Wednesday 31 January 2018

मैंने कहा ( कविता )

मैंने कहा - चेहरा 
उसने समझा उदासी।

मैंने कहा - चांद
उसने समझा अमावस।

मैंने कहा इंतजार
उसने समझा बेबसी।

मैंने कहा श्रम
उसने समझा मजबूरी।

मैंने कहा दर्द
उसने समझा रूदन।

क्यों नहीं आई
चेहरे पर मुस्कान। 

चांद क्यों नहीं हुआ
पूरनमासी।

इंतजार में क्यों नहीं हुई
पाने की ललक।

श्रम में क्यों नहीं हुई
साधना।

दर्द में क्यों नहीं आया
मीठेपन का एहसास?

-    विद्युत प्रकाश मौर्य

Monday 29 January 2018

बातें ( कविता )


कुछ ऐसे रिश्ते
रहने भी दो
जिनका कोई नाम न हो
एक जगह ऐसी छोड़ दो खाली
आशियाने में
जहां अनावृत कर सारे
बाह्रय आवरण
उतारकर सारी कृत्रिमता
संभव हो मानव का मानव से
उन्मुक्त मिलन
मिथ्या प्रवचनों
अंशकालिक अनुबंधों
के मध्य कर लो
कुछ ऐसी बातें
जो कभी खत्म न हो
बातें जो कभी खत्म न हो....

-    ----  विद्युत प्रकाश मौर्य



Saturday 27 January 2018

हशरतों का कारवां ( कविता )

हशरतों का कारवां
चल चुका है
तुम चलो या न चलो 
पायल तुम्हारी बज उठेगी
सन्नाटे का सफर 
शेष हुआ
ये आवाज का मौसम है
तुम बोलो या न बोलो
मेहंदी वाले हाथ 
सच्चाई बयां कर ही देंगे
आए हो
एहसास की महफिल में 
तुम गुनगुनाओ या चुप रहो
कजरारे नयनों की चितवन से 
जमाना जान ही जाएगा
बहती रहो तुम
एक धार सुहानी सी 
हम प्यासे भृंग 
तुम्हारे करीब आ ही जाएंगे।


-    विद्युत प्रकाश मौर्य 

Thursday 25 January 2018

सोचता हूं बोल दूं ( कविता )



सोचता हूं बोल दूं  
कि तुम मेरी हो
लेकिन तुम
अनुपम अनुकृति सृष्टि सर्जक की
सिर्फ मेरी और मेरी
कैसे हो सकती हो
तुम का मैं होजाना
और मिल जाना
आकंक्षाओं का आकंक्षाओं से
सपनों का सपनों से
कहीं मौत न हो जाए
कुछ बेहतर संभानाओं की
कुछ सोच सोच कर शब्द रूक जाते हैं
जीवन के मधुवन में
सुनहरे ख्वाबों के
एक नीड़ के निर्माण में
न जाने कितनी देरी हो
फिर फिर सोचता हूं बोल दूं
कि तुम मेरी हो..

-    विद्युत प्रकाश मौर्य


Friday 19 January 2018

हरी हरी घास पर (कविता )

चलो चलकर बैठेंगे
हरी हरी घास पर
सरदी की दोपहर की शरमाई सी
सुनहरी धूप के संग
खाएंगे गरम गरम जलेबी
और देखेंगे ढेर सारे
सपने................
बनाएंगे रेत के महल
क्या हुआ जो महल
अगले ही क्षण टूट-टूट कर
बिखर जाएगा
हम फिर बनाएंगे नया महल
भला हमें सपने देखने से
कौन रोक सकता है....
चलो चलकर बैठेंगे
हरी-हरी घास पर
और जी भर कर निकालेंगे
एक एक कर मन की सारी कुंठाएं
और खारिज करेंगे उन्हें
जो अपनी शान में खुद ही
कसीदे पढ़ने से नहीं अघाते
हरी हरी घास पर हम
भूल जाएंगे कि कल
कितना खराब गुजरा था
हम भूल जाएंगे कि
सितमगर ने कितने सितम
ढाए थे....
हम भूल जाएंगे कि
पिछली दीवाली की रात
कितनी काली थी...
बस याद रखेंगे कि
फूलझडियों की रोशनी के बीच
उसकी सूरत में कितनी
मासूमियत थी
चलो चलकर बैठेंगे
हरी हरी घास पर
और नक्सा निकालकर
ढूंढेगे कोई नया शहर
और नए मुलाकाती
क्योंकि इन मुलाकातों में ही
छीपी है...
भविष्य की कई नई
संभावनाएं...
और सुनहरे ख्वाबों की एक और
दुनिया....
चलो चलकर बैठेंगे
हरी-हरी घास पर ...
-विद्युत प्रकाश ( जनवरी 2003, जालंधर में )

Wednesday 17 January 2018

मेरे शहर में ( कविता )



लोग सरेआम लूट जाते हैं मेरे शहर में
पड़ोसी बेखबर सोते हैं मेरे शहर में

बीमार की खबर लेने कोई जाता नहीं
मौत पे मर्सिया गाते हैं मेरे शहर में

बेबस बाप का दर्द है कितना अनजाना
शादी की दावतें उड़ाते हैं मेरे शहर में

रोटी की तड़प से मर जाते हैं लोग यहां
स्कॉच पानी सी बहाते हैं मेरे शहर में

प्यार का अर्थ बदला-बदला सा है यहां
मुखौटे में चेहरा छुपाते हैं मेरे शहर में


अक्सर लोग रात में जख्म दे जाते हैं
दिन में हाल पूछने आते हैं मेरे शहर में

गमे रोजगार में वे मेरा हाथ थामे थे
आज वे हासिया बनाते हैं मेरे शहर में

- विद्युत प्रकाश मौर्य  ( जून 1994 ) 


Monday 15 January 2018

पहचान (कविता )


भूल आया हूं
अपना नाम पता
गली की उस मोड पर
अंतर्मन की उत्कट
जीजिविषा के बीच
खो चुका हूं
पहचान अपनी............



-विद्युत प्रकाश मौर्य

Saturday 13 January 2018

....कैक्टस.... ( कविता )



कैक्टस, हरीतिमा का प्यार है
ऋतुओं के उतार चढ़ाव में
जब एक एक कर सारे रिश्ते
हो जाते हैं पराए
कैक्टस हरियाली के संग
कठिन घड़ियों में भी
मु्स्कुराता है...
कैक्टस बुनता है
सपने दर सपने
सहाराओं की जेठ में
सावन की सुमधुर याद
को बचाए रखने की
कोशिश में
कैक्टस लिखता है
दुनिया के सबसे खूबसूरत
प्रेम पत्र
बियांबा में खिल उठते हैं फूल
दूर दूर तक रिक्तता
की अनुभूति के मध्य
छोटे से उद्यान में
आभा की मुस्कुराहट
कभी उदास हो जाती है
कभी खिलखिला उठती है
पढ़कर पाती अपने नाम की
कुछ ऐसे हैं अरमान बादल के
बरस जाएं
कैक्टस के आंगन में
मौसम के मार से
बचते बचाते
भरेंगे कुछ रंग
जीवन कानन में
उग आएंगे कुछ और कैक्टस
कैक्टस एक दिन पाट देंगे
सहाराओं को हरीतिमा से.

विद्युत प्रकाश मौर्य, 12 अप्रैल1995

Thursday 11 January 2018

गुलाब के लिए ( कविता )




दिन गुजरता है रोटी की तलाश में
और शाम अक्सर तन्हाई में
हरेक रात होती है अमावस सी
फिर भी दिल में जवां जवां उमंगे हैं
गुलाब के लिए....
परिलोक का रास्ता ढूंढते रह जाएंगे
पूनम के चांद का पता पूछते रह जाएंगे
फिर भी जिंदगी की सबसे हसीन
वसीयत कर जाएंगे
गुलाब के लिए...
वल्लिका की हरियाली चली जाएगी
पंखुड़ी पंखुड़ी मुरझा जाएगी
मधुलिका रिक्त एहसास लिए रह जाएगी
सुगंधों की स्मृति में जीवन सजाएंगे
गुलाब के लिए
कुछ अपने बेगाने हो जाएंगे
कुछ दर्द सयाने हो जाएंगे
हम कल ये शहर छोड़ जाएंगे
मगर कदम फिर फिर लौट आएंगे
गुलाब के लिए
गुलाब के लिए
गुलाब के लिए....

-विद्युत प्रकाश मौर्य
14 फरवरी 1995

Tuesday 9 January 2018

मौन ( कविता )

मौन

मौन को कहकर
सर्वश्रेष्ठ आभूषण
खड़ा किया तुमने
संप्रेषणीयता का संकट
हां, बोल पड़ेंगे हम
देखकर तुम्हारी चुप्पी
कि उदास हो जाया करेंगे
देखकर तुम्हारे चेहरे पर
तनाव की रेखाएं।
एक दिन बहुत दूर ले जाएगी
अपनों को अपनों से ही
संवादहीनता की स्थिति
जीवन की सार्थकता
चंद मधुर संवादों में है
क्या तुम बोलोगी
आज की शाम को
-विद्युत प्रकाश मौर्य
(मार्च , 1995)

Sunday 7 January 2018

अच्छे दोस्त ( कविता )

अच्छे दोस्त अक्सर
वसंत के गुजरने के बाद
पलाश के फूल
बनकर आते हैं।
और ग्रीष्म में साथ छोड़ जाते हैं।

अच्छे दोस्त
सरदी की सुबह में
मीठी नींद का सपना बनकर आते हैं।
दिन भर जाड़े की धूप के संग
उनकी याद बनी रहती है।

अच्छे दोस्तों की स्मृतियां
शामों के अकेलेपन का
संगीत होती हैं।

अच्छे दोस्तों से मुलाकात
अक्सर प्लेटफार्म पर
छूटने को तैयार रेलगाड़ी
के समय होती है।

एक एक पड़ाव को पार करती
जीवन यात्रा
पीछे भागती हरियाली
के साथ अच्छे दोस्त
साथ छोड़ जाते हैं।

अच्छे दोस्त
विदायी की वेला में
कुछ कदम साथ चलने के बाद
कहते हैं कुछ मधुर संवाद
जो जाने को कठिन और
लौटने को असंभव बना देता है।

अच्छे दोस्त हमेशा
जिजीविषा और अकुलाहट में
अभिवृद्धि करते हैं।

जीवन की खुशनुमा शामों को
अक्सर अच्छे दोस्तों की टेबल
खाली रहती है।

अच्छे दोस्त अक्सर
नेह नहीं देते, स्पर्श नहीं देते।
अच्छे दोस्त दे जाते हैं...
वेदना के कुछ पल
यादों का एक अंतहीन मौसम।


-विद्युत प्रकाश मौर्य
(नवंबर , 1995)

Friday 5 January 2018

कितना अच्छा होता ( कविता )


कितना अच्छा होता
अगर ऐसा ही होता।
हम तुम हमेशा कक्षा की बेंच
या महानगर बस में होते।


कितना अच्छा होता
सारा देश ही कालेज होता
और देशवासी छात्र
मैं पंजाब होता
तुम राजस्थानहोती


कितना अच्छा होता
जलगांव के सेक्स स्कैंडल
उत्तराखंड आंदोलन
मुंबई बमकांड
आरक्षण विरोध,समर्थन
की जगह अखबारों में छपा करते
लेह लद्दाख, इस्लामाबाद-कराची
देहरादून मसूरी, ढाका चटगांव
के लोगों के प्रेम पत्र


कितना अच्छा होता
तुम शिमला की शरमाई सी
शाम होती
या बनारस की सुबह...


कितना अच्छा होता
तुम दही और जलेबी होती
और मैं छोला भठूरा


कितना अच्छा होता
कि दिल्ली की कनॉट प्लेस
मुंबई की चौपाटी
कोलकाता का एस्प्लानेड
बंगलोर की मैजेस्टिक बन जाती
हमारे गांव की चौपाल

वहां उग आते कुछ कदम के पेड़
और सरसों के खेत


कितना अच्छा होता
कहीं रोटी की कतार न होती
कहीं खूनी तलवार न होती
दसों दिशाओं में तुम्हारी
शरमाई सी सूरत होती


कितना अच्छा होता
तुम हमेशा इक्कीस की होती
और मैं बाइस का
तुम नोट्स के बहाने
मुझसे मिलने आती
और मैं कलम के बहाने
छू लेता तुम्हारी उंगलियां


कितना अच्छा होता
डिक्सनरी में साइन डाई
और बेरोजगारी जैसे

शब्द न होते
कितना अच्छा होता
बेनकाब हो जाते
सारे बहुरूपियों के चेहरे
फिर जल्दी पहचान लेता जमाना
सुषमा का सौन्दर्य, प्रीत की मुस्कान


कितना अच्छा होता
पहाड़ मैदान और जंगल लोग
समझ लेते एक दूसरे की भाषा
राज करते एक दूसरे के दिलों पर...


कितना अच्छा होता
जाह्नवी, मंदाकिनी
अलकनंदा, पद्मा या फिर या गंगा
जिस नाम से भी मिलती तुम
हम तुम मिलते
जीवन के हर एक मोड़ पर

कितना अच्छा होता....

रेगिस्तान में खिलते गुलमोहर
वहां होता एक गौदौलिया चौराहा
और बांस फाटक का फूल बाजार







कितना अच्छा होता
आधी आबादी फूल होती
और आधी आबादी सौदागर
आधी आबादी फूल होती
और आधी आबादी सौदागर......
कितना अच्छा होता।


- विद्युत प्रकाश मौर्य
( वाराणसी, 12 मार्च 1995 )

Wednesday 3 January 2018

त्रिपुरा –लड़ाई सीपीएम बनाम भाजपा

तीन जनवरी की सुबह। नार्थ त्रिपुरा जिले का कैलाशहर नगर। महिलाएं सड़क पर रैली निकाल रही हैं। जितेगा भाई जितेगा बीजेपी जीतेगा। अभी त्रिपुरा में चुनाव का ऐलान नहीं हुआ है,  पर सड़कों पर प्रचार चरम पर आ चुका है। अगले दिन कैलाशहर बाजार में बीजेपी के साइकिल यात्री नजर आते हैं। वे जन जागरण अभियान निकाल रहे हैं। मैं उन्हें रोककर पूछता हूं। मुद्दा क्या है। वे कहते हैं, नौकरी नहीं है। अस्पतालों में दवाएं नहीं है। डाक्टर नहीं है।

भाजपा के एक कार्यकर्ता कहते हैं, सिलचर जाने वाली पैसेंजर में रोज हजारों मरीज त्रिपुरा से इलाज कराने उधर जा रहे हैं। मैं तीन साल पहले त्रिपुरा आया था। तब मैंने त्रिपुरा को एक ऐसे खुशहाल राज्य के रुप में देखा था जिसे मानिक सरकार संकट से उबार कर विकास के राह पर लेकर आए थे। मानिक सरकार 1998 से त्रिपुरा के मुख्यमंत्री हैं। वैसे राज्य में 1993 में सीपीएम की सरकार है। इस बार भाजपा के लोग कह रहे हैं कि 25 साल के वाम शासन को उखाड़ फेंकेंगे और त्रिपुरा में कमल खिलेगा। हालांकि 20 साल से लगातार मुख्यमंत्री मानिक सरकार पर भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं है, पर भाजपा के लोग कह रहे हैं कि मानिक दादा के मंत्री भ्रष्ट हैं।

त्रिपुरा के कई शहरों में सड़क के दोनों तरफ हर थोड़ी दूर पर भाजपा के झंडे नजर आ रहे है। कहीं कहीं कांग्रेस, त्रिणमूल और सीपीएम के भी झंडे नजर आ रहे हैं। मैं कैलाशहर में एक व्यक्ति से पूछता हूं क्या इस बार सरकार बदल जाएगी.. वे कहते हैं बिल्कुल बदल जाएगी। तो दूसरे व्यक्ति कहते हैं बदलेगी तो नहीं पर इस बार सीपीएम की सीटें घट जाएंगी। भाजपा राज्य में बड़ी पार्टी बनकर उभरेगी। एक तीसरे व्यक्ति बोल पड़ते हैं। राज्य नगरपालिका, नगर पंचायत सब जगह सीपीएम का बोलबाला है, भाजपा का सत्ता में आ जाना इतना आसान नहीं होगा। पर जिस तरह केसरिया झंडे से त्रिपुरा के छोटे छोटे शहर पटे पड़े हैं उससे लगता है कि इस बार मुकाबला दिलचस्प होगा।

अगले दिन उदयपुर शहर में भाजपा की विशाल बाइक रैली के दर्शन हुए। बताया गया कि 4000 बाइक पर रैली निकाली गई उदयपुर शहर में। इसी तरह की बाइक रैली पूरे त्रिपुरा के हर शहर में निकाली गई। रंगबिरंगी रैली में नारा लग रहा था भारत माता की जय। हालांकि रात को राजधानी अगरतला में सीपीएम के लोग भी सड़क पर रैलियां निकालते दिखे। पूरे शहर में जगह जगह भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बिप्लव देव, राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पोस्टर लगे हैं। पर कहीं सीपीएम के मुख्यमंत्री मानिक सरकार का पोस्टर नहीं दिखाई दे रहा है। पर मुख्यमंत्री मानिक सरकार दिन रात काम में व्यस्त हैं। इसकी गवाही अगरतला से छपने वाले बांग्ला के अखबार दे रहे हैं। मानिक सरकार मानते हैं कि इस बार मुकाबला भाजपा से है। पर वे अपनी एक बार फिर जीत को लेकर आश्वस्त हैं। अगर वे इस बार भी जीतते हैं तो वे त्रिपुरा पर 25 साल शासन करने वाले मुख्यमंत्री बन जाएंगे। यानी ज्योति बसु और पवन कुमार चामलिंग की बराबरी पर आ जाएंगे।



अगर सीपीएम की सीटों को देखें तो 2003 के बाद पार्टी की सीटें लगातार बढ़ी हैं। साल 2003 के चुनाव में सीपीएम ने 38 सीटें जीती थीं। पर 2008 में पार्टी ने 46 सीटों पर जीत हासिल की। वहीं साल 2013 में पार्टी ने 49 सीटें जीतीं। राज्य में 60 में आरक्षित 20 जनजातीय सीटों पर तो 19 सीटें सीपीएम के ही खाते में है।

अब तक राज्य में भाजपा लड़ती रही है पर उसे एक भी सीट पर जीत नहीं हासिल हुई थी। पर कांग्रेस से तृणमूल में गए छह विधायक दल बदल कर भाजपा का हिस्सा बन चुके हैं। इस तरह फिलहाल त्रिपुरा विधानसभा में भाजपा के पास छह विधायक हैं। राज्य में भाजपा के प्रभारी सुनील देवधर हैं, जो लंबे समय ने पूर्वोत्तर के राज्यों में काम कर रहे हैं। वे राज्य में भाजपा की जीत दिलाने के लिए दिन रात कोशिश में जुटे हैं।

अगरतला के शंकर चौमुहानी से आगे कृष्णानगर की तरफ भाजपा के दफ्तर में सुबह से शाम तक खूब चहल पहल रहती है। दिन भर प्रचार की रणनीति पर काम हो रहा है। राज्य में लगातार राष्ट्रीय नेताओं की आवाजाही जारी है। पार्टी ने राज्य में बिप्लव देव को अपना चेहरा बनाया है। वे उदयपुर के पास के गांव के रहने वाले हैं। 1998 से 2015 तक त्रिपुरा के बाहर संघ काम देखने वाले बिप्लव अब राज्य में नेतृव करने की कामना से उतरे हैं। पर राहें इतनी आसान भी नहीं है। त्रिपुरा में अपनी जगह बनाने के लिए बीजेपी जनजातियों और इंडिजीनिस पीपल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (आईपीएफटी) को अपने साथ करने की कोशिश कर रही है। हालांकि इस पार्टी का राज्य में कोई खास जनाधार नहीं है।
सीपीएम के नेता भी जीत के लिए राज्य में रैलियां कर रहे हैं। राज्य में सीताराम येचुरी, वृंदा करात की रैलियां हो रही हैं। राज्य को ओलंपियन जिमनास्ट दीपा कर्माकर मुख्यमंत्री मानिक सरकार के साथ मंच साझा करती दिखाई दे रही हैं। पर जो जन आंकक्षाओं का उभार है उसमें सीपीएम नेतृत्व के लिए जवाब देने में मुश्किलें आ रही हैं।


राज्य में मुद्दे – लोग राज्य में ठेके पर बहाल 10 हजार से अधिक शिक्षकों की नौकरी जाने को मुद्दा बना रहे हैं। स्वास्थ्य व्यवस्था में बेहतरी की बात कर रहे हैं। लोग राज्य और बेहतर सुविधाओं की मांग कर रहे हैं। वेतन बढ़ोत्तरी का मुद्दा उठा रहे है। हालांकि त्रिपुरा, बिजली, पानी सड़क जैसी आधारभूत सुविधाओं में काफी आगे निकल चुका है। मुझे कैलाशाहर के सुदूर गांव में नलों से पानी आता दिखाई दे रहा है। भाजपा के लिए मानिक सरकार के खिलाफ गंभीर और बड़े मुद्दे तलाशना मुश्किल हो रहा है। इसलिए मुकाबला दिलचस्प होने वाला है। इतना जरूर है कि पहले लड़ाई सीपीएम बनाम कांग्रेस हुआ करती थी पर इस बार लड़ाई सीपीएम बनाम भाजपा होने वाली है।


त्रिपुरा में विधान सभा सीटें  60  ( इनमें 20 सीटें जनजातीय लोगों के लिए आरक्षित हैं )
2013 के परिणाम सीपीएम 49 कांग्रेस 10 सीपीआई 01

( कांग्रेस के 06 विधायक बाद में तृणमूल कांग्रेस में फिर भाजपा में चले गए ) 

18 जनवरी 2018 को त्रिपुरा में विधानसभा चुनाव का ऐलान हुआ
18 फरवरी को मतदान 
03 मार्च 2018 को आए परिणाम में त्रिपुरा में भाजपा गठबंधन ने 43 सीटें जीतीं। भाजपा को 35 और सहयोगी दल आईपीएफटी को 8 सीटें आईं। सीपीएम 16 सीटों पर जीत सकी। 

-    विद्युत प्रकाश मौर्य