Tuesday 30 October 2007

मोबाइल उपभोक्ता बढ़े पर सुविधाएं नहीं

बहुत अच्छी खबर है देश में कुल फोन के उपभोक्ता दिसंबर 2005 में बढ़कर साढ़े बारह करोड़ हो गए हैं। अकेले दिसंबर में मोबाइल फोन के 38लाख नए ग्राहक बने हैं। मोबाइल फोन के तेजी से बढ़ते ग्राह के पीछे कई कारण हो सकते हैं। मोबाइल फोन का सस्ता होना। काल दरों का घटना। दो साल तीन साल या लाइफ टाइम फ्री इनकमिंग काल्स वाले पैकेज देना। अपने साथी की मोबाइल के कारण बढ़ते बिजनेस और लोक व्यवहार के कारण भी लोग मोबाइल फोन ले रहे हैं। अगर आबादी के हिसाब से फोन के घनत्व की बात करें तो अभी भी हमारा देश चीन ने बहुत पीछे है। अभी हमारे यहां प्रति 10 व्यक्ति पर एक फोन का औसत आ चुका है। इस हिसाब से अभी आने वाले तीन-चार सालों में मोबाइल फोन के ग्राहकों की संख्या तेजी से बढ़ने की उम्मीद जताई जा रही है। इस बढ़ती संख्या से मोबाइल आपरेटर बहुत खुश हैं। पर फोन के बढ़ते घनत्व के साथ क्या उपभोक्ताओं को सर्विस प्रोवाइडर द्वारा अच्छी सुविधाएं भी दी जा रही हैं। हाल में इस संबंध में कराए गए एक सर्वे के परिणाम बड़े निराशाजनक हैं।
देश में सीडीएमए और जीएसएम तकनीक मिलाकर 11 मोबाइल आपरेटर हैं। इनमें से आधे से अधिक की सेवाओं से लोग खुश नहीं हैं। एक साल पहले तक दिल्ली और मुंबई के सरकारी आपरेटर एमटीएनएल की मोबाइल सेवाओं से उपभोक्ता काफी परेशान रहते थे। हालांकि 2005 में एमटीएनएल की मोबाइल सेवा में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। पर अच्छी सेवा नहीं देने के कारण एमटीएनएल के काफी ग्राहक टूटे भी थे।
हैंडसेट अपग्रेडेशन नहीं
ठीक इसी तरह काफी लोग सीडीएमए तकनीक पर आधारित सेवा देने वाले आपरेटर की सेवाओं से लोग परेशान दीखे। इस सेवा में दिक्कत यह है कि अगर उपभोक्ता अपने आपरेटर की सेवा से खुश नहीं है तो भी आसानी से अपना कनेक्शन बदलकर किसी और कंपनी की ओर नहीं जा सकता। क्योंकि इसके हैंडसेट कंपनी की ओर से ही दिए जाते हैं। हालांकि इस विषय पर कोशिश की जा रही है कि सीडीएमए तकनीक में भी उपभोक्ता को हैंडसेट बदलने व कंपनी बदलने की आजादी मिले। जीएसएम तकनीक का उपभोक्ता अपना हैंडसेट आसानी से सेकेंड हैंड मार्केट में बेचकर कोई नया हैंडसेट ले लेता है। पर सीडीएमए में ऐसा संभव नहीं हो पाता।
एसएमएस से परेशानी
हालांकि एएसएमस सेवा टेलीग्राम का आधुनिक रुप है। मोबाइल कंपनियां आजकल एसएमएस से करोड़ों की कमाई कर रही हैं। पर कोई भी कंपनी इस बात की गारंटी नहीं लेती कि आपका भेजा हुआ एसएमएस मिल गया नहीं। जबकि एसएमएस भेजे जाते समय ही कंपनियां इसका शुल्क काट लेती हैं। दीवाली, नए साल और अन्य पर्व त्योहारों पर कंपनियों की एसएमएस से कमाई बढ़ जाती है। पर आपके भेजे हुए कई एसएमएस लोगों को दो दिन बाद मिलते हैं या फिर नहीं भी मिलते हैं।
इसके अलावा उपभोक्ताओं को बिलिंग और कस्टमर केयर से काफी शिकायते हैं। समय पर बिल नहीं मिलना। बिल का जमा कर देने के बाद भी शो नहीं होना। उपभोक्ता को सही जानकारी नहीं दिया जाना। कस्टमर केयर में शिकायत दर्ज कराने के बाद भी शिकायत दूर नहीं होने जैसी अनेक बातें हैं जिसे मोबाइल कंपनियों को ठीक करना होगा।

-माधवी रंजना, madhavi.ranjana@gmail.com


Sunday 28 October 2007

राजश्री ने बचा रखी है परंपरा

भले ही कई निर्माताओं ने फिल्में बनाने के सिलसिले में खुद को समय के अनुसार बदल लिया हो पर राजश्री ने अपनी परंपराओं को बचा कर रखा हुआ है। वे आज भी कहानी चुनने में पूरी सावधानी बरतते हैं और ऐसी ही फिल्में बनाते हैं जो भारतीय परिवार की सांसकृतिक परंपराओं को बचा कर रखती हो। उनका हाल में प्रदर्शित फिल्म विवाह इसी का ताजा उदाहरण है। उन्होंने उस दौर में भी जबकि छोटा परदा भी नंगापन परोसने में पीछे नहीं है एक साफ सुथरी फिल्म देने की कोशिश की है। राजश्री की फिल्मों की विशेषता रही है कि फिल्म हिट होने पर ऐसा सामाजिक प्रभाव छोड़ती है कि लोग अपनी जड़ों की ओर लौटने की कोशिश करते हैं। जब हम आपके हैं कौन सुपर हिट हुई तो शादी विवाह समारोहों में जूता जुराने की रश्म फिर से जीवित हो गई। इसके साथ ही फिल्म में पारिवारिक रिश्तों के बीच जिस सम्मान का भाव था उसे भी लोगों ने काफी गहराई से आत्मसात किया। यानी हम यों कहें कि राजश्री जब कोई अच्छी फिल्म बनाती है तो उससे समाज में कमजोर होते रिश्ते नाते को एक मजबूती मिलती है, एक नया आयाम मिलता है तो कत्तई गलत नहीं होगा।


राजश्री की हर फिल्म में भारतीयता की खूशबु होती है। हालांकि यश चोपड़ा भी कभी कभी और सिलसिला जैसी फिल्में बनाने के साथ पारिवारिक फिल्मों के लिए ही जाने जाते थे। उनकी फिल्म चांदनी, लम्हे और दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे भी इसी पृष्ठभूमि पर केंद्रित थीं। पर दिल तो पागल है के बाद यश चोपड़ा की फिल्मों का स्वरूप बदलने लगा है। उन्होंने एमटीवी और चैनल वी की पीढ़ी से प्रभावित पीढ़ी के लिए फिल्में बनानी आरंभ कर दी। दिल वाले दुल्हिनया ले जाएंगे में पूरब और पश्चिम का संगम देखने के मिला था। पर अब यश चोपड़ा की फिल्मों में पश्चिमी बयार ही बह रही है। अब यश चोपड़ा का प्रोडक्शन हाउस भी राजश्री की तरह ही बाहरी निर्माताओं से फिल्में बनवाने लगा है। पर वे सब लोग भी उसी तरह की फिल्में बना रहे हैं। 2006 में प्रदर्शित सलाम नमस्ते में तो बिल्कुल नई मान्यताएं देखने को मिली। इसमें हीरो में सभी स्त्रियोचित गुण देखे जा सकते हैं। वह इंजीनयरिंग पढ़कर भी खाना पकाने का काम करता है। पर इसके उलट राजश्री ने जिन बाहरी निर्देशकों से अपने लिए फिल्में बनावाई उन्होंने भी बिल्कुल साफ सुथरी फिल्में बनाई। कमोबेश यश चोपड़ा की राह पर कर जौहर भी चल रहे हैं। उनकी इस साल प्रदर्शित फिल्म कभी अलविदा ना कहना में कहानी का तानाबाना विवाहेत्तर संबंधों के आसपास घूमता है। हम अभी ऐसी कहानी को भारतीय परिवेश में आत्मसात करने को तैयार नहीं हैं।
हम यह नहीं कह सकते हैं कि जैसी कथानक का चयन करन जौहर और यश चोपड़ा जैसे निर्माता कर रहे हैं वैसे पात्र समाज में नहीं हैं। समाज में तो अच्छे बुरे पात्र हमेशा ही मौजूद रहे हैं। पर यह निर्माता पर निर्भऱ करता है कि वह फिल्म बनाते समय कैसे पात्रों का चयन करे। यह ध्रुव सत्य बात है कि फिल्मों का समाज पर व्यापक प्रभाव पड़ता है। लोग अपने हीरो की नकल करते हैं ऐसे में प्रोड्यूसर का दायित्व बनता है कि वह कहानी के चयन में गंभीरता बरते। इस मामले मे यश चोपड़ा और करण जौहर जैसे लोग चुक गए लगते हैं। वहीं सूरज बड़जात्या ने अपनी पारिवारिक परंपरा को न सिर्फ बचाए रखा है बल्कि उसे बड़ी ही सुंदरता से आगे बढ़ा रहे हैं।
विद्युत प्रकाश vidyutp@gmail.com

Friday 26 October 2007

विंडो का ओरिजिनल साफ्टवेयर अभियान

भारत में कंप्यूटरों में जो साफ्टवेयर इस्तेमाल हो रहा है वह बड़ी संख्या में अभी भी पाइरेटेड है। अब माइक्रोसाफ्ट की कंपनी इस अभियान में जुट गई है कि लोग असली साफ्टवेयर का ही इस्तेमाल करें। हालांकि पिछले कुछ सालों से जब आप कंप्यूटर खरीदते थे तो उसमें जो साफ्टवेयर लोड करके दिए जा रहे थे वे आमतौर पर पायरेटेड यानी दूसरे शब्दों में कहें तो गैर लाइसेंसी या चोरी के ही होते थे। जैसे विंडो का कोई भी संस्करण हो या किसी तरह के इस्तेमाल किए जाने वाले साफ्टवेयर। मसलन पेजमेकर, फोटोशाप, क्वार्क एक्सप्रेस, एमएस वर्ड, एक्सेल जैसे सभी साफ्टवेयर आमतौर पर पाइरेसी से ही इस्तेमाल में आ रहे हैं। खास तौर पर जो कंप्यूटर किसी मैकेनिक से एसेंबल करके खरीदे जाते हैं उनमें पाइरेटेड साफ्टवेयर ही लोड किए जाते हैं।

जब हम कोई भी साफ्टवेयर असली खरीदना चाहते हैं तो कंप्यूटर की कीमत के साथ ही हमें साफ्टवेयरों की भी अच्छी खासी कीमत चुकानी पड़ती है। ऐसे में ग्राहक भी सोचता है कि चलो पाइरेटेड साफ्टवेयर से ही काम चला लेते हैं। अभी तक साफ्टयवेयर बनाने वाली कंपनियां भी इस मामले मे ढील देने की नीति बरत रही थीं। उनका लक्ष्य था कि लोग भले ही पाइरेसी का साफ्टवेयर इस्तेमाल करें पर धीरे धीरे लोग इसके बड़ी संख्या में उपयोक्ता बन जाएं। अब देश में कंप्यूटर उपयोक्ताओं की संख्या करोड़ों में पहुंच गई है तो कंपनियों का ध्यान अब लोगों को ओरिजिनल साफ्टवेयर इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित करने की ओर है। इसके लिए कंपनियां अखबारों में बड़े ब़ड़े विज्ञापन भी दे रही हैं।

आखिर असली ही क्यों - जब आप अपने कंप्यूटर के साथ इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं तो आपका कंप्यूटर विश्व व्यापी नेटवर्क से जुड़ जाता है। ऐसी हालात में आपके कंप्यूटर में मौजूद विभिन्न साफ्टवेयर अपनी वेबसाइटों से जुड़कर खुद को अपडेट करना चाहते हैं। ऐसे अपडेट की स्थिति में कंपनी को पता चल जाता है कि कहां उसका असली साफ्टवेयर इस्तेमाल हो रहा है और कहां पायरेटेड। असली साफ्टवेयर का इस्तेमाल करने से आपको कोई भी साफ्टवेयर फुल वर्जन में प्राप्त होता है वहीं आप उसको समय समय पर कंपनी की वेबसाइट पर जाकर अपडेट कर सकते हैं। जबकि पाइरेसी वाले साफ्टवेयर को अपडेट करने में मुश्किल आती है। अब जहां विंडो ने अपने एक्सपी और उसके आगे के संस्करणों के असली वर्जन के इस्तेमाल करने की मुहिम चला रखी है वहीं टैली और दूसरी कई कंपनियां भी ऐसा ही कर रही हैं।

फिलहाल इन साफ्वेयर कंपनियों की नजर ऐसे लोगों पर है जो व्यवसायिक यूजर हैं। जैसे बड़े दफ्तरों और बैंकों और दुकानों में कंपनियां चाहती हैं कि असली साफ्टवेयर ही इस्तेमाल हो। आने वाले समय में घरों में निजी उपयोग वाले कंप्यूटरों में भी पाइरेसी के साफ्टवेयर का इस्तेमाल करना मुश्किल हो जाएगा। अगर आप कोई नया ब्रांडेड पीसी खरीदते हैं तो आपको उसके साथ विंडो का ओरिजिनल संस्करण मिलता है साथ ही कुछ साफ्टवेयर भी मिलते हैं। अगर आप साफ्टवेयर पर पैसा लगाने को इच्छुक नहीं हैं तो आपके पास लाइनेक्स और ओपन आफिस जैसे विकल्प मौजूद हैं जो दुनिया भर में फ्री साफ्टवेयर उपलब्ध कराते हैं। इनका इस्तेमाल भी आप अपने पीसी में कर सकते हैं।
-- vidyutp@gmail.com 




Wednesday 24 October 2007

नैनो टेक्नोलाजी यानी जिंदगी हुई आसान

कल्पना कीजिए की कड़कड़ाती ठंड पड़ रही हो और एक आदमी पतला सा शर्ट पहने मस्ती मे घूम रहा हो। ऐसा आने वाले दिनों में संभव है। यह सब कुछ नैनो टेक्नोलाजी के बदौलात संभव है। इसकी बदौलत सिर्फ इलेक्ट्रानिक उपकरण ही नहीं बल्कि कई चीजों को छोटा करके जीवन को आसान बनाया जा सकता है। आजकल वैज्ञानिक हर क्षेत्र में चीजों को छोटा करने की कोशिश में लगे हुए हैं। 

अब हम टीवी के पिक्चर ट्यूब का ही उदाहरण लें। परंपरागत टीवी स्क्रीन पिक्चर ट्यूब के पीछे निकलती उसकी नली के कारण वजनी और बड़े होते हैं। अभी हाल में कुछ टीवी कंपनियों ने उसमें कुछ सुधार कर 30 फीसदी चौड़ाई कम कर दी है। पर टीएफटी स्क्रीन वाले एलसीडी और प्लाज्मा स्क्रीन ने तो टीवी की दुनिया ही बदल कर रख दी है। अब ऐसा टीवी सिर्फ तीन ईंच मोटा ही होता है। आप ऐसे टीवी को सुटकेस में पैक करके कहीं भी ले जा सकते हैं। वहीं अपने घर में आप ऐसे टीवी को कहीं भी दीवार पर स्थापित कर सकते हैं। यानी दीवार में कैलेंडर की तरह टीवी टंगा हुआ दिखाई देगा। ऐसा नैनो टैक्नोलाजी की बदौलत ही संभव हो सका है। ठीक इसी तरह कंप्यूटर का भी सबसे भारी भरकम भाग मानीटर में एलसीडी स्क्रीन के आ जाने के बाद कंप्यूटर का वजन कम हो गया है। अभी एलसीडी स्क्रीन थोड़े महंगे जरूर हैं पर उनकी कीमतें लगातार गिरती जा रही हैं।

अब इस नैनो टेक का कमाल जीवन के हर क्षेत्र में दिखाई देने वाला है। आप कल्पना कर सकते हैं कि कड़कड़ाती ठंग में कोई व्यक्ति सिर्फ एक शर्ट पहने घूम रहा हो। वास्तव में उस शर्ट के उपर थीन फिल्म की ऐसी कोटिंग कर दी जाएगी जो हवा की आवाजाही तो रोकेगा ही साथ ही शरीर को उष्णता भी प्रदान करेगा। फिर शरीर पर भारी भरकरम स्वेटर डालने की कोई जरूरत नहीं रह जाएगी। यानी सरदी में कपड़ों का बोझ कम हो सकेगा। ऐसे शर्टों की दूसरी विशेषताएं भी होंगी। इन पर दाग धब्बे और खरोंचे भी नहीं लग सकेंगी। साथ ही क्रिज की भी कोई समस्या नहीं होगी। आपकी कलाई घड़ी या मोबाइल फोन पर थिन फिल्म की कोटिंग की जा सकती है जो उपकरणों के जीवन को बढ़ाएगा साथ ही उन्हें खरोंच लगने से भी बचाएगा।
नैनो टेक का इस्तेमाल सेना के लिए काफी लाभकारी सिद्ध हो सकता है। सीमा पर पहाड़ी और बरफीली वादियों में सैनिकों को भारी भरकम कीट और कपड़े आदि लेकर रहना पड़ता है। कश्मीर की वादियों रहने वाले फौजियों का कीट 35 किलो का होता है। सेना में इस बात पर भी लगातार शोध चल रहे हैं कि फौजियों के सामानों का वजन कैसे कम किया जाए। अमेरिका के नेशनल साइंस फाउंडेशन को इस बात का भरोसा का है कि 2015 तक बाजार में नैनो टेक्लनोलाजी प्रोडक्ट की बाढ़ आ चुकी होगी। लोग हर तरह की वस्तुओं में छोटी चीजें ढूंढते नजर आएंगे। एक रिपोर्ट के अनुसार ड्रग डिलेवरी सिस्टम में भी इस तकनीक का योगदान होगा। ट्यूमर थेरेपी और कैंसर की दवाओं के निर्माण में भी नैनो टेक्नोलाजी अपना महत्वपूर्ण योगदान करेगी। इससे जहां कम दवाएं लेने से काम चल सकेगा वहीं कई तरह की बीमारियों के इलाज खर्च में भी कमी आने उम्मीद है। यानी नैनो टेक न सिर्फ आपके जीवन को आसान और सुगम बनाएगा बल्कि कई तरह के खर्चों को कम भी कर सकता है।
-माधवी रंजना madhavi.ranjana@gmail.com



Monday 22 October 2007

जल्द आम लोगों के पहुंच में होगा इंटरनेट

वह दिन अब दूर नहीं जबकि इंटरनेट आम लोगों के बीच लोकप्रिय होता हुआ दिखाई देगा। कुछ साल पहले जब भारत में इंटरनेट आया तब तेजी से वेबसाइटों का पंजीकरण होने लगामीडिया सहित अलग अलग क्षेत्रों में कारोबार होने लगा। पर जल्द ही यह इंटनेट बूम टांय टायं फिस्स हो गया। इसका प्रमुख कारण यह था कि इंटरनेट तब देश में ज्यादा लोगों की पहुंच में नहीं था इसलिए इस माध्यम से संदेश भेजने वाले लोगों को ज्यादा सफलता नहीं मिली। पर अब स्थितियां तेजी से बदल रही हैं। अब देश में कंप्यूटरों की संख्या तेजी से बढ़ रही है वहीं इंटरनेट के वेबसाइटों की लोकप्रियता में भी इजाफा हो रहा है। अब गली गली में इंटरनेट ढाबा और साइबर कैफे खुल गए हैं। कई चीजों के लिए तो इंटरनेट की वेबसाइटें सबसे लोकप्रिय माध्यम साबित हो रही हैं। अब किसी भी परीक्षा का रिजल्ट जारी करना हो तो इंटरनेट सबसे मुफीद साधन है। क्योंकि किसी भी माध्यम से लाखों लोगों के रिजल्ट छाप कर भेजना संभव नहीं है। 

अखबार में छपवाना महंगा सौदा है वहीं गजट छाप कर हर जिले में भेजने में भी लंबा समय और खर्च लग जाता है। वहीं कुछ रुपए खर्च करके अब लोग कहीं भी रिजल्ट देख लेते हैं। इसी तरह किसी भी काम के लिए ठेके (टेंडरभी अब आनलाइन निकाले जा रहे हैं। इससे ठेकेदार या संबंधित लोग नियम व शर्ते कहीं भी पढ़ लेते हैं। 

शेयर कारोबार, म्युचुअल फंड और बैंकिंग, क्रेडिट कार्ड आदि के लिए भी अब इंटरनेट वरदान बन गया है। आप जहां आनलाइन शेयर ट्रे़डिंग कर सकते हैं वहीं म्युचुअल फंडों के नव (नेट एसेट वैल्यू) रोज देख सकते हैं। आप जिन सेवाओं के भी उपभोक्ता हैं उसकी वेबसाइट पर लागिन करके अपने खाते के स्टेटस को आनलाइन देख सकते हैं। अब यह सब कुछ बड़े ही कम खर्च पर उपलब्ध है।


खासकर ब्राड बैंड के सस्ता और लोकप्रिय हो जाने से देश में इंटरनेट के उपभोक्ताओं को संख्या बड़ी तेजी से बढ़ रही है। अब स्कूली विद्यार्थी इंटरनेट का इस्तेमाल करके अपने ज्ञान को बढ़ा रहे हैं। किसी भी प्रोडक्ट के बारे में सूचना प्राप्त करने के लिए इंटरनेट एक गेटवे का काम कर रहा है। कुछ साल पहले हम जिन बातों को कल्पना में कहा करते थे वे अब हकीकत बनते जा रहे हैं।
आज आप भारतीय रेल की वेबसाइट को ही देखें रोज लाखों को लोग उसे हिट करके ट्रेनों की आवाजाही के बारे में पता करते हैं साथ ही आनलाइन टिकट भी बुक करवाते हैं। वहीं किसी भी एयरलाइन के फ्लाइट शिड्यूल और सीटों की उपलब्धता और टिकट बुकिंग आदि सब कुछ इंटरनेट के माध्यम से करवाया जा सकता है। जिस सूचना को पाने के लिए अथवा जिस सुविधा का प्राप्त करने के लिए आपको पहले 100 से 200 रुपए खर्च करने पड़ रहे थे वही अब आपको 10 से 20 रुपए के खर्च करने पर ही उपलब्ध हो पा रहा है। इस प्रकार अब सही मायने में लोगों को इंटरनेट का लाभ मिलना आरंभ हो गया। 

इंटरनेट से आनलाइन कारोबार को भी बढ़ावा मिलने लगा है। अगर आन लाइन कारोबार नहीं भी होता है तो भी लोग किसी भी प्रोडक्ट अथवा सेवा के बारे में इंटरनेट से जानकारी प्राप्त करते हैं। इस प्रकार यह किसी प्रोडक्ट के विज्ञापन का अच्छा काम कर रहा है। मान लिजिए आपको किसी बैंक में खाता खोलना है तो आप विभिन्न बैंकों की वेबसाइटों पर जाकर उनके द्वारा दी जारही सुविधाओं का तुलनात्मक अध्ययन कर सकते हैं। इसके बाद आपको जहां अच्छा लगे वहां खाता खोलें। ऐसा ही किसी अन्य उत्पाद के बारे में भी लागू होता है।
- विद्युत प्रकाश मौर्य


Saturday 20 October 2007

मोबाइल में समाता जा रहा है कंप्यूटर

जी हां अब मोबाइल में कंप्यूटर के कन्वरजेंस का दौर है। बाजार में ऐसे मोबाइल उपलब्ध हो रहे हैं जिनमें इंटरनेट यूज करने जैसी सुविधा उपलब्ध है। यानी ऐसे मोबाइल जिनमें कंप्यूटर जैसी कई सुविधाएं उपलब्ध हैं। इस तरह के मोबाइल हैंडसेटों की कीमत 8500 से लेकर 25 हजार के बीच है।

इस क्रम में नोकिया ने एन सीरिज के मोबाइल पेश किए हैं। ये फिलहाल जीएसएम तकनीक पर उपलब्ध हैं। इनमें याहू गो डाट काम इंस्टाल कर सकते हैं। इसके बाद याहू मैसेंजर, याहू मेल, याहू सर्च, याहू फोटोज, याहू एड्रेस बुक, कैलेंडर, रिंगटोन्स, गेम्स, लोगोज, वालपेपर्स, टास्क आदि विकल्पों का अपने मोबाइल फोन पर ही इस्तेमाल कर सकते हैं। फिलहाल नोकिया एन सीरिज के मोबाइल फोन भारत मोबाइल सेवा प्रदाता हच के साथ उपलब्ध है। पर उम्मीद है कि शीघ्र अन्य कंपनियां भी इस तरह की सेवा प्रदान करेंगी। कंपनी ने पोस्ट पेड उपभोक्ताओं के लिए यह सेवा फ्री रखी है जबकि प्रीपेड वालों के लिए 49 रुपए किराए की राशि तय की गई है।

मोटोरोला ने भी अपने मोटोरेजर रेंज के मोबाइल हैंडसेट पेश किए हैं। ये सीडीएमए और जीएसएम दोनों ही तकनीक पर उपलब्ध हैं। इसमें भी जीपीआरएस के साथ इंटरनेट उपयोग करने की सुविधा उपलब्ध है। इसके अलावे भी अन्य सभी मोबाइल बनाने वाली कंपनियां प्रीमियम रेंज में अपने ग्राहकों के लिए ऐसे महंगे मोबाइल लेकर आई हैं जिनमें कंप्यूटर अप्लिकेशन की सुविधा मौजूद है। आप कंप्यूटर की सारी सुविधाएं अपने मोबाइल में इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं पर काफी हद तक कंप्यूटर की सुविधाएं मौजूद हैं। जैसे जो लोग याहू मेल के अलावा कुछ और इस्तेमाल करते हैं उनके लिए यह कुछ खास फायदे का सौदा नहीं हो सकता है। आप यात्रा करते हुए भी सर्च इंजन का इस्तेमाल कर सकते हैं।
वहीं अब कई ईमेल सेवा प्रदाता किसी भी ईमेल एड्रेस से किसी भी मोबाइल पर एसएमएस भेजने की सुविधा मुफ्त प्रदान कर रहे हैं। वहीं कुछ वेबसाइटों ने इस सुविधा को पेड कर दिया है। यानी यह मोबाइल और कंप्यूटर के बीच धीरे-धीरे निकटता आने का दौर है।

आने वाले दौर में ऐसा मोबाइल फोन भी आएगा जिसमें आप पूरी तरह से इंटरनेट एक्सेस कर सकते हैं। आप इस पर टीवी भी देख सकेंगे साथ ही कंप्यूटर भी एक्सेस कर सकते हैं। हां आपको एक ही समस्या आएगी यह सब कुछ आपको एक छोटे से स्क्रीन में ही करना पड़ेगा। यानी कंप्यूटर टीवी की तरह बड़े स्क्रीन पर यह सब कुछ नहीं देख सकते। कुछ लोगों को इसमें असुविधा जरूर हो सकती है। पर जिन लोगों को इसमें कोई दिक्कत नहीं है उनके लिए तो ठीक है। पूरी दुनिया की सभी प्रमुख मोबाइल फोन बनाने वाली कंपनियां इन दिनों बाजार में जो फोन पेश कर रही हैं उनमें दो बातें ही प्रमुख हैं। पहला उसमें उत्तम क्वालिटी के कैमरे जोड़ना। यानी ज्यादा मेगा पिक्सेल वाले कैमरे जो बेहतर क्वालिटी की तस्वीरें खींचने की सुविधा प्रदान कर सके। इसके बाद उसमें कंप्यूटर अप्लिकेशन की आधुनिक सुविधाएं जोड़ना। जो लोग मोबाइल फोन पर बात करने के अलावा भी काफी कुछ पाना चाहते हैं उनके लिए यह सब कुछ बहुत अच्छा दीख सकता है। यानी आपका मोबाइल फोन धीरे-धीरे तब्दील हो रहा है कंप्यूटर में तो आपका कंप्यूटर बदल रहा है टेलीविजन में। कंप्यूटर में लगाएए टीवी ट्यूनर कार्ड और देखिए इसमें टीवी के सारे चैनल।
-माधवी रंजना



Thursday 18 October 2007

नौकरी के साथ डिग्री भी

आप कोई नौकरी कर रहे हैं। इसके साथ ही आपको इससे मिलती जुलती डिग्री भी मिल जाए तो आपके लिए तो सोने में सुहागा जैसी बात हो सकती है। सोनिया ने इतिहास जैसे विषय में बीए करने के बाद काल सेंटर में नौकरी करने का निर्णय लिया तो उसके पापा को यह बात नागवार गुजरी। पर दो साल की नौकरी के बाद उसके पास मैनजमेंट का डिप्लोमा था और अब वह बाजार में बेहतर बारगेन करने की हालात में थी। यानी काल सेंटर की नौकरी के साथ उसने ठीकठाक रुपया तो कमाया ही इसके साथ ही वह दो साल में अपने फील्ड में एक और डिग्री ले चुकी थी। इसके कारण वह किसी अन्य संस्थान में इससे बड़ी नौकरी प्राप्त कर सकती है।

सीमा ने बीए करने के बाद एक स्कूल में शिक्षक की नौकरी प्राप्त कर ली। पर जल्द ही उसे लग गया कि शिक्षक की नौकरी में आगे बढ़ने के लिए डिग्री जरूरी है। उसने पढ़ाने के साथ ही एनटीटी (नर्सरी टीचर ट्रेनिंग ) का कोर्स किया। जब दो साल गुजर गए तब उसे पता चला कि वह अपने अनुभव के आधार पर प्राइवेट से बीएड भी कर सकती है। अब उसने अगले दो साल में बीएड कर लिया। इसके बाद अपने ही स्कूल के सीनियर विंग में वह शिक्षिका हो गई। नौकरी में उसे बेहतर प्रोमोशन मिला। साथ ही उसे बेरोजगारी का मुंह भी नहीं देखना पड़ा। इसी तरह हर प्रोफेशन में मिलती जुलती डिग्री प्राप्त की जा सकती है। बशर्ते आपके अंदर आगे पढ़ते रहने का हौसला होना चाहिए।


खास कर कई प्रतिष्ठित काल सेंटर में नौकरी के साथ डेस्कटाप पर ही एमबीए करने की सुविधा प्रदान की जा रही है। इसमें आप उचित फीस चुका कर नौकरी बाद कुछ समय देकर प्रबंधन में डिप्लोमा कर सकते हैं। एमबीए की डिग्री हासिल कर सकते हैं। कई काल सेंटरों में काम करने वाले युवा इस सुविधा का लाभ उठा रहे हैं। कई उच्च पदों पर आसीन लोगों के कैरियर रिकार्ड का अगर आप सूक्ष्मता से अध्ययन करें तो पाएंगे कि उन्होंने एक छोटी सी नौकरी से शुरुआत की। पर नौकरी के साथ पढ़ाई जारी रखते हुए उन्होंने उच्च शिक्षा के क्षेत्र में कदम रखे और इसका उन्हें लाभ मिला।

सिर्फ छोटी -मोटी नौकरियों में ही नहीं बल्कि आईएएस उत्तीर्ण करने वाले लोग भी अपनी नौकरी के साथ पढ़ाई करते हैं। इनमें से कई लोग तो स्टडी लीव लेकर पढ़ाई करने भी जाते हैं। खास कर जो लोग शिक्षा के क्षेत्र में हैं उन्हें पढ़ने के लिए पर्याप्त समय मिलता है। पढ़ते रहना उनके कैरियर एडवांसमेंट का हिस्सा होता है। वहीं वे अपने छात्रों को बेहतर ज्ञान दे सकते हैं अगर वे अपने विषय में लगातार अध्ययन जारी रखते हैं। जैसे कोई व्यक्ति एमए पास करके किसी कालेज में लेक्चरर के रुप में नौकरी प्राप्त कर लेता है। अगर वह आगे पीएचडी कर ले और कुछ शोध पत्र लिखे तभी वह रीडर और प्रोफेसर आदि के लिए पात्र बन सकता है। अब तो प्रिंसिपल बनने के लिए सिर्फ अनुभव ही नहीं बल्कि पीएचडी ती डिग्री अनिवार्य कर दी गई है। ठीक इसी तरह दूसरे पेशे के लोगों को भी अपनी पेशेगत पढ़ाई जारी रखनी चाहिए। जैसे अगर कोई बैंक में है तो इंडियन इंस्टीट्यूट आफ बैंकर्स से सीएआईआईबी का पाठ्यक्रम कर सकता है। इससे उसे अपने विभाग में इन्क्रीमेंट का लाभ मिलता है। यह किसी व्यक्ति की क्षमता पर निर्भर करता है कि वह अपनी पढ़ाई को लेकर कितना जागरुक है।
 -विद्युत प्रकाश

Wednesday 17 October 2007

समझदारी से करें क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल


तेज दौड़ती भागती जिंदगी के बीच क्रेडिट कार्ड बड़े काम की चीज है। क्रेडिट कार्ड को आम भाषा में कहें तो यह आपकी उधार की खरीददारी का पावर है। पर इसका सही इस्तेमाल जरूरी है। अगर क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल समझदारी से किया जाए तो काम की चीज है। अगर थोड़ी लापरवाही हुई तो जी का जंजाल भी है। आमतौर पर जब आप क्रेडिट कार्ड बनवाते हैं तो कंपनियां आपकी एक महीने की आमदनी के तीन गुना या उससे ज्यादा भी क्रेडिट कार्ड की सीमा बनाती हैं। अगर आपके पास एक बैंक का क्रेडिट कार्ड है तो दूसरे कई बैंक वाले भी आपका कार्ड बनाने को उतावले रहते हैं। पर कई कार्डों के भंवर फंस कर कई बार लोग अपने उपर ढेर सारा उधार कर लेते हैं। उसके बाद इस उधार को चुकाने के लिए मोटी राशि ब्याज के रुप में देते रहते हैं। इन सबसे बचने के लिए जरूरी है कि आप कुछ बातों पर ध्यान दें तो कार्ड आपके लिए सुविधाजनक हो सकता है।

अपनी लिमिट में रहें - भले ही आपके क्रेडिट कार्ड की सीमा कितनी भी ज्यादा हो पर हर महीने खरीददारी उतनी ही करें जिसे आप अगले माह में चुका सकें। इससे आपको क्रेडिट कार्ड कंपनी के भारी भरकम ब्याज चुकाने से राहत मिल सकती है। आमतौर पर क्रेडिट कार्ड आपकी परचेजिंग पावर को बढ़ा देता है। ऐसे में आप कई बार ऐसी खरीददारी भी कर लेते हैं जिसकी आपको जरूरत नहीं होती। पर बाद में आपको उसका बिल तो भरना ही पड़ता है। इसलिए कार्ड का इस्तेमाल करने से पहले एक बार सोच लें कि जो चीजें आप खरीद रहे हैं उसकी आपको जरूरत है भी या नहीं। यानी क्रेडिट कार्ड के जाल में फंस कर फिजुलखर्ची को बढ़ावा न दें। 

क्रेडिट साइकिल का ध्यान रखें- हर क्रेडिट कार्ड कंपनी आमतौर पर 45 से 50 दिनों का फ्री क्रेडिट लिमिट देती है। इसको अच्छी तरह से समझना जरूरी है। दरअसल हर क्रेडिट कार्ड कंपनी यह सब कुछ एक साइकिल के तहत करती है। जैसे किसी बैंक की साइकिल 10 तारीख से 30 तारीख तक है। इसका मतलब है कि 11 तारीख को की गई खरीददारी का भुगतान अगर आपक अगले महीने की 30 तारीख तक कर देते हैं तो आपको कोई ब्याज या फाइन नहीं देना होगा। पर जैसे आप 11 के बाद आगे की तारीखों में बढ़ते हैं तो आपकी 50 दिनों की लिमिट कम होती जाती है। जैसे आपने 20 तारीख को खरीददारी की तो आपको 40 दिन की ही फ्री लिमिट मिल रही है। अगर आप 9 तारीख को खरीददारी करते हैं तो महज 21 दिन की लिमिट मिल रही है। इसलिए अगर क्रेडिट लिमिट साइकिल अवधि नजदीक हो तो कोई बड़ी खरीददारी नहीं करने में समझदारी है। जैसे आपको एक फ्रीज खऱीदना है। आप अगर 10 तारीख को यह फ्रीज खरीद लेते हैं तो उसका भुगतान उसी महीने की 30 तारीख को यानी 20 दिन बाद ही करना होगा। अगर आप एक दिन रूक जाते हैं तो आपको 50 दिनों का फ्री पीरियड मिल जाता है। 

इसके के फायदे भी - अगर देखा जाए तो यह 50 दिन का फ्री पिरियड बहुत लाभ का है। मान लिजिए आप 10 हजार रूपए का कोई सामान खरीदते हैं और आपको उसके पैसे 50 दिन बाद देने हैं तो ये 50 दिन आप बिना ब्याज चुकाए ही सेवाओं का इस्तेमाल कर रहे हैं। इसलिए हर महंगी चीज जो आप किसी ब्रांडेड स्टोर से खरीदते हैं आमतौर पर क्रेडिट कार्ड से ही खरीदना चाहिए। सिर्फ उन छोटे दुकानों पर जहां क्रेडिट कार्ड लागू नहीं होता वहां आप नकद खरीदें बाकी सभी स्थानों पर कार्ड का ही इस्तेमाल करें तो अच्छा। 

सब कुछ खरीदें कार्ड से - जब आप क्रेडिट कार्ड से कोई सामान खऱीदते हैं तो इस खरीददारी पर कुछ प्वाइंट्स मिलते हैं। इन प्वाइंट्स को आप बाद में कैश करा सकते हैं या फिर इसके बदले में कोई गिफ्ट हैंपर प्राप्त कर सकते हैं। इसलिए सभी बड़ी खरीददारियां आप कार्ड से ही करें तो अच्छा है। हां अगर दुकानदार नकद खऱीदे जाने पर किसी तरह की डिस्काउंट देने की बात करता हो तो आप इस पर बारगेन कर सकते हैं।
दो कार्ड रखें-  क्रेडिट कार्ड साइकिल का बेहतर इस्तेमाल करने के लिए आप दो कंपनियों का कार्ड रख सकते हैं। यह ध्यान रखें की दोनों की खरीद की साइकिल अलग अलग हो। जब खरीददारी करने निकलें तो इस बात का ध्यान रखें कि किस कंपनी का साइकिल देर से खत्म होने वाला है। फिर उसी कंपनी के कार्ड का उस दिन इस्तेमाल करें। 

बिल पर रखें नजर - क्रेडिट कार्ड की हर चार्ज स्लिप को संभाल कर रखें। जब कार्ड का बिल आ जाए तो अपनी खरीददारी से उसका मिलान कर लें। यह देख लें कि बैंक ने सही बिल भेजा है और आपके पिछले भुगतान को एडजस्ट कर दिया गया है। कई बार बैंक बिल में गड़बड़ी कर देते हैं, इसलिए इस मामले में सावधानी जरूरी है।
- vidyutp@gmail.com

(CREDIT CARD, BANK, BILLING CYCLE ) 

Monday 15 October 2007

यादें आईआईएमसी के दिनोें की

नई दिल्ली 23 अप्रैल 1996। इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में आईआईएमसी के दीक्षांत समारोह के बाद का समूह चित्र। बीच में हमारे गुरू डॉक्टर रामजीलाल जांगिड और हेमंत जोशी भी मौजूद हैं।

चित्र में - उपर की पंक्ति में - नलिन कुमार, राजीव रंजन झा, संतोष कुमार दूबे, नीरज कुमार, कृष्णेंदू कुमार,प्रमोद कुमार,नलिनी रंजन, योगेश कुमार, बिनय सौरभ, प्रेम प्रकाश, सुनील कुमार झा, अजय नंदन, सुशील  बहुगुणा, शादाब, राकेश चौहान
दूसरी पंक्ति में - रश्मि अस्थाना, सुशीला कुमारी, सीमा पठानिया, डा. जांगिड, प्रो. हेमंत जोशी, मधु पासवान, रश्मि किरण, मधु कुरील
नीचे की पंक्ति में - प्रेम प्रकाश, मीणा, इरशादुल हक, प्रमोद कुमार राउत, उमा शंकर सिंह, भूपेश पंत, मोहनीश कुमार, राजीव गुप्ता और विद्युत प्रकाश मौर्य। 

Sunday 14 October 2007

जीवन वृत - विद्युत प्रकाश मौर्य

जीवन वृत

विद्युत प्रकाश मौर्य
जन्म - 17 दिसंबर , सोहवलिया, रोहतास (बिहार)

परिवार-
पिता - श्री कन्हैया सिंह, कृषि स्नातक (रांची एग्रीतल्चर कालेज रांची) वैशाली क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक ( स्पांसर - सेंट्रल बैंक आफ इंडिया) में शाखा प्रबंधक से अवकाश प्राप्त )
दादा जी - स्व. प्रयाग सिंह, परदादा- स्व. जगदेव सिंह
( हमारे पुरखे भोजपुर जिले के गांव नाढ़ी से पाही ( माइग्रेशन) करके सोहवलिया आए) दादा जी किसान थे। पर दूरदर्शी और भ्रमणशील। सोहवलिया मुगलसराय-गया रेलवे लाइन पर कुदरा रेलवे स्टेशन (सासाराम से 20 किलोमीटर) से 13 किलोमीटर दूर एक पिछड़ा हुआ गांव है।

मेरी पढ़ाई
स्कूल - दस साल दस स्कूलों में- जिला स्कूल मुजफ्फरपुर ( सातवीं आठवीं) और रामअवतार सहाय उच्च विद्यालय, जन्दाहा (वैशाली बिहार) से हाई स्कूल- 1987 प्रथम श्रेणी, स्कूल में भी प्रथम स्थान।
इंटर - आईएससी ( जीव विज्ञान)- लंगट सिंह कालेज मुजफ्फरपुर -1987-89 प्रथम श्रेणी
स्नातक (इतिहास प्रतिष्ठा) - काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी, 1990-1993 राजनीति शास्त्र, समाज शास्त्र, हिंदी, अंग्रेजी, प्रथम श्रेणी
एम ए इतिहास - 1993-1995 सामाजिक विज्ञान संकाय, काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी।

प्रोफेशनल शिक्षा -
पीजी डिप्लोमा पत्रकारिता ( हिंदी) - भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली सत्र -1995-96
मास्टर इन मास कम्यूनिकेशन 1999-2000, गुरू जांभेश्वर विश्वविद्यालय, हिसार।
यूजीसी द्वारा नेट परीक्षा उत्तीर्ण- 1999 (पत्रकारिता एवं जन संचार)
प्रमाण पत्र फोटोग्राफी - काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी

अनुभव
1993 से लगातार लेखन, अब 1000 से ज्यादा लेख व फीचर विभिन्न समाचार पत्र व पत्रिकाओं में प्रकाशित। लेखन की शुरूआत बचपन में समाचार पत्रों में संपादक के नाम पत्र और कविताओं से की।
-टेलीविजन, फिल्म, मनोरंजन, दूर संचार, आईटी, जैसे विषयों में रुचि, व्यंग्य और संस्मरण लेखन, कविताएं और कहानियां भी।
-कॉलेज विश्वविद्यालय में पत्रकारिता विषय में अध्यापन।
रुचियां 
घूमना, देश के कई राज्यों के कई इलाकों में भ्रमण, दोस्त बनाना और एक हद तक निभाना। पत्रमित्रता।

मेरे कार्य स्थल
हिंदी प्रचारक संस्थान-( 
1995-96 ) बेरी जी की जीवनी प्रकाशकनामा का संपादन 1995-96 , पुस्तक को पत्रकारिता के लिए सूचना प्रसारण मंत्रालय से भारतेंदु हरिश्चंद्र अवार्ड मिला।

कुबेर टाइम्स- ( 1996 -1999) तीन साल फीचर डेस्क पर, फिल्म टीवी और कारपोरेट रिपोर्टिंग , श्री घनश्याम पंकज, श्री माधव कांत मिश्र, श्री टिल्लन रिछारिया और श्री ओम गुप्ता के साथ कार्य।
सी वोटर ( - (1999)  ( श्री यशवंत देशमुख के साथ) बिहार में रिसर्च को-आर्डिनेटर ( 13वी लोकसभा चुनाव में)
अमर उजाला- (1999-2001) कनिष्ठ उप संपादक, रिपोर्टिंग व डेस्क पर कार्य जालंधर में दो साल। शिक्षा और कारपोरेट बिट पर रिपोर्टिंग  ( श्री रामेश्वर पांडे के साथ )
दैनिक जागरण- (  2001-2005) जालंधर व लुधियाना- उप संपादक 2001-2005, लुधियाना में जनरल डेस्क प्रभारी। ( श्री विनोद शील के साथ )
दैनिक भास्कर-(अप्रैल 2005 से जनवरी 2007 )पानीपत, वरिष्ठ उप संपादक, सेंट्रल डेस्क पर।
( श्री मुकेश भूषण, राजेंद्र तिवारी और दिनेश मिश्रा के साथ कार्य )
ईटीवी ( जनवरी 2007 सितंबर 2007 )
लाइव इंडिया ( सितंबर  2007- अप्रैल 2008)
महुआ टीवी ( अप्रैल 2008 से जुलाई 2011)
यूपी न्यूज  सितंबर 2011 से मार्च 2012)
हिन्दुस्तान - ( अप्रैल 2012 से ....) दिल्ली
जिनसे सीखने का अवसर मिला  - प्रख्यात गांधीवादी एस एन सुब्बराव (भाई जी)
प्रकाश कृष्ण चंद्र बेरी, हिंदी प्रचारक संस्थान
यशपाल मित्तल पठानकोट,
पीवी राजगोपाल, गांधी शांति प्रतिष्ठान
सुंदरलाल बहुगुणा (पर्यावरणविद)
डा. रामजीलाल जांगिड, पाठ्यक्रम निदेशक, आईआईएमसी
सुधाकर पांडे, नागरी प्रचारणी सभा
धर्मेद्र कुशवाहा, अनंत कुशवाहा, प्रताप सोमवंशी.

मेरे संपादक-
1. माधवकांत मिश्र, कुबेर टाइम्स
2. टिल्लन रीछारिया, कुबेर टाइम्स
3. चंद्र शर्मा, कुबेर टाइम्स
4. ओम गुप्ता, कुबेर टाइम्स
5. घनश्याम पंकज, कुबेर टाइम्स
6. रामेश्वर पांडे, अमर उजाला, जालंधर
7. कमलेश रघुवंशी, दैनिक जागरण जालंधर
8. विनोद शील, दैनिक जागरण, लुधियाना
9. निशिकान्त ठाकुर, दैनिक जागरण
10. मुकेश भूषण, दैनिक भास्कर, पानीपत
11. राजेंद्र तिवारी, दैनिक भास्कर पानीपत।
12.बाबू लाल शर्मा, दैनिक भास्कर।
13. दिनेश मिश्र, दैनिक भास्कर
14. योगेश जोशी, ईटीवी, एमपी चैनल
15. उदय चंद्र सिंह, लाइव इंडिया
16. अंशुमान त्रिपाठी, महुआ
17. विवेक अवस्थी, यूपी न्यूज
18. प्रताप सोमवंशी, हिन्दुस्तान

संस्थाएं जिनसे जुड़ा हूं- 
1. इंडियन हिस्ट्री कांग्रेस-
2. लाइफ मेंबर, यूथ होस्टल एशोसिएशन आफ इंडिया http://www.yhaindia.org/
3. राष्ट्रीय युवा योजना (एनवाईपी) http://www.nypindia.org/

ई मेल- vidyutp@gmail.com  

Saturday 13 October 2007

बीमा कंपनियों का कारोबार बढ़ा

बीमा कई निजी क्षेत्र की बीमा कंपनियों के आने के बाद भी जीवन बीमा का कारोबार तेजी से बढ़ रहा है। सरकारी क्षेत्र की बीमा कंपनी भारतीय जीवन बीमा निगम को निजी क्षेत्र की कई कंपनियों से चुनौती मिल रही है। इसके बावजूद एलआईसी का कारोबार बढ़ रहा है। कुछ साल पहले यह आशंका जताई जा रही थी कि निजी क्षेत्र की बीमा कंपनियों के आने के बाद सरकारी एलआईसी के कारोबार में कमी आ सकती है। पर ऐसा नहीं हुआ। कुल बीमा कारोबार में जरूर निजी क्षेत्र की कंपनियों ने अपनी हिस्सेदारी बढ़ा ली है। पर भारतीय जीवन बीमा निगम का कारोबार भी हर साल बढ़ रहा है।

लोगों में आई जागरुकता - आज बीमा सेक्टर में कुल 13 कंपनियां हैं जो जीवन बीमा की पालिसियां बेच रही हैं। पर पिछले कुछ सालो में लोगो में आई जागरुकता के कारण सभी कंपनियों का कारोबार बढ़ा है। अब लोग बीमा सिर्फ सुरक्षा के लिए ही नहीं बल्कि बचत के लिहाज से भी करवा रहे हैं। देश में ऐसे एक लाख लोग हैं जिन्होंने एक करोड़ रुपए से ज्यादा की बीमा पालिसी खरीदी है। वहीं एक करोड़ से ज्यादा की बीमा पालिसी खरीदने वालों की संख्या हर साल पांच हजार या उससे ज्यादा है। अपेक्षाकृत कम आय वर्ग के लोगों का रुझान भी अब बीमा के क्षेत्र में बढ़ा है। लोग अपने परिवार के सभी सदस्यों के नाम अलग अलग बीमा करवाने में भी विश्वास रखने लगे हैं।

कई कंपनियों में प्रतिस्पर्धा- बीमा के क्षेत्र में कई कंपनियां आ जाने के कारण कंपनियों के बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ी है। अब कंपनियों के एजेंट घर घर जाने लगे है। वे अपनी बीमा कंपनी द्वारा दिए जा रहे प्लान को बेहतर ढंग से समझाने की कोशिश करते हैं। आज हर बीमा कंपनी के पास आपकी जरूरतों के हिसाब से अलग अलग तरह का प्लान है। कामकाजी महिलाओं के लिए , बच्चों के लिए या ऐसे लोग जिनकी आमदनी अनियमित अलग अलग तरह के प्लान डिजाइन किए गए हैं। कुछ कंपनियों ने यूनिट लिंक्ड बीमा पालिसियां पेश की हैं जिसके तहत आपका बीमा मे जमा कराया हुआ रुपया शेयर बाजार में जाकर तेजी से बढ़ता हुआ दिखाई देता है।
अगर हम सिर्फ भारतीय जीवन बीमा निगम को ही देखें जो कि सरकारी कंपनी है तो हम यह पाएंगे कि भले ही बाजार में उसका कुल शेयर घट रहा हो फिर भी उसका कारोबार बढ़ रहा है। पिछले साल जहां उसने कुल 2.39 करोड़ पालिसियां बेचीं थीं वहीं 2005-06 वित्तीय वर्ष में उसने कुल 3.17 करोड़ पालिसियां बेचीं। यानी बाजार में कई निजी क्षेत्र के खिलाड़ी आने के बाद भी सरकारी कंपनी की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ा है। इसका बड़ा कारण है निजी क्षेत्र की कंपनियां जहां अभी शहरी क्षेत्र में ही सिमटी हुई हैं वहीं एलआईसी का नेटवर्क गांव गांव तक पहुंच चुका है। इसके साथ ही एलआईसी ने अपने देश भर के दफ्तरों को नेटवर्क से जोड़ दिया है। अब आप पालिसी कहीं भी जमा कर सकते हैं।
निजी क्षेत्र में आईसीआईसीआई प्रू और बिरला सनलाइफ अच्छा कारोबार कर रहे हैं। वहीं एसबीआई लाइफ, मैक्स न्यूयार्क, टाटा एआईजी, अवीवा, चोलामंडलम, एचडीएफसी स्डैंटर्ड लाइफ भी तेजी से अपना कारोबार बढ़ा रहे हैं। पर इनकी नजर ज्यादातर बड़े ग्राहकों पर है। अब कई बैंक भी कारपोरेट एजेंट बन कर बीमा के कारोबार मे घुस गए हैं।

 -विद्युत प्रकाश vidyutp@gmail.com

Friday 12 October 2007

बीमा से भी होती है बचत

जब आप बीमा करवाते हैं तो यह समझते हैं कि चलो जीवन को सुरक्षित कर लिया। पर बीमा करनावाने का मतलब सिर्फ जीवन के जोखिम से सुरक्षा ही नहीं है बल्कि आप इसके द्वारा भी रुपयों की बचत कर सकते हैं। इसलिए हर थोड़ी से आय वाले व्यक्ति को भी अपना बीमा जरूर करवाना चाहिए।

 मान लिजिए आपने 25 साल की आयु में एक बीमा करवा लिया तो आप 10 साल बाद पाएंगे कि आपने बहुत बड़ी राशि बचत कर ली है। वास्तव में बीमा के रुप में बचत की जाने वाली राशि अनिवार्य बचत के रुप में हर तिमाही, छमाही या सालाना किश्त के रुप में जमा होती जाती है। इसका फायदा आपको कई सालों बाद जाकर दिखाई देता है।

कम उम्र में करें प्रवेश - आमतौर पर लोग बीमा आयकर बचाने के लिए ही करवाते हैं। यह सही है कि बीमा आयकर बचाने का अच्छा साधन है। पर जो लोग आयकर की सीमा में नहीं आते हैं उन्हें भी बीमा करवा लेना चाहिए। अगर आप कोई भी बीमा पालिसी जितनी छोटी उम्र में खरीदते हैं उसमें आपको प्रीमियम की राशि भी कम देनी पड़ती है। साथ ही जब आप आयकर की सीमा में आएंगे आप अपने बीमा में की गई सालाना बचत पर आयकर में छूट का लाभ ले सकते हैं।


नौनिहालों का बीमा कराएं- अगर आपके घर किसी नई संतान का आगमन हो तो उसके नाम भी बीमा जरूर कराएं। अगर आप उसके जन्म के साल से ही बचत की शुरूआत कर देते हैं तो 20 साल की उम्र के होने पर एक अच्छी खासी राशि जमा हो जाती है। जो बेटे के कैरियर संवारने में या बेटी की शादी में मददगार हो सकता है। 


बचत का अच्छा विकल्प -आजकल बाजार में ऐसी बीमा पालिसियां भी मौजूद हैं जो बीमा के साथ ही बचत करने का भी अच्छा विकल्प प्रदान करती हैं। इसलिए कोई भी बीमा कराने से पहले अलग अलग कंपनियों द्वारी दी जा रही बीमा पालिसियों का अच्छी तरह अध्ययन कर लें। फिर आप देखें की कोई नसी पालिसी आपके काम की है। जैसे कुछ पालिसियां म्यूच्यूल फंड के बाजार से लिंक्ड होती हैं। उनमें आपके रुपए तेजी से बढ़ते हैं। यानी बीमा के साथ अच्छा रिटर्न भी।

अगर आपके पास किसी साल निवेश करने को अतिरिक्त पैसा है तो आप अपनी बीमा पालिसी में ही टाप अप कर सकते हैं। इसके लिए किसी और फंड में जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। बाजार में आजकल जीवन बीमा निगम के अलावा एक दर्जन निजी बीमा कंपनियों के भी विकल्प मौजूद है। कोई भी बीमा करवाने से पहले कंपनियों द्वारा दिए जाने वाले आफरों का अच्छी तरह अध्ययन कर लें। इससे आपको कई तरह के लाभ हो सकते हैं। हर बीमा में एक फ्री लुक पीरियड भी होता है। अगर आपको बीमा की शर्तें मंजूर नहीं हैं तो आप अपना बीमा रद्द करवा कर पैसे वापस भी ले सकते हैं।
 


-         विद्युत प्रकाश मौर्य   vidyutp@gmail.com

( BIMA, LIC, SAVING, BANK  )