मैं एमए की
पढ़ाई पूरी कर चुका था। मेरा चयन भारतीय जन संचार संस्थान में हिंदी पत्रकारिता
पाठ्यक्रम में हो गया। जब मैं आईआईएमसी के साक्षात्कार कक्ष में जुलाई 1995 में
पहुंचा तो बोर्ड के लोगों ने मेरे पत्रकारिता में किसी तरह के कार्य के अनुभव के
बारे में पूछा।
मैंने बताया कि इन दिनों मैं हिंदी प्रचारक संस्थान के निदेशक
कृष्णचंद्र बेरी की आत्मकथा लिख रहा हूं। बोर्ड के लोग थोड़े चकित हुए। सभी लोग
बेरी जो को सम्मान से जानते थे। एक सदस्य ने सवाल किया- बेरी जी ने किसी महानपुरूष
की आत्मकथा पर काम किया था आपको पता है...मैंने बताया- हां 18 साल की आयु में ही
उन्होंने हिटलर की आत्मकथा मेनकेंफ का पहला हिंदी अनुवाद पेश किया था। ये पुस्तक
एक बार फिर नए रूप में प्रकाशित हो रही है।
बोर्ड के सदस्यों ने
मुझसे और भी सवाल पूछे थे- मसलन इतिहास के छात्र होते आपने किन इतिहासकारों की
पुस्तकें पढ़ी उनकी क्या खासियत है...मैंने ताराचंद, सुमित सरकार के नाम लिए। मेरे
गृह नगर सासाराम के ऐतिहासिक नाम शेरशाह की इतिहास में प्रमुख देन- मैंने बताया
डाक व्यवस्था, न्याय व्यवस्था और बाद में जीटी रोड। एक सदस्य ने पूछा पत्रकारिता
बीएचयू में भी पढ़ाई जाती है फिर यहां क्यों आना चाहते हो। मैंने कहा आईआईएमसी की
अच्छी फैकल्टी और आधारभूत संरचना के बारे में सुन रखा है। मेरा 20 मिनट का
इंटरव्यू एक भी जवाब नकारात्मक नहीं रहा। पर बेरी जी पर शुरू हुए प्रसंग ने मेरे
साक्षात्कार को लंबा खींचा और सुखद संवादों के साथ समापन हुआ। मैं बाहर आकर
आश्वस्त हो चुका था कि मेरा चयन पक्का है। मैंने बनारस पहुंच कर बेरी जो ये बात
बताई। साक्षात्कार बोर्ड में सबने उनका नाम सम्मान से लिया ये जानकर मैं व बेरी जी
दोनों ही प्रसन्नचित थे। सचमुच उस दौर में कोई भी हिंदी का लेखक या पत्रकार नहीं
होगा जो बेरी जो को न जानता हो। उन्होंने कमलेश्वर, राजेंद्र अवस्थी, शानी,
विश्वनाथ प्रसाद ( आलोचक) जैसे कई नामचीन लेखकों की पहली किताब छापी वह भी बिना किसी
सिफारिश के। जब सक्रिय पत्रकारिता शुरू करने के बाद दिल्ली ली मीरिडयन होटल में टीवी धारावाहिक युग की प्रेस
कान्फ्रेंस में मेरी कथाकार कमलेश्वर से मुलाकात हुई तब उन्होंने मुझसे बेरी जी का
नाम अति सम्मान से लिया और उनकी प्रशंसा में न जाने कितने वाक्य कह डाले।
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- विद्युत प्रकाश मौर्य