Monday, 5 February 2018

अब खुशबू नहीं आती ( कविता )

सर्दी की सुबह की मीठी धूप को
कुहरे ने ढक लिया
कुछ पुराने रिश्ते
सह नहीं सके
तेज धूप का तीखापन

कि अब किसी के आने जाने से
खुशबू नहीं आती
चांदी के चंद ठीकरों
के मोह में
कुछ दोस्तों ने गिरवी रख दिया
स्वाभिमान...


दरिद्रता के दौर में जी रहे हैं वो
जो दावा करते थे
सूचना के सौदागर बनने का
जिन्होंने कहा था
वक्त पर काम आएंगे


पहली बरसात में ही
उनके घर की दीवारें रिस गईं
खिड़की और दरवाजे खुले थे
हवा आई और सारा घर
उड़ा कर ले गई...


फिर भी बची है आस्था
नींव के ईंटों में
कि एक दिन लौटकर आएगा
गुजरा जमाना....

-    विद्युत प्रकाश

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