Thursday 20 September 2018

गांधी के विचारों से ही मिटेंगी पृथ्वी पर खींची इंसानी लकीरें- सुब्बराव

बापू की 150वीं जयंती वर्ष के अवसर पर राष्ट्रीय युवा योजना ग्वालियर इकाई के द्वारा युवा संवाद कार्यक्रम का आयोजन किया गया। नगर के सिटी सेंटर स्थित होटल जानकी इन के सभागार में आयोजित युवा संवाद कार्यक्रम में प्रख्यात गांधीवादी और सर्वोदयी नेता एसएन सुब्बाराव ( भाई जी ) ने व्याख्यान दिया और युवाओं को संबोधित किया।
व्याख्यान की षुरुआत करते हुए सुब्बाराव ने चंद्रमा पर कदम रखने वाले प्रथम मनुष्य नील आर्मस्ट्राग की पंक्तियों से की। प्रथम चंद्रयात्री ने चंद्रमा से पृथ्वी को देखते हुए कहा था कि चांद से देखने पर पृथ्वी बेहद खूबसूरत दिखती है क्योंकि वहां से पृथ्वी पर कोई लकीर नहीं दिखती। भाई जी ने कहा कि परमषक्ति ने पृथ्वी का निर्माण किया लेकिन इंसानों ने जगह-जगह खरोंच और लकीर खींच दिया। देश, धर्म, जाति और नस्लों की इन इंसानी लकीरों से पृथ्वी रक्तरंजित हो चुकी है और इसे सिर्फ महात्मा गांधी के सिद्धांतों पर चलकर ही बचाया जा सकता है। राष्ट्र् और विश्व को जोड़ने के प्रण के साथ भाई जी ने ओजस्वी स्वर में प्रेरणास्पद समूह गान का आह्वान किया। अपने न्यूयार्क प्रवास की एक घटना का उल्लेख करते हुए भाई जी ने बताया कि कैसे गांधी के सिद्धांतों और विचारों से वहां के नागरिक प्रेरणा लेते हैं लेकिन दुर्भाग्यवश हम बहुत से भारतीय उन्हें आज भी प्रासंगिक नहीं मानते।
भाई जी ने कहा कि हमें स्वयं में उस आत्मषक्ति को तलाषने की अत्यंत आवश्यकता है जिसने एक समय बचपन में भयभीत रहने वाले बालक मोहनदास को इतनी षक्ति दी जिसने उस ब्रिटिश सत्ता को चुनौती दे दिया जिनके सामा्रज्य में कभी सूर्यास्त नहीं होता था। भारत की आजादी के बाद दुनिया में 117 से ज्यादा देषों को औपनिवेषिक गुलामी से आजादी मिली थी। प्रत्येक आजाद राष्ट्र के राष्ट्रनायक ने अपनी लिखी किताबों में एक बात का जिक्र्र अवष्य किया कि उन्हें इस संघर्ष की प्रेरणा महात्मा गांधी के संघर्षों और विचारों से मिली थी वरना वो सपने में भी आजाद होने की कल्पना नहीं करते थे। अफ्रीका में 1906 में एषियाटिक आर्डिनेंस और अष्वेतों के हक के लिए अंग्रजों के विरुद्ध महात्मा गांधी की षक्ति के संदर्भ में भाई जी ने बताया कि, सैकड़ों वर्ष पूर्व आदिगुरु शंकराचार्य ने कहा है कि समस्त शक्तियों के स्रोत आप स्वयं हैं। दुनिया में अब तक हुए समस्त धर्म प्रवर्तकों और धर्म संस्थापकों ने इसी स्व शक्ति को पहचानने और इस तक पहुंचने की बात कही है। आत्मशक्ति की यह पहचान सिर्फ सत्कर्मों के दीपक को जलाने से ही संभव है।

वर्तमान समय में संसार में व्याप्त हिंसा, मतभेद, बेरोजगारी, भूख और तनावपूर्ण वातावरण में सिर्फ गांधी के सिद्धांतों के द्वारा ही शांति तक पहुंचा जा सकता है। धर्म, जाति, भाषा और क्षेत्र की सीमा में उलझे में विश्व और भारत को जोड़ने की अत्यंत आवश्यकता है। देष की तरुणाई अपनी आत्मशक्ति से विश्व को जोड़ने का यह कल्याणकारी कार्य कुशलतापूर्वक कर सकती है। आज हमें एक-दूसरे के धर्म को समझने और उसका सम्मान करने की जरुरत है। हमें ऐसी नीतियों की जरुरत है जो ऐसा विकास करें जिससे प्रकृति और वृक्षों को क्षति न पहुंचे जिससे सभी निरोग और स्वस्थ रहें। हमें अपने भ्रष्टाचार से दूर रहकर व्यवहार में शिष्टता और जीवन में पारदर्शिता लाने की जरुरत है। हम यह सुगमतापूर्वक कर सकते हैं क्योंकि हम सबके अंदर ही राम और रावण होते हैं। हमें अपने भीतर के राम को बढ़ाना है और इसलिए हमें राम से मार्गदर्शन लेना होगा।

चंबल के आत्मसमर्पण कर चुके दस्युओं के प्रसंग को याद करते हुए भाई जी ने कहा कि जब प्रख्यात गांधीवादी समाज सेविका सरला बहन (कैथरीन मैरी हिलमैन) उन दस्युओं से पूछती थी कि तुम्हें राम के विचार आकर्षित करते हैं या रावण का अहंकार तो वो सभी स्वयं को राम के विचारों से प्रभावित बताते थे। आज भी हमें अपने अंदर उसी विचार को बढ़ाने की जरुरत है। व्याख्यान के अंत में भाई जी ने उपस्थित युवाओं से राष्ट्र निर्माण में योगदान देने और जिम्मेदार नागरिक बनने का आह्वान किया। उपस्थित युवाओं और श्रोताओं ने बा-बापू के विचारों को आत्मसात करने और अंदर के भय से भयमुक्त होकर गौरवान्वित भारतीय होने का संकल्प लिया।
( ग्वालियर में 18 सितंबर 2018 का व्याख्यान )

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