तीन जनवरी
की सुबह। नार्थ त्रिपुरा जिले का कैलाशहर नगर। महिलाएं सड़क पर रैली निकाल रही
हैं। जितेगा भाई जितेगा बीजेपी जीतेगा। अभी त्रिपुरा में चुनाव का ऐलान नहीं हुआ है, पर सड़कों पर प्रचार चरम पर आ चुका है।
अगले दिन कैलाशहर बाजार में बीजेपी के साइकिल यात्री नजर आते हैं। वे जन जागरण
अभियान निकाल रहे हैं। मैं उन्हें रोककर पूछता हूं। मुद्दा क्या है। वे कहते हैं,
नौकरी नहीं है। अस्पतालों में दवाएं नहीं है। डाक्टर नहीं है।
भाजपा के एक
कार्यकर्ता कहते हैं, सिलचर जाने वाली पैसेंजर में रोज हजारों मरीज
त्रिपुरा से इलाज कराने उधर जा रहे हैं। मैं तीन साल पहले त्रिपुरा आया था। तब
मैंने त्रिपुरा को एक ऐसे खुशहाल राज्य के रुप में देखा था जिसे मानिक सरकार संकट
से उबार कर विकास के राह पर लेकर आए थे। मानिक सरकार 1998 से त्रिपुरा के मुख्यमंत्री
हैं। वैसे राज्य में 1993 में सीपीएम की सरकार है। इस बार भाजपा के लोग कह रहे हैं
कि 25 साल के वाम शासन को उखाड़ फेंकेंगे और त्रिपुरा में कमल खिलेगा। हालांकि 20
साल से लगातार मुख्यमंत्री मानिक सरकार पर भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं है,
पर भाजपा के लोग कह रहे हैं कि मानिक दादा के मंत्री भ्रष्ट हैं।
त्रिपुरा के
कई शहरों में सड़क के दोनों तरफ हर थोड़ी दूर पर भाजपा के झंडे नजर आ रहे है। कहीं
कहीं कांग्रेस, त्रिणमूल और सीपीएम के भी झंडे नजर आ रहे हैं। मैं
कैलाशहर में एक व्यक्ति से पूछता हूं क्या इस बार सरकार बदल जाएगी.. वे कहते हैं
बिल्कुल बदल जाएगी। तो दूसरे व्यक्ति कहते हैं बदलेगी तो नहीं पर इस बार सीपीएम की
सीटें घट जाएंगी। भाजपा राज्य में बड़ी पार्टी बनकर उभरेगी। एक तीसरे व्यक्ति बोल
पड़ते हैं। राज्य नगरपालिका, नगर पंचायत सब जगह सीपीएम का
बोलबाला है, भाजपा का सत्ता में आ जाना इतना आसान नहीं होगा।
पर जिस तरह केसरिया झंडे से त्रिपुरा के छोटे छोटे शहर पटे पड़े हैं उससे लगता है
कि इस बार मुकाबला दिलचस्प होगा।
अगले दिन
उदयपुर शहर में भाजपा की विशाल बाइक रैली के दर्शन हुए। बताया गया कि 4000 बाइक पर
रैली निकाली गई उदयपुर शहर में। इसी तरह की बाइक रैली पूरे त्रिपुरा के हर शहर में
निकाली गई। रंगबिरंगी रैली में नारा लग रहा था – भारत माता की जय। हालांकि रात को राजधानी अगरतला में सीपीएम के लोग भी
सड़क पर रैलियां निकालते दिखे। पूरे शहर में जगह जगह भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष
बिप्लव देव, राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी के पोस्टर लगे हैं। पर कहीं सीपीएम के मुख्यमंत्री मानिक सरकार का
पोस्टर नहीं दिखाई दे रहा है। पर मुख्यमंत्री मानिक सरकार दिन रात काम में व्यस्त
हैं। इसकी गवाही अगरतला से छपने वाले बांग्ला के अखबार दे रहे हैं। मानिक सरकार
मानते हैं कि इस बार मुकाबला भाजपा से है। पर वे अपनी एक बार फिर जीत को लेकर
आश्वस्त हैं। अगर वे इस बार भी जीतते हैं तो वे त्रिपुरा पर 25 साल शासन करने वाले
मुख्यमंत्री बन जाएंगे। यानी ज्योति बसु और पवन कुमार चामलिंग की बराबरी पर आ
जाएंगे।
अगर सीपीएम
की सीटों को देखें तो 2003 के बाद पार्टी की सीटें लगातार बढ़ी हैं। साल 2003
के चुनाव में सीपीएम ने 38 सीटें जीती थीं। पर
2008 में पार्टी ने 46 सीटों पर जीत
हासिल की। वहीं साल 2013 में पार्टी ने 49 सीटें जीतीं। राज्य में 60 में आरक्षित 20 जनजातीय सीटों पर तो 19 सीटें सीपीएम के ही खाते में
है।
अब तक राज्य
में भाजपा लड़ती रही है पर उसे एक भी सीट पर जीत नहीं हासिल हुई थी। पर कांग्रेस से
तृणमूल में गए छह विधायक दल बदल कर भाजपा का हिस्सा बन चुके हैं। इस तरह फिलहाल
त्रिपुरा विधानसभा में भाजपा के पास छह विधायक हैं। राज्य में भाजपा के प्रभारी
सुनील देवधर हैं, जो लंबे समय ने पूर्वोत्तर के राज्यों में काम कर
रहे हैं। वे राज्य में भाजपा की जीत दिलाने के लिए दिन रात कोशिश में जुटे हैं।
अगरतला के
शंकर चौमुहानी से आगे कृष्णानगर की तरफ भाजपा के दफ्तर में सुबह से शाम तक खूब चहल
पहल रहती है। दिन भर प्रचार की रणनीति पर काम हो रहा है। राज्य में लगातार
राष्ट्रीय नेताओं की आवाजाही जारी है। पार्टी ने राज्य में बिप्लव देव को अपना
चेहरा बनाया है। वे उदयपुर के पास के गांव के रहने वाले हैं। 1998 से 2015 तक
त्रिपुरा के बाहर संघ काम देखने वाले बिप्लव अब राज्य में नेतृव करने की कामना से
उतरे हैं। पर राहें इतनी आसान भी नहीं है। त्रिपुरा में अपनी जगह बनाने के लिए बीजेपी जनजातियों और इंडिजीनिस पीपल्स
फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (आईपीएफटी) को अपने साथ करने की कोशिश कर रही है। हालांकि इस पार्टी का राज्य में कोई खास जनाधार नहीं है।
सीपीएम के
नेता भी जीत के लिए राज्य में रैलियां कर रहे हैं। राज्य में सीताराम येचुरी, वृंदा करात की रैलियां हो रही हैं। राज्य को ओलंपियन
जिमनास्ट दीपा कर्माकर मुख्यमंत्री मानिक सरकार के साथ मंच साझा करती दिखाई दे रही
हैं। पर जो जन आंकक्षाओं का उभार है उसमें सीपीएम नेतृत्व के लिए जवाब देने में
मुश्किलें आ रही हैं।
राज्य में
मुद्दे – लोग राज्य में ठेके पर बहाल 10 हजार से अधिक शिक्षकों की नौकरी जाने को मुद्दा बना
रहे हैं। स्वास्थ्य व्यवस्था में बेहतरी की बात कर रहे हैं। लोग राज्य और बेहतर
सुविधाओं की मांग कर रहे हैं। वेतन बढ़ोत्तरी का मुद्दा उठा रहे है। हालांकि
त्रिपुरा, बिजली, पानी सड़क जैसी
आधारभूत सुविधाओं में काफी आगे निकल चुका है। मुझे कैलाशाहर के सुदूर गांव में
नलों से पानी आता दिखाई दे रहा है। भाजपा के लिए मानिक सरकार के खिलाफ गंभीर और
बड़े मुद्दे तलाशना मुश्किल हो रहा है। इसलिए मुकाबला दिलचस्प होने वाला है। इतना
जरूर है कि पहले लड़ाई सीपीएम बनाम कांग्रेस हुआ करती थी पर इस बार लड़ाई सीपीएम
बनाम भाजपा होने वाली है।
त्रिपुरा में
विधान सभा सीटें – 60 ( इनमें 20 सीटें जनजातीय लोगों के लिए
आरक्षित हैं )
2013 के
परिणाम – सीपीएम 49 कांग्रेस 10 सीपीआई 01
( कांग्रेस
के 06 विधायक बाद में तृणमूल कांग्रेस में फिर भाजपा में चले गए )
18 जनवरी 2018 को त्रिपुरा में विधानसभा चुनाव का ऐलान हुआ
18 फरवरी को
मतदान
03 मार्च 2018 को आए परिणाम में त्रिपुरा में भाजपा गठबंधन ने 43 सीटें जीतीं। भाजपा को 35 और सहयोगी दल आईपीएफटी को 8 सीटें आईं। सीपीएम 16 सीटों पर जीत सकी।
- विद्युत प्रकाश मौर्य
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