Wednesday, 27 January 2010

जानकी वल्लभ शास्त्री का दर्द


जीवन के 94 वसंत देख चुके जानकी वल्लभ शास्त्री इन दिनों खासे व्यथित हैं। उनकी व्यथा जायज भी है। इस साल के पद्म पुरस्कारों के ऐलान में उनका नाम पद्मश्री के लिए चयनित किया गया है। दुखी महाकवि ने अपना नाम सुनते ही कह दिया कि मुझे नहीं लेना ये सम्मान....परिवार के लोगों को लगता है भारत सरकार को उन्हें कम से कम पद्मभूषण या फिर पद्मविभूषण तो देना ही चाहिए था.... 

हालांकि महाकवि अब पद्म पुरस्कार ले लेने को राजी हो गए हैं लेकिन उनके शब्दों में दर्द साफ झलक रहा है। महाकवि जानकी वल्लभ शास्त्री हिंदी और संस्कृत के प्रकांड विद्वान हैं। साहित्यकारों की कई पीढ़ियां उनके आंगन की छांव में बड़ी हुई हैं....महाकवि से कनिष्ठ कई लोगों को पद्मश्री से बड़ा पुरस्कार मिल चुका है। ऐसे में शास्त्रीजी की दर्द जायज है। 

दुखी शास्त्री जी बोल पड़ते हैं सालों से मेरी सुध लेने कोई नहीं आया। सच्चे साहित्यकार को सम्मान की भूख भले ही न हो लेकिन उपेक्षा का दंश जरूर उसे सालता है...महाकवि जानकी वल्लभ शास्त्री का जो हिंदी साहित्य में योगदान है उसको सिर्फ पद्मश्री से नहीं तौला जा सकता है....लेकिन सचमुच जिस सम्मान के हकदार महाकवि हैं वह हम उन्हें नहीं दे पा रहे हैं ऐसे में साहित्यकार भावुक हो उठा है।

( 7 अप्रैल 2011 को महाकवि जानकी वल्लभ शास्त्री का निधन हो गया )  -vidyutp@gmail.com

Wednesday, 13 January 2010

रात में एटीएम लेकर चलने वालों होशियार

वैसे तो ये बड़ा दुखद है,,लेकिन कभी कभी दिन रात खबर बनाने वाला व्यक्ति खुद ही खबर बन जाता है। 13 साल से ज्यादा की पत्रकारिता के दौरान एक दिन भी ऐसा भी आया। 11 जनवरी की रात इवनिंग शिफ्ट की ड्यूटी खत्म करने के बाद रोज की तरह मैं अपनी बाइक से घर के लिए जा रहा था। दफ्तर से मेरा घर 16-17 किलोमीटर है। हालांकि दफ्तर नाइट ड्राप की सुविधा देता है लेकिन मैं थोडा समय बच जाए। इस लिहाज से अपनी बाइक से ही घर जाता हूं। हालांकि टीवी मीडिया के और भी कई ब़ड़े पत्रकार अभी भी कार की हैसियत होने के बाद भी बाइक से चलना सुगम समझते हैं। लेकिन दिल्ली के कई इलाके ऐसे हैं जहां अकेले चलने वाले के साथ लूटपाट की वारदात हो सकती है। कुछ ही महीने मे देखें तो मेरे साथ ही हुआ ये हादसा तीसरा वाक्या है।

खबर जो bhadas4media पर छपी....
रात की पारी में काम करने वाले मीडियाकर्मियों को सलाह- एटीएम कार्ड लेकर न चलना : महुआ न्यूज के प्रोड्यूसर विद्युत प्रकाश मौर्य कल रात एक बजे नोएडा स्थित आफिस से काम खत्म कर घर के लिए निकले. गाजियाबाद में डीएलएफ दिलशाद एक्सटेंशन में कुछ महीनों पहले अपने नए खरीदे मकान में रह रहे विद्युत ज्योंही कालोनी के मेन गेट पर पहुंचे, पिस्तौल-चाकू से लैस बदमाश प्रकट हुए. विद्युत बाइक पर थे. बदमाशों ने बाइक की चाभी ले ली. जेब-शरीर पर जो मिला, निकाल लिया. मोबाइल, पर्स, एटीएम कार्ड, सोने-चांदी की अंगूठियां... सब कुछ निकाल लिया. इसके बाद बदमाश विद्युत को बगल की गली की ओर गन प्वाइंट पर ले गए. बदमाशों ने कहा- एटीएम का सही पासवर्ड बताओ या गोली खाओ.
बदमाशों ने कहा- हमारे दो लोग एटीएम कार्ड लेकर बैंक जाएंगे. तुम यहीं हम लोगों के साथ रहोगे. अगर गलत पासवर्ड बताया तो हमारे साथी हमें फोन से सूचित करेंगे और तुम्हें यहीं गोली मारकर ढेर कर देंगे. इतनी बात सुनने के बाद विद्युत ने बिना आनाकानी किए अपने एटीएम का सही-सही पासवर्ड बता दिया. दो बदमाश एटीएम कार्ड लेकर बाइक से पैसे निकालने चले गए और दो बदमाश विद्युत को गन प्वाइंट पर लिए गली में खड़े रहे. इसी बीच संयोग देखिए की पुलिस की पीसीआर वैन आ गई. तीन लोगों को संदिग्ध अवस्था में खड़ा देख पुलिसवालों ने दौड़ाया तो बदमाश विद्युत को छोड़कर भाग निकले. पुलिस ने विद्युत से पूरी कहानी जानने के बाद बदमाशों का पीछा किया लेकिन इंडियन पुलिस के हत्थे बदमाश रंगेहाथ बहुत कम चढ़ते हैं. सो, बदमाश भाग निकले. पुलिस वाले विद्युत को गाड़ी पर बिठाकर एटीएम की ओर ले गए. एटीएम पर भी कोई बदमाश नहीं मिला.
इसी बीच, विद्युत ने अपने एटीएम कार्ड प्रोवाइडर बैंक को फोन करके कार्ड को ब्लाक करा दिया. लेकिन तब तक बदमाश अपना काम कर चुके थे. बदमाशों ने तीन-तीन अलग-अलग बैंकों के एटीएम से करीब चौबीस हजार रुपये निकाल चुके थे. विद्युत का सेलरी एकाउंड एचडीएफसी में है और उनके पास इसी एकाउंट का एटीएम कार्ड था. बदमाशों ने दो बैंकों से दस-दस हजार और एक बैंक से चार हजार रुपये निकाले थे. तो बंधु, जान लीजिए, एटीएम कार्ड लेकर चलना खतरे से खाली नहीं है. पहले कहा जाता था कि रुपये लेकर चलना खतरे से खाली नहीं है, उसकी जगह एटीएम कार्ड लेकर चलना चाहिए. पर अब तो एटीएम कार्ड का सही पासवर्ड न बताने पर गोली खाने का भी खतरा पैदा हो गया है. देखना है कि पत्रकार के साथ हुए इस भयानक लूटपाट का खुलासा गाजियाबाद पुलिस कब तक कर पाती है. साहिबाबाद पुलिस में विद्युत ने रिपोर्ट लिखा दी है. पुलिस वाले कई राउंड उनके घर आकर सब कुछ जान-पूछ कर जा चुके हैं.
यहां यह बता दें कि महुआ की तरफ से रात की पारी के कर्मियों के लिए ड्रापिंग फेसिलिटी है पर विद्युत अपनी बाइक से आना-जाना इसलिए पसंद करते हैं क्योंकि वे अपने साधन से 30 मिनट में ही पहुंच जाते हैं. आफिस ड्रापिंग कैब से जाने पर गाड़ी औरों को छोड़ते हुए उन्हें उनके घर पहुंचाती है जिसमें कई घंटे लग जाते हैं. विद्युत प्रतिभावान और मेहनती युवा पत्रकारों में शुमार किए जाते हैं. कई अखबारों में काम करने के बाद विद्युत ने महुआ की लाचिंग टीम के सदस्य बने और आज तक टिके हुए हैं. विद्युत का मोबाइल लुटेरे ले गए
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पूरी घटना पर काफी कुछ प्रकाशित हो चुका है, लेकिन जो लोग एटीएम कार्ड का इस्तेमाल करते हैं उन्हें मैं कुछ सलाह देना चाहता हूं।

1. अगर आपके खाते में ज्यादा रुपये रहते हैं, तो अलग अगल बैंकों में अपने कई बैंक एकाउंट रखें और पैसों को अलग अलग खातों में बांट कर रखें।

2. एक समय में किसी एक बैंक का ही एटीएम या क्रेडिट कार्ड लेकर चलें

3. एटीएम में डेबिट कार्ड का पावर भी होता है। कार्ड चोरी होने पर लोग कार्ड से शापिंग भी हो सकती है। इसके लिए पासवर्ड की भी जरूत नहीं पड़ती।

4. रात में सुनसान जगहों से एटीएम से पैसे की निकासी न करें....

5. लूटेरे पिस्तौल की नोंक पर धमकी देकर आपका एटीएम पासवर्ड पूछ सकते हैं या आपको अपने साथ एटीएम तक ले जाकर भी जबरी रूपये निकलवा सकते हैं। इस दौरान वे लोग एटीएम के आसपास रह सकते हैं। इसलिए बेहतर है कि एटीएम साथ लेकर चलें तो उस खाते में ज्यादा राशि नहीं रखें।


6. जिस बैंक का एटीएम हो उसका फोन बैंकिंग नंबर हमेशा याद रखें जिससे हालात खराब होने पर एटीएम को ब्लाक कराया जा सके।

7. कई बैंक, बीमा कंपनियां एटीएम, क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड पर बीमा की सुविधा भी देती हैं। इस विकल्प पर भी विचार किया जा सकता है।

- मैं आभारी हूं, अपने चैनल महुआ न्यूज, आजतक, जी न्यूज, स्टार न्यूज जैसे तमाम चैनलों का जिन्होंने इस खबर को महत्व दिया।
सभी राष्ट्रीय समाचार पत्रों को गाजियाबाद संस्करण के पन्नों पर भी मैं प्रमुखता से खबर बन गया. उन अखबारों में भी जहां कभी मैंने काम किया था....
लेकिन ये कैसी खबर है....जिसकी यादें सिहरन पैदा करती हैं।

Tuesday, 5 January 2010

आखिर कितने घंटे करें काम

हमने अपने पड़ोस में एक लड़के को देखा और उसकी कार्य कुशलता को देखकर मैं अत्याधिक प्रभावित हुआ। 18 साल का यह युवक सुबह चार बजे अपने काम में जुट जाता है। वह सुबह में छोले कुलचे का स्टाल लगाता है। फिर शाम को बर्गर और हाट डाग का स्टाल चलाता है। यानी एक दिन में दो बिजनेस। मैंने उक उत्सुकतावश उसका रूटीन जानना चाहा। उसने कहा कि वह 24 घंटे में सिर्फ चार घंटे ही सोता है। इसके बाद भी वह स्वस्थ और तंदुरुस्त है। उसके पिता का छोले कुलचे बेचने का खानदानी काम था। 

परिवार में ही यह काम सीखने के बाद उसने अपने बूढ़े पिता को इस काम से मुक्ति दे दी है। पर विरासत में मिले इस रोजगार हो उसने 18 साल की उम्र में ही दुगुना कर दिया। वह चाहता है कि वह एक दो घंटे का तीसरा कारोबार भी आरंभ करें। आमतौर पर 18 साल के लड़के कालेज जाते हैं। बाकी समय में लड़कियों से दोस्ती करते हैं। पर अपने काम की धुन में मगन है। उसने अपनी आमदनी को तो खुलासा नहीं किया पर हमारा अनुमान है कि वह इन दोनों का कारोबार से 20 हजार रुपए मासिक तक बडे़ आराम से कमाता है। यानी कि बिना किसी बड़े डिप्लोमा डिग्री के वह अच्छा खासा रुपया कमा रहा है। वह शायद पढ़ने लिखने में अपना वक्त लगाता तो भी इतना शायद नहीं कमा पाता।

अब अगर हम एक समान्य आदमी का रुटीन देंखे तो वह किसी नौकरी में आमतौर पर सात घंटे रोज देता है। बाकी के समय वह कोई काम नहीं करता। परिवार की समस्याओं में उलझा रहता है। पर जिन लोगों ने भी अपने जीवन में प्रगति की है उन्होंने 24 घंटे में सिर्फ सात घंटे ही नहीं काम किया है बल्कि उसके बाद के समय में भी अपने रोजगार को आगे बढ़ाया है। हमें मालूम है कि निरमा केमिकल्स के मालिक ने वाशिंग पाउडर बनाने के काम को पार्ट टाइम रोजगार के रुप में आरंभ किया था। 

कई लोग अपनी नौकरी के अलावा सुबह में अखबार बेचने का काम कर लेते हैं। कई लोग नौकरी के साथ ही बीमा कंपनी या म्युचुअल फंड के एजेंट के रुप में अपने कारोबार की शुरूआत करते हैं। इससे उनकी आमदनी में इजाफा होता ही है साथ ही वे अपने साथियों की तुलना में आर्थिक रुप से काफी आगे निकल जाते हैं। हमारे एक जानने वाले बैंक कलर्क ने देखा कि सिर्फ इस नौकरी से वह ज्यादा प्रगति नहीं कर सकता। उसने एक स्टेशनरी की दुकान खोली। जहां वह सुबह और शाम को मिलाकर तीन घंटे समय देता था। कुछ सालों में दुकान ने इतनी प्रगति की कि उसने एक होल सेल स्टेशनरी की दुकान भी खोल ली। नौकरी भी साथ चलती रही।

दुनिया में तमाम उद्योगपति तथा वैसे लोग जिन्होंने काफी प्रगति की है उनका अगर कैरियर का ग्राफ देखा जाए तो पाएंगे कि उन्होंने 17-18 घंटे तक रोज काम किया है। हालांकि शरीर की भी अपनी क्षमता होती है वह ज्यादा काम करने से थकता है। पर उससे सात घंटे के अलावा भी कुछ काम तो अवश्य ही लिया जा सकता है। अगर सरकारी नौकरी में काम की हकीकत पर बात करें तो अधिकांश कर्मचारी सात घंटे दफ्तर में ईमानदारी से काम नहीं करते। कई दफ्तरों के कर्मचारी तो दिन भर में जितना काम निपटाते हैं वह महज दो घंटे का ही काम होता है। आप खुद से ईमानदारी से पूछ कर देखें कि क्या आप अपनी कार्य क्षमता का पूरा इस्तेमाल कर रहे हैं। अगर नहीं तो थोड़ी मेहनत और करके आप अपने जीवन की रफ्तार को बढ़ा सकते हैं।
-         माधवी रंजना