Sunday, 13 September 2020

बहुमुखी प्रतिभा के धनी संपादक थे श्री माधवकांत मिश्र


श्री माधव कांत मिश्र। एक पत्रकार, एक संपादक, एक ओजस्वी वक्ता, एक आध्यात्मिक संत, एक अभिनेता। उनके व्यक्तित्व के कई पहलू थे। भला अपने कैरियर पहली नौकरी देने वाले को आप कैसे भूल सकते हैं। तो मुझे उन्होंने पहली नौकरी दी थी, 1996 में कुबेर टाइम्स में। पर मैं ही नहीं देश में ऐसे कई सौ पत्रकार होंगे जिन्हे उन्होंने पहला मौका दिया। भरोसा किया। उनमें से कई लोग आज संपादक हैं, बड़े पदों पर हैं। अपनी क्षेत्र के माहिर पत्रकार बने हैं।
माधव कांत मिश्र इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य से एमए करके निकले थे। वे महान साहित्ययकार प्रोफेसर जगदीश गुप्त के दामाद थे। वैसे रहने वाले वे बिहार के भोजपुरी इलाके के थे। पढ़ाई के बाद पत्रकारिता की शुरुआत इलाहाबाद की धरती से की। पर उनके वाणी में जो साहित्यिक अंदाज था उससे लोग उन्हे इलाहाबादी ही समझते थे। उन्हें श्रेय जाता है कई नए अखबारों को संपादक के तौर पर शुरू करने का। पटना से पाटलिपुत्र टाइम्स, बरेली से विश्वमानव, सूर्या इंडिया, कुबेर टाइम्स आदि। वे आज हिंदी दैनिक के दिल्ली ब्यूरो प्रमुख रहे। राष्ट्रीय सहारा में बड़े पदों पर रहे। स्वतंत्र भारत लखनऊ में संपादक बने।

बाद के दिनों में कई धार्मिक चैनलों के भी संपादक बने। आस्था, संस्कार, प्रज्ञा, दिशा जैसे धार्मिक चैनलों से गुजरते हुए एक दिन वे महामंडलेश्वर बन बैठे। गेरुआ बाना धारण कर लिया। उनका नाम हो गया श्री श्री 108 मार्तंड पुरी जी महाराज। इस दौरान वे देश दुनिया का दौरा करते हुए रुद्राक्ष अभियान चला रहे थे। देश भर में रुद्राक्ष के पौधे लगाने के लिए लोगों को प्रेरित करते।

उनके व्यक्तित्व का एक और पक्ष था। वे अच्छे अभिनेता भी थे। कुछ भोजपुरी फिल्मों में अभिनय किया था। दूरदर्शन के कुछ धारावाहिकों और टेली फिल्मों में भी अभिनय किया था।

उनका जन्म 10 जुलाई 1947 को हुआ था। जाने के लिए 73 वर्ष की उम्र वैसे तो ज्यादा नहीं होती, पर 12 सितंबर 2020 को अचानक वे अनंत यात्रा पर प्रस्थान कर गए। महामंडलेश्वर बनने के बाद भी उनसे कई बार मिलना हुआ था। डॉक्टर रामजीलाल जांगिड द्वारा दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज में और कालिंदी कालेज में आयोजित सेमिनार में वे मिले थे।

सन 1995 के अगस्त महीने में आईआईएमसी हिंदी पत्रकारिता की कक्षा में आने वाले पहले अतिथि व्याख्याता पत्रकार थे। जहां मेरा उनसे पहली बार मिलना हुआ था। उसके बार फरवरी 1996 में कुबेर टाइम्स में मेरी पहली नौकरी में वे मेरे पहले संपादक रहे।

अपने सैकड़ों शिष्यों को वे बड़े स्नेह से याद रखते थे। जब जहां वे संपादक रहे। अपनी टीम के लोगों के साथ न कभी बदतमीजी से बात की, न कभी किसी को नौकरी से बर्खास्त किया। हां, अपने ज्ञान और अनुभव से लोगों का मार्गदर्शन करते रहते थे। ऐसे संपादक विरल होते हैं। उनको याद करते हुए, उनके श्रीमुख से सुनी पंक्तियां जो हमेशा याद रहती हैं...
पुण्य हूं न पाप हूं
जो भी अपने आप हूं
अंतर देता दाह
जलने लगता हूं।
अंतर देता राह
चलने लगता हूं।

-         -  विद्युत प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com 
    ( MADHAV KANT MISHRA, MAHAMANDLESHWAR SWAMI MARTAND PURI JI MAHARAJ ) 

हंसराज कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय में 15 अक्तूबर 2013 को भाषा पत्रकारिता पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्टी में। 



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