जनादेश सत्याग्रह से आयेगा बहुत बड़ा बदलाव- सुब्बाराव
( आगरा/ 11 अक्टूबर 2007 ) आजीविका के अधिकार एवं भूमि सुधार की माग को लेकर चलाई जा रही सत्याग्रह पदयात्रा अपने उददेष्यों को पाने में पूरी तरह सफल होगी। देष की आजादी के 60 बर्ष बाद यदि आम गरीब एवं वंचित आदमी पेट के लिये रोटी की मांग करता है तो यह उसका वाजिव अधिकार है तथा सरकार को इसे गंभीरता से लेकर इसके समाधान के प्रयास करना चाहिए। उपरोक्त उदगार ख्याति प्राप्त गांधीवादी विचारक डॉ.एस.एन. सुब्बाराव के है वे आज शाम आगरा के गोपालपुरा से शक्तिमैदान में एकता परिषद के सत्याग्रह पदयात्रियों को सम्बोधित कर रहे थे।
सुब्बाराव ने कहा कि एकता परिषद एवं उसके अध्यक्ष पी.व्ही. राजगोपाल गरीब एवं बंचित समुदाय के अधिकारों के लिये अहिसंक तरीके से संघर्ष कर रहे है। अब की बार गांधी जयंती के दिन ग्वालियर चंबल की धरती से उन्होने देष और दुनिया के बहुत बड़े सत्याग्रह की शुरूआत की है। जिसमें पी.व्ही. राजगोपाल के नेतृत्व में 25 हजार लोग हमारी राजनैतिक दूषित व्यवस्थाओं को चुनौती देने के लिये दिल्ली तक की पदयात्रा पर निकल पड़े है। उन्होने पदयात्रियों के अनुषासन एवं संकल्प शीलता की सराहना करते हुये कहा कि आप लोगों ने अहिसंक सत्याग्रह के माध्यम से अपनी समस्याओं के समाधान एवं व्यवस्था परिवर्तन की लड़ाई शुरू की है इसे जरूर सफलता मिलेगी।
बैठक को जनादेष सत्याग्रह के नायक पी.व्ही. राजगोपाल ने संबोधित करते हुये कहा कि उन्हे गरीब एवं वंचित वर्ग के हकों की लड़ाई में भरपूर सहयोग एवं समर्थन मिल रहा है। जगह जगह गणमान्य नागरिक समाज सेवी, महिला एवं छात्र छात्रायें सत्याग्रहियों को भरपूर सम्मान एवं सहयोग दे रहे है गरीब वर्ग के लोगों के सम्मान मिलने का यह पहला उदाहरण है यहां तक कि सभी राजनैतिक दलों के नेता भी सत्याग्रहियों से हमदर्दी दिखाने आ रहे है। राजगोपाल ने नेताओं पर कटाक्ष करते हुए कहा कि नेताओं और मंत्रियों के आने एवं न आने से कोई फर्क नही पड़ता अपितु महत्वपूर्ण यह है कि नेताओं को अपनी साठ साल में बंचित एवं गरीब वर्ग क साथ की गई गलतियों का अहसास होना जरूरी है। पी.व्ही राजगोपाल ने सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि सरकार हमें तोड़ने के लिये मजबूर नही करे। यदि सरकार ने गरीब भूमिहीन एवं आदिवासियों को आजीविका के लिये जरूरी वन एवं जमीनों पर अधिकार नही दिये तो वे वन कानून तोड़ने को मजबूर होगें। राजगोपाल की इस बात का सभा स्थल पर मौजूद हजारों सत्याग्रहियों ने हाथ उठाकर एवं झंडे लहराकर समर्थन किया।
इससे पूर्व आम सभा को माकपा के सासद अतुल अनजान ने कहा कि देष नेताओं से नही नीतियों से चलता है। उन्होने कहा कि 110 करोड़ जनसंख्या वाले देष में 82 करोड़ गांव में रहते है देष के 66 प्रतिषत लोग गरीबी रेखा से नीचे है। ऐसे में गांव एवं गरीबों की उपेक्षा कर उनके हितों की नीति बनाये बगैर देष तरक्की कैसे कर सकता है। अंजान ने अपने संबोधन में कहा कि योजना आयोग गरीबों का विरोधी है। जल बिरादरी के राजेन्द्र भाई ने कहा कि जो लोग अपनी नदियों की हत्याकर उनके पानी को पीने लायक भी नही छोड़ते वह देखें कि एक टेंकर से एक हजार सत्याग्रही अपनी जरूरत पूरी करते है। एक दिन साथ में यात्रा करने से पता चलेगा कि सत्याग्रही प्रकृति से कम लेते हे।, मेहनत और पसीने से उससे ज्यादा लौटते है।
आम सभा में विनोवा जी के अनुयायी बाल विजय भाई ने कहा कि गांधी के अहिसात्मक आन्दोलन को जनादेष सत्याग्रह आगे बढ़ायेगा क्यों कि गांधी जी के बाद यह आन्दोलन कुछ थम सा गया था जिसे राजगोपाल ने फिर से सक्रिय कर दिया हैं आम सभा को गांधी शान्ति प्रतिष्ठान की अध्यक्ष राधा बहन, एकता परिषद के राष्ट्रीय संयोजक रनसिंह परमार, फ्र्रान्स के जॉन विर एवं जनादेष समन्वयन समिति आगरा की अध्यक्ष श्रीमती मनोरमा शर्मा ने भी सम्बोधित किया।
जनादेश यात्रा पर नवभारत टाइम्स में प्रकाशित लेख
अपने हक की तलाश में सफर पर ( 2 Aug 2007)
( आशुतोष अग्निहोत्री ) हुकूमत का मौलिक चरित्र एक ही होता है- जनता से पैसा उगाही का। मुगलों ने जजिया कर लगाया था, अंग्रेजों ने नमक कर लगाया और आज वंचित भूमिहीनों के हितों को नजरअंदाज कर उद्योगपतियों को जमीन देकर कमाई की जा रही है। अपने हित में वंचितों ने आवाज उठाई तो उसे दबा दिया गया। यह किस्सा वर्तमान से अतीत तक फैला है और अगर सुधार नहीं हुआ, तो भविष्य में भी चलता रहेगा। याद कीजिए कि आज से 77 बरस पहले गांधी जी ने वायसराय लॉर्ड इरविन से कहा था कि नमक कानून बदला जाए, वरना 12 मार्च 1930 से वे अपने सहयोगियों के साथ डांडी के लिए यात्रा शुरू करेंगे।
हुकूमत ने इस यात्रा की गंभीरता को नहीं समझा। डांडी यात्रा 6 अप्रैल 1930 को पूरी हो गई और अंग्रेजी राज के पतन में मील का पत्थर साबित हुई। 23 दिनों तक 240 मील तक की इस यात्रा में पूरा देश भावनात्मक रूप से बापू के साथ था। सैकड़ों लोग इसमें शरीक होते रहे, लेकिन 77 लोग साबरमती आश्रम से डांडी तक बराबर बापू के साथ रहे। 77 बरस बाद इन पदयात्रियों की संख्या बढ़कर 25 हजार तक पहुंचने वाली है। जल, जंगल और जमीन पर अपने अधिकार की मांग लेकर 25 हजार गरीब, वंचितों का समूह 2 अक्टूबर को गांधी जयंती के दिन ग्वालियर (एमपी) से दिल्ली के लिए कूच करेगा। ग्वालियर-दिल्ली राजमार्ग पर यह विहंगम दृश्य होगा।
इतिहास में ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं जब विरोध दर्ज कराने के लिए किसी एक जगह पर लाखों लोग जमा हुए हों। इराक युद्ध के खिलाफ मार्च 2007 में बांग्लादेश की राजधानी ढाका में करीब 85 हजार लोगों ने रैली निकाली। फरवरी 2003 में इसी मुद्दे पर लंदन शहर में वेस्टमिंस्टर और वाइटहॉल के बीच करीब 15 लाख लोगों ने जुलूस निकाला। लेकिन भारत में 25 हजार लोगों की साढ़े 3 सौ किलोमीटर की यह पदयात्रा अपने आप में मिसाल होगी। कोई हैरानी नहीं कि इस घटना को रेकॉर्ड्स की किताबों में दर्ज कर लिया जाए। इस यात्रा के संयोजक स्वयंसेवी संगठन एकता परिषद ने इसे जनादेश नाम दिया है। इसकी योजना करीब डेढ़ साल पहले ग्वालियर में 10 हजार वंचितों की संसद में बनी थी। तब यह मांग उठाई गई थी कि राष्ट्रीय स्तर पर भूमि वितरण का काम दोबारा किया जाए।
जमीन के बारे में ज्यादातर कानून केंद्र सरकार पास करती है, लेकिन यह विषय राज्यों का है। पिछले साल भी 2 से 20 अक्टूबर के बीच ग्वालियर से दिल्ली तक यात्रा निकाली गई थी, लेकिन वह इतने बड़े पैमाने पर नहीं थी। इसी के बाद परिषद ने जनादेश की तरफ से की गई मांगों की प्रति प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सौंपी थी। भूमि सुधारों पर योजना आयोग की उप समिति को भी यह मांगपत्र दिया गया। अंत में सरकार की तरफ से इस बारे में बात करने की जिम्मेदारी ग्रामीण विकास मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह को सौंप दी गई। उन्होंने परिषद को भेजे एक पत्र में कहा है कि भूमि सुधार राज्यों का विषय है इसलिए केंद्र ज्यादा कुछ करने की स्थिति में नहीं है। यह बहुत चलताऊ जवाब था। कोई ठोस कदम न उठाए जाने के बाद अब जनादेश यात्रा का आयोजन किया जा रहा है, ताकि राष्ट्रीय भूमि प्राधिकरण की स्थापना, भूमि विवाद के मुकदमों को तय समय में निपटाने के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाने और उनके लिए सिंगल विंडो सिस्टम लागू करने के लिए सरकार पर दबाव बढ़े।
28 अक्टूबर को जनादेश के दिल्ली पहुंचने पर उसकी अगवानी के लिए 25 हजार लोग यहां भी जमा होंगे। पुअरेस्ट एरिया सिविल सोसायटी प्रोग्राम के तहत आने वाले संगठनों का सहयोग इसे हासिल है। यह देश का सबसे बड़ा सिविल सोसायटी प्रोग्राम है, जिसके जरिए कमजोर वर्गों को अपने पैरों पर खड़ा करने की कोशिशें हो रही हैं। साढ़े छह सौ से ज्यादा छोटे-बड़े स्वयंसेवी संगठनों ने ऐसे इलाकों की पहचान की है जहां भूमिहीन, दलित या आदिवासी ज्यादा हैं और उन्हें उनकी जमीनों पर कब्जा नहीं मिल रहा है। पिछड़े इलाकों की हकीकत को समझने के लिए एक मिसाल काफी होगी। महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले की ज्युति तहसील में घघरू माडवी के पिता केशव ने कई साल पहले अपनी साढ़े 12 एकड़ जमीन एक गैर आदिवासी को खेती के लिए 4 साल के पट्टे पर दी थी। पट्टे की मियाद खत्म होने के बाद भी जमीन उसे वापस नहीं मिली। 20 साल तक मुकदमा लड़ने के बाद ही हाई कोर्ट के फैसले पर घघरू को जमीन वापस मिल पाई। इन 20 बरसों में उसने हर तरह की तकलीफ झेली, जिसका कोई मुआवजा मिलने से रहा। गढ़चिरौली की गिनती देश के सबसे पिछड़े इलाकों में की जाती है। जिले के अस्सी फीसदी से ज्यादा गांवों में पक्की सड़कें तक नहीं हैं।
गैर आदिवासियों द्वारा आदिवासियों की जमीन पर कब्जे का सिलसिला पीढ़ियों से चला आ रहा है। आदिवासियों की जमीनें पट्टे, फर्जी कागजात या जोर जबर्दस्ती से छीन ली जाती हैं। ज्युति तहसील के सभी 82 गांवों में जमीन पर कब्जे की घटनाएं मिल जाएंगी। कुछ गांवों में तो कोलम और गोंड आदिवासियों की पूरी आबादी को ही बेदखल कर दिया गया। इसी नाइंसाफी के खिलाफ आंदोलन अब धीरे-धीरे फैल रहा है। जनादेश यात्रा इस सिलसिले में मील का पत्थर साबित हो सकती है, लेकिन असल सवाल तो यही है कि क्या राज्य सत्ता इस आवाज को सुनेगी? उसे सुनना चाहिए, अगर हालात की गंभीरता का उसे अहसास है। अब दिल्ली को तय करना है कि वह सत्याग्रह की राह पर चल रहे देश के लाखों दलित, भूमिहीन और वंचितों को उनका वाजिब हक दिलवाएगी या उन्हें उनके हाल पर रहने देगी।
अगर सरकार अब भी नहीं चेती तो नंदीग्राम किसी एक जगह का नाम नहीं रह जाएगा। केंद्रीय गृह मंत्रालय की 2004-05 की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक 2 साल पहले 9 राज्यों के 76 जिले नक्सल प्रभावित थे। 2 साल के भीतर ये 12 राज्यों में फैल गए। आज 172 जिलों में नक्सली सक्रिय हैं। स्पेशल टास्क फोर्स और पुलिस का आधुनिकीकरण जैसे तरीके इस बगावत के सामने बेअसर साबित हुए, क्योंकि समाधान कहीं और है। वंचितों को उनका हक देने से ही बात बनेगी, यह समझकर भी अनजान बनने का दिखावा सरकार कब तक करती रहेगी?
‘मिलकर लड़ें लड़ाई तो झुकेगी सरकार’
( भास्कर न्यूज , ग्वालियर ) एकता परिषद के आह्वान पर जल, जंगल और जमीन पर अपना अधिकार मांगने जनादेश यात्रा पर निकले 20 हजार भूमिहीन गरीब, आदिवासियों ने बुधवार को ग्वालियर जिले से विदाई ली। इस अवसर पर परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष पीवी राजगोपाल ने कहा कि हम लोग इसी तरह मिलकर संघर्ष करेंगे तो सरकार जरूर झुकेगी और हमारी समस्याएं हल होंगी।
सबके लिए खुला है, मंदिर है ये हमारा - जनादेश पदयात्रा के पड़ाव स्थल पर शाम को होने वाली प्रार्थना सभा में एक अलग ही माहौल देखने को मिलता है। प्रसिद्ध गांधीवादी सुब्बाराव जी की प्रार्थना- सबके लिए खुला है, मंदिर है ये हमारा, के स्वर जब गूंजते हैं तो उन्हें दोहराने के साथ ही पदयात्री, दिनभर की यात्रा की थकान भूल जाते हैं।
पांच हजार जोड़ी चप्पल मंगाईं - पदयात्रा में शामिल आदिवासियों में से अधिकांश के पांव में जूते-चप्पल तक नहीं हैं। नंगे पैर रास्ता तय कर रहे लोगों में कईयों के पांव में पहले ही दिन छाले पड़ गये। श्री राजगोपाल ने इन लोगों का हाल देखने के बाद यात्रा की व्यवस्था संभाल रहे साथियों को पांच हजार जोड़ी चप्पलों की व्यवस्था कराने के निर्देश दिए।
( https://www.ektaparishad.in/)
( आगरा/ 11 अक्टूबर 2007 ) आजीविका के अधिकार एवं भूमि सुधार की माग को लेकर चलाई जा रही सत्याग्रह पदयात्रा अपने उददेष्यों को पाने में पूरी तरह सफल होगी। देष की आजादी के 60 बर्ष बाद यदि आम गरीब एवं वंचित आदमी पेट के लिये रोटी की मांग करता है तो यह उसका वाजिव अधिकार है तथा सरकार को इसे गंभीरता से लेकर इसके समाधान के प्रयास करना चाहिए। उपरोक्त उदगार ख्याति प्राप्त गांधीवादी विचारक डॉ.एस.एन. सुब्बाराव के है वे आज शाम आगरा के गोपालपुरा से शक्तिमैदान में एकता परिषद के सत्याग्रह पदयात्रियों को सम्बोधित कर रहे थे।
सुब्बाराव ने कहा कि एकता परिषद एवं उसके अध्यक्ष पी.व्ही. राजगोपाल गरीब एवं बंचित समुदाय के अधिकारों के लिये अहिसंक तरीके से संघर्ष कर रहे है। अब की बार गांधी जयंती के दिन ग्वालियर चंबल की धरती से उन्होने देष और दुनिया के बहुत बड़े सत्याग्रह की शुरूआत की है। जिसमें पी.व्ही. राजगोपाल के नेतृत्व में 25 हजार लोग हमारी राजनैतिक दूषित व्यवस्थाओं को चुनौती देने के लिये दिल्ली तक की पदयात्रा पर निकल पड़े है। उन्होने पदयात्रियों के अनुषासन एवं संकल्प शीलता की सराहना करते हुये कहा कि आप लोगों ने अहिसंक सत्याग्रह के माध्यम से अपनी समस्याओं के समाधान एवं व्यवस्था परिवर्तन की लड़ाई शुरू की है इसे जरूर सफलता मिलेगी।
बैठक को जनादेष सत्याग्रह के नायक पी.व्ही. राजगोपाल ने संबोधित करते हुये कहा कि उन्हे गरीब एवं वंचित वर्ग के हकों की लड़ाई में भरपूर सहयोग एवं समर्थन मिल रहा है। जगह जगह गणमान्य नागरिक समाज सेवी, महिला एवं छात्र छात्रायें सत्याग्रहियों को भरपूर सम्मान एवं सहयोग दे रहे है गरीब वर्ग के लोगों के सम्मान मिलने का यह पहला उदाहरण है यहां तक कि सभी राजनैतिक दलों के नेता भी सत्याग्रहियों से हमदर्दी दिखाने आ रहे है। राजगोपाल ने नेताओं पर कटाक्ष करते हुए कहा कि नेताओं और मंत्रियों के आने एवं न आने से कोई फर्क नही पड़ता अपितु महत्वपूर्ण यह है कि नेताओं को अपनी साठ साल में बंचित एवं गरीब वर्ग क साथ की गई गलतियों का अहसास होना जरूरी है। पी.व्ही राजगोपाल ने सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि सरकार हमें तोड़ने के लिये मजबूर नही करे। यदि सरकार ने गरीब भूमिहीन एवं आदिवासियों को आजीविका के लिये जरूरी वन एवं जमीनों पर अधिकार नही दिये तो वे वन कानून तोड़ने को मजबूर होगें। राजगोपाल की इस बात का सभा स्थल पर मौजूद हजारों सत्याग्रहियों ने हाथ उठाकर एवं झंडे लहराकर समर्थन किया।
इससे पूर्व आम सभा को माकपा के सासद अतुल अनजान ने कहा कि देष नेताओं से नही नीतियों से चलता है। उन्होने कहा कि 110 करोड़ जनसंख्या वाले देष में 82 करोड़ गांव में रहते है देष के 66 प्रतिषत लोग गरीबी रेखा से नीचे है। ऐसे में गांव एवं गरीबों की उपेक्षा कर उनके हितों की नीति बनाये बगैर देष तरक्की कैसे कर सकता है। अंजान ने अपने संबोधन में कहा कि योजना आयोग गरीबों का विरोधी है। जल बिरादरी के राजेन्द्र भाई ने कहा कि जो लोग अपनी नदियों की हत्याकर उनके पानी को पीने लायक भी नही छोड़ते वह देखें कि एक टेंकर से एक हजार सत्याग्रही अपनी जरूरत पूरी करते है। एक दिन साथ में यात्रा करने से पता चलेगा कि सत्याग्रही प्रकृति से कम लेते हे।, मेहनत और पसीने से उससे ज्यादा लौटते है।
आम सभा में विनोवा जी के अनुयायी बाल विजय भाई ने कहा कि गांधी के अहिसात्मक आन्दोलन को जनादेष सत्याग्रह आगे बढ़ायेगा क्यों कि गांधी जी के बाद यह आन्दोलन कुछ थम सा गया था जिसे राजगोपाल ने फिर से सक्रिय कर दिया हैं आम सभा को गांधी शान्ति प्रतिष्ठान की अध्यक्ष राधा बहन, एकता परिषद के राष्ट्रीय संयोजक रनसिंह परमार, फ्र्रान्स के जॉन विर एवं जनादेष समन्वयन समिति आगरा की अध्यक्ष श्रीमती मनोरमा शर्मा ने भी सम्बोधित किया।
जनादेश यात्रा पर नवभारत टाइम्स में प्रकाशित लेख
अपने हक की तलाश में सफर पर ( 2 Aug 2007)
( आशुतोष अग्निहोत्री ) हुकूमत का मौलिक चरित्र एक ही होता है- जनता से पैसा उगाही का। मुगलों ने जजिया कर लगाया था, अंग्रेजों ने नमक कर लगाया और आज वंचित भूमिहीनों के हितों को नजरअंदाज कर उद्योगपतियों को जमीन देकर कमाई की जा रही है। अपने हित में वंचितों ने आवाज उठाई तो उसे दबा दिया गया। यह किस्सा वर्तमान से अतीत तक फैला है और अगर सुधार नहीं हुआ, तो भविष्य में भी चलता रहेगा। याद कीजिए कि आज से 77 बरस पहले गांधी जी ने वायसराय लॉर्ड इरविन से कहा था कि नमक कानून बदला जाए, वरना 12 मार्च 1930 से वे अपने सहयोगियों के साथ डांडी के लिए यात्रा शुरू करेंगे।
हुकूमत ने इस यात्रा की गंभीरता को नहीं समझा। डांडी यात्रा 6 अप्रैल 1930 को पूरी हो गई और अंग्रेजी राज के पतन में मील का पत्थर साबित हुई। 23 दिनों तक 240 मील तक की इस यात्रा में पूरा देश भावनात्मक रूप से बापू के साथ था। सैकड़ों लोग इसमें शरीक होते रहे, लेकिन 77 लोग साबरमती आश्रम से डांडी तक बराबर बापू के साथ रहे। 77 बरस बाद इन पदयात्रियों की संख्या बढ़कर 25 हजार तक पहुंचने वाली है। जल, जंगल और जमीन पर अपने अधिकार की मांग लेकर 25 हजार गरीब, वंचितों का समूह 2 अक्टूबर को गांधी जयंती के दिन ग्वालियर (एमपी) से दिल्ली के लिए कूच करेगा। ग्वालियर-दिल्ली राजमार्ग पर यह विहंगम दृश्य होगा।
इतिहास में ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं जब विरोध दर्ज कराने के लिए किसी एक जगह पर लाखों लोग जमा हुए हों। इराक युद्ध के खिलाफ मार्च 2007 में बांग्लादेश की राजधानी ढाका में करीब 85 हजार लोगों ने रैली निकाली। फरवरी 2003 में इसी मुद्दे पर लंदन शहर में वेस्टमिंस्टर और वाइटहॉल के बीच करीब 15 लाख लोगों ने जुलूस निकाला। लेकिन भारत में 25 हजार लोगों की साढ़े 3 सौ किलोमीटर की यह पदयात्रा अपने आप में मिसाल होगी। कोई हैरानी नहीं कि इस घटना को रेकॉर्ड्स की किताबों में दर्ज कर लिया जाए। इस यात्रा के संयोजक स्वयंसेवी संगठन एकता परिषद ने इसे जनादेश नाम दिया है। इसकी योजना करीब डेढ़ साल पहले ग्वालियर में 10 हजार वंचितों की संसद में बनी थी। तब यह मांग उठाई गई थी कि राष्ट्रीय स्तर पर भूमि वितरण का काम दोबारा किया जाए।
जमीन के बारे में ज्यादातर कानून केंद्र सरकार पास करती है, लेकिन यह विषय राज्यों का है। पिछले साल भी 2 से 20 अक्टूबर के बीच ग्वालियर से दिल्ली तक यात्रा निकाली गई थी, लेकिन वह इतने बड़े पैमाने पर नहीं थी। इसी के बाद परिषद ने जनादेश की तरफ से की गई मांगों की प्रति प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सौंपी थी। भूमि सुधारों पर योजना आयोग की उप समिति को भी यह मांगपत्र दिया गया। अंत में सरकार की तरफ से इस बारे में बात करने की जिम्मेदारी ग्रामीण विकास मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह को सौंप दी गई। उन्होंने परिषद को भेजे एक पत्र में कहा है कि भूमि सुधार राज्यों का विषय है इसलिए केंद्र ज्यादा कुछ करने की स्थिति में नहीं है। यह बहुत चलताऊ जवाब था। कोई ठोस कदम न उठाए जाने के बाद अब जनादेश यात्रा का आयोजन किया जा रहा है, ताकि राष्ट्रीय भूमि प्राधिकरण की स्थापना, भूमि विवाद के मुकदमों को तय समय में निपटाने के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाने और उनके लिए सिंगल विंडो सिस्टम लागू करने के लिए सरकार पर दबाव बढ़े।
28 अक्टूबर को जनादेश के दिल्ली पहुंचने पर उसकी अगवानी के लिए 25 हजार लोग यहां भी जमा होंगे। पुअरेस्ट एरिया सिविल सोसायटी प्रोग्राम के तहत आने वाले संगठनों का सहयोग इसे हासिल है। यह देश का सबसे बड़ा सिविल सोसायटी प्रोग्राम है, जिसके जरिए कमजोर वर्गों को अपने पैरों पर खड़ा करने की कोशिशें हो रही हैं। साढ़े छह सौ से ज्यादा छोटे-बड़े स्वयंसेवी संगठनों ने ऐसे इलाकों की पहचान की है जहां भूमिहीन, दलित या आदिवासी ज्यादा हैं और उन्हें उनकी जमीनों पर कब्जा नहीं मिल रहा है। पिछड़े इलाकों की हकीकत को समझने के लिए एक मिसाल काफी होगी। महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले की ज्युति तहसील में घघरू माडवी के पिता केशव ने कई साल पहले अपनी साढ़े 12 एकड़ जमीन एक गैर आदिवासी को खेती के लिए 4 साल के पट्टे पर दी थी। पट्टे की मियाद खत्म होने के बाद भी जमीन उसे वापस नहीं मिली। 20 साल तक मुकदमा लड़ने के बाद ही हाई कोर्ट के फैसले पर घघरू को जमीन वापस मिल पाई। इन 20 बरसों में उसने हर तरह की तकलीफ झेली, जिसका कोई मुआवजा मिलने से रहा। गढ़चिरौली की गिनती देश के सबसे पिछड़े इलाकों में की जाती है। जिले के अस्सी फीसदी से ज्यादा गांवों में पक्की सड़कें तक नहीं हैं।
गैर आदिवासियों द्वारा आदिवासियों की जमीन पर कब्जे का सिलसिला पीढ़ियों से चला आ रहा है। आदिवासियों की जमीनें पट्टे, फर्जी कागजात या जोर जबर्दस्ती से छीन ली जाती हैं। ज्युति तहसील के सभी 82 गांवों में जमीन पर कब्जे की घटनाएं मिल जाएंगी। कुछ गांवों में तो कोलम और गोंड आदिवासियों की पूरी आबादी को ही बेदखल कर दिया गया। इसी नाइंसाफी के खिलाफ आंदोलन अब धीरे-धीरे फैल रहा है। जनादेश यात्रा इस सिलसिले में मील का पत्थर साबित हो सकती है, लेकिन असल सवाल तो यही है कि क्या राज्य सत्ता इस आवाज को सुनेगी? उसे सुनना चाहिए, अगर हालात की गंभीरता का उसे अहसास है। अब दिल्ली को तय करना है कि वह सत्याग्रह की राह पर चल रहे देश के लाखों दलित, भूमिहीन और वंचितों को उनका वाजिब हक दिलवाएगी या उन्हें उनके हाल पर रहने देगी।
अगर सरकार अब भी नहीं चेती तो नंदीग्राम किसी एक जगह का नाम नहीं रह जाएगा। केंद्रीय गृह मंत्रालय की 2004-05 की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक 2 साल पहले 9 राज्यों के 76 जिले नक्सल प्रभावित थे। 2 साल के भीतर ये 12 राज्यों में फैल गए। आज 172 जिलों में नक्सली सक्रिय हैं। स्पेशल टास्क फोर्स और पुलिस का आधुनिकीकरण जैसे तरीके इस बगावत के सामने बेअसर साबित हुए, क्योंकि समाधान कहीं और है। वंचितों को उनका हक देने से ही बात बनेगी, यह समझकर भी अनजान बनने का दिखावा सरकार कब तक करती रहेगी?
‘मिलकर लड़ें लड़ाई तो झुकेगी सरकार’
( भास्कर न्यूज , ग्वालियर ) एकता परिषद के आह्वान पर जल, जंगल और जमीन पर अपना अधिकार मांगने जनादेश यात्रा पर निकले 20 हजार भूमिहीन गरीब, आदिवासियों ने बुधवार को ग्वालियर जिले से विदाई ली। इस अवसर पर परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष पीवी राजगोपाल ने कहा कि हम लोग इसी तरह मिलकर संघर्ष करेंगे तो सरकार जरूर झुकेगी और हमारी समस्याएं हल होंगी।
सबके लिए खुला है, मंदिर है ये हमारा - जनादेश पदयात्रा के पड़ाव स्थल पर शाम को होने वाली प्रार्थना सभा में एक अलग ही माहौल देखने को मिलता है। प्रसिद्ध गांधीवादी सुब्बाराव जी की प्रार्थना- सबके लिए खुला है, मंदिर है ये हमारा, के स्वर जब गूंजते हैं तो उन्हें दोहराने के साथ ही पदयात्री, दिनभर की यात्रा की थकान भूल जाते हैं।
पांच हजार जोड़ी चप्पल मंगाईं - पदयात्रा में शामिल आदिवासियों में से अधिकांश के पांव में जूते-चप्पल तक नहीं हैं। नंगे पैर रास्ता तय कर रहे लोगों में कईयों के पांव में पहले ही दिन छाले पड़ गये। श्री राजगोपाल ने इन लोगों का हाल देखने के बाद यात्रा की व्यवस्था संभाल रहे साथियों को पांच हजार जोड़ी चप्पलों की व्यवस्था कराने के निर्देश दिए।
( https://www.ektaparishad.in/)
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