Tuesday 15 September 2020

कोरोना काल और मीडिया के कामकाज के तौर तरीके में बदलाव

CHANGES in WORIKING Of INDIAN MEDIA DURING COVID 19 PERIOD.

-         विद्युत प्रकाश मौर्य – Vidyut Prakash Maurya

 

मार्च 2020 का महीना भारतीय मीडिया के लिए नई चुनौतियां लेकर आया। कोरोना वायरस से आई महामारी के कारण देश दुनिया के तमाम शहरों में प्रशासनिक स्तर पर लॉकडाउन लगाना पड़ा। यानी ऐसी बंदी जिसने लोगों को घर में ही रहने को मजबूर कर दिया। ऐसे दौर में रोज अखबार निकालना बड़ी चुनौती थी। क्योंकि प्रशासन कह रहा था कि सिर्फ बहुत जरूरी सेवाओं वाले लोग ही घर से निकलें। हालांकि मीडिया जरूरी सेवाओं में आता है इसलिए सरकार की तरफ से कोई बंदिश नहीं थी कि आप दफ्तर न जाएं पर कई मीडिया हाउस ने इस दौरान वर्क फ्रॉम हो अपनाने की कोशिश की। इसमें काफी सफलता भी मिली।

देश के सबसे बड़े अखबारों में से एक हिन्दुस्तान टाइम्स समूह के हिन्दुस्तान हिंदी दैनिक ने 25 मार्च से वर्क फ्राम होम का फरमान जारी किया। रिपोर्टिंग से लेकर डेस्क के स्टाफ और फीचर टीम को घर से काम करने को कहा गया। मुख्य संपादक शशि शेखर ने आखिरी बैठक में सबको नई चुनौतियों के लिए तैयार रहने और घर से बेहतर काम करने का संदेश दिया।

रिपोर्टिंग की चुनौतियां - अब अखबार ने वर्क फ्रॉम होम को सफलतापूर्वक अंजाम कैसे दिया। अखबार में काम करने वाले संवाददाताताओं के लिए पहले ही रोज दफ्तर आकर रिपोर्ट फाइल करना जरूरी नहीं है। वे हिंदी में भी यूनिकोड टाइपिंग की सुविधा आ जाने के बाद कोई भी रिपोर्ट अपनी रिपोर्ट अपने घर से अपने लैपटॉप से टाइप करके भेज सकता है। यहां तक कि छोटी मोटी रिपोर्ट तो मोबाइल पर वाह्ट्सएप संदेश में भी या जीमेल पर सीधे टाइप करके भेजी जा सकती है। तो रिपोर्टर पहले से ही घर से या किसी सार्वजनिक स्थल से रिपोर्ट भेजने के लिए अभ्यस्त थे। तो उन्हें कोई परेशानी नहीं आई। हां रिपोर्टर के लिए चुनौती थी खबरों को जुटाने के लिए अपने बीट से जुड़े हुए स्थलों तक जाना। कोरोना काल में इसमें रिस्क था। पर रिपोर्टरों ने रिस्क लिया। पर संस्थान की ओर से अब हर खबर के लिए फील्ड में जाने की बाध्यता नहीं थी। रिपोर्टरों को ज्यादातर खबरें फोन से फोटो और प्रेस विज्ञप्तियों को ईमेल से प्राप्त करने के लिए कहा गया। हिन्दुस्तान के संवाददाता के तौर पर कार्यरत संजय कुशवाहा और हेमवती नंदन राजौरा कहते हैं कि बहुत जरूरी हो तो रिपोर्ट लेने के लिए मौके पर पहुंचना ही पड़ता है।

वीपीएन का सहारा -  अखबार में सबसे बड़ी चुनौती थी डेस्क के काम को घर में शिफ्ट करना। इसके लिए अखबार ने जिन लोगो के पास निजी लैपटॉप थे उन्हे दफ्तर में इस्तेमाल होने वाले साफ्टवेयर उसमें डालने की सुविधा प्रदान की। जिनके पास अपना कंप्यूटर सिस्टम नहीं था उन्हें दफ्तर की ओर से कंप्यूटर सिस्टम उपलब्ध कराए गए। सभी लोगों को अपने घरों में ब्रॉडबैंड कनेक्शन लगवाने को कहा गया। अब सिस्टम घर में चालू हो गया। पर अखबार के दफ्तरों में सारे सिस्टम एलएएन यानी लोकल एरिया नेटवर्क से जुड़े रहते हैं। हर घर में मौजूद सिस्टम को दफ्तर के सिस्टम से जोड़ने के लिए वर्चुअल प्राईवेट नेटवर्क यानी वीपीएन का सहारा लिया गया। सीस्को और फोर्टीक्लाएंट जैसी वीपीएन सर्विस प्रोवाइडर कंपनियों की सेवाएं ली गईं। वीपीएन की सुविधा से अलग अलग घरों में बैठे संपादकीय विभाग के साथी अपनी फाइलों को एक दूसरे से साझा कर सकते हैं। इससे दफ्तर काम घर बैठे करना संभव हो सका।

घर से काम करने की अपनी चुनौतियां भी हैं। हिन्दुस्तान के संपादकीय विभाग में कार्यरत विवेक विश्वकर्मा कहते हैं कि पर कई बार अलग अलग इलाके में डाटा की स्पीड कम होने के कारण सिस्टम धीमा काम करने लगता है। इससे काम को समय पर पूरा करने में दिक्कत आती है। पर ये चुनौतियां भी स्वीकार की गई और कार्य को सफलतापूर्वक अंजाम दिया गया।

वाट्सएप ग्रूप का सहारा – अलग अलग घरों मे  बैठे लोगों को कंप्यूटर में साफ्टवेयर और हार्डवेयर संबंधी आने वाली दिक्कतों के समाधान के लिए कंपनी ने ऑनलाइन आईटी सपोर्ट टीम तैयार की। यह सपोर्ट टीम वाट्सएप समूह पर सभी कार्यरत सदस्यों की शिकायत सुनती है और समस्या का तुरंत समाधा करने की कोशिश करती है। कंप्यूटर में बड़ी दिक्कत आने पर एनीडेस्क साफ्टवेयर के सहारे आईटी टीम सिस्टम का नियंत्रण अपने पास ले लेती है और सिस्टम को ठीक कर देती है। इस तरह से हिन्दुस्तान हिंदी दैनिक में 25 मार्च से 31 मई तक वर्क फ्राम होम को सफलतापूर्वक संचालित किया गया। एक जून से आठ जून के बीच 20 फीसदी कर्मचारियों को दफ्तर बुलाया गया। फिर नौ जून से सात जुलाई तक सारे कर्मचारियों ने घर से ही काम को अंजाम दिया। हिन्दुस्तान ने सिर्फ अपने दिल्ली संस्करण बल्कि देश के अन्य सभी 20 संस्करणों में भी ज्यादातर स्टाफ के लिए वर्क फ्राम को का फार्मूला अपनाया जो काफी सफल रहा।

देश के सबसे बड़े अखबार के नेटवर्क दैनिक भास्कर ने भी सभी रिपोर्टरों को घर से ही रिपोर्ट फाइल करने के निर्देश दिए। वहीं संपादकीय के लोगों के लिए ऐसी व्यवस्था की गई कि दफ्तर में कम लोग आएं जिससे फिजिकिल डिस्टेंसिंग यानी भौतिक दूरी बनी रही। भागलपुर दैनिक भास्कर के स्थानीय संपादक राजेश रंजन और मुजफ्फरपुर में दैनिक भास्कर के स्थानीय संपादक कुमार भावानंद बताते हैं कि कोरोना के संक्रमण काल में दफ्तर आने वाले स्टाफ की संख्या कर दी गई है। लोगों को एक दिन के अंतराल पर दफ्तर बुलाया जा रहा है। इससे दफ्तर में कुल स्टाफ की संख्या 50 फीसदी से भी कम रहती है। इससे भौतिक दूरी के नियम का आसानी से पालन हो पाता है।

आज समाज - चंडीगढ़, अंबाला और दिल्ली से प्रकाशित समाचार पत्र आज समाज के समन्वय संपादक अजय शुक्ला कहते हैं कि हमने लॉकडाउन के ऐलान से पहले ही स्थिति को भांप कर वर्फ फ्राम होम कराने का फैसला ले लिया था। 18 मार्च 2020 को ही अखबार के सभी लोगों को वर्क फ्राम होम करने को कहा गया। इसके लिए कर्मचारियों को कंप्यूटर और ब्राडबैंड की सुविधा प्रदान की गई। हमने इस दौरान मोबाइल पत्रकारिता को प्रोमोट किया। रिपोर्टरों को खबर भेजने के लिए ज्यादा से ज्यादा मोबाइल फोन का इस्तेमाल करने को कहा गया। इसमें काफी सफलता भी मिली।


यह तय किया गया है कि सिर्फ बहुत जरूरी स्टाफ ही दफ्तर आए। दफ्तर आने से पहले सैनेटाइजेशन के पूरे इंतजाम किए गए। दफ्तर के प्रवेश द्वार पर ही सेनेटाइज गेट लगाए गए। दफ्तर में जगह जगह 70 फीसदी अल्कोहल वाले सेनेटाइजर बूथ लगाए गए। हमारे अखबार के समूह की कंपनी खुद सेनेटाइजर भी बनाती है, इसलिए हमने उच्च गुणवत्ता वाला सेनेटाइजर का इस्तेमाल किया।

अजय शुक्ला बताते हैं कि इस दौरान हमने दफ्तर की कैंटीन भी बंद नहीं की। पर कैंटीन में फिजिकल डिस्टेंसिंग का पूरा ख्याल रखा गया। हालांकि कई अखबारों ने लॉकडाउन के दौरान अपनी कैंटीन बंद कर दी। क्योंकि इस दौरान अंदेशा था कि लोग वहां एक दूसरे के ज्यादा करीब  आ सकते हैं। पर आज समाज के दफ्तर में कैंटीन में लोगों के बीच दूरी कायम रहे इसका पूरा ख्याल रखा गया।

लॉकडाउन के दौरान इस मीडिया समूह से जुड़े 11 लोगों में कोरोना पॉजिटिव होने के मामले आए पर इनमें से एक भी मामला दफ्तर के अंदर नहीं आया। सभी संक्रमण बाहरी क्षेत्रों में हुए।

नवोदय टाइम्स , दिल्ली - पंजाब केसरी समूह के अखबार नवोदय टाइम्स नई दिल्ली में कार्यरत सुधीर राघव बताते हैं कि उनके दफ्तर में सभी संवाददाताओं को वर्क फ्राम होम करने को निर्देश दिया गया। इससे दफ्तर में ज्यादा सिस्टम उपलब्ध हो गए और बाकी स्टाफ के लिए भौतिक दूरी के साथ काम करने की सुविधा मिल गई। कुछ संपादकीय विभाग के कर्मचारी इस दौरान वर्क फ्राम होम से भी अपने कार्यों को अंजाम देते रहे।

अमर उजाला , नोएडा - देश के बड़े हिंदी समाचार पत्रों के समूह में से एक अमर उजाला ने भी कोरोना काल में भौतिक दूरी बनाने के लिए कई कोशिशों को अंजाम दिया। कंपनी ने अपने इंटरनेट डिविजन के सारे स्टाफ को वर्क फ्राम होम करने को कहा। इंटरनेट डिविजिन के लिए यह काम कर पाना आसान हैं। इंटरनेट के साफ्टवेयर एचटीएमएल के आधार पर काम करते हैं। इसलिए वेबसाइट अपडेट करने के कार्य के लिए कोई अलग से साफ्टवेयर इंस्टाल करने की जरूरत आम तौर पर नहीं पड़ती है। इसलिए इंटरनेट डिविजन यानी वेबसाइट अपडेट करने वाले संपादकीय विभाग के साथियों के लिए घर से काम को अंजाम देना कोई मुश्किल कार्य नहीं था। हां ऐसे कर्मचारियों को अपने कार्य संबंधी निर्देश प्राप्त करने के लिए अपने विभागीय बॉस का निर्देश लेना पड़ता है। इसके लिए वे सुबह में अपने वरिष्ठ साथियों के से बात कर लेते हैं।

दैनिक जागरण, नोएडा - देश के सबसे बड़े बहुसंस्करण अखबारों में से एक दैनिक जागरण ने भी अपने दफ्तर में सुरक्षा को लेकर कई बदलाव किए। सभी संवाददाताओं को घर से काम करने की छूट दी गई। दफ्तर में जगह जगह कोरोना से बचाव के लिए हिदायतें क्या करें क्या न करें आदि लिखकर प्रकाशित की गई। सभी स्टाफ को सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए दफ्तर में काम करने को कहा गया। कुछ स्टाफ जो घर से काम कर सकता था उसके लिए ऐसी सुविधा प्रदान की गई। दैनिक जागरण में कार्यरत वरिष्ठ पत्रकार आनंद सिंह कहते हैं कि दफ्तर की कार्यप्रणाली कोरोना काल में ऐसी रखी गई जिससे सावधानी भी रहे और दफ्तर का कामकाज प्रभावित भी नहीं हो।

प्रभात खबर, रांची - हिंदी के एक और बड़े अखबार प्रभात खबर ने भी सुरक्षा के लिए कई बदलाव किए। अखबार ने अपने रोज दफ्तर आने वाले स्टाफ को आधा कर दिया। प्रभात खबर में कार्यरत वरिष्ठ पत्रकार संजय मिश्रा कहते हैं कि स्टाफ को दफ्तर एक दिन छोड़कर आने को कहा गया। इससे दफ्तर में लोगों को सुरक्षित दूरी के साथ बैठने का मौका मिल गया। यहां भी सभी संवाददादाताओं को दफ्तर के बजाय घर से ही अपनी खबरों को फाइल करने की छूट दी गई। कोरोना काल में स्टाफ की जिम्मेवारियां बढ़ गई पर इसे स्टाफ ने चुनौती के तौर पर लिया और दफ्तर का कामकाज सुचारू तौर पर चलता रहा।

अखबारों के इंटरनेट डिविजन में काम करने वाले लोगों ने वर्क फ्रॉम के दौरान किसी और शहर से भी काम को अंजाम दिया। दैनिक भास्कर के डॉट काम यानी इंटरनेट डिविजन में दिल्ली में कार्यरत करुणा बताती हैं कि वे लॉकडाउन का ऐलान होने के बाद अपने घर पटना चली गईं। वे वहीं से अपने घर से दफ्तर काम निपटाती रहीं। दरअसल जब आप ऑनलाइन काम कर रहे हैं तो जरूरी नहीं है कि आपकी टीम के सारे सदस्य एक ही शहर में हों। सभी लोग अलग अलग शहरों से भी काम को अंजाम दे सकते हैं। बस इसके लिए अच्छी स्पीड वाला इंटरनेट कनेक्शन उपलब्ध होना जरूरी है।

वर्चुअल मीटिंग का सहारा -  दफ्तर में काम करने के दौरान आजकल योजनाएं बनाने के लिए बैठकों की बहुत जरूरत होती है। पर लॉकडाउन के दौरान ज्यादातर अखबारों के संपादकीय विभाग में वर्चुअल मीटिंग का सहारा लिया जाने लगा। ऐसी मीटिंग के लिए वाट्सएप कालिंग, जूम एप, एमस टीम्स या फिर गूगल मीट का सहारा लिया जाने लगा। छोटे समूह के लोग वाट्सएस की आडियो कॉलिंग में समूह में एक साथ जुड़कर मीटिंग कर लेते हैं। इसके बाद मिले निर्देशों के बाद वे अपना कामकाज शुरू कर देते हैं। अगर बड़े समूह में मीटिंग करनी है तो वीडियों कान्फ्रेसिंग का सहारा लिया जाता है। हिंदी के सभी बहु संस्करण वाले अखबार अपने अलग अलग शहरों में बैठे संपादकों के संग बैठक करने के लिए पहले से ही वीडियो कान्फ्रेंसिंग का सहारा लेते आ रहे हैं। अब लॉकडाउन आने पर इस तरह की बैठकों का सिलसिला और बढ़ गया है।

संकट नए रास्ते दिखा देता है। आपदा अवसर प्रदान करती है। हिन्दुस्तान के पटना संस्करण में काम करने वाले उप संपादक अविनाश मिश्रा मार्च महीन के आखिरी हफ्ते से ही अपने घर वैशाली जिले के सुभई गांव में बैठकर अपने कार्यों को अंजाम दे रहे हैं। अविनाश बताते हैं कि रिलायंस जियो से रोज 1.5 जीबी डाटा मिलता है उससे दफ्तर का काम निपटा लेता हूं। मतलब आप गांव में रहकर भी दफ्तर के काम को अंजाम दे सकते हैं। ये बदलाव कोरोनाकाल में आया है।

राजस्थान पत्रिका – राजस्थान, मध्य प्रदेश,  छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल और कर्नाटक जैसे राज्यों से प्रकाशित बहु संस्करण के समाचारपप पत्र राजस्थान पत्रिका ने भी कोरोना की आहट को देखते हुए कार्य पद्धति में कई बदलाव किए। इस समाचार पत्र से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार निरजंन कंजोलिया बताते हैं कि हमारे अखबार में वर्क फ्राम होम की शुरुआत 21 मार्च से कर दी गई थी। जिन लोगों के घर में कंप्यूटर सिस्टम नहीं थे उन्हें कंप्यूटर दफ्तर की ओर से मुहैय्या कराए गए। चुनौतियां बड़ी थी, पर अखबार ने उसका सामना किया। काफी लोग लंबे समय तक घर से ही अपने कार्यों को अंजाम देते रहे। दफ्तर आने वाले लोगों की सुरक्षा के लिए सभी जरूरी ऊपाय अपनाए गए।

जयपुर अजमेर और कोटा से प्रकाशित राजस्थान के एक और प्रमुख हिंदी दैनिक दैनिक नवज्योति के सलाहकार संपादक योगेंद्र रावत बताते हैं कि कोविड 19 की चुनौतियों के लिए हमारे प्रबंधन ने भी पूरी तैयारी की। स्टाफ की सुरक्षा का पूरा ख्याल रखा गया। दफ्तर के प्रवेश द्वार पर और दफ्तर के अंदर सेनेटाइजेशन के पूरे इंतजाम किए गए। यह प्रबंधन के उठाए गए पहलकदमी रही कि मार्च से जुलाई के दौरान कोरोना का कोई केस दफ्तर के अंदर नहीं आया।

 निष्कर्ष – कोरोना काल में समाचार पत्रों के पत्रकारों के लिए अपनी ड्यूटी को अंजाम देना चुनौतिपूर्ण कार्य रहा है। खास तौर पर संवाददाताओं के लिए जो खबरों संकलन के लिए अलग अलग स्थानों पर भ्रमण भी करते हैं। यह दुखद रहा है कि इस दौरान कई पत्रकारों की कोरोना से संक्रमित होकर मौत भी हो गई। 8 मई 2020 को आगरा में दैनिक जागरण के पत्रकार पंकज कुलश्रेष्ठ की मौत हो गई। 6 जुलाई 2020 को दैनिक भास्कर से जुड़े पत्रकार तरुण सिसौदिया की दुखद मौत दिल्ली एम्स में हो गई। कोरोना संक्रमित होने के बाद उनका उपचार चल रहा था। पर उन्होने निराश होकर आत्महत्या कर ली। वहीं 6 अगस्त 2020 को दैनिक जागरण वाराणसी के वरिष्ठ पत्रकार राकेश चक्रवर्ती को कोरोना ने लील लिया।  मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में शासन द्वारा निर्धारित किए गए कोविड सेंटर चिरायु अस्पताल में नई दुनिया के कोरोना पॉजिटिव पत्रकार श्री सिराज हाशमी की संदिग्ध मौत हो गई। (भोपाल समाचार)  ओडिशा में 12 जुलाई को समाज  दैनिक के पत्रकार प्रियदर्शी पटनायक का कोरोना से निधन हो गया। तमाम सुरक्षा उपायों के बीच देश भर के कई समाचार पत्रों के न्यूज रूम तक कोरोना वायरस ने दस्तक भी दे दी।

17 मार्च 2020 को कोरोना वायरस के खतरे से निपटने में डाक्टरों और नर्सो सहित चिकित्सा कर्मियों की भूमिका तथा जागरुकता फैलाने के लिए मीडिया की सराहना करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी सभी से सतर्क रहने को कहा।

पर इन सब के बीच उन समाचार पत्रों के प्रबंधन का व्यवहार अनुकरणीय है जिन्होंने इस बीमारी के संक्रमण से अपने मानव संसाधन को बचाने के लिए तमाम तरह के जरूरी ऊपाय किए, सावधानियां बरतीं।

संदर्भ –

1 नवभारत टाइम्स https://navbharattimes.indiatimes.com/india/prime-minister-appreciated-the-contribution-of-medical-personnel-media-in-dealing-with-corona-virus/articleshow/74668167.cms

2. हिन्दुस्तान, दैनिक जागरण, अमर उजाला, प्रभात खबर, दैनिक भास्कर, राजस्थान पत्रिका, दैनिक नवज्योति के विभिन्न पत्रकारों से बातचीत।

3. आज समाज के समन्वय संपादक- श्री अजय शुक्ला से बातचीत।

4. https://www.jagran.com/uttar-pradesh/varanasi-city-senior-journalist-rakesh-chaturvedi-working-in-dainik-jagran-varanasi-dies-from-corona-20599836.html

5. https://www.bbc.com/hindi/india-53318400

6 https://www.bhopalsamachar.com/2020/08/bhopal-news_3.html

7. https://insightonlinenews.in/

8. https://www.bbc.com/hindi/india-52054618

-         विद्युत प्रकाश मौर्य – Vidyut Prakash Maurya

-         (MA (hist) BHU, PG Diploma in Journalism from IIMC, Delhi, MMC from GJU, HISAR. UGC NET Quilified.

-         Email- vidyutp@gmail.com

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

Sunday 13 September 2020

बहुमुखी प्रतिभा के धनी संपादक थे श्री माधवकांत मिश्र


श्री माधव कांत मिश्र। एक पत्रकार, एक संपादक, एक ओजस्वी वक्ता, एक आध्यात्मिक संत, एक अभिनेता। उनके व्यक्तित्व के कई पहलू थे। भला अपने कैरियर पहली नौकरी देने वाले को आप कैसे भूल सकते हैं। तो मुझे उन्होंने पहली नौकरी दी थी, 1996 में कुबेर टाइम्स में। पर मैं ही नहीं देश में ऐसे कई सौ पत्रकार होंगे जिन्हे उन्होंने पहला मौका दिया। भरोसा किया। उनमें से कई लोग आज संपादक हैं, बड़े पदों पर हैं। अपनी क्षेत्र के माहिर पत्रकार बने हैं।
माधव कांत मिश्र इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य से एमए करके निकले थे। वे महान साहित्ययकार प्रोफेसर जगदीश गुप्त के दामाद थे। वैसे रहने वाले वे बिहार के भोजपुरी इलाके के थे। पढ़ाई के बाद पत्रकारिता की शुरुआत इलाहाबाद की धरती से की। पर उनके वाणी में जो साहित्यिक अंदाज था उससे लोग उन्हे इलाहाबादी ही समझते थे। उन्हें श्रेय जाता है कई नए अखबारों को संपादक के तौर पर शुरू करने का। पटना से पाटलिपुत्र टाइम्स, बरेली से विश्वमानव, सूर्या इंडिया, कुबेर टाइम्स आदि। वे आज हिंदी दैनिक के दिल्ली ब्यूरो प्रमुख रहे। राष्ट्रीय सहारा में बड़े पदों पर रहे। स्वतंत्र भारत लखनऊ में संपादक बने।

बाद के दिनों में कई धार्मिक चैनलों के भी संपादक बने। आस्था, संस्कार, प्रज्ञा, दिशा जैसे धार्मिक चैनलों से गुजरते हुए एक दिन वे महामंडलेश्वर बन बैठे। गेरुआ बाना धारण कर लिया। उनका नाम हो गया श्री श्री 108 मार्तंड पुरी जी महाराज। इस दौरान वे देश दुनिया का दौरा करते हुए रुद्राक्ष अभियान चला रहे थे। देश भर में रुद्राक्ष के पौधे लगाने के लिए लोगों को प्रेरित करते।

उनके व्यक्तित्व का एक और पक्ष था। वे अच्छे अभिनेता भी थे। कुछ भोजपुरी फिल्मों में अभिनय किया था। दूरदर्शन के कुछ धारावाहिकों और टेली फिल्मों में भी अभिनय किया था।

उनका जन्म 10 जुलाई 1947 को हुआ था। जाने के लिए 73 वर्ष की उम्र वैसे तो ज्यादा नहीं होती, पर 12 सितंबर 2020 को अचानक वे अनंत यात्रा पर प्रस्थान कर गए। महामंडलेश्वर बनने के बाद भी उनसे कई बार मिलना हुआ था। डॉक्टर रामजीलाल जांगिड द्वारा दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज में और कालिंदी कालेज में आयोजित सेमिनार में वे मिले थे।

सन 1995 के अगस्त महीने में आईआईएमसी हिंदी पत्रकारिता की कक्षा में आने वाले पहले अतिथि व्याख्याता पत्रकार थे। जहां मेरा उनसे पहली बार मिलना हुआ था। उसके बार फरवरी 1996 में कुबेर टाइम्स में मेरी पहली नौकरी में वे मेरे पहले संपादक रहे।

अपने सैकड़ों शिष्यों को वे बड़े स्नेह से याद रखते थे। जब जहां वे संपादक रहे। अपनी टीम के लोगों के साथ न कभी बदतमीजी से बात की, न कभी किसी को नौकरी से बर्खास्त किया। हां, अपने ज्ञान और अनुभव से लोगों का मार्गदर्शन करते रहते थे। ऐसे संपादक विरल होते हैं। उनको याद करते हुए, उनके श्रीमुख से सुनी पंक्तियां जो हमेशा याद रहती हैं...
पुण्य हूं न पाप हूं
जो भी अपने आप हूं
अंतर देता दाह
जलने लगता हूं।
अंतर देता राह
चलने लगता हूं।

-         -  विद्युत प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com 
    ( MADHAV KANT MISHRA, MAHAMANDLESHWAR SWAMI MARTAND PURI JI MAHARAJ ) 

हंसराज कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय में 15 अक्तूबर 2013 को भाषा पत्रकारिता पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्टी में। 



Thursday 3 September 2020

परंपरागत गुरु की जगह ले ली ई-गुरु ने


कोरोना काल में गुरु शिष्य के रिश्तों में बड़ा बदलाव आ गया। कई महीने से चल रही ऑनलाइन कक्षाओं ने पठन पाठन का तरीका बदल दिया है। बड़ी संख्या में ऑनलाइन शिक्षा प्रदान करने वाले वेब पोर्टल को प्रचार प्रसार का बड़ा मौका मिला है।

बाइजोस, वेदांतू, लीड स्कूल, अनएकेडमी जैसे पोर्टल से छात्र और कोचिंग करने वाले ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे हैं। इन पोर्टलो का कारोबार सैकड़ो करोड़ का हो गया। ये पोर्टल ऑनलाइन कक्षा, कोचिंग, ट्यूशन सब कुछ प्रदान कर रहे हैं। इससे लगता है कि आने वाले दिनों में स्कूलों के बड़े बड़े भवन बेमानी हो जाएंगे। छात्र एकलव्य की तरह कहीं भी रहकर नामी गिरामी गुरूओं से शिक्षा ग्रहण करेंगे। या तमाम पोर्टल पर पहले से मौजूद ट्यूटोरियल के मदद से पढाई करते नजर आएंगे। कोरोना परंपरागत स्कूलों को बदल कर रख देगा।

कई ऑनलाइन लर्निंग एप कोरोना काल के पहले से काम करने लगे थे। पर महामारी और लॉकडाउऩ ने उनके कामकाज में अचानक उछाल ला दिया। इसके साथ ही हमें यह सोचने को मजबूर कर दिया कि ये ऑनलाइन पढ़ाई क्या परंपरागत स्कूलों के लिए खतरा है।  
बाइजूस (BYJUS) नामक एप  कक्षा 4 से 12 तक के छात्रों के अलावा इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा ( जेईई) और मेडिकल प्रवेश परीक्षा (नीट) की भी तैयारी करवाता है। यह आजकल 5 करोड़ से ज्यादा यूजर होने का दावा करता है। इतना ही नहीं अपने विज्ञापनों में यह डेडिकेटेड ऑनलाइन टीचर मुहैय्या कराने का भी दावा करता है।
इसी तरह का एक और एप है वेदांतू ( VEDANTU ) वेदांतू भी ऑनलाइन स्कूल लर्निंग एप है। यह खास तौर पर 6 से 14 साल के बच्चों के लिए स्कूल लर्निंग एप है। इसके पास अपना शिक्षकों का नेटवर्क है। मतलब वेदांतू पर पढ़िए स्कूल जाना कोई जरूरी नहीं होगा। वेदांतू कक्षा एक से लेकर 12 तक की पढ़ाई के अलावा जेईई और नीट की भी तैयारी करवाता है।  

लीड स्कूल डॉट इन ( www.leadschool.in ) तो सौ फीसदी स्कूल सेवा का दावा करता है। इस स्कूलों के साथ समन्यवय करके लाइव रिकॉर्डेट क्लास, होम वर्क, किसी तरह के शंका निवारण, रिविजन, ऑनलाइन एसेसमेंट जैसी सुविधाएं मुहैय्या कराता है। अगर कोई छात्र स्कूल न जाए तो वह इसके एप और वेबसाइट की सहायता से अपनी पढ़ाई जारी रख सकता है। मुंबई आधारित यह वेबसाइट स्कूलों के साथ बेहतर इंटेग्रेशन का दावा करती है।

अनएकेडमी ( Unacademy) देश के सबसे बड़े लर्निंग प्लेटफार्म होने का दावा करती है।  इसका कारोबार तो इतना बढ़ा है कि वह नामी गिरामी क्रिकेट मैच की स्पांसरशिप लेने को तैयार थी। वह अगले चार साल के लिए आईपीएल की आफिशियल पार्टरन बन चुकी है। इस एजुकेशन स्टार्टअप कंपनी में साफ्टबैंक बड़ी राशि निवेश कर चुका है। आज की तारीख में लाखों युवा इस ऑनलाइन एजुकेशन प्लेटफार्म पर अपना करियर संवारने में लगे हैं। यह यूपीएससी, एसएससी, बैंकिंग, रेलवे, एनडीए, सीडीएस, आईआईटी जेईई, नीट आदि के लिए कोचिंग उपलब्ध कराती है। इतना ही नहीं अलग अलग राज्यों की नौकरियों की प्रवेश परीक्षा, यूजीसी नेट आदि की तैयारी भी कराती है।
इन ऑनलाइन लर्निंग एप का एक लाभ यह भी हुआ है कि छोटे कस्बों और गांवों के छात्रों को अब कोटा, दिल्ली या पटना जाने की कोई जरूरत नहीं। अपने स्मार्टफोन के जरिए वे गांव में रहकर भी किसी बड़ी परीक्षा में सफलता हासिल कर सकते हैं।

कुछ प्रमुख अंतरराष्ट्रीय ऑनलाइन लर्निंग प्लेटफार्म –
1 स्किलशेयर
2 लिंक्डइन लर्निंग
3 मास्टर क्लास
4 यूडेमी
5 इडीएक्स डाट ओआरजी
6 कोर्सएरा डॉट ओआरजी
7 फ्यूचर लर्न डॉट काम 
-      विद्युत प्रकाश मौर्य- vidyutp@gmail.com