Wednesday, 17 June 2009

गरीबों को कर्ज देने में खतरा नहीं

आमतौर पर बैंक गरीबों को कर्ज देने में डरते हैं। पर आपको यह जानकर अचरज होगा कि गरीब लोग कर्ज चुकाने में अमीरों की तुलना में ज्यादा ईमानदार होते हैं। बंग्लादेश के ग्रामीण बैंक जिसके संस्थापक को इस साल नोबल पुरस्कार मिला है, उनका बैंक अत्यंत गरीब लोगों को को बिना कुछ गिरवी रखे ही कर्ज देता है और उनके बैंक की कर्ज वसूली का प्रतिशत 98 फीसदी तक है। वहीं भारत में कई बड़े बैंक जिन्होंने बड़े उद्योगों को भी कर्ज दे रखा 5 से 10 फीसदी तक एनपीए (नान प्रोड्यूसिंग एसेट) के संकट से जूझ रहे हैं। हम यह मान सकते हैं कि कर्ज लेने वाले के चुकाने में उसकी नीयत ज्यादा महत्व रखती है बजाय के उसकी चुकाने की क्षमता के। आजकल बैंक मकान ऋण बहुत आसानी से दे रहे हैं। पर मकान ऋण के मामले में डिफाल्टर के केस खूब हो रहे हैं।

मोहम्मद यूनुस जो बंग्लादेश के जाने माने अर्थशास्त्री थे के मन में गरीब लोगों का महाजनों और साहूकारों से शोषण नहीं देखा गया और उन्होंने गरीबों को कम ब्याज पर कर्ज देने के लिए बंग्लादेश में ग्रामीण बैंक की स्थापना की। यह बैंक ग्रामीणों के लिए स्व सहायता समूहों का निर्माण करवाता है। इस समूह को बैंक कर्ज देता है। यानी कर्ज चुकाने का भार किसी एक व्यक्ति पर न होकर कई लोगों पर होता है इसलिए लोग एक दूसरे को कर्ज की किस्त देने के लिए तैयार करते रहते हैं। भारत में भी ग्रामीण बैंकों ने इसी माडल से प्रभावित होकर देशभर में एक खास तरह के पेशे से जुड़े हुए लोगों के लिए स्व सहायता समूह बनाने पर जोर देना आरंभ किया है। हालांकि ये समूह यहां इतने लोकप्रिय नहीं हो पा रहे हैं। पर ऐसे समूह की उपयोगिता जिन लोगों ने समझ ली है उन्हें इसका लाभ होता हुआ दिखाई दे रहा है। जिन पेशेगत श्रमिकों ने स्व सहायता समूह का मतलब समझ लिया है वे उसका पूरा लाभ उठा रहे हैं। गांव में खेती करने वाले लोग भी इस तरह का समूह बना रहे हैं।
वास्तव में बैंक का कर्ज अगर न चुकाया जाए तो नासूर बन जाता है। बहुत कम ऐसे मामले होते हैं जिसमें लोग बैंक का कर्ज लेकर फरार हो पाते हैं। बैंक भी अपने पैसे को वसूल करने के लिए तमाम जुगत उठाता है। पर बैंक चाहता है कि पहले सब कुछ समझौते से ही निपट जाए क्योंकि मुकदमेबाजी में बैंक का भी काफी रुपया और मैनपावर खर्च होता है। पर छोटे कारोबारियों को छोटे छोटे कर्ज देने को लेकर बैंकों में कभी उत्सह नहीं रहा है। अगर हम किसी ऐसे व्यक्ति को छोटा सा कर्ज देते हैं जो इस राशि से रोजगार कर लेता है तो यह उसके के लिए बहुत बड़ी आर्थिक सहायता के साथ समाजसेवा जैसा पुण्य कार्य भी होता है। बंग्लादेश का ग्रामीण बैंक कुछ इसी तरह का कार्य करता है। यह माइक्रोफाइनेंस की अवधारणा है। भारत में इस अवधारणा को लेकर विक्रम आकुला ने काम किया है। उन्होंने आंध्र प्रदेश की गरीब महिलाओं को को छोटे छोटे कर्ज दिए हैं। इससे इन महिलाओं के जीवन स्तर में काफी बदलाव आया है। विक्रम आकुल को उनके कार्यों के लिए मैग्सेसे पुरस्कार से नवाजा गया है। हम यों कहें तो विक्रम आकुल और मोहम्मद युनुस जैसे लोगों को अंधकार को धिक्कारने के बजाय एक दीपक जलाने का काम किया है। उनके प्रयासों से सबसे निचली श्रेणी के लोगों के जीवन स्तर में आशा की एक रोशनी दिखाई दी है। अब कई लोग उनके प्रयासों को अपने यहां लागू करने की कोशिश कर रहे हैं।



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