Saturday, 13 January 2018

....कैक्टस.... ( कविता )



कैक्टस, हरीतिमा का प्यार है
ऋतुओं के उतार चढ़ाव में
जब एक एक कर सारे रिश्ते
हो जाते हैं पराए
कैक्टस हरियाली के संग
कठिन घड़ियों में भी
मु्स्कुराता है...
कैक्टस बुनता है
सपने दर सपने
सहाराओं की जेठ में
सावन की सुमधुर याद
को बचाए रखने की
कोशिश में
कैक्टस लिखता है
दुनिया के सबसे खूबसूरत
प्रेम पत्र
बियांबा में खिल उठते हैं फूल
दूर दूर तक रिक्तता
की अनुभूति के मध्य
छोटे से उद्यान में
आभा की मुस्कुराहट
कभी उदास हो जाती है
कभी खिलखिला उठती है
पढ़कर पाती अपने नाम की
कुछ ऐसे हैं अरमान बादल के
बरस जाएं
कैक्टस के आंगन में
मौसम के मार से
बचते बचाते
भरेंगे कुछ रंग
जीवन कानन में
उग आएंगे कुछ और कैक्टस
कैक्टस एक दिन पाट देंगे
सहाराओं को हरीतिमा से.

विद्युत प्रकाश मौर्य, 12 अप्रैल1995

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