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गिनते जाईए। आगे की सीट पर एक सीट पर दो लोग तो हो गए ना 15 और ड्राइवर क बगल में एक और लटक गया तो हो गए ड्राइवर समेत 17 ना। अभी इसमें खालासी भी साथ होता है तो वह गेट पर लटककर सवारी को रास्ते में आवाज लगाता हुआ चलता है। इस तरह 17 लोगों को शान से लेकर लुढकती हुई चलती है टाटा की मैजिक अपनी मंजिल की ओर। कई बार खाते पीते घरों की तंदुरुस्त महिलाएं ( मोटी नहीं कहेंगे अपमान होगा) आ जाती हैं तो तीन की जगह 4 के बैठने में एतराज करती हैं तो खालासी उन्हें कहता है कि या तो दो सवारी के पैसे दो या फिर अगली मैजिक का इंतजार करो। अब क्या करें मोहतरमा को बैठना ही पड़ता है।
मैजिक खूब मेल कराती है। अनजान सवारियों
को भी काफी एक दूसरे से चिपकर बैठना पड़ता है। मानो फेविकोल का मजबूत जोड़ हो। ये
मंजिल आने के बाद ही अलग हो पाता है। तब तक आप किसी नामचीन ब्रांड के परफ्यूम का
आनंद ले सकते हैं। हां कई बार सह सवारी की पसीने की बदबू भी मिल सकती है। ये आपकी
किस्मत पर निर्भर करता है। इस बात पर भी निर्भर करता है कि सुबह किसता मुंह देखकर
उठे थे। मैजिक वालों का बस चले तो ये छत पर भी सवारी बिठा सकते हैं। पर वे ऐसा
नहीं कर पाते। मैजिक के मुकाबले कई गाड़ियां आईं पर वे मैजिक को चुनौती नहीं दे
सकीं। क्योंकि जो बात मैजिक में है वह किसी और में कहां।
सात की जगह 17 सवारियां बिठाने
के कारण मैजिक ड्राइवरों के घर की तिजोरी भर रही है। भला नाम मैजिक है तो मैजिक तो
होगा ही न। ड्राइवर लोग रोज रतन टाटा को ऐसी नायाब गाड़ी के लिए धन्यवाद देते हैं।
अगर आपकी जिंदगी बोरिंग है, और आप चाहते हैं कि थोड़ा तूफानी हो तो दिल्ली में तो
जरूर किसी मैजिक की सवारी करें। हो सकता है आपको किसी मोहतरमा साहचर्य मिल जाए। और
आपकी जिंदगी में भी आ जाए मैजिक। हां मगर अपनी जेब संभाल कर रखिएगा।
- विद्युत प्रकाश मौर्य ( vidyutp@gmail.com)