चल चुका है
तुम चलो या न चलो
पायल तुम्हारी बज उठेगी
सन्नाटे का सफर
शेष हुआ
ये आवाज का मौसम है
तुम बोलो या न बोलो
मेहंदी वाले हाथ
सच्चाई बयां कर ही देंगे
आए हो
एहसास की महफिल में
तुम गुनगुनाओ या चुप रहो
कजरारे नयनों की चितवन से
जमाना जान ही जाएगा
बहती रहो तुम
एक धार सुहानी सी
हम प्यासे भृंग
तुम्हारे करीब आ ही जाएंगे।
- विद्युत
प्रकाश मौर्य
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