Tuesday, 18 September 2018

मूक फिल्मों के दौर में तीन दिन

देश की पहली कामर्सियल फिल्म राजा हरिश्चंद्र 1913 में बनी। ये बात सभी जानते हैं। पर दादा साहब फाल्के की यह मूक फिल्म कितने लोगों ने देखी। राजा हरिश्चंद्र समेत दादा साहेब फाल्के की कई और मूक फिल्मों को देखने का सौभाग्य मिला दिल्ली के इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर फार आर्ट्स में 14 से 16 सितंबर 2018 के बीच हुए मूक फिल्म समारोह में।
पत्रकार इकबाल रिजवी की पुस्तक पोस्टर बोलते हैं का विमोचन भी हुआ। ( 14  सितंबर 2018 ) 


यह अतीत में खो जाने का एक सुनहरा मौका था। समारोह के दौरान विषय परावर्तन करते हुए आईजीएनसीए के डाक्टर सचिदानंद जोशी ने मूक फिल्मों के महत्व को काफी सुगम ढंग से रेखांकित किया। इसे सफल बनाने में वरिष्ठ पत्रकार सुरेश शर्मा की बड़ी भूमिका रही। पहले दिन मूक फिल्म समरोह के उदघाटन के मौके पर प्रसिद्ध फिल्मकार श्याम बेनेगल और पटकथा लेखक अतुल तिवारी मौजूद थे।

दादा साहेब फाल्के की राजा हरिश्चंद्र – 1913
सिनेमा के अतीत के दौर पर सार्थक चर्चा के बाद दादा साहेब फाल्के की उस फिल्म का प्रदर्शन हुआ जिसने भारतीय सिनेमा जगत के इतिहास की नींव रखी। ये फिल्म सिर्फ 14 मिनट की बची है। फिल्म में कहानी को आगे बढ़ाने के लिए बीच बीच में अंग्रेजी-हिंदी में शीर्षकों का सहारा लिया गया था। पुणे फिल्म आर्काईव ने इसका डिजिटल वर्जन बनाने के साथ बैक स्कोर म्युजिक लगा दिया है। दादा साहेब फाल्के ने राजा हरिश्चंद्र की कहानी के लिए मार्कडेय पुराण की कथा को आधार बनाया था। फिल्म की कहानी में महर्षि विश्वामित्र विलेन की भूमिका में हैं,  हालांकि फिल्म का अंत सुखांत है। बाद में राजा हरिश्चंद्र पर कई और फिल्में भी बनीं। खुद दादा साहेब फाल्के 1943 के बाद इस फिल्म को सवाल बनाना चाहते थे। पर उनके गरम दल से जुड़ाव के कारण ब्रिटिश सरकार ने उन्हें अनुमति नहीं दी। देश आजाद होने से पहले दादा साहब का निधन हो चुका था। 


1400 मूक फिल्में बनी 1913 से 1931 के बीच।

09 फिल्में ही उपलब्ध है मूक दौर की बाकी सारी फिल्में नष्ट हो गईं।

1944 में 16 फरवरी को दादा साहेब फाल्के का निधन हो गया। 


1870 में 30 अप्रैल को फाल्के साहब का जन्म नासिक जिले में तीर्थ स्थल त्रयंबकेश्वर में हुआ था। 


पहले दिन समारोह में दादा साहेब फाल्के की 1918 में बनी श्रीकृष्ण जन्म और 1919 में बनी कालिया मर्दन का प्रदर्शित की गईं। श्रीकृष्ण जन्म का 12 मिनट का और कालिया मर्दन का 48 मिनट का फुटेज उपलब्ध है।

मूक फिल्म समारोह के तीसरे और आखिरी दिन 1903 में बनी फिल्म लाइफ एंड पैसन ऑफ जीसस क्राइस्ट देखने का मौका मिला। यह विश्व की शुरुआती फीचर फिल्मों में शामिल की जाती है। दादा साहेब फाल्के फ्रांस में बनी इस फिल्म से बहुत प्रेरित थे। उन्होंने लंदन में इस फिल्म के कई शो देखे थे। उन्हें इस फिल्म को देखकर ही भारत में फिल्में बनाने की प्रेरणा मिली थी।

इस शो में हमें दादा साहेब की अगली फिल्म लंका दहन देखने का मौका मिला । यह फिल्म 1917 में बनी थी। पर इस फिल्म की अब महज 5 मिनट की फुटेज ही उपलब्ध है। इसमें अशोक वाटिका का दृश्य है। अन्ना सालुंके ने इसमें दोहरी भूमिकाएं की थी। फिल्म में दादा साहेब फाल्के के कैमरामैन गणपत शिंदे हनुमान बने हैं। ये भारतीय फिल्मों के इतिहास में पहला डबल रोल था।

क्या आपको पता है कि 1928 में बनी शिराज ताजमहल पर बनी पहली फिल्म थी। एक घंटे 24 मिनट की इस मूक फिल्म में ताजमहल की कहानी बिल्कुल अलग अंदाज में है। इसकी कहानी निरंजनपाल ने लिखी थी। वे गरम दल के नेता बिपिन चंद्रपाल के बेटे थे। 

फिल्म शिराज का दृश्य ( 1928 ) 
शिराज की कहानी शाहजहां और उसकी रानी मुमताज की प्रेम कहानी तो है। पर शिराज इसमें वह चरित्र है जिसके घर बचपन में नूरजहां पली थी। शिराज भी नूरजहां से प्रेम करता था। इस फिल्म की कहानी के मुताबिक शिराज ही ताजमहल का वास्तुकार है। हालांकि निरंजन पाल को शिराज की कहानी कहां से मिली ये नहीं पता चलता। ये फिल्म ब्रिटेन और जर्मनी के फिल्म कपंनियों के सहयोग से बनी थी। इसमें हिमांशु राय शिराज की भूमिका में हैं।

हमने आखिरी फिल्म देखी नोटिर पूजा। 1932 में बनी इस फिल्म मेंकवि गुरु रविंद्रनाथ टैगोर ने भी छोटी सी भूमिका की थी। फिल्म 21 मिनट की है। टैगोर इस फिल्म के निर्देशक भी हैं। वास्तव मेंयह फिल्म टैगोर के 1926 के एक ड्रामा की रिकार्डिंग है।
- विद्युत प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com

( RAJA HARISHCHANDRA, NOTIR PUJA, SHIRAJ, LANKA DAHAN, KALIA MARDAN, SRI KRISHNA JANAM ) 


2 comments:

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर said...

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन सेल्फी के शौक का जानलेवा पागलपन : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

Vidyut Prakash Maurya said...

धन्यवाद