Sunday 28 October 2018

भारतीय रेल में 200 किलोमीटर प्रतिघंटे रफ्तार का लोकोमोटिव


सेमी हाई स्पीड ट्रेन चलाने की दिशा में कदम आगे बढ़ते हुए रेलवे ने 200 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार पर दौड़ने वाला पहला एयरोडायनामिक लोकोमोटिव को बना लिया है। ऐसा पहला इंजन भोपाल शताब्दी एक्प्रेस में लगाया जाएगा।

 2014 में डब्ल्यूएपी-5 यात्री इंजन की रफ्तार 200 किलोमीटर प्रतिघंटा बढ़ाने काम चितरंजन लोकोमोटिव वकर्स ने शुरू किया था।
2000 से बन रहे इस लोकोमोटिव में तकनीकी सुधार कर इसकी गति बढ़ाई गई है।
05 लोकोमोटिव को 200 किलोमीटर तक स्पीड बढ़ाने पर सीएलडब्लू में काम चल रहा है।
131 इलेक्ट्रिकल इंजन बनाने की योजना है सेमी हाई स्पीड ट्रेन चलाने के लिए
160 किलोमीटर प्रतिघंटा अधिकतम स्पीड है वर्तमान में पुरानी तकनीक के डब्ल्यूएपी लोकोमोटिव की।

तेज गति और सुरक्षित सफर
-15 फीसदी तक बढ़ेगी ट्रेन की औसत रफ्तार इस बदलाव से।
- 7 फीसदी तक ऊर्जा की बजत होगी इस इंजन से रेल मंत्रालय के दावों के मुताबिक।
- तकनीकी में बदलाव से हाई स्पीड इंजन का पिकअप बढ़ेगा साथ ही ब्रेक सिस्टम तेज हो जाएगा।
- इंजन को एयरोडायनिमक बनाने के साथ ही ट्रैक्शन मोटर व्हील बदले गए हैं।
- इंजन में वॉयस और वीडियो रिकॉर्डर होगा। लोको पायलट संरक्षा नियमों की अनदेखी नहीं कर पाएंगे।
- इंजन अत्याधुनिक आईजीबीटी आधारित प्रोपल्सन सिस्टम से लैस। ड्राइवर केबिन में भी बदलाव।

23 साल बाद अपग्रेडेशन
- 1995 में जर्मनी से डब्ल्यूएपी-5 मॉडल के 10 इंजन खरीदे थे। इन इंजनों की अधिकतम रफ्तार 160 किलोमीटर प्रतिघंटा थी।
- 2000 में सीएलडब्लू में डब्लूएपी -5 मॉडल का निर्माण शुरू किया गया।
- 95 लोको डब्लूएपी -5 के अब तक बनाए जा चुके हैं।
- 75 प्रमुख यात्री गाड़ियां दौड़ती हैं डब्लूएपी -5 से, यह देश का सबसे तेज गति का इंजन है।
- 23 साल बाद अब इस मॉडल के लोको की गति बढ़ाने पर काम किया गया है।

सेमी हाईस्पीड के लिए ट्रैक अपग्रेडेशन
भारतीय रेल के नेटवर्क के वर्तमान ट्रैक सेमी हाईस्पीड के इंजन दौड़ाने के लिए तैयार नहीं हैं। पर अब प्रमुख ट्रैक को अपग्रेड करने पर काम चल रहा है।
- 20 हजार करोड़ खर्च किए जा रहे हैं दिल्ली-हावड़ा व दिल्ली-मुंबई रूट को सेमी हाई स्पीड बनाने के लिए।
- 2020 तक सेमी हाईस्पीड के लायक हो जाएंगे दो प्रमुख रेल मार्ग
- 09 प्रमुख रेल मार्ग को देश में सेमी हाईस्पीड किए जाने की योजना है।
- 6400 किलोमीटर का ट्रैक को सेमी हाईस्पीड में अपग्रेड किए जाने की योजना है।

भारतीय उप महाद्वीप में भारत पहला देश होगा जहां सेमी हाईस्पीड वाली ट्रेने रफ्तार भरेंगी। पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका के मुकाबले भारतीय रेल का नेटवर्क तकनीक के मामले में काफी आगे है। 

 सेमी हाईस्पीड बनाम हाईस्पीड ट्रेन
160 से 245 किलोमीटर प्रति घंटा गति मानी जाती है सेमी हाईस्पीड रेल की।
110 से 140 किमी स्पीड मानी जाती है एक्सप्रेस ट्रेन की।
250 किलोमीटर से ज्यादा होती है हाईस्पीड (बुलेट ) ट्रेन की गति।

भारत कितने पीछे
हाईस्पीड रेल नेटवर्क वाले देश
1964 में पहली हाईस्पीड ट्रेन जापान में चली थी।
( जापान, चीन, इटली, जर्मनी, फ्रांस, अमेरिका, सऊदी अरब, स्पेन, ग्रेट ब्रिटेन, तुर्की, रुस, उजबेकिस्तान, आस्ट्रिया, बेल्जियम, नीदरलैंड में है हाईस्पीड ट्रेन नेटवर्क )

एशियाई देशों में हाईस्पीड नेटवर्क
भारत के अलावा इंडोनेशिया, ताइवान, और दक्षिण कोरिया जैसे एशियाई देशों में भी हाईस्पीड रेल नेटवर्क पर काम चल रहा है।


Saturday 13 October 2018

चले जाना आज के भागीरथ का..


भागीरथ बड़ी तपस्या और लंबी कोशिश के बाद गंगा को धरती पर उतार लाए थे। पर आज हम जीवनादायिनी गंगा को अविरल और निर्मल रखने में नाकाम साबित हो रहे हैं। 11 अक्तूबर 2018 को गंगा पुत्र और महान पर्यावरणविद स्वामी ज्ञानस्वरुप सानंद यानी जीडी अग्रवाल ने 112 दिन आमरण अनशन के बाद दम तोड़ दिया।


22 जून 2018 से जीडी अग्रवाल गंगा सफाई की मांग को लेकर 'आमरण अनशन' पर बैठे हुए थे। उनकी प्रमुख मांग थी कि गंगा और इसकी सह-नदियों के आस-पास बन रहे हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट के निर्माण को बंद किया जाए। पर्यावरणविद् जीडी अग्रवाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने छोटे भाई के रूप में संबोधित करते हुए गंगा सफाई के लिए तीन बार बड़ा ही भावुक पत्र लिखा था, लेकिन उन्हें एक भी पत्र का कोई जवाब नहीं मिला।


जीडी अग्रवाल का जन्म कांधला जिला मुजफ्फरनगर में 20 जुलाई 1932 को हुआ था। वे आईआईटी कानपुर में प्रोफेसर रह चुके थे। उन्होंने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य की ज़िम्मेदारी भी उन्होंने निभाई। यूनिवर्सिटी ऑफ बर्कले से पीएचडी करने वाले और आगे चलकर आईआईटी कानुपर में सिविल एंड एन्‍वायरनमेंटल इंजीनियरिंग के हेड बने।  बाद में उन्होने संन्यास लिया और अपना नाम स्वामी ज्ञान स्वरूप उर्फ सानंद रखा। प्रो. अग्रवाल ने 2008-2012 के बीच 4 बार गंगा नदी की रक्षा के लिए अनशन किया। 

इससे पहले 2011 में स्वामी निगमानंद की मौत
गंगा की खातिर 114 दिन तक अनशन करते हुए इससे पहले स्वामी निगमानंद की भी मौत हुई थी। गंगा में खनन पर रोक लगाने की मांग को लेकर अनशन पर गए निगमानंद सरस्वती का 13 जून 2011 को देहरादून स्थित जौलीग्रांट अस्पताल में निधन हो गया था। 


मदन मोहन मालवीय और गंगा सभा -  (1916 ) गंगा को अविरल बहने देने को कोशिशें काफी पुरानी है। आजादी से पहले मदन मोहन मालवीय ने 1916 में गंगा सभा के मंच से इसके लिए प्रयास किए थे। उन्होंने हरिद्वार के तीर्थ पुरोहितों के साथ मिलकर गंगा सभा की स्थापना की थी। तब मालवीय जी ने गंगा पर बांध बनाए जाने की ब्रिटिश सरकार की योजना का विरोध किया था। 

राम तेरी गंगा मैली – 1980 के गंगा जल के प्रदूषित होने का मामला पर्यावरणविदों द्वारा जोर शोर से उठाया जाना लगा था। साल 1985 में राजकपूर  की फिल्म राम तेरी गंगा मैली ने गंगा के प्रदूषण के मुद्दे को एक प्रेम कथा के माध्यम से उठाया था। इससे आम जन मानस तक गंगा के मैली होने का संदेश पहुंचा था।

स्वच्छ गंगा फाउंडेशन – प्रधान मंत्री राजीव गांधी ने 1984 के बाद गंगा की सफाई के लिए सरकारी स्तर पर प्रयास शुरू करवाए थे। उसके बाद गंगा की सफाई के लिए हजारों करोड़ खर्च किए जा चुके हैं। पर गंगा अभी मैली ही है।

गंगा सागर से गंगोत्री तक साइकिल यात्रा -  सुंदरलाल बहुगुणा – गंगा सागर से गंगोत्री साइकिल यात्रा – 1991 में पर्यावरणविद सुंदर लाल बहुगुणा ने गंगा पर देश व्यापी चेतना के लिए गंगा सागर से गंगोत्री तक साइकिल यात्रा निकाली थी। इस यात्रा में 40 से ज्यादा लोगों के दल ने कई महीने में देश के अलग अलग राज्यों में अलख जगाया था।
- विद्युत प्रकाश मौर्य

Wednesday 10 October 2018

जल जंगल जमीन के लिए एक बार फिर जुटे 25 हजार लोग


गांधी जयंती के मौके पर 2 अक्तूबर 2018 को मध्यप्रदेश के ग्वालियर में कई राज्यो से आए 27 हजार किसानों ने एक बार फिर अपनी आवाज बुलंद की। ये भूमिहीन 2007 से लगातार आंदोलनरत हैं।
यहां जुटे हजारों भूमिहीनों ने केंद्र सरकार को चेतावनी दी कि अगर जमीन देने सहित उनकी अन्य मांगें नहीं मानी तो अगले लोकसभा चुनाव में सरकार गिरा देंगे। मेला मैदान में जमा हुए हजारों भूमिहीनों में केंद्र सरकार के रवैए को लेकर खासी नाराजगी है।

इस मौके पर एकता परिषद के संस्थापक पीवी राजगोपाल ने कहा, केंद्र सरकार ने अगर मांगें नहीं मानी तो 2019 के लोकसभा चुनाव में नतीजे भुगतने को तैयार रहे। राजगोपाल के आह्वान पर वहां मौजूद लोगों हजारों लोगों ने दोहराया कि अगर केंद्र सरकार ने अगर उनकी मांगें नहीं मानी तो आने वाले चुनाव में केंद्र में मोदी के नेतृत्व में सरकार नहीं बनेगी।


राजगोपाल का कहना है कि अपना हक पाने के लिए अपनी ताकत का अहसास कराना जरूरी हो गया है, केंद्र सरकार से गरीब व वंचित वर्गो को उनका हक दिलाने की बातचीत चल रही है, अगर इन मांगों को नहीं माना जाता है तो इस वर्ग को आगामी चुनाव में अपनी ताकत दिखानी होगी।


एकता परिषद के अध्यक्ष रणसिंह परमार ने जनसंसद के प्रांरभ में सभी आगंतुक सत्याग्रहियों और अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि महात्मा गांधी के जयंती के अवसर पर किया जाने वाला यह आंदोलन गांधी को सड़क पर उतारने की कोशिश है जिससे कि देश में भूमि सुधार लागू किया जा सके।

जनांदोलन के पहले दिन आए जलपुरुष राजेंद्र सिंह ने कहा कि वर्तमान दौर में सरकारों का नजरिया बदल गया है। वह जनता नहीं, उद्योगपतियों के लिए काम करती हैं। यही कारण है कि देश में जल, जंगल और जमीन पर उद्योगपतियों का कब्जा होता जा रहा है।


जनांदोलन में हिस्सा लेने आए गांधीवादी सुब्बाराव ने आजादी के सात दशक बाद भी लोगों को छत न मिलने और जमीन न होने का जिक्र किया। सुब्बाराव ने कहा, बंदूक की दम पर कोई स्थायी परिवर्तन नहीं हो सकता अहिंसात्मक तरीके से ही समाज परिवर्तन की लड़ाई लडनी होगी। गांधी जी को स्मरण करने का सबसे बेहतर तरीका सत्याग्रह है जिसके दम पर उन्होने देश को आजादी दिलायी। उन्होंने कहा कि बिना हथियार के दम पर संघर्ष जारी रहेगा और सफलता भी मिलेगी।

भूमिहीनों के मार्च को असम के पूर्व मुख्यमंत्री प्रफुल्ल चंद्र महंथ,  बीजेपी के पूर्व नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा, चिंतक और विचारक गोविंदाचार्य का भी साथ मिला। 

कई राज्यों के लोग पहुंचे - इस यात्रा में मध्य प्रदेश , छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, असम समेत कई राज्यों के भूमिहीन और आदिवासी हिस्सा लेने पहुंचे।  दो अक्तूबर तक देश भर से 27060 सत्याग्रही आज सुबह तक मेला मैदान में पहुंच चुके थे। जिसमें असम-430, मणिपुर-650, तमिलनाडु-469, केरल-282, छत्तीसगढ-2890, मध्यप्रदेश-10428, उत्तरप्रदेश-3234, बिहार-3267, उड़ीसा-1485, राजस्थान-846, झारखण्ड 2090 सत्याग्रहियों के साथ हरियाणा, उत्तराखण्ड, गुजरात, हिमाचल प्रदेश और महाराष्ट्र के प्रतिनिधि भी शामिल थे।


और दिल्ली के लिए कूच -  ग्वालियर से तैयारी के बाद 25 हजार से अधिक लोग पदयात्रा करते हुए 4 अक्तूबर को दिल्ली के लिए कूच कर गए। पहले दिन 4 अक्तूबर को सत्याग्रही 19 किलोमीटर चले और मुरैना जिले की सीमा में पहुंच गए। 25 हजार लोगों का अनुशासन में सड़कों पर चलना। रात होने पर सड़ के किनारे ही दरी बिछाकर सो जाना। एक-एक हजार के समूह में भोजन बनाना और गीत गाते हुए संघर्ष की राह पर चलते जाना...ले मशालें चल पड़े हैं लोग मेरे गांव के।
न्याय का विधान हो , सबका हक समान हो
सबकी अपनी हो जमीन, सबका आसमान हो... 

यात्रा दो दिनों बाद 6 अक्तूबर को मुरैना पहुंची। मुरैना में दोपहर में यात्रा को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने संबोधित किया। इसी बीच आंदोलनकारियों को केंद्र सरकार से भी उनकी मांगे सुने जाने का भरोसा मिला। इसी दिन पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव का ऐलान हो गया। इसके बाद आचार संहिता लागू होने के कारण पीवी राजगोपाल ने सत्याग्रहियों से राय लेकर सत्ताग्रह को समाप्त करने का ऐलान कर दिया। पर यह कहा कि आप लोग अपने अपने गांव में जाकर आंदोलन जारी रखेंगे। इसके साथ ही केंद्र सरकार के कहा गया कि अगर आश्वासन पर अमल नहीं होता है तो फिर सड़कों पर उतरेंगे।

एकता परिषद के प्रवक्ता अनिल गुप्ता ने कहा, आंदोलन का पहला फेज खत्म हो गया है, क्योंकि बातचीत का सिलसिला शुरु हो गया है। बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव राम माधव जी से बात हुई है, उनके साथ राजगोपाल और हमारे कई साथियों की बैठक होगी, जिसके बाद सरकार से वार्ता होगी। एकता परिषद संवाद में विश्वास करता है।"

आंदोलन की समाप्ति पर परिषद के संस्थापक राजगोपाल पीवी ने जारी वीडियो में कहा - हर संघर्ष का निष्कर्ष संवाद से निकलता है। एक संवाद ग्वालियर में सत्ताधारी सरकार से हुआ और दूसरा संवाद विपक्ष से मुरैना में स्थापित हुआ। बीजेपी के कई मंत्रियों से साथ चलने की बात कही है। अगले छह महीने में चुनाव है। जनप्रतिनिधियों ने 25 हजार लोगों के सामने वादा किया है कि वो चुनाव जीनते पर क्या करेंगे। और हमारी पांच मांगों को कैसे देखते हैं।



क्या है प्रमुख मांगें –
भूमिहीनों आदिवासियों का यह आंदोलन मुख्य रूप से पांच मांगों को लेकर है-
1 आवासीय कृषि भूमि अधिकार कानून बने
2. महिला कृषक हकदारी कानून (वूमन फार्मर राइट एक्ट)
3. जमीन के लंबित प्रकरणों के निराकरण के लिए न्यायालयों का गठन किया जाए
4. राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति की घोषणा और उसका क्रियान्वयन
5. वनाधिकार कानून-2005 व पंचायत अधिनियम 1996 के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर निगरानी समिति बनाई जाए।

पुराने समझौतों पर अमल नहीं
राजगोपाल कहते हैं कि इससे पहले वर्ष 2007 में जनादेश और 2012 में जन सत्याग्रह के दौरान केंद्र सरकार के साथ लिखित समझौते हुए, मगर उन पर अब तक न तो अमल हुआ और न ही कानून बन पाया है।


अधिकार पत्र नहीं मिला -  डिंडोरी जिला मध्यप्रदेश के लिम्हा दादर गांव के साथी पन्चू और मुन्ना बैगा जनजाति के हैं और ये अपने पूर्वजो के समय से जिस जमीन पर खेती कर रहे हैं वह वन भूमि है, जिसका दावा करने के बाद भी अधिकार पत्र नहीं मिल पाया है। जनांदोलन 2018 में वे अपने अधिकारों की मांग को लेकर साथ साथ चल रहे हैं।
- प्रस्तुति - विद्युत प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com