उसने समझा उदासी।
मैंने कहा - चांद
उसने समझा अमावस।
मैंने कहा इंतजार
उसने समझा बेबसी।
मैंने कहा श्रम
उसने समझा मजबूरी।
मैंने कहा दर्द
उसने समझा रूदन।
क्यों नहीं आई
चेहरे पर मुस्कान।
चांद क्यों नहीं हुआ
पूरनमासी।
इंतजार में क्यों नहीं हुई
पाने की ललक।
श्रम में क्यों नहीं हुई
साधना।
दर्द में क्यों नहीं आया
मीठेपन का एहसास?
-
विद्युत प्रकाश मौर्य
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