भले ही कई निर्माताओं ने फिल्में बनाने के
सिलसिले में खुद को समय के अनुसार बदल लिया हो पर राजश्री ने अपनी परंपराओं को बचा
कर रखा हुआ है। वे आज भी कहानी चुनने में पूरी सावधानी बरतते हैं और ऐसी ही
फिल्में बनाते हैं जो भारतीय परिवार की सांसकृतिक परंपराओं को बचा कर रखती हो।
उनका हाल में प्रदर्शित फिल्म विवाह इसी का ताजा उदाहरण है। उन्होंने उस दौर में
भी जबकि छोटा परदा भी नंगापन परोसने में पीछे नहीं है एक साफ सुथरी फिल्म देने की
कोशिश की है। राजश्री की फिल्मों की विशेषता रही है कि फिल्म हिट होने पर ऐसा सामाजिक
प्रभाव छोड़ती है कि लोग अपनी जड़ों की ओर लौटने की कोशिश करते हैं। जब हम आपके हैं
कौन सुपर हिट हुई तो शादी विवाह समारोहों में जूता जुराने की रश्म फिर से जीवित हो
गई। इसके साथ ही फिल्म में पारिवारिक रिश्तों के बीच जिस सम्मान का भाव था उसे भी लोगों
ने काफी गहराई से आत्मसात किया। यानी हम यों कहें कि राजश्री जब कोई अच्छी फिल्म बनाती
है तो उससे समाज में कमजोर होते रिश्ते नाते को एक मजबूती मिलती है, एक नया आयाम मिलता है तो
कत्तई गलत नहीं होगा।
राजश्री की हर फिल्म में भारतीयता की खूशबु होती
है। हालांकि यश चोपड़ा भी कभी कभी और सिलसिला जैसी फिल्में बनाने के साथ पारिवारिक
फिल्मों के लिए ही जाने जाते थे। उनकी फिल्म चांदनी, लम्हे और दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे भी इसी
पृष्ठभूमि पर केंद्रित थीं। पर दिल तो पागल है के बाद यश चोपड़ा की फिल्मों का स्वरूप
बदलने लगा है। उन्होंने एमटीवी और चैनल वी की पीढ़ी से प्रभावित पीढ़ी के लिए
फिल्में बनानी आरंभ कर दी। दिल वाले दुल्हिनया ले जाएंगे में पूरब और पश्चिम का
संगम देखने के मिला था। पर अब यश चोपड़ा की फिल्मों में पश्चिमी बयार ही बह रही
है। अब यश चोपड़ा का प्रोडक्शन हाउस भी राजश्री की तरह ही बाहरी निर्माताओं से
फिल्में बनवाने लगा है। पर वे सब लोग भी उसी तरह की फिल्में बना रहे हैं।
2006 में प्रदर्शित सलाम नमस्ते में तो बिल्कुल नई मान्यताएं देखने को
मिली। इसमें हीरो में सभी स्त्रियोचित गुण देखे जा सकते हैं। वह इंजीनयरिंग पढ़कर
भी खाना पकाने का काम करता है। पर इसके उलट राजश्री ने जिन बाहरी निर्देशकों से
अपने लिए फिल्में बनावाई उन्होंने भी बिल्कुल साफ सुथरी फिल्में बनाई। कमोबेश यश
चोपड़ा की राह पर कर जौहर भी चल रहे हैं। उनकी इस साल प्रदर्शित फिल्म कभी अलविदा
ना कहना में कहानी का तानाबाना विवाहेत्तर संबंधों के आसपास घूमता है। हम अभी ऐसी
कहानी को भारतीय परिवेश में आत्मसात करने को तैयार नहीं हैं।
हम यह नहीं कह सकते हैं कि जैसी कथानक का
चयन करन जौहर और यश चोपड़ा जैसे निर्माता कर रहे हैं वैसे पात्र समाज में नहीं हैं।
समाज में तो अच्छे बुरे पात्र हमेशा ही मौजूद रहे हैं। पर यह निर्माता पर निर्भऱ
करता है कि वह फिल्म बनाते समय कैसे पात्रों का चयन करे। यह ध्रुव सत्य बात है कि
फिल्मों का समाज पर व्यापक प्रभाव पड़ता है। लोग अपने हीरो की नकल करते हैं ऐसे
में प्रोड्यूसर का दायित्व बनता है कि वह कहानी के चयन में गंभीरता बरते। इस मामले
मे यश चोपड़ा और करण जौहर जैसे लोग चुक गए लगते हैं। वहीं सूरज बड़जात्या ने अपनी
पारिवारिक परंपरा को न सिर्फ बचाए रखा है बल्कि उसे बड़ी ही सुंदरता से आगे बढ़ा रहे
हैं।
विद्युत प्रकाश vidyutp@gmail.com
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