निदा
फाजली की गजलें, नज्में और दोहे संवेदना, प्रेम और मनुष्यता के जीवंत दस्तावेज हैं। सूरदास
और कबीर से प्रेरणा लेकर शायरी करने वाले निदा फाजली सहज शब्दों में दो टूक कहने
में विश्वास रखते थे। आम फहम जुबां चयन करके वे कमाल की बात कह जाते थे। यही कारण
था कि उनकी शायरी के चाहने वालों की संख्या बहुत बड़ी थी। आज जब वे इस दुनिया में
नहीं हैं तो उनके चाहने वाले उनके ही शब्दों में उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं-
तुम ये कैसे जुदा हो गए...हर तरफ हर जगह हो गए। तो गम में डूबे उनके प्रशंसक कह
रहे हैं- उसको
रुख़सत
तो किया था मुझे मालूम न था, सारा घर
ले गया घर छोड़ कर जाने वाला।
निदा फाजली - जन्म : 12
अक्तूबर 1938 दिल्ली में. इंतकाल - 08
फरवरी 2016 मुंबई में
ग्वालियर में बीता बचपन
दिल्ली में पिता मुर्तुजा हसन
और मां जमील फातिमा के तीसरी संतान के तौर पर निदा फाजली का जन्म हुआ। बड़े भाई ने
उनका नाम मुक्तदा हसन रखा। पिता भी शायर थे। उनके साथ बचपन ग्वालियर में बिता।
स्कूली जीवन से ही शायरी में रूचि जगी। 1958 में ग्वालियर के विक्टोरिया कालेज (
लक्ष्मीबाई कालेज) से स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी की। बाद में उन्होने अपना शायरी
का नाम रखा निदा फाजली। निदा मतलब है स्वर और फाजली अपने कश्मीरी पृष्ठभूमि की याद
में जोड़ा।
सूरदास से शायरी की प्रेरणा
निदा साहब को सूरदास के पद से
शायरी की प्रेरणा मिली। एक सुबह एक मंदिर के पास से गुजरते हुए सुरदास का भजन
सुना. मधुबन तुम क्यो रहत हरै... इसमें कृष्ण के मथुरा से द्वारका चले जाने पर
उनके वियोग में डूबी राधा और गोपियाँ फुलवारी से पूछ रही होती हैं ऐ फुलवारी, तुम हरी क्यों बनी हुई हो? कृष्ण के वियोग में तुम खड़े-खड़े क्यों नहीं जल गईं? वह सुन कर निदा को लगा कि उनके अंदर दबे हुए दुख की गिरहें खुल रही है। इसके बाद उन्होंने सूरदास, बाबा फरीद, कबीर, तुलसीदास जैसे कवियों को
गहराई से पढ़ा।
सहज भाषा, दिल को छू जाने वाले
शब्द
उन्हें ऐसी कवियों ने आकर्षित
किया जो सीधे बिना किसी लाग लपेट के लिखते हुएं। इसके बाद से अपनी बात को शायरी
में सहजता से बयां करना निदा साहब की खासियत बन गई। उनकी ज्यादातर शायरी अत्यंत
सरल भाषा में और दिल को छू जाने वाली है।
मुंबई में संघर्ष के दिन
हिन्दू-मुस्लिम दंगों से तंग आ
कर उनके माता-पिता पाकिस्तान जाकर बस गए, लेकिन निदा साहब ने भारत में ही रहने का फैसला किया। बाद में कमाई की तलाश
में कई शहरों में भटकते रहे। तलाश मुंबई जाकर खत्म हुई। उस समय मुंबई हिन्दी और
उर्दू साहित्य का केन्द्र था। वहां से धर्मयुग, सारिका जैसी लोकप्रिय पत्रिकाएं
प्रकाशित होती थीं। 1964 में में निदा साहब ने धर्मयुग, ब्लिट्ज
जैसी पत्रिकाओं में लिखना शुरू किया। उनकी
सरल और प्रभावकारी लेखनशैली ने शीघ्र ही उन्हें सम्मान और लोकप्रियता दिलाई। उर्दू
में उनका पहला शायरी का संग्रह 1969 में प्रकाशित हुआ।
फिल्मों के लिए लेखन
कमाल अमरोही उन दिनों धर्मेंद्र
और हेमा को लेकर फ़िल्म रजिया सुल्तान बना रहे थे। इसके गीत जानिंसार अख्तर ने लिख
रहे थे। पर उनका अकस्मात निधन हो गया, तब कमाल अमरोही ने उनसे संपर्क किया और
उन्हें फ़िल्म के शेष दो गाने लिखने को कहा। इस तरह से फिल्मों के लिए गीत गजल
लिखने की शुरुआत हुई।
कौमी एकता के शायर -
निदा फाजली साहब जब वह
पाकिस्तान गए तो एक मुशायरे के बाद कट्टरपंथी मुल्लाओं ने उनका घेराव कर लिया और
उनके लिखे शेर - घर से मस्जिद है बड़ी दूर, चलो ये कर लें। किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए।
पर अपना विरोध प्रकट किया। शायरों ने उनसे पूछा कि क्या निदा किसी
बच्चे को अल्लाह से बड़ा समझते हैं? निदा ने उत्तर दिया कि
मैं केवल इतना जानता हूँ कि मस्जिद इंसान के हाथ बनाते हैं जबकि बच्चे को अल्लाह
अपने हाथों से बनाता है।
प्रमुख कृतियां
सफर में धूप तो होगी, खोया हुआ सा कुछ, आंखों भर आकाश, मौसम आते
जाते हैं
लफ़्जों के फूल, मोर नाच, आंख और ख़्वाब के दरमियां, शहर में गांव ( 2015)
पुरस्कार सम्मान
2013 में भारत सरकार ने
पद्मश्री सम्मान दिया
1998 में उन्हें उनकी कृति
खोया हुआ सा कुछ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित
2003 में स्टार स्क्रीन
पुरस्कार - श्रेष्टतम गीतकार - फ़िल्म 'सुर के लिए
2002 में बॉलीवुड मूवी पुरस्कार श्रेष्टतम
गीतकार - फ़िल्म सुर के गीत आ भी जा' के लिए
मध्यप्रदेश सरकार का मीर तकी
मीर पुरस्कार (आत्मकथा रुपी उपन्यास- दीवारों के बीच के लिए)
मध्यप्रदेश सरकार का खुसरो
पुरस्कार - उर्दू और हिन्दी साहित्य के लिए
महाराष्ट्र उर्दू अकादमी का
श्रेष्ठतम कविता पुरस्कार - उर्दू साहित्य के लिए
बिहार उर्दू अकादमी पुरस्कार
उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी का
पुरस्कार
हिन्दी उर्दू संगम पुरस्कार
(लखनऊ) - उर्दू और हिन्दी साहित्य के लिए
प्रसिद्ध
फिल्मी गीत –
तेरा
हिज्र मेरा नसीब है,
आई जंजीर की झंकार खुदा खैर करे (रजिया सुल्तान)
होश
वालों को खबर क्या,
बेखुदी क्या चीज है (सरफ़रोश)
कभी
किसी को मुक़म्मल ज़हां नहीं मिलता (आहिस्ता-आहिस्ता)
तू
इस तरह से मेरी ज़िंदग़ी में शामिल है (आप तो ऐसे न थे),
चुप
तुम रहो, चुप हम रहें (इस रात की सुबह
नहीं)
कभी
शाम ढले तो मेरे दिल में आ जाना, आ भी जा ओ सुबह आ भी जा (सुर)
ज़िंदगी
है कि बदलता मौसम (एक नया रास्ता)
तुमसे
मिलके जिंदगी को यूं लगा (चोर पुलिस)
मुस्कुराते
रहो गम छुपाते रहो (नज़राना प्यार का)
अजनबी
कौन हो तुम (स्वीकार किया मैंने)।
निदा
साहब की कुछ प्रसिद्ध गजलें-
कभी
किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता
कहीं ज़मीं तो कहीं आस्मां नहीं मिलता
--
होश
वालों को ख़बर क्या बेख़ुदी क्या चीज़ है
इश्क़ कीजे फिर समझिए ज़िन्दगी क्या चीज़
है
--
जब
किसी से कोई गिला रखना
सामने अपने आईना रखना
--
दुनिया
जिसे कहते हैं जादू का खिलौना है
मिल जाए तो मिट्टी है खो जाए तो सोना है
--
अपनी
मर्ज़ी से कहां अपने सफ़र के हम हैं
रुख़ हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं
--
बदला न
अपने आप को जो थे वही रहे
मिलते रहे सभी से मगर
अजनबी रहे
--
धूप में
निकलो घटाओं में नहा कर देखो
ज़िन्दगी क्या है किताबों
को हटा कर देखो
--
गरज
बरस प्यासी धरती पर फिर पानी दे मौला
चिड़ियों को दाना, बच्चों को गुड़धानी दे मौला
--
कुछ
तबीयत ही मिली थी ऐसी चैन से जीने की सूरत ना हुई
जिसको चाहा उसे अपना ना सके जो मिला उससे
मुहब्बत ना हुई
--
मैं रोया परदेस में भीगा मां का प्यार
दुख ने दुख से बात की बिन चिठ्ठी बिन तार
---
बेसन की सोंधी रोटी पर, खट्टी चटनी जैसी मां
याद आता है चौका-बासन, चिमटा फुंकनी जैसी मां ।
जाने
वालों से राब्ता रखना
दोस्तो रस्म-ए-फातिहा रखना
उसको रुखसत तो किया था,
मुझे मालूम न था
सारा घर ले गया, घर छोड़ के जानेवाला ।
-vidyutp@gmail.com