Thursday, 11 January 2018

गुलाब के लिए ( कविता )




दिन गुजरता है रोटी की तलाश में
और शाम अक्सर तन्हाई में
हरेक रात होती है अमावस सी
फिर भी दिल में जवां जवां उमंगे हैं
गुलाब के लिए....
परिलोक का रास्ता ढूंढते रह जाएंगे
पूनम के चांद का पता पूछते रह जाएंगे
फिर भी जिंदगी की सबसे हसीन
वसीयत कर जाएंगे
गुलाब के लिए...
वल्लिका की हरियाली चली जाएगी
पंखुड़ी पंखुड़ी मुरझा जाएगी
मधुलिका रिक्त एहसास लिए रह जाएगी
सुगंधों की स्मृति में जीवन सजाएंगे
गुलाब के लिए
कुछ अपने बेगाने हो जाएंगे
कुछ दर्द सयाने हो जाएंगे
हम कल ये शहर छोड़ जाएंगे
मगर कदम फिर फिर लौट आएंगे
गुलाब के लिए
गुलाब के लिए
गुलाब के लिए....

-विद्युत प्रकाश मौर्य
14 फरवरी 1995

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