युग की जडता के खिलाफ एक इन्क्लाब है।
हिंद के जवानों का एक सुनहरा ख्वाब है।
भारतीय सांस्कृतिक क्रांति, मानवीय सांस्कृतिक क्रांति
व्योम में हमारी पहुंच बढ़ रही है आज पर
दूर हो रहा है घर पडोसी का
आदमी को आदमी के करीब लाएगी...
भारतीय सांस्कृतिक क्रांति, मानवीय सांस्कृतिक क्रांति
आदमी भविष्य में यंत्र का न हो गुलाम,
मानवीय गुण बढ़ेंगे काम से
ऐसे योग मुक्त काम हर जगह चलाएगी...
भारतीय सांस्कृतिक क्रांति, मानवीय सांस्कृतिक क्रांति
लेके हाथ हल कुदाल और ज्ञान की मसाल,
आओ चलें साथ साथ गांव को
क्योंकि गांव गांव से दीनता मिटाएगी...
भारतीय सांस्कृतिक क्रांति, मानवीय सांस्कृतिक क्रांति।
( रचना - अशोक भार्गव)
करें राष्ट्र निर्माण बनाएं....
करें राष्ट्र निर्माण बनाएं....
करें राष्ट्र निर्माण बनाएं, मिट्टी से अब सोना
शस्य श्यामला सुजला सुफला धरती के हम वासी
फिर क्यों अपने महादेश की जनता रहे उपासी
अन्न धान्य से भर दें अपने घर का कोना कोना। मिट्टी से अब सोना...
गंगा जमुना यहां बहाती, अमृत की धारा
ब्रह्मपुत्र कृष्णा कावेरी, जल है पय से प्यारा
पय की धारा से धरती का सूखा भाग भिगोना। मिट्टी से अब सोना...
सागर हमको देता अपने दूत जलद गंभीर
और हिमालय देता हमको शीतल मंद समीर
गर्वोन्नत मस्तक रख कहता, कभी न विचलित होना। मिट्टी से अब सोना...
आज हमारे दिव्य देश में प्रजातंत्र सुखदाई,
प्रजातंत्र का काम प्रजा की होती रहे भलाई
यहां एक ही घाट पर पिए जल, सिंह और मृग छौना। मिट्टी से अब सोना...
स्वप्न स्वर्ग का धरती पर उतरेगा श्रम के द्वारा
आज पसीने की बूंदों में छिपा भविष्य हमारा
अब आराम हराम राष्ट्र से, द्रोह एक पल खोना। मिट्टी से अब सोना...
शांति के सिपाही चले....
शांति के सिपाही चले, क्रांति के सिपाही चले
लेके खैरख्वाही चले, रोकने तबाही चले
बैर भाव तोड़ने, दिल को दिल से जोड़ने
कौम को संवारने जान अपनी वारने। रोकने तबाही....
विश्व के ये पासवां, लेके सेवा का निसां
भिरुता से सावधान, चल पड़े हैं बेगुमां। रोकने तबाही...
सत्य की संभाल ढाल, अहिंशा की ले मशाल
धरती मां के नौनिहाल, निकल पड़े सुचाल। रोकने तबाही...
जय जगत पुकार के, बढ़ रहे बिना रुके
लेके दिल के वलवले, अपने ध्येय को चले। रोकने तबाही...
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करवटें बदल रहा है करवटें...
करवटें बदल रहा है करवटें
आज सब जहान. आज सब जहान
रंग बदलते जा रहा है
धरती आसमान. धरती आसमान।
रंग बदलते जा रहा है
धरती आसमान. धरती आसमान।
क्यों न हम कदम
बढा सकें समय के साथ
क्यों न छेड़े हम
बदलती जिंदगी के तार।
अब न रोके से रूकेंगे
जिंदगी की राह.
अब नहीं रुकेंगे जहां
रूकती है निगाह।
हम मिलेंगे और मिलेंगे
कंधे और कदम
एक हो निशान अपना
एक ही निशान..
करवटें बदल रहा है करवटें
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तू तो नौजवान है, इस जगत की शान है
तेरे दम से ही बना देश यह महान है।
पाट दो जमीन पर नफरतों की खाइयां
दूर हो समाज की सारी बुराइयां
हौसले पे तेरे सारे विश्व को गुमान है।
तू तो नौजवान है...
जात पात तोड़ दो , वैमन्य छोड़ दो
शांति के समुद्र से राह जग की जोड दो
एक नवीन विश्व का तू बना निशान है।।
तू तो नौजवान है...
इस पवित्र भूमि पर स्वर्ग है उतारना
पटना - 3 दिसंबर 1993 - सदभावना रेल यात्रा का स्वागत। |
श्रम के इसके रूप को है तुम्हे संवारना
तू ही तो है कहीं श्रमिक और कहीं किसान है।
तू तो नौजवान है..
हर हृदय में प्यार की ज्योति जगमगाएगी
मुश्किलों भी आ तुझे अपना सर झुकाएगी
तेरी मुस्कुराहटों से वह कह रहा जहान है।
तू तो नौजवान है....
आंधियां भी आंएगी चक्रवात भी आएगा।
एकता को तेरी तो कभी न बांट पाएगा
क्योंकि तू अजेय और अभेद्य आसमान है।
तू तो नौजवान है...इस जगत की शान है।।
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