गांधी जयंती के मौके पर 2
अक्तूबर 2018 को मध्यप्रदेश के ग्वालियर में कई राज्यो से आए 27 हजार किसानों ने
एक बार फिर अपनी आवाज बुलंद की। ये भूमिहीन 2007 से लगातार आंदोलनरत हैं।
यहां जुटे हजारों भूमिहीनों ने केंद्र
सरकार को चेतावनी दी कि अगर जमीन देने सहित उनकी अन्य मांगें नहीं मानी तो अगले
लोकसभा चुनाव में सरकार गिरा देंगे। मेला मैदान में जमा हुए हजारों भूमिहीनों में
केंद्र सरकार के रवैए को लेकर खासी नाराजगी है।
इस मौके पर एकता परिषद के
संस्थापक पीवी राजगोपाल ने कहा, केंद्र
सरकार ने अगर मांगें नहीं मानी तो 2019 के लोकसभा चुनाव में
नतीजे भुगतने को तैयार रहे। राजगोपाल के आह्वान पर वहां मौजूद लोगों हजारों लोगों
ने दोहराया कि अगर केंद्र सरकार ने अगर उनकी मांगें नहीं मानी तो आने वाले चुनाव
में केंद्र में मोदी के नेतृत्व में सरकार नहीं बनेगी।
राजगोपाल का कहना है कि अपना हक
पाने के लिए अपनी ताकत का अहसास कराना जरूरी हो गया है,
केंद्र सरकार से गरीब व वंचित वर्गो को उनका हक दिलाने की बातचीत चल
रही है, अगर इन मांगों को नहीं माना जाता है तो इस वर्ग को
आगामी चुनाव में अपनी ताकत दिखानी होगी।
एकता परिषद के अध्यक्ष रणसिंह
परमार ने जनसंसद के प्रांरभ में सभी आगंतुक सत्याग्रहियों और अतिथियों का स्वागत
करते हुए कहा कि महात्मा गांधी के जयंती के अवसर पर किया जाने वाला यह आंदोलन
गांधी को सड़क पर उतारने की कोशिश है जिससे कि देश में भूमि सुधार लागू किया जा
सके।
जनांदोलन के पहले दिन आए
जलपुरुष राजेंद्र सिंह ने कहा कि वर्तमान दौर में सरकारों का नजरिया बदल गया है।
वह जनता नहीं, उद्योगपतियों के लिए काम
करती हैं। यही कारण है कि देश में जल, जंगल और जमीन पर
उद्योगपतियों का कब्जा होता जा रहा है।
जनांदोलन में हिस्सा लेने आए
गांधीवादी सुब्बाराव ने आजादी के सात दशक बाद भी लोगों को छत न मिलने और जमीन न
होने का जिक्र किया। सुब्बाराव ने कहा, बंदूक की दम
पर कोई स्थायी परिवर्तन नहीं हो सकता अहिंसात्मक तरीके से ही समाज परिवर्तन की
लड़ाई लडनी होगी। गांधी जी को स्मरण करने का सबसे बेहतर तरीका सत्याग्रह है जिसके
दम पर उन्होने देश को आजादी दिलायी। उन्होंने कहा कि बिना हथियार के दम पर संघर्ष
जारी रहेगा और सफलता भी मिलेगी।
भूमिहीनों के मार्च को असम के पूर्व मुख्यमंत्री प्रफुल्ल चंद्र महंथ, बीजेपी के पूर्व नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा, चिंतक और विचारक गोविंदाचार्य का भी साथ मिला।
कई राज्यों के लोग पहुंचे - इस यात्रा में मध्य प्रदेश , छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, असम समेत कई राज्यों के भूमिहीन और आदिवासी हिस्सा लेने पहुंचे। । दो अक्तूबर तक देश भर से 27060 सत्याग्रही आज सुबह तक मेला मैदान में पहुंच चुके थे। जिसमें असम-430, मणिपुर-650, तमिलनाडु-469, केरल-282, छत्तीसगढ-2890, मध्यप्रदेश-10428, उत्तरप्रदेश-3234, बिहार-3267, उड़ीसा-1485, राजस्थान-846, झारखण्ड 2090 सत्याग्रहियों के साथ हरियाणा, उत्तराखण्ड, गुजरात, हिमाचल प्रदेश और महाराष्ट्र के प्रतिनिधि भी शामिल थे।
और दिल्ली के लिए कूच - ग्वालियर से तैयारी के बाद 25 हजार से अधिक लोग पदयात्रा करते हुए 4 अक्तूबर को दिल्ली के लिए कूच कर गए। पहले
दिन 4 अक्तूबर को सत्याग्रही 19 किलोमीटर चले
और मुरैना जिले की सीमा में पहुंच गए। 25 हजार लोगों का अनुशासन में सड़कों पर
चलना। रात होने पर सड़ के किनारे ही दरी बिछाकर सो जाना। एक-एक हजार के समूह में
भोजन बनाना और गीत गाते हुए संघर्ष की राह पर चलते जाना...ले मशालें चल पड़े हैं
लोग मेरे गांव के।
भूमिहीनों के मार्च को असम के पूर्व मुख्यमंत्री प्रफुल्ल चंद्र महंथ, बीजेपी के पूर्व नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा, चिंतक और विचारक गोविंदाचार्य का भी साथ मिला।
कई राज्यों के लोग पहुंचे - इस यात्रा में मध्य प्रदेश , छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, असम समेत कई राज्यों के भूमिहीन और आदिवासी हिस्सा लेने पहुंचे। । दो अक्तूबर तक देश भर से 27060 सत्याग्रही आज सुबह तक मेला मैदान में पहुंच चुके थे। जिसमें असम-430, मणिपुर-650, तमिलनाडु-469, केरल-282, छत्तीसगढ-2890, मध्यप्रदेश-10428, उत्तरप्रदेश-3234, बिहार-3267, उड़ीसा-1485, राजस्थान-846, झारखण्ड 2090 सत्याग्रहियों के साथ हरियाणा, उत्तराखण्ड, गुजरात, हिमाचल प्रदेश और महाराष्ट्र के प्रतिनिधि भी शामिल थे।
न्याय का विधान हो , सबका हक
समान हो
सबकी अपनी हो जमीन, सबका आसमान
हो...
यात्रा दो दिनों बाद 6 अक्तूबर
को मुरैना पहुंची। मुरैना में दोपहर में यात्रा को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी
ने संबोधित किया। इसी बीच आंदोलनकारियों को केंद्र सरकार से भी उनकी मांगे सुने
जाने का भरोसा मिला। इसी दिन पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव का ऐलान हो गया। इसके
बाद आचार संहिता लागू होने के कारण पीवी राजगोपाल ने सत्याग्रहियों से राय लेकर सत्ताग्रह
को समाप्त करने का ऐलान कर दिया। पर यह कहा कि आप लोग अपने अपने गांव में जाकर
आंदोलन जारी रखेंगे। इसके साथ ही केंद्र सरकार के कहा गया कि अगर आश्वासन पर अमल
नहीं होता है तो फिर सड़कों पर उतरेंगे।
एकता परिषद के प्रवक्ता अनिल गुप्ता
ने कहा, आंदोलन का पहला फेज खत्म हो गया है, क्योंकि बातचीत का सिलसिला शुरु हो गया है। बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव
राम माधव जी से बात हुई है, उनके साथ राजगोपाल और हमारे कई
साथियों की बैठक होगी, जिसके बाद सरकार से वार्ता होगी। एकता
परिषद संवाद में विश्वास करता है।"
आंदोलन की समाप्ति पर परिषद के संस्थापक राजगोपाल पीवी ने जारी वीडियो में कहा - हर संघर्ष का निष्कर्ष संवाद से निकलता है। एक संवाद ग्वालियर में सत्ताधारी सरकार से हुआ और दूसरा संवाद विपक्ष से मुरैना में स्थापित हुआ। बीजेपी के कई मंत्रियों से साथ चलने की बात कही है। अगले छह महीने में चुनाव है। जनप्रतिनिधियों ने 25 हजार लोगों के सामने वादा किया है कि वो चुनाव जीनते पर क्या करेंगे। और हमारी पांच मांगों को कैसे देखते हैं।
क्या है प्रमुख मांगें –
आंदोलन की समाप्ति पर परिषद के संस्थापक राजगोपाल पीवी ने जारी वीडियो में कहा - हर संघर्ष का निष्कर्ष संवाद से निकलता है। एक संवाद ग्वालियर में सत्ताधारी सरकार से हुआ और दूसरा संवाद विपक्ष से मुरैना में स्थापित हुआ। बीजेपी के कई मंत्रियों से साथ चलने की बात कही है। अगले छह महीने में चुनाव है। जनप्रतिनिधियों ने 25 हजार लोगों के सामने वादा किया है कि वो चुनाव जीनते पर क्या करेंगे। और हमारी पांच मांगों को कैसे देखते हैं।
क्या है प्रमुख मांगें –
भूमिहीनों आदिवासियों का यह
आंदोलन मुख्य रूप से पांच मांगों को लेकर है-
1 आवासीय कृषि भूमि अधिकार
कानून बने
2. महिला कृषक हकदारी कानून
(वूमन फार्मर राइट एक्ट)
3. जमीन के लंबित प्रकरणों के
निराकरण के लिए न्यायालयों का गठन किया जाए
4. राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति
की घोषणा और उसका क्रियान्वयन
5. वनाधिकार कानून-2005
व पंचायत अधिनियम 1996 के प्रभावी क्रियान्वयन
के लिए राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर निगरानी समिति बनाई जाए।
पुराने समझौतों पर अमल नहीं
राजगोपाल कहते हैं कि इससे पहले
वर्ष 2007
में जनादेश और 2012 में जन सत्याग्रह के दौरान
केंद्र सरकार के साथ लिखित समझौते हुए, मगर उन पर अब तक न तो
अमल हुआ और न ही कानून बन पाया है।
अधिकार पत्र नहीं मिला - डिंडोरी जिला मध्यप्रदेश के लिम्हा दादर गांव के
साथी पन्चू और मुन्ना बैगा जनजाति के हैं और ये अपने पूर्वजो के समय से जिस जमीन
पर खेती कर रहे हैं वह वन भूमि है, जिसका दावा करने के बाद भी अधिकार पत्र नहीं मिल पाया है। जनांदोलन
2018 में वे अपने अधिकारों की मांग को लेकर साथ साथ चल रहे हैं।
- प्रस्तुति - विद्युत प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com
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