Saturday, 3 February 2018

सपना अच्छे दिन का... ( कविता )


हर सुबह 

जब मैं उठता हूं
देखता हूं उस लाल सूरज को
संजोता हूं सपना
एक खूबसूरत दिन का


जब जाता हूं नाश्ते की टेबल पर
देखता हूं वहां
आज की ताजा खबर
ताजा की जगह
फिर वही होता है बासी
युद्ध और आतंकवाद के साए में
पलती विश्व की तस्वीर


कोई नहीं जाता
एवरेस्ट पर
हां कुछ बहुएं अवश्य
जलाई जाती हैं..

ये धार्मिक आंदोलन
वो विश्वबंधुत्व का सपना

हां थोड़ी शीतलता
विज्ञापन दे जाते हैं
दुनिया रंगीन और लुभावनी है
वे ये कह जाते हैं।

लेकिन फिर वही मनहूस खबरें
नहीं होने देतीं कभी अपना
मेरे खूबसूरत दिन का सपना।

-             -----   विद्युत प्रकाश मौर्य  ( साल -1992 ) 

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