आजकल एकल परिवारों की संख्या अधिक हो रही है। ऐसे में बच्चे दादा-दादी की कहानियों से अछुते रह जाते हैं। इस माहौल में आखिर बच्चा करे तो क्या करे। हर थोड़ी देर पर बच्चा पूछता है मम्मा अब मैं क्या करुं। इसमें बच्चे की भी क्या गलती है। वह नन्ही सी जान बोर जो हो जाता है। कोई भी खिलौना उसे ज्यादा देर तक इंगेज नहीं रख पाता। अब माता पिता की यह समस्या है कि अब कितने पैसे खर्च करें। हर हफ्ते तो हम नया खिलौना नही खरीद सकतें। हम बच्चें को क्वालिटी टाइम भी नहीं दे पा रहें हैं। जिससे बच्चे उदास और चिड़चिड़े रहने लगे हैं। ऐसे में कार्टून चैनलों ने बच्चों की जिज्ञासा को शांत किया है। बच्चे कार्टून देखने में घंटों व्यस्त तो जरूर हो जाते हैं, किन्तु कार्टून चैनल बच्चों के विचारणीय क्षमता को कुंद भी कर रहे हैं।
कार्टून देखते देखते बच्चे आभासी दुनिया में जीने लगते हैं। कई बार काल्पनिक पात्रों को जीने में बच्चे खुद को नुकसान पहुंचा लेते हैं। तीन साल का वंश कहता है कि मैं एक्शन कामेन बन गया हूं, अब तुम मुझसे लड़ाई करो। इस क्रम में वह पलंग से तो कभी कुर्सी से छलांग लगाता है। और यही नहीं वह घंटो कार्टून देखने की जिद करता है।
घर में बच्चों की समस्याओं से उबरने के लिए कई माता पिता अपने बच्चें को जल्दी प्ले-वे में डाल देते हैं। पर कोई जरुरी नहीं है कि आपका बच्चा प्ले वे में जाकर खुश ही हो। हो सकता है कि वह और तनाव में आ जाए। वहां बच्चे को खेलने वाले साथी तो मिल जाते हैं। कई बच्चे वहां जाकर खुश भी रहते है पर कई और ज्यादा तनाव में आ जाते हैं। उन्हें कई कठिनाईयों का सामना करना परता है जैसे सुबह जल्दी उठना, कभी पैंट में पौटी हो जाने से बच्चों का चिढाना इत्यादि। इस क्रम में उन्हें कई तरह के शारीरिक तथा मानसिक यातनाएं सहनी पड़ती है। कई बार डिप्रेशन के शिकार हो जाते है। बच्चें इतने तनाव में आ जाते है कि बोलना तक छोड़ देते हैं। इसलिए बहुत जरुरी है कि बच्चे को समय देना। उसके साथ खेलना उसकी बातों को सुनना, उसकी समस्याओं को सुलझाना।
यदि आप उसे प्ले वे में डालना ही चाहते हैं तो उसके लिए उसे पहले तैयार करें। उसे बताएं कि उसे कुछ समय के लिए अपने माता पिता से दूर रहना पड़ सकता है। वहां बहुत बच्चें होंगे जिनके साथ आप खेल सकते हो। वहां एक टीचर भी होंगी जो आपको नई-नई बातें बताएंगी। नए-नए गेम सिखाएंगी। कुछ इस तरह से आप अपने बच्चे को तैयार कर सकते हैं कि आपका बच्चा खुशी-खुशी उस संस्थान को जाए। अगर बात फिर भी बनती नजर नहीं आ रही तो आप बाल रोग विशेषज्ञ की सलाह ले सकते हैं। याद रखें अपने नौनिहाल को कच्ची उम्र में पूरा समय दें , क्योंकि उसका बचपन लौटकर फिर नहीं आएगा।
-माधवी रंजना, madhavi.ranjana@gmail.com
कार्टून देखते देखते बच्चे आभासी दुनिया में जीने लगते हैं। कई बार काल्पनिक पात्रों को जीने में बच्चे खुद को नुकसान पहुंचा लेते हैं। तीन साल का वंश कहता है कि मैं एक्शन कामेन बन गया हूं, अब तुम मुझसे लड़ाई करो। इस क्रम में वह पलंग से तो कभी कुर्सी से छलांग लगाता है। और यही नहीं वह घंटो कार्टून देखने की जिद करता है।
घर में बच्चों की समस्याओं से उबरने के लिए कई माता पिता अपने बच्चें को जल्दी प्ले-वे में डाल देते हैं। पर कोई जरुरी नहीं है कि आपका बच्चा प्ले वे में जाकर खुश ही हो। हो सकता है कि वह और तनाव में आ जाए। वहां बच्चे को खेलने वाले साथी तो मिल जाते हैं। कई बच्चे वहां जाकर खुश भी रहते है पर कई और ज्यादा तनाव में आ जाते हैं। उन्हें कई कठिनाईयों का सामना करना परता है जैसे सुबह जल्दी उठना, कभी पैंट में पौटी हो जाने से बच्चों का चिढाना इत्यादि। इस क्रम में उन्हें कई तरह के शारीरिक तथा मानसिक यातनाएं सहनी पड़ती है। कई बार डिप्रेशन के शिकार हो जाते है। बच्चें इतने तनाव में आ जाते है कि बोलना तक छोड़ देते हैं। इसलिए बहुत जरुरी है कि बच्चे को समय देना। उसके साथ खेलना उसकी बातों को सुनना, उसकी समस्याओं को सुलझाना।
यदि आप उसे प्ले वे में डालना ही चाहते हैं तो उसके लिए उसे पहले तैयार करें। उसे बताएं कि उसे कुछ समय के लिए अपने माता पिता से दूर रहना पड़ सकता है। वहां बहुत बच्चें होंगे जिनके साथ आप खेल सकते हो। वहां एक टीचर भी होंगी जो आपको नई-नई बातें बताएंगी। नए-नए गेम सिखाएंगी। कुछ इस तरह से आप अपने बच्चे को तैयार कर सकते हैं कि आपका बच्चा खुशी-खुशी उस संस्थान को जाए। अगर बात फिर भी बनती नजर नहीं आ रही तो आप बाल रोग विशेषज्ञ की सलाह ले सकते हैं। याद रखें अपने नौनिहाल को कच्ची उम्र में पूरा समय दें , क्योंकि उसका बचपन लौटकर फिर नहीं आएगा।
-माधवी रंजना, madhavi.ranjana@gmail.com