Tuesday 17 July 2012

कहां है आम आदमी का घर....

बाजार में मंदी है। बड़ी प्रापर्टी के दाम में तेजी से गिरावट आ रही है। मुंबई, गुड़गांव नोयडा जैसे शहरों में महंगी प्रोपर्टी के खरीददार नहीं मिल रहे हैं। फिर नई कंपनियां 80-90 लाख और करोड़ों के अपार्टमेंट और पेंट हाउस बनाने का ऐलान कर रही हैं। आम आदमी के लिए या मध्यम वर्ग के लिए घर का ऐलान को भी बिल्डर नहीं कर रहा है। टाटा जैसा समूह जो एक ओर आम आदमी के लिए कार नैनो को बाजार में लांच कर रहा है, उसने हाउसिंग प्रोजेक्ट के क्षेत्र में भी कदम रख दिया है। पर टाटा ने हाउसिंग के क्षेत्र में आम आदमी के लिए घर का ऐलान नहीं किया है। टाटा ने भी रहेजा समूह के साथ मिलकर उच्च आय वर्ग के लोगों के लिए महंगे और लक्जरी आवास बनाने का ऐलान किया है। खास कर दिल्ली और उसके आसपास के शहरों में देखा जाए तो यहां मध्यम वर्ग और निम्न आय वर्ग के लोगों के लिए घर बहुत कम हैं। एक ओर जहां इसको लेकर सरकार उदासीन है वहीं निजी बिल्डर भी महंगे मकानों को ही प्राथमिकता दे रहे हैं।

 कई साल बाद दिल्ली विकास प्राधिकरण ( डीडीए) ने अपनी आवासीय योजना का ऐलान किया है जिसमें आम आदमी के लिए घर हैं। पर घर हैं सिर्फ पांच हजार और आवेदन होने की उम्मीद है पांच लाख। डीडीए की योजनाएं कई-कई सालों बाद निकलती हैं। डीडीए जितने फ्लैट्स बनाती वह लोगों की जरूरत के हिसाब से देखा जाए तो ऊंट के मुंह में जीरा जैसा साबित होता है। लाखों लोग दिल्ली जैसे महानगर में जिंदगी गुजार देते हैं पर वे अपना फ्लैट नहीं खरीद पाते क्योंकि उनके लिए मिड्ल क्लास प्रोजेक्ट कहीं निकलते ही नही हैं। आम आदमी को कार का सपना दिखाने वाली कंपनी टाटा को चाहिए कि वह आम आदमी के घर का प्रोजेक्ट भी लांच करे। आजकल ज्यादा परिवार छोटे हो रहे हैं। ऐसे में एक कमरे और दो कमरे वाले घरों की जबरदस्त मांग है। अगर निजी ब्लिडर इस तरह के बहुमंजिले अपार्मेंट्स का निर्माण करें तो उसके ग्राहक तेजी से मिलेंगे। जैसी मंदी इन दिनों प्रोपर्टी के बाजार में आई है उसमें महंगे और लक्जरी अपार्टमेंट के ग्राहक बहुत कम मिल रहे हैं, जिससे मजबूर होकर बड़े बिल्डरों को महंगे घरों का दाम कम करना पड़ रहा है। जिस तरह एफएमसीजी गुड्स के मामले में पांच-दस रूपये की चीजें बड़ी तेजी से बिकती हैं उसी तरह अगर पांच दस लाख रुपये के घर बनाए जाएं तो उसके भी ग्राहक बड़ी संख्या में मिलेंगे। इस मामले में सरकार को और सभी प्रमुख बिल्डरों को गंभीरता से सोचना होगा। ऐसी सस्ती परियोजनाओं के आने से आम आदमी के घर का सपना साकार हो सकेगा।
अगर हम दिल्ली, नोयडा, फऱीदाबाद, गुड़गांव, गाजियाबाद की प्रोपर्टी पर नजर डालें तो वहां वन रूम और टू रूम के प्रोजेक्ट बहुत कम हैं। ऐसे में कम आय वाले व्यक्ति के पास लोन लेकर घर खरीदने का विकल्प नहीं रह जाता है। ऐसा नहीं है कि छोटे आवासीय यूनिट बनाने में बिल्डरों को कोई लाभ नहीं होता है, पर मोटे लाभ की उम्मीद में बिल्डर ज्यादातर बड़े घर बनाते हैं। ऐसे मामले में सरकार को पालिसी बनानी चाहिए कि बिल्डर एक ही आवासीय प्रोजेक्ट में हर आय वर्ग के लोगों के लिए घर बनाएं। अगर हम दिल्ली की तुलना में मुंबई को देखें तो वहां छोटे आवासीय अपार्टमेंट बडी़ संख्या में बने हैं, ऐसे में वहां पर एक फ्लैट खरीदना दिल्ली की तुलना में आसान है।