क्या आप जानते हैं कि
अभी बहुत से ऐसे रोजगार हैं जो 100 से 1000 रुपए की जमा पूंजी से आरंभ किए
जाते हैं। भारत जैसे विकासशील
देश में बड़ी संख्या में
ऐसे लोग हैं जो इतनी छोटी सी
पूंजी से रोजगार कर अपना जीवन यापन
करते हैं। गली में घूमघूम कर
सब्जी बेचने वाले, अंडे बेचने वाले, फल बेचने वाले, छोले कुलचे बेचने वाले।
इन सबका कारोबार थोड़ी सी
पूंजी में ही चलता है।
साइकिल पर चलती है दुकानः कई ऐसे बिजनेस हैं जो एक
साइकिल पर ही चलते हैं। जैसे
दूध बेचने वाले, गली मे घूम-घूम कर सामान ठीक करने
वाले, आइसक्रीम बेचने वाले आदि। कई
ऐसे कारोबार ठेल पर या तिपहिया
वाहन पर चलते हैं। इसमें
थोड़ी सी पूंजी की आवश्यकता
होती है। पर यह छोटी सी
पूंजी भी उन्हें कर्ज में लेनी
पड़ती है। पर उन्हें नहीं पता
होता है कि यह छोटा सा कर्ज भी
वह कहां से लें। कोई भी बैंक
इतनी छोटी सी राशि कर्ज में
नहीं देता। फिर बैंक से कर्ज
लेने के लिए एक लंबी प्रक्रिया
से गुजरना पड़ता है। सबसे
बड़ी बात की साधनहीन लोगों को
पास गिरवी रखने के लिए भी कुछ
नहीं होता जिससे कि वे बैंक
से कर्ज ले सकें।
साहूकारों का द्वारा शोषण
- देश
के कोने कोने में छोटी
पूंजी कर्ज लेकर रोजगार करने वाले
लोग साहूकारो के शोषण के शिकार
हैं। साहूकार इन्हें जहां मोटी
ब्याज दरों पर ऋण देते वहीं
वसूली में दिक्कत आने पर
उन्हें गुंडों से पिटवाते भी हैं।
ऐसे लोगों के लिए बैंक जाकर
कर्ज लेना मुश्किल है। साहूकर
निजी जानपहचान पर बिना
गारंटी के कर्ज दे देता है।
पर बैंक को हर कर्ज के लिए
जमानतदार चाहिए होता है।
ग्रामीण
बैंकों की अवधारणा
फेल - छोटे कर्ज देने के लिए इंदिरा
गांधी द्वारा शुरू किए गए
ग्रामीण बैंकों की अवधारणा
अब बदल चुकी है। अब वे सभी
व्यवसायिक बैंको की तरह ही बड़े
कर्ज देने लगे हैं। लिहाजा अब
वहां साधनहीन और थोड़ी सी पूंजी
लेकर रोजगार करने वालों के लिए
गुंजाइश कम ही बची हुई है।
अब ग्रामीण बैंको मर्ज कर
व्यवसायिक बैंकों की तरह ही
बनाया जा रहा है।
स्वसहायता समूह की अवधारणा
- कम
पूंजी से रोजगार करने
वाले छोटे लोगों को सहायता
पहुंचाने के लिए ही स्व सहायता
समूह की अवधारणा शुरू की गई
है। स्व सहायता समूह (सेल्फ हेल्प ग्रूप की
अवधारण के जनक बांग्लादेश के
अर्थशास्त्री मोहम्मद युनूस हैं।
उन्होंने रोज सुबह मार्निंग
वाक के दौरान एक बूढ़ी
महिला को देखा जो साहूकार से कर्ज
लेकर अंडे बेचती थी। साहूकार
उसे छोटी सी राशि कर्ज में
देने के एवज बहुत ज्यादा ब्याज
लेता था। ऐसे लोगों को मदद
करने के लिए स्वसहायता समूह का
जन्म हुआ। इसमें एक तरह का
कारोबार करने वाले 10 या उससे ज्यादा लोग एक
समूह बनाते हैं। वे रोज अपनी
कमाई में से कुछ राशि कामन पुल
में डालते हैं। यह राशि मिल
कर बड़ी हो जाती है। इससे राशि
से समूह के सदस्यों को किसी
भी तरह की जरूरत पड़ने पर
कर्ज दिया जाता है साथ ही ऐसे
समूहों को बैंक रजिस्टर करते हैं।
इन समूहों को बैंक भी अपनी ओर
से कर्ज देते हैं। देश के
कई हिस्सों में इस तरह के समूह
लोकप्रिय हो रहे हैं।
माइक्रोफाइनेंस की अवधारणा- ऐसे साधनहीन लोग जिन्हें कोई
बैंक कर्ज नहीं देता उन्हें
कर्ज देने के लिए
माइक्रोफाइनेंस की
अवधारण का जन्म हुआ
है। इस तरह का कर्ज आमतौर पर
बिना किसी गारंटी के दिया
जाता है। कर्ज की राशि 500 रुपए से लेकर 2000 के बीच हो सकती है।
पात्र का चयन करके उसे तुरंत ही
कर्ज मुहैय्या करा दिया जाता है।
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