Thursday 17 January 2008

नहीं रुकेगी फिर भी यह कलम

चेचन विद्रोह पर लगातार साहसपूर्ण ढंग से लिखने वाली महिला पत्रकार की उसके अपार्टमेंट की लिफ्ट में निर्मम हत्या कर दी गई पर क्या इससे सच बोलने वाली कलम रुक जाएगी...

अन्ना पोलिटकोवस्का ने मास्को स्टेट यूनिवर्सिटी से पत्रकारिता में स्नातक करने के बाद इस प्रोफेशन को कैरियर के रूप में चुना था। सात अक्टूबर की सुबह जब वह अपने अखबार नोवाया गजट के लिए चेचन विद्रोह के दौरान मानवाधिकारों के हनन पर विशेष रिपोर्ट लेकर जा रही थीं तभी उनकी लिफ्ट में ही निर्मम हत्या कर दी गई। उनके अखबार ने हत्या का सुराग देने वाले को 10 लाख डालर इनाम देने की घोषणा की है। इससे समझा जा सकता है कि वे अपने अखबार के लिए कितनी कीमती थीं। पर अन्ना की हत्या इस बात को प्रमुखता से रखता है कि दुनियाभर में मानवाधिकारों के लिए लड़ने वाले पत्रकारों को जान का खतरा बहुत है। अन्ना ने चेचन्या में रुसी सैनिकों द्वारा वहां के आम नागरिकों के दमन की दास्तान को बहुत प्रमुखता से लिखा था। पर रूस का शासन यह सब कुछ पसंद नहीं करता था। पूरी दुनिया में ऐसे पत्रकार जो पीआर जर्नलिज्म करते हैं। यानी किसी के द्वारा प्रायोजित तौर पर लिखते हैं उनकी जान को कोई खतरा नहीं है। पर जो लोग खोजपूर्ण पत्रकारिता करना चाहते हैं उनकी जान को खतरा है। अन्ना ने राष्ट्रपति पुतिन के शासन काल के दौरान चेचन विद्रोह पर ढेर सारी रिपोर्ट लिखीं। उसने एक सामाजिक कार्यकर्ता की हैसियत से चेचन के शिविरों और अस्पतालों में पड़े लोगों की मिजाजपुर्शी भी की और उनके अधिकारों के लिए लड़ाई भी की। जहां उसे ढेर सारे पुरस्कार मिले वहीं उसे मारने की भी तमाम कोशिशें की गईं। सितंबर 2004 में बेसलान स्कूल हादसे के दौरान उसे चाय में जहर देकर मारने की कोशिश की गई। 

अन्ना ने कई किताबें भी लिखीं। उसकी ताजी पुस्तक पुतिन का रुस थी। पर पुतिन सरकार के कई फौजी और पुलिस वाले भी अन्ना के जान के दुश्मन थे। उसे कई बार मारने की धमकी दी गई। दिसंबर 2005 में एक पत्रकार सम्मेलन के दौरान अन्ना ने कहा था कि मेरे जैसे कई लोग सच कहने के कारण संकट में हैं। कई लोगों को जान इसलिए गंवानी पड़ती है क्योंकि वे सच को जोर से कहना चाहते हैं।
और अब खुलासा हो गया है कि अन्ना जिस रिपोर्ट को लेकर अपने अखबार के दफ्तर जा रही थी उसे प्रशासन नहीं छपने देना चाहता था। उसमें चेचन विद्रोह को लेकर ग्राफिक्स के साथ प्रमुख तथ्य पेश किए गए थे।
सितंबर 2006 में एक और साहसी महिला पत्रकार का निधन हो गया। वह थी इटली की ओरियान फलासी। ओरियाना ने अमेरिका को मुस्लिम आतंकवाद से अगाह करने वाले कई लेख लिखे थे। पर उनका दुनिया भर में चर्चित काम था उनकी पुस्तक इंटरव्यूज विद् हिस्ट्री। इस पुस्तक में दुनिया के कई प्रमुख शासनाध्यक्षों के साक्षात्कार संकलित किए गए हैं। इसमें इंदिरा गांधी और अयातुल्ला खुमैनी भी थे। इस पुस्तक में संकलित कई नेताओं ने तो कहा कि अगर हमें पता होता कि ओरियान हमारा ऐसा साक्षात्कार करेगी तो वे कदापि उसे बातचीत करने के लिए समय नहीं देते। यह पुस्तक साक्षात्कारों पर केंद्रित श्रेष्ठ पुस्तकों में गिनी जाती है। कहा जाता है कि शब्द और विचार कभी नहीं मरते। उस लिहाज से अन्ना और ओरियाना की आवाज कभी बंद नहीं हो सकती। वे हमारी बीच सदियों तक रहेंगी। यह अलग बात है कि समय उनसे क्या सीखता है।
 ( अन्ना 30 अगस्त 1958 - 7 अक्तूबर 2006 ) 
- vidyutp@gmail.com



Monday 7 January 2008

बुढ़ापा यानी रिटायरमेंट कोई रोग नहीं

बुढ़ापा यानी रिटायरमेंट कोई रोग नहीं बल्कि यह तो एक नई ज़िन्दगी की शुरुआत है। अगर आप नौकरी से रिटायर होने वाले हैं तो कई तरह की योजनाएं बनाइए। कुछ लोग नौकरी से रिटायर होते ही दु:खी हो जाते हैं कि अब मैं क्या करुंगा। मैं एक 74 साल के आदमी से मिला। वह एक प्रॉपर्टी डीलर के दफ्‍़तर पर सहायक की नौकरी कर रहा था। उसने बताया कि दिन भर बस बैठना पड़ता है उसके एवज़ में कुछ रुपए मिल जाते हैं। इस उम्र में भी अपने बेटों पर बोझ नहीं हूं साथ ही टाइम भी पास हो जाता है।

असली जिंदगी होती है शुरू - आप यह मानकर चलें कि असली ज़िन्दगी की शुरुआत साठ के बाद होती है। सबसे पहले तो आप अपनी पत्‍नी के साथ घूमने का कार्यक्रम बनाएं। इस क्रम में आप अपने किसी और शहर में काम कर रहे बेटों के पास जा सकते हैं। आचार्य विनोबा भावे ने रिटायर लोगों के लिए एक मंत्र दिया था- रिटायर को रि-टायर करो। यानी पुरानी गाड़ी का टायर बदल दो वह तेज़ दौड़ने लगेगी। आप अपने मन से यह विचार निकाल दीजिए कि अब आप बूढ़े हो गए, अब आप क्या कर सकते हैं? आप रिटायर होने के बाद अपने जीवन भर के अनुभवों के आधार पर संभावित क्षेत्र में सलाहकार का काम कर सकते हैं। इसमें आप अच्छा पैसा कमा सकते हैं, इसके साथ ही आपकी व्यस्तता भी बनी रहेगी। कई बड़े लेखकों का उत्तम सृजन उनके साठ के बाद की उम्र में ही हुआ है। वैसे भी भारत में कहावत है साटा सो पाठा।

साठ के बाद टॉप पर - आप अगर राजनीति पर नज़र डालें तो अधिकांश राजनीतिज्ञ जो टॉप पर हैं उनकी उम्र साठ को पार कर चुकी है पर इनकी सक्रियता बनी हुई है। वे चुनाव लड़ते हैं, संसद की कार्यवाही में हिस्सा लेते हैं, बैठकों में हिस्सा लेते हैं, विदेश यात्राएं करते हैं। जब राजनीति के लोग सक्रिय हो सकते हैं तो आप क्यों नहीं। अगर आप शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े हुए हैं तो ट्यूशन पढ़ाने का काम कर सकते हैं। अगर बैंक से रिटायर हैं तो वित्तीय सलाह देने का काम कर सकते हैं। आप जहां से ढूंढना चाहेंगे वहीं से आपको एक राह निकलती हुई नज़र आएगी। कई ऐसे प्रोफेशन हैं जहां रिटायर होने का कोई मतलब नहीं होता। डॉक्टर, वकील, पत्रकार अपनी ज़रूरत के हिसाब से लगातार काम जारी रख सकते हैं। हां कुछ ऐसे पेशे हैं जिनसे लोगों को समस्याएं आती हैं पर वहां भी कोई न कोई विकल्प ढूंढा जा सकता है। अगर आपको पेंशन मिलती है तो बहुत अच्छी बात है। अगर नहीं मिलती तो भी आप कोई न कोई रास्ता ढूंढ सकते हैं। इसके लिए आप अपने साथियों से सलाह ले सकते हैं।

नई पीढ़ी को समझें, नए विचारों का सम्मान करें -  अक्सर रिटायर लोगों को अपने बच्चों के साथ समन्वय बैठाने में परेशानी आती है। पर इसको लेकर आप चिंतित न हों बल्कि अपने बच्चों के साथ मित्रवत् व्यवहार करें। नई पीढ़ी के पास नवीन विचार होते हैं उनका भी सम्मान करें। अगर ज़रूरत हो तो उन्हें सलाह दें। वरना तनाव न पालें। हमेशा अपने आप को किसी न किसी बहाने से व्यस्त रखें। अच्छी किताबों का अध्ययन करें। आपका बुढ़ापा खुशहाल होगा।
-विद्युत प्रकाश मौर्य
(OLD AGE, PERSON )