Tuesday, 13 February 2018

पुराने दोस्तों के संग बातें... ( कविता )


आज मैंने अपनी पुरानी डायरी
के कुछ पन्ने पलटे..
इनमें कुछ पुराने दोस्तो के नाम थे..
वे नाम जो वाट्सएप फेसबुक के जमाने से पहले
मेरे साथ हुआ करते थे...

इनमें से कुछ अब भी साथ हैं
तो कुछ वहीं पड़े हैं पुरानी डायरी के पन्नों में ही...

सोचा चलो चलकर मिलते हैं उनसे
फुरसत में
करेंगे ढेर सारी बातें

वे बातें
जिनका सिलसिला कभी नहीं रुकता

पुराने दोस्त कुछ ऐसे थे
जो फोन करके पूछते थे
नौकरी कैसी चल रही है...

और बेरोजगारी के दिनों में पूछा करते थे
पैसे खत्म हो गए क्या
कहो तो कुछ रुपये भिजवा दूं
जो मैंने अपनी पत्नी से छिपाकर 
अलग से जमा कर रखा है...
जब बन पड़े लौटा देना।

पुराने दोस्त मुझे सीखाते थे
महानगर में रहने का सलीका...

ये सीखाते थे कैसे बचाए जाए
बुरे वक्त के लिए दो पैसा। 
कहते थे बासमती का टुकड़ा चावल 
खरीदा करो... कुछ रुपये बचेंगे..

वे पुराने दोस्त कुछ ऐसे थे
जिनके कंधे पर सिर रखकर
देर तक रोने की इच्छा होती थी

आभासी दुनिया के
इन फेसबुकिया दोस्तों के बीच
पुराने दोस्त कहीं खो गए हैं...

चलो एक बार फिर ढूंढते हैं
पुरानी डायरी से
उनका नाम और पता..

तय करते हैं एक मुलाकात...
और फुटपाथ पर बैठकर
पीएंगे कटिंग चाय...
देर तक लड़ाएंगे गप्प..

और पूछेंगे एक दूसरे से
ये कहां आ गए हम....
यूं दूर- दूर चलते हुए....

-    विद्युत प्रकाश मौर्य  ( मार्च 2017 ) 

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