Friday 3 October 2008

तो ये महादेव कुशवाहा का सज्जनपुर है....

बहुत दिनों बाद एक ऐसी अच्छी फिल्म देखने में आई है जिसमें कामेडी भी है और गांव की समस्याओं को बड़ी खबूसुरती से उभारा गया है। जी हां हम बात कर रहे हैं श्याम बेनेगल की फिल्म वेलकम टू सज्जनपुर की।
बालीवुड में बनने वाली अमूमन हर फिल्म की कहानी में महानगर का परिवेश होता है, अगर गांव होता है तो सिर्फ नाममात्र का। अब गंगा जमुना और नया दौर जैसी फिल्में कहां बनती हैं। पर श्याम बेनेगल ने एक अनोखी कोशिश की है जिसमें उन्हें शानदार सफलता मिली है। सज्जनपुर एक ऐसा गांव है जहां साक्षरता की रोशनी अभी तक नहीं पहुंची है। ऐसे में फिल्म का हीरो महादेव कुशवाहा ( श्रेयश तलपड़े) जो गांव का पढ़ा लिखा इन्सान है, जिसे बीए पास करने के बाद भी नौकरी नहीं मिल पाई है, गांव के लोगों की चिट्ठियां लिखकर अपनी रोजी रोटी चलाता है। पर महादेव कुशवाहा के साथ इस फिल्म में गांव की जो राजनीति और भावनात्मक रिश्तों का ताना-बाना बुनने की कोशिश की गई है, वह हकीकत के काफी करीब है। पर फिल्म की पटकथा इतनी दमदार है जो कहीं भी दर्शकों को बोर नहीं करती है। कहानी अपनी गति से भागती है, और ढेर सारे अच्छे संदेश छोड़ जाती है। भले ही फिल्म हकीकत का आइना दिखाती है, पर फिल्म का अंत निराशाजनक नहीं है। फिल्म की पटकथा अशोक मिश्रा ने लिखी है।
कहानी का परिवेश मध्य प्रदेश के सतना जिले का एक काल्पनिक गांव है। सज्जनपुर के पात्र भोजपुरी ओर बघेली जबान बोलते हैं जो वास्तविकता के काफी करीब है। कहानी के गुण्डा पात्र हकीकत के करीब हैं, तो अमृता राव कुम्हार कन्या की भूमिका में खूब जंचती है। फिल्म में संपेरा और हिजड़ा चरित्र समाज के उन वर्गों का प्रतिनिधित्व करते हैं जिन्हें हम गाहे-बगाहे भूलाने की कोशिश करते हैं। भोजपुरी फिल्मों के स्टार रवि किशन भी फिल्म में हंसोड़ भूमिका में हैं, लेकिन उनका अंत दुखद होता है। फिल्म की पूरी शूटिंग रामोजी फिल्म सिटी, हैदराबाद में रिकार्ड तीस दिनों में की गई है। लिहाजा वेलकम टू सज्जनपुर एक कम बजट की फिल्म है, जिसने सफलता का स्वाद चखा है। फिल्म ने ये सिद्ध कर दिखाया है कि अगर पटकथा दमदार हो तो लो बजट की फिल्में भी सफल हो सकती हैं। साथ ही फिल्म को हिट करने के लिए मुंबईया लटके-झटके होना जरूरी नहीं है।
भारत की 70 फीसदी आत्मा आज भी गांवों में बसती है, हम उन गांवों की सही तस्वीर को सही ढंग से परदे पर दिखाकर भी अच्छी कहानी का तानाबाना बुन सकते हैं, और इस तरह के मशाला को भी कामर्शियल तौर पर हिट बनाकर दिखा सकते हैं। अशोक मिश्रा जो इस फिल्म के पटकथा लेखक हैं उनका प्रयास साधुवाद देने लायक है। साथ ही फिल्म के निर्देशक श्याम बेनेगल जो भारतीय सिनेमा जगत का एक बडा नाम है, उनसे उम्मीद की जा सकती है, वे गंभीर समस्याओं पर भी ऐसी फिल्म बना सकते हैं जो सिनेमा घरों में भीड़ को खींच पाने में सक्षम हो। अभी तक श्याम बेनेगल को समांतर सिनेमा का बादशाह समझा जाता था। वे अंकुर, मंथन, सरदारी बेगम और जुबैदा जैसी गंभीर फिल्मों के लिए जाने जाते थे। फिल्म का नाम पहले महादेव का सज्जनपुर रखा गया था, पर बाद में फिल्म के नायक श्रेयश तलपड़े के सलाह पर ही इसका नाम वेलकम टू सज्जनपुर रखा गया है। फिल्म की कहानी एक उपन्यास की तरह है। इसमें प्रख्यात उपन्यासकार और कथाकार मुंशी प्रेमचंद की कहानियों और उपन्यासों जैसी गहराई है। पर वेलकम टू सज्जनपुर ऐसी शानदार फिल्म बन गई है जो गांव की कहानी दिखाकर भी महानगरों के मल्टीप्लेक्स में दर्शकों को खींच पाने में कामयाब रही है।
-विद्युत प्रकाश मौर्य


1 comment:

Anonymous said...

vidyut ji Sajjanpur kalpanik nahi Asli gaon hai, Rewa aur satna ke beech,Satna se 12 km dur. lekin Film me iski location Chhatarpur ke pas batai gai hai. Aur haan,purana naam Durjanpur tha jise pandit Nehru ne badal diya,ye kissa film me bhi bataya gaya hai. Rahi baat Baghelkhandi ki to dialogue Baghelkhandi se kafi dur hain.