devata samaata girija hai ye hamaara ||


matbhed hone par bhee manbhed ho n paye
har ekta ka haami mandir hai ye hamaara ||


aao sbhee milenge baithenge prarthana men
tukadia kahe amar hai mandir hai ye hamaara ||



आया हूं दरबार तुम्हारे

आया हूं दरबार तुम्हारे
बहुत जनम का भूला भटका
लगवाले प्रभु चरण सहारे।

तुम्हारो नाम पतित पावन है
चहुं दिस गावत जन जन है
मुझको काहे सतावत मारे।

धन नहीं मांगू, मांगू न सत्ता
नहीं मांगू विषयन की ममता
हे प्रभु प्रेम की दृष्टि निहारे।

भाग्य बड़ा मन तुमसे लागा,
नहीं तो जाता जमघर भागा
तुकड़या कहे सुन अर्ज हमारे।

-         संत तुकड़ो जी महाराज।
-          
हर देश में तू हर वेश में तू

हर देश में तू हर वेश में तू, तेरे नाम अनेक तू एक ही है
तेरी रंगभूमि यह विश्व भरा, हर खेल में मेल में तू ही तू है।

सागर से उठा बादल बनकर, बादल से फूटा जल होकर के,
फिर नहर बना नदियां गहरी, तेरे  भिन्न प्रकार तू एक ही है।

मिट्टी से भी अणु परमाणु बना, यह विश्व जगत का रूप लिया।
कहीं पर्वत वृक्ष विशाल बना, सौंदर्य तेरा तू एक ही है।

यह दृश्य दिखाया है जिसने, वह है गुरुदेव की पूर्ण दया।
तुकड़या कहे और न कोई दिखा, बस तू और मैं सब एक ही हैं।

-         संत तुकड़ो जी महाराज।  

( राष्ट्रीय युवा योजना के शिविरों में हर रोज सर्व धर्म प्रार्थना के बाद सुब्बराव जी कुछ भजन गाते हैं। इनमें सबसे लोकप्रिय तीन भजन संत तुकड़ोजी महाराज द्वारा रचित हैं।) 






राष्ट्र संत तुकडोजी महाराज ( एक परिचय) 


तुकडोजी महाराज एक महान और स्वयंसिद्ध संत थे। उन्होंने सामूहिक प्रार्थना पर बल दिया जिसमें जाति-धर्म से परे सभी लोग भाग ले सकें । संपूर्ण विश्वमें उनकी प्रार्थना पद्धति वस्तुतः अद्वितीय और अतुलनीय थी। उनका दावा था कि उनकी सामूहिक प्रार्थना पद्धति समाजको आपसमें भाई चारे और प्रेम की कड़ी में बांध सकने में सक्षम है ।

तुकड़ोजी महाराज ने अपने जीवन का ज्यादा समय रामटेकसालबर्डीरामदिघी और गोंदोडा के बीहड़ जंगलों में बिताया। उन्होंने औपचारिक रूपसे बहुत ज्यादा शिक्षा नहीं ग्रहण की थीकिंतु उनका आध्यात्मिक ज्ञान उच्च स्त रका था। वे खंजड़ी ( एक पारंपरिक वाद्य यंत्र) बड़े ही अद्वितीय ढंग से बजाते हुए भजन गाते थे। वे अविवाहित थे। उनका पूरा जीवन जातिवर्गपंथ या धर्मसे परे समाज की सेवा के लिए समर्पित था। उन्होंने दृढ़तापूर्वक पुरोहिताई का विरोध किया और आंतरिक मूल्यों एवं सार्वभौमिक सत्यका प्रसार किया ।

राष्ट्रसंत तुकडोजीका जन्म  30 अप्रैल 1909 को महाराष्ट्र के अमरावती  जनपद के यावली नामक एक गांव के गरीब परिवार में हुआ था। वे बचपन में ही समर्थ गुरु आडकोजी महाराज के संपर्क में आए।  उन्हें 1936 में महात्मा गांधी द्वारा सेवाग्राम आश्रम में निमंत्रित किया गयाजहां वह लगभग एक महीने रहे । उसके बाद तुकडोजी ने सांस्कृतिक और आध्यात्मिक कार्यक्रमोंद्वारा समाजमें जन जागृतिका काम प्रारंभ कर दिया,। राष्ट्रसंत तुकडोजी के आह्वान का परिणाम था – आष्टि-चिमुर स्वतंत्रता संग्राम। इसके बाद अंग्रेजों द्वारा उन्हें चंद्रपुर में 28 अगस्त 1942 को गिरफ्तार कर नागपुर और फिर रायपुरके जेल में 100 दिनों के लिए डाल दिया गया ।

गुरुकुंज आश्रम की स्थापना
जेल से छूटने के बाद तुकडोजीने सामाजिक सुधार आंदोलन चलाकर अंधविश्वासअस्पृश्यतामिथ्या धर्मगोवध एवं अन्य सामाजिक बुराइयों के खिलाफ संघर्ष किया। उन्होंने नागपुर से 120 किलोमीटर दूर मोझरी नामक गांव में गुरूकुंज आश्रम की स्थापना की। आश्रम के प्रवेश द्वार पर ही उनके सिद्धांत इस प्रकार अंकित हैं – इस मन्दिरका द्वार सबके लिए खुला है।  हर धर्म और पंथ के व्यक्तिका यहां स्वागत है।  तत्कालीन भारतके राष्ट्रपति डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद ने गुरूकुंज आश्रम में एक विशाल समारोह में आदर के साथ उन्हें राष्ट्रसंत कहा।

 ‘ग्राम गीता’ की रचना
तुकड़ोजी महाराज ने  ग्रामगीता की रचना कीजिसमें उन्होंने वर्तमानकालिक स्थितियोंका निरूपण करते हुए ग्रामीण भारतके विकासके लिए एक सर्वथा नूतन विचारका प्रतिपादन किया 1956 तुकडोजी द्वारा भारत साधु समाज का आयोजन किया गयाजिसमें विभिन्न संपद्रायोंपंथों और धार्मिक संस्थाओं के प्रमुखों शामिल हुए। तुकडोजी महाराज ने हिंदी और मराठी दोनों ही भाषाओं में तीन हजार भजन लिखे। 11 अक्तूबर 1968 को उन्होंने अपना नश्वर शरीरका त्यागा।
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रामचरण दिन राति भजो मन
रसन कसन भजो श्री हरि पद
सुमिरत क्यों अलसाती।।

जाके कहत दहत दुख दारुण
सुन त्रय ताप बुझाती।

सुनत सुयश सुशील सो हरिजन
देत सलाह सोहाती।।

रामचंद्र के नाम अमिय रस
सो रस काहे न खाती।

तुलीसदास यह विनय करत है
प्रथम अरज की पांती।।
-         संत तुलसीदास

समदर्शी प्रभु

प्रभु मोरे अवगुण चित्त न धरो
समदर्शी है नाम तिहारो।
चाहे तो पर करो।।

एक नदिया एक नार कहावत
मैली ही नीर भरो
जब मिल करके एक बरन भयो
सुरसरी नाम परयो।।

एक लोहा पूजा के राखत
एक घर बधिक परयो
पारस गुण अवगुण नहीं चितवत
कंचन करत खरो।।

यह माया भ्रम जाल कहावत
सूरदास सगरो।
अब की बार मोही पार उतारो
नहिं प्रण जात टरो।।

   - संत सूरदास

उठ जाग मुसाफिर

उठ जाग मुसाफिर भोर भई
अब रैन कहां जो सोवत है

जो सोवत है सो खोवत है
जो जागत है सो पावत है

टुक नींद अखिंया खोल जरा
जो दाफिल रब ले ध्यान लगा

यह प्रीति करन की रीत नहीं
रब जागत है तू सोवत है।

अय जान भुगत करनी अपनी
ओ पापी पाप में चैन कहां..

जब पाप की गठरी सीस धरी
फिर सीस पकड़ क्यों रोवत है..

जो काल करे सो आज कर ले
जो आज करे सो अब कर ले

जब चिड़ियन खेती चुगडाली
फिर पछताए क्या होवत है।

नाम जपन क्यों छोड़ दिया

नाम जपन क्यों छोड़ दिया
झूठ न छोड़ा क्रोध न छोड़ा
सत्य वचन क्यों छोड़ दिया

झूठे जग में दिल ललचाकर
असल वतन क्यों छोड़ दिया

कौड़ी को तो खूभ संभाला
लाल रतन क्यों छोड़ दिया

जिहि सुमिरन से अति सुख पावे
सो सुमिरन क्यों छोड़ दिया

खालस इस भगवान भरोसे
तन मन धन क्यों छोड़ दिया।
(-         खालस )


झीनी झीनी बीनी चदरिया
काहे का ताना काहे की भरनी
कौन तार से बीनी चदरिया।

इंगला पिंगला ताना भरनी
सुखमन तार से बीनी चदरिया
आठ कंवल दल चरखा डोले
पांच तत्व गुन तीनी चदरिया।

साई कोई सियत मास दस लागे
ठोंकि ठोंकि बीनी चदरिया।

 सो चादर सुर नर मुनि ओढे
ओढिके मैली कीनी चदरिया। 

दास कबीर जतन ओढी, 
ज्यों की त्यों धर दीनी चदरिया।
-         कबीर

वैष्णव जन
वैष्णव जन जो तेने कहिए जो पीर पराई जाने रे
पर दुखे उपकार करे तोए मन अभिमान न आने रे।।

सकल लोकमां सहुने बंदे, निंदा न करे केनी रे।
वाच काछ मन निश्चल राखे,धन धन जननी तेरी रे।।

समदृष्टि ने तृष्णा त्यागी, पर स्त्री जेने मात रे।
जिव्हा थकी असत्य न बोले, पर धन नव झाले हाथ रे।।

मोह माया व्यापे नाही जेने, दृढ वैराग्य जेना मन मा रे।
रामनाम शुं ताली लागी, सकल तीरथ जेना तनमां रे।।

वणलोभी ने कपट रहित छे, काम क्रोध निर्वाया रे।
भणे नरसौयो तेनु दरसन करतां,कुल एकोत्तेर तार्या रे।।
-         संत नरसी मेहता ( गुजराती)
-          

पायो जी मैंने

पायोजी मैंने राम रतन धन पायो
वस्तु अमोलिक दी मेरे सतगुरु
किरपा कर अपनाओ।

जनम जनम की पूंजी पायी
जग में सब खोवायो।

खरचै न खूटे वाको चोर न लूटे
दिन दिन बढ़त सवायो।

सत की नाव खेवटिया सतगुरु
भवसागर तर आयो।

मीरा के प्रभु गिरिधर नागर
हरख हरख जस गायो।।
-         मीरा बाई।


राजा राम राम राम
राम राम राजा राम राम, सीता राम राम राम  ।
रघुपति राघव राजा राम, पतित पावन सीताराम।

ईश्वर अल्ला तेरे नाम, सबको सन्नमति दे भगवान।।
जय बोलो सब धर्मों की , जय बोलो सत्कर्मों की।

जय बोलो सब संतों की, जय बोलो सत पंथों की,
जय बोलो सब जनता की, जय बोलो मानवता की।
राम राम राजा राम राम, सीता राम राम राम  ।

नाम माला

ओम तत्सत श्री नारायण तू, पुरुषोत्तम गुरु तू।
सिद्ध बुद्ध तू, स्कंद विनायक, सविता पावक तू।

ब्रह्म मज्द तू यह्म शक्ति तू, ईशु पिता प्रभु तू।
रुद्र विष्णु तू, राम कृष्ण तू, रहीम ताओ तू।

वासुदेव गो विश्वरूप तू, चिदानंद हरि तू।
अद्वितीय तू, अकाल निर्भय आत्मलिंग शिव तू।


शांति मंत्र
सर्वे भवंतु सुखिनः
सर्वे संतु निरामयाः
सर्वे भद्राणि पश्यंतु
मा कश्चित दुख भाव भवेत।।

सभी सदा सुखी होवे सभी स्वस्थ निरोग हों
सभी मंगलता देखें, ना किसे कोई दुख हो।
ओंम शांति शांति शांति ।

ऊं सहनाभवतु
सह नौ भुनक्तु
सहवीर्यं करवावहै।
तेजस्विनावधीतमस्तु
मा विदविशावहै।
ओंम शांति शांति शांति ।

ओंम असतो मा सदगमय।
तमसो मा ज्योतिर्गमय।
मृत्योमा अमृत गमय।
ओंम शांति शांति शांति ।





एकादश व्रत
अहिंसा सत्य अस्तेय,
ब्रह्मचर्य, असंग्रह
शरीर श्रम, अस्वाद
सर्वत्र भयवर्जन।
सर्व धर्म समानत्व
स्वदेशी स्पर्शभावना
ही एकादश सेवावी
नम्रत्वे व्रत निश्चये।।






मंगल धुन

शुभ मंगल हो शुभ मंगल हो, शुभ मंगल मंगल मंगल हो।
नभ मंगल हो धरती मंगल, धरती का कण कण मंगल हो।
गति मंगल हो श्रुति मंगल हो, जीवन का कण कण मंगल हो।
आचार विचार मंगल हो, व्यवहार हमारा मंगल हो।

शुभ मंगल हो...




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