Friday 9 May 2008

यादें - पानीपत की बात


पानीपत को इतिहास में तीन बड़ी लड़ाइयों के लिए जाना जाता है। तब मैं दैनिक जागरण के लुधियाना संस्करण में कार्यरत था जब मुझे पानीपत में काम करने का मौका मिला। दिल्ली के पास और एक ऐतिहासिक स्थल इसलिए मैंने हां कर दी। यहां मेरे एक पुराने वकील दोस्त हैं जसबीर राठी। हमने एक साथ एमएमसी का पत्रचार पाठ्यक्रम किया था गुरू जांभेश्वर यूनिवर्सिटी, हिसार से। सो पानीपत आने पर मैं दस दिन अपने पुराने दोस्त जसबीर राठी के घर में ही रहा। पानीपत के ऐतिहासिक सलारजंग गेट पास है उनका घर।
हालांकि पानीपत शहर कहीं से खूबसूरत नहीं हैं। पर कई यादें पानीपत के साथ जुड़ी हैं। तीन ऐतिहासिक लड़ाईयों के अलावा भी पानीपत में कई ऐसी चीजें हैं जो शहर की पहचान है। यहां बू अली शाह कलंदर की दरगाह है जो हिंदुओं और मुसलमानों के लिए समान रूप से श्रद्धा का केंद्र है। मैं यहां हर हप्ते जाता था। दरगाह पर पर बैठ कर कव्वाली सुनते हुए मन को बड़ी शांति मिलती है। कलंदर शाह की दरगाह 700 साल पुरानी है। पर इसी दरगाह में पानीपत के एक और अजीम शायर भी सो रहे हैं। उनकी दरगाह के उपर उनका सबसे लोकप्रिय शेर लिखा है....
है यही इबादत और यही दीनों-इमां
कि काम आए दुनिया में इंसा के इंसा

हाली की एक और गजल का शेर
हक वफा का हम जो जताने लगे
आप कुछ कह के मुस्कुराने लगे।

क्या आपको याद है इस शायर का नाम.....इस शायर का नाम है- ख्वाजा अल्ताफ हसन हाली....( 1837-1914) हाली की शायरी से तो वे सभी लोग वाकिफ होंगे जो उर्दू शायरी में रूचि रखते हैं। पर क्या आपको पता है कि हाली ख्वाजा अहमद अब्बास के दादा थे.... शायर हाली मिर्जा गालिब के शिष्य थे और गालिब की परंपरा के आखिरी शायर। हाली ने गालिब की आत्मकथा भी लिखी है। हाली का ज्यादर वक्त कलंदर शाह की दरगाह के आसपास बीतता था और उनके इंतकाल के बाद वहीं उनकी मजार भी बनी। जाहिर है कि हाली के वंशज होने के कारण पानीपत मशहूर शायर और फिल्मकार ख्वाजा अहमद अब्बास का शहर भी है। वही ख्वाजा अहमद अब्बास जिन्होंने सात हिंदुस्तानी में अमिताभ बच्चन को पहली बार ब्रेक दिया था। हालांकि अब पानीपत शहर को हाली और ख्वाजा अहमद अब्बास की कम ही याद आती है। एक जून 1987 को अंतिम सांस लेने से पहले ख्वाजा अहमद अब्बास पानीपत आया करते थे। ख्वाजा अहमद अब्बास एक पत्रकार, कहानी लेखक, निर्माता निर्देशक सबकुछ थे। राजकपूर की फिल्म बाबी की स्टोरी स्क्रीन प्ले उन्होंने लिखी। उनकी लिखी कहानी हीना भी थी। भारत पाक सीमा की कहानी पर बनी यह फिल्म आरके की यह फिल्म उनकी मृत्यु के बाद ( हीना, 1991) रीलिज हुई।
आजादी से पहले पानीपत मूल रूप से मुसलमानों का शहर था। यहां घर घर में करघे चलते थे। बेडशीट, चादर आदि बुनाई का काम तेजी से होता था। हमारे एक दोस्त एडवोकेट राम मोहन सैनी बताते हैं कि पानीपत शहर तीन म के लिए जाना जाता था। मलाई, मच्छर और मुसलमान। अब न मुसलमान हैं न मलाई पर मच्छर जरूर हैं। अब पानीपत हैंडलूम के शहर के रूप में जाना जाता है। बेडशीट, चादर, तौलिया, सस्ती दरियां और कंबल के निर्माण का बहुत बड़ा केंद्र है। पूरे देश और विदेशों में भी बड़ी संख्या में इन उत्पादों की पानीपत से सप्लाई है। वैसे अगर सडक से पानीपत जाएं तो आपको यहां के पंचरंगा अचार के बारे में भी काफी कुछ देखने के मिल जाएगा। मेन जीटी रोड पर सबसे ज्यादा पंचरंगा अचार की ही दुकाने हैं।



पेश है अलताफ हसन हाली की एक और प्रसिद्ध गजल...


हक वफा का

हक वफा का जब हम जताने लगे
आप कुछ कह के मुस्कुराने लगे


हमको जीना पड़ेगा फुरकत में
वो अगर हिम्मत आजमाने लगे

डर है मेरी जुबां न खुल जाए
अब वो बातें बहुत बनाने लगे

जान बचाती नजर नहीं आती
गैर उल्फत बहुत जताने लगे

तुमको करना पड़ेगा उज्र-ए-वफा
हम अगर दर्दे दिल सुनाने लगे

बहुत मुश्किल है शेवा –ए - तसलीम
हम भी आखिर जी चुराने लगे

वक्त ए रुखसत था शख्त हाली पर
हम भी बैठे थे जब वो जाने लगे



- अल्ताफ हसन हाली
-vidyutp@gmail.com

Wednesday 7 May 2008

कौन देगा गरीबों को कर्ज

क्या आप जानते हैं कि अभी बहुत से ऐसे रोजगार हैं जो 100 से 1000 रुपए की जमा पूंजी से आरंभ किए जाते हैं। भारत जैसे विकासशील देश में बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जो इतनी छोटी सी पूंजी से रोजगार कर अपना जीवन यापन करते हैं। गली में घूमघूम कर सब्जी बेचने वाले, अंडे बेचने वाले, फल बेचने वाले, छोले कुलचे बेचने वाले। इन सबका कारोबार थोड़ी सी पूंजी में ही चलता है।


साइकिल पर चलती है दुकानः कई ऐसे बिजनेस हैं जो एक साइकिल पर ही चलते हैं। जैसे दूध बेचने वाले, गली मे घूम-घूम कर सामान ठीक करने वाले, आइसक्रीम बेचने वाले आदि। कई ऐसे कारोबार ठेल पर या तिपहिया वाहन पर चलते हैं। इसमें थोड़ी सी पूंजी की आवश्यकता होती है। पर यह छोटी सी पूंजी भी उन्हें कर्ज में लेनी पड़ती है। पर उन्हें नहीं पता होता है कि यह छोटा सा कर्ज भी वह कहां से लें। कोई भी बैंक इतनी छोटी सी राशि कर्ज में नहीं देता। फिर बैंक से कर्ज लेने के लिए एक लंबी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। सबसे बड़ी बात की साधनहीन लोगों को पास गिरवी रखने के लिए भी कुछ नहीं होता जिससे कि वे बैंक से कर्ज ले सकें।
साहूकारों का द्वारा शोषण - देश के कोने कोने में छोटी पूंजी कर्ज लेकर रोजगार करने वाले लोग साहूकारो के शोषण के शिकार हैं। साहूकार इन्हें जहां मोटी ब्याज दरों पर ऋण देते वहीं वसूली में दिक्कत आने पर उन्हें गुंडों से पिटवाते भी हैं। ऐसे लोगों के लिए बैंक जाकर कर्ज लेना मुश्किल है। साहूकर निजी जानपहचान पर बिना गारंटी के कर्ज दे देता है। पर बैंक को हर कर्ज के लिए जमानतदार चाहिए होता है।

ग्रामीण बैंकों की अवधारणा फेल - छोटे कर्ज देने के लिए इंदिरा गांधी द्वारा शुरू किए गए ग्रामीण बैंकों की अवधारणा अब बदल चुकी है। अब वे सभी व्यवसायिक बैंको की तरह ही बड़े कर्ज देने लगे हैं। लिहाजा अब वहां साधनहीन और थोड़ी सी पूंजी लेकर रोजगार करने वालों के लिए गुंजाइश कम ही बची हुई है। अब ग्रामीण बैंको मर्ज कर व्यवसायिक बैंकों की तरह ही बनाया जा रहा है।

स्वसहायता समूह की अवधारणा - कम पूंजी से रोजगार करने वाले छोटे लोगों को सहायता पहुंचाने के लिए ही स्व सहायता समूह की अवधारणा शुरू की गई है। स्व सहायता समूह (सेल्फ हेल्प ग्रूप की अवधारण के जनक बांग्लादेश के अर्थशास्त्री मोहम्मद युनूस हैं। उन्होंने रोज सुबह मार्निंग वाक के दौरान एक बूढ़ी महिला को देखा जो साहूकार से कर्ज लेकर अंडे बेचती थी। साहूकार उसे छोटी सी राशि कर्ज में देने के एवज बहुत ज्यादा ब्याज लेता था। ऐसे लोगों को मदद करने के लिए स्वसहायता समूह का जन्म हुआ। इसमें एक तरह का कारोबार करने वाले 10 या उससे ज्यादा लोग एक समूह बनाते हैं। वे रोज अपनी कमाई में से कुछ राशि कामन पुल में डालते हैं। यह राशि मिल कर बड़ी हो जाती है। इससे राशि से समूह के सदस्यों को किसी भी तरह की जरूरत पड़ने पर कर्ज दिया जाता है साथ ही ऐसे समूहों को बैंक रजिस्टर करते हैं। इन समूहों को बैंक भी अपनी ओर से कर्ज देते हैं। देश के कई हिस्सों में इस तरह के समूह लोकप्रिय हो रहे हैं।

माइक्रोफाइनेंस की अवधारणा- ऐसे साधनहीन लोग जिन्हें कोई बैंक कर्ज नहीं देता उन्हें कर्ज देने के लिए माइक्रोफाइनेंस की अवधारण का जन्म हुआ है। इस तरह का कर्ज आमतौर पर बिना किसी गारंटी के दिया जाता है। कर्ज की राशि 500 रुपए से लेकर 2000 के बीच हो सकती है। पात्र का चयन करके उसे तुरंत ही कर्ज मुहैय्या करा दिया जाता है।
-विद्युत प्रकाश vidyutp@gmail.com




Monday 5 May 2008

कल हो ना हो

आज एक बार सबसे मुस्करा के बात करो 
बिताये हुये पलों को साथ साथ याद करो
क्या पता कल चेहरे को मुस्कुराना
और दिमाग को पुराने पल याद हो ना हो
आज एक बार फ़िर पुरानी बातो मे खो जाओ
आज एक बार फ़िर पुरानी यादो मे डूब जाओ
क्या पता कल ये बाते
और ये यादें हो ना हो
आज एक बार मन्दिर हो आओ
पुजा कर के प्रसाद भी चढाओ
क्या पता कल के कलयुग मे
भगवान पर लोगों की श्रद्धा हो ना हो
बारीश मे आज खुब भीगो
झुम झुम के बचपन की तरह नाचो
क्या पता बीते हुये बचपन की तरह
कल ये बारीश भी हो ना हो
आज हर काम खूब दिल लगा कर करो
उसे तय समय से पहले पुरा करो
क्या पता आज की तरह
कल बाजुओं मे ताकत हो ना हो
आज एक बार चैन की नीन्द सो जाओ
आज कोई अच्छा सा सपना भी देखो
क्या पता कल जिन्दगी मे चैन
और आखों मे कोई सपना हो ना हो
क्या पता कल हो ना हो
COLLECTED....
( This poem is sent by My friend allauddin Etv, reporter from LKO)

Saturday 3 May 2008

शादी-शुदा मर्द से प्यार ( व्यंग्य )

अभी हाल में हेमा मालिनी की बेटी ईशा दयोल ने यह बयान जारी किया कि उन्हें किसी शादी शुदा मर्द से प्यार करने में कोई आपत्ति नहीं है। अगर उनके जीवन में कोई ऐसा संबंध बनता है तो वे इसका स्वागत करेंगी। यह बयान उन्होंने अपनी नई फिल्म के रेफरेंस में दिया जिसकी कहानी में वे किसी शादी शुदा मर्द के प्यार में पड़ जाती हैं। ईशा ने कहा कि उनकी मां (हेमा मालिनी ) ने भी तो एक शादी शुदा मर्द से ही प्यार किया था इसलिए वे इसमें कोई बुराई नहीं देखतीं। फिल्म इंडस्ट्री में शादी शुदा मर्द से ईश्क लड़ाने और फिर शादी रचाने का चलन पुराना रहा है।

कई हीरोइनों को दूसरी पत्नी बनने में कोई आपत्ति नहीं होती। पर ये महिलाएं ये नहीं देखतीं कि इसके साथ वे कितने घर फूंकने चली हैं। हालांकि प्यार हो जाने में किसी एक पक्ष को जिम्मेवार नहीं ठहराया जा सकता है। इसमें दो पक्ष होते हैं...और ताली दोनों हाथों से ही बजती है। अभी हाल में बालीवुड की खूबसूरत अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी चर्चा में हैं। शिल्पा के कारण निर्देशक अनुभव सिन्हा का घर तबाह होने को है। उनकी पत्नी अनुभव से तलाक लेना चाहती हैं। कारण अनुभव का शिल्पा से ज्यादा मेलजोल है। ठीक इसी तरह का वाकया रघुबीर यादव के साथ हुआ। मुंगेरी लाल के हसीने सपने वाले रघुबीर यादव से मुंबई फिल्म इंडस्ट्री को असीम संभावनाएं थीं। रघुबीर का मुंबई आने से पहले से ही भरा पूरा परिवार था। पर फिल्म इंडस्ट्री में आने के बाद वे सांवली सलोनी नंदिता दास के प्यार में फंस गए। प्यार का परवान कुछ इस तरह चढ़ा की रघुबीर की पहली पत्नी और बच्चे उन्हे छोड़कर गांव चले गए। उसके थोड़े दिनों बाद नंदिता दास ने भी उन्हें छोड़ दिया। उसके बाद रघुबीर की हालत बीमारों जैसी हो गई। उनका फिल्मी कैरियर और परिवार दोनों ही तबाह हो गए। अब वे फिल्मों में बहुत कम ही नजर आते हैं। ठीक इसी तरह का वाकया बोनी कपूर के साथ हुआ। बोनी ने जब श्रीदेवी को दूसरी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया तो उनकी पहली पत्नी मोना कपूर को गहरा धक्का लगा।


मोना कपूर फिल्म इंडस्ट्री मजबूत महिला सत्ती सौरी की बेटी हैं। खैर सत्ती सौरी ने इस दुख की घड़ी में मोना कपूर को सहारा दिया और उन्हें टीवी धारावाहिकों के प्रोडक्शन में व्यस्त कर दिया। पर सत्ती सौरी को दूसरी पत्नी के रुप में किसी महिला को आकर किसी का घर तबाह करने पर बड़ा दुख हुआ। दुखी सत्ती सौरी ने एक फिल्म के सेट पर हेमा मालिनी को काफी भला बुरा कहा। बकौल सत्ती सौरी हेमा मालिनी ने ही फिल्म इंडस्ट्री में दूसरी महिला के ट्रेंड की शुरूआत की। हालांकि फिल्म इंडस्ट्री में दक्षिण भारतीय निर्माताओं में भी दूसरी पत्नी रखने का रिवाज बहुत पुराना है। 

गाहे बगाहे कई फिल्मकार इसलिए अपनी कहानी में भी दो पत्नियों के बीच झूलते पति का चित्रांकन करते हैं। गोविंदा की साजन चले ससुराल इसी तरह की फिल्म थी। जब पुरानी अभिनेत्रियों ने इस मामले में इतना साहस दिखाया तो अगली पीढ़ी के इशा दयोल और शिल्पा शेट्टी को भला क्या आपत्ति हो सकती है। 

आज के दौर में तो रिश्तों में स्थायीत्व का भाव और भी कम होता जा रहा है। पुरूष मानसिकता हमेशा से दूसरी स्त्रियों में रुचि रखने की रही है पर महिलाओं में इस तरह का बढ़ता ट्रेंड खतरनाक हो सकता है। हमारा समाज कभी भी ऐसे पुरूष या ऐसी स्त्रियों को अच्छी नजर से नहीं देखता है।
-माधवी रंजना madhavi.ranjana@gmail.com



Thursday 1 May 2008

आखिर क्यों डरे हैं बुश भारत से

भारत एक वैश्विक शक्ति के रुप में स्थापित हो रहा है इसका बेहतर अंदाजा हम हाल की कि कुछ खबरों से लगा सकते हैं। पिछले दिनों अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश ने अमेरिका के स्कूली बच्चों को चेताया कि सावधान हो जाओ वरना सारी नौकरियां भारतीय ले जाएंगे। उन्होंने कहा कि अमेरिकी छात्रों से कहा कि खुद को भारतीय छात्रों से प्रतिस्पर्धा करने के लिए तैयार करें। बुश को ऐसा इसलिए कहना पड़ा क्योंकि अमेरिका में आज की तारीख में सबसे अधिक आमदनी वाला जातीय समूह भारतीय हैं। 


अमेरिका में प्रोफेशनल व अन्य सेवाओं की 60 फीसदी नौकिरयों में भारतीयों का दबदबा है। इसी तरह अमेरिकी लेबर फोर्स में 80 फीसदी तक भारतीय हैं। भारत के टेक्नोक्रेट दुनिया भर में देश की इमेज को बेहतर बनाने में लगे हैं। 90 के दशक के बाद आए सूचना क्रांति के बूम ने भारत को वैश्विक शक्ति के रुप में स्थापित करने में काफी मदद की है। आज दुनिया के सभी विकसित देशों की नजर भारत की ओर है। वे भारत की एक अरब आबादी जिसमें बड़ी संख्या में मध्यम वर्ग है जो खर्च करने की क्षमता रखता है उसे एक बड़े बाजार में के रुप में देखते हैं। 

सिर्फ इतना ही नहीं भारतीय दिमाग ने जापान, जर्मनी, इंग्लैंड व अमेरिका के सभी बड़ी कंपनियों में अपने मेधा, प्रतिभा और झमता का लोहा मनवाया है।
भारत की एनआरआई कम्युनिटी ने भी अपने उद्योगों से भारत का सम्मान विश्व पटल पर बढ़ाया है। इनमें स्टील किंग लक्ष्मी नारायण मित्तल का नाम प्रमुख है जिन्हें फोर्ब्स मैगजीन ने यूरोप का तीसरा सबसे बड़ा अमीर घोषित किया है। इसके अलावा ब्रिटेन के लार्ड स्वराज पाल, होटलियर विक्रम चटवाल, ब्रिटेन की सबसे बड़ी मोबाइल कंपनी वोडाफोन के मालिक भी भारतीय मूल के हैं। अब भारतीयों की बदलती छवि न सिर्फ कुशल मजदूर की है बल्कि वे सफल उद्यमी भी हैं।
भारतीय परिवेश में भी बदलाव आया है। उन्नत दूर संचार सेवाओं के कारण अब भारतीय शहर दुनिया के अच्छे शहरों में गिने जा रहे हैं। दिल्ली में मेट्रो रेल, मिलेनियम सिटी गुड़गांव जहां दुनिया की सभी प्रमुख कंपनियों के काल सेंटर काम कर रहे हैं, साइबर सिटी हैदराबाद, इन्फारमेशन टेक्नोलाजी का शहर बेंगलूर, इन्फो सिटी के रुप में विकसित होता मोहाली ने भारत की छवि और शक्ति दोनों को नया आयाम दिया है। भारत जो दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है वहां देश ने राष्ट्रपति के रुप में एपीजे कलाम को पाया है जिनकी गिनती दुनिया के जानेमाने वैज्ञानिकों में होती है। वहीं प्रधानमंत्री के रुप में मनमोहन सिंह मिले हैं जो कुशल अर्थशास्त्री हैं। इस संयोजन ने भी भारत को मजबूत देश बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। दुनिया में भारत को एक मजबूत होती अर्थव्यवस्था के रुप में देखा जा रहा है। विदेशी निवेशकों को विश्वास भारतीय शेयर बाजार में बढ़ा है। तभी तो मुंबई शेयर सूचकांक ने 12 हजार का आंकड़ा पार कर लिया है।

 देश की अर्थव्यवस्था 8 फीसदी की गति से बढ़ रही है। प्रधनमंत्री मनमोहन सिंह चाहते हैं कि हम 10 फीसदी का विकास लक्ष्य हासिल करें। अगर सब कुछ ठीक रहा तो हम इस विकास लक्ष्य को प्राप्त भी कर लेंगे। एक सर्वेक्षण तो यह भी बताता है कि आने वाले दस सालों में हम चीन को भी पीछे छोड़ देंगे। यानी की ड्रेगन (चीन) को उपर हाथी (भारत) बैठा हुआ होगा। जरूरत सिर्फ इस बात की है कि हम भारतीय उत्पादों को विश्व बाजार के लायक बनाएं और कानून व्यवस्था में सुधार लाकर भारत के इमेज को और चमकदार बनाएं।
-         विद्युत प्रकाश मौर्य