Sunday, 17 June 2012

शॉपिंग मॉल्स भी घाटे में

देश के सबसे बड़े रिटेल नेटवर्क में से एक स्पेंसर को अपने 40 स्टोर बंद करने का निर्णय लेना पड़ा है। स्पेंसर आरपीजी रिटेल द्वारा प्रवर्तित स्टोर का नेटवर्क है। वहीं किशोर बियानी का बिग बाजार भी इससे अछूता नहीं है। यानी की पिछले कुछ सालों में जिस तरह तेजी से बिग बाजार जैसे बड़े रिटेल स्टोर खुले हैं वहां सब कुछ हरा भरा नहीं है। इन बड़े स्टोरों के चेन में खुले कई शहरों स्टोर घाटे में भी जा रहे हैं। जाहिर बड़ी कंपनी के 100 में से कुछ स्टोर घाटे में भी हों तो वह घाटे को एक समय तक बर्दास्त कर सकती है, पर लंबे समय तक ऐसा नहीं कर सकती है। इसलिए अब कई बड़े शापिंग माल्स भी अपने स्टोरों को बंद करने का निर्णय ले रहे हैं। स्टोर को डेकोरेट करने में आई बड़ी लागात और उसके बाद बड़ा बिजली बिल, मंहगा किराया और स्टाफ के वेतन के बाद बिक्री का आंकड़ा कम हो तो घाटा हो सकता है। इस घाटे से उबरने के लिए बड़े स्टोर समय समय पर डिस्काउंट की घोषणा भी करते हैं। 

पर बड़ा से बड़ा व्यापारी भी लंबे समय क घाटे का खेल नहीं खेल सकता है। इसलिए उन्हें स्टोंरों को बंद करने का भी निर्णय लेना पड़ रहा है। हालांकि ऐसी कंपनियों ने अपनी विस्तार योजना को कोई रोक नहीं लगाई है, पर वे अब सोच समझ कर ऐसी जगहों पर ही स्टोर खोलने जा रहे हैं जहां अच्छी बिक्री की उम्मीद हो। बिग बाजार के प्रवर्तक किशोर बियानी ने तो छोटे रिटेलरों को चुनौती देने के लिए गली मुहल्ले और व्यस्त बाजारों के बीच में एक हजार स्क्वायर फीट में केबीज सबका बाजार खोलना शुरू कर दिया है। यह बिल्कुल किसी परंपरागत किराना दुकान की तरह ही है। ऐसे स्टोरों के घाटे में चलने की उम्मीद कम ही है।

आखिर क्या कारण है जिससे माल्स में खुले कई बड़े स्टोर घाटे में जा रहे हैं। दरअसल बड़े स्टोर खोलने में जितनी बड़ी लागत आती है, उसी वाल्यूम में वहां ग्राहक नहीं मिलते हैं, जिसके कारण घाटा उठाना पड़ता है। दूसरी बात यह भी हुई है कि परंपरागत दुकानदार भी इन बड़े स्टोरों से मुकाबले को लेकर सचेत हुए हैं। उन्होंने क्रेडिट कार्ड मशीने लगानी शुरू कर दी हैं। ग्राहकों को लुभाने के लिए डिस्काउंट और उधार देना भी शुरू कर दिया है। कई छोटे दुकानदारों ने भी अपने रेट्स को प्रतिस्पर्धी बनाना शुरू कर दिया है। मतलब कि जिस रेट में राशन आपको किसी बड़े रिटेल स्टोर में मिलता है उससे कम में समान्य किराना की दुकानों में भी मिल रहा है ऐसे में लोग अपने मुहल्ले की दुकान से राशन खरीद लेन अक्लमंदी समझ रहे हैं।
कई छोटे और मझोले शहरों में जितना बड़ा उपभोक्ता वर्ग है उसकी तुलना में शापिंग माल्स ज्यादा संख्या में खुल गए हैं, इस कारण से माल्स में ग्राहकों का टोटा पड़ने लगा है। जैसे पानीपत और हिसार जैसे शहरों में पांच पांच माल्स खुल रहे हैं। कई इसमें चालू भी हो गए हैं। अगर पांच लाख आबादी वाले शहर में पांच बड़े माल्स होंगे तो जाहिर है कि कुछ माल्स की दुकानें दिन भर ग्राहकों का इंतजार करेंगी। हालांकि बिग बाजार जैसे स्टोर अधिकांश शहरों में सफल हो रहे हैं क्योंकि यहां एक ही स्टोर में सब कुछ मिलता है। सब्जी भाजी से लेकर कपड़े तक। पर ज्यादा परेशानी वैसे स्टोरों के साथ है जो किसी एक सिगमेंट पर केंद्रित हैं। जैसे कई रेडीमेड गारमेंट के कंपनी शो रुम बंद होने के कागार पर हैं।
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